हिमालय की आवाज़ ख़ामोश हो गई, Himalaya Has Lost Its Voice
हमने गांधीजी को नही देखा। विनोबा भावे को मैंने बचपन में देखा था, पर कुछ याद नही। अक्तूबर 2010 को जालन्धर में सुन्दरलाल बहुगुणाजी से मिलने का मौक़ा मिला तो एकदम यह आभास हुआ कि मैं एक गांधीवादी महापुरुष के सामने खड़ा हूँ। सरल, सहज, सादे। जाने माने पर्यावरणविद अनिल जोशी का सही कहना है, “बहुगुणाजी के व्यक्तित्व में मैंने गांधीजी के दर्शन कर लिए”। कोविड से उनके निधन से हिमालय की बुलंद आवाज़ ख़ामोश हो गई, पेड़ों का सबसे बड़ा संरक्षक नही रहा।यह भी आभास मिलता है कि आदर्शवादियों का युग ख़त्म हो रहा है। वह शायद अंतिम गांधीवादी थे जिनका विश्वास दृढ़ था, और उस पर अमल करने का साहस था। वह जानते थे कि एक एक पेड़ […]