अचानक सारी कहानी बदल रही है, The Narrative is Changing
चन्द्र मोहन यह बिल्कुल लहर विहीन चुनाव है जैसा मैंने एक महीने पहले अपने लेख में भी लिखा था। यह नहीं कि लोगों को दिलचस्पी नहीं है। गली, मोहल्लों, चौपालों, बैठकों, रेलों, बसों में सब जगह चर्चा चुनाव की ही है। लेकिन परिणाम को लेकर एक प्रकार की अपरिहार्यता है, ‘आएँगें तो वो ही’। पर उत्साह नहीं है, न किसी के पक्ष में, न किसी के विपक्ष में। 2014 और 2019 वाला जोश ग़ायब है। 2014 में जनता यूपीए सरकार के घपलों से परेशान थी, और 2019 में बालाकोट पर कार्यवाही ने लहर पैदा कर दी थी। इस बार ऐसा कुछ नहीं है। पाकिस्तान तो मुद्दा ही नहीं रहा चाहे कुछ नेता उठाने की कोशिश करते रहतें हैं। स्थानीय फ़ैक्टर […]