पाकिस्तान को डूबने से बचाना हमारी ज़िम्मेवारी नहीं हो सकती, Not Our Duty To Save Pakistan

भारत और पाकिस्तान के बीच ठहरे पानी में उनके विदेश मंत्री इसहाक डार ने पत्थर उछाल दिया है। क़रीब पाँच वर्ष के बाद उन्होंने भारत के साथ व्यापार सम्बंध बहाल करने की इच्छा जताई है। लंडन में संवाददाताओं से बातचीत में उन्होंने कहा है कि उनके देश का व्यापारिक समुदाय भारत के साथ फिर कारोबार शुरू करना चाहता है। और उनका कहना था कि, “हम भारत के साथ व्यापार के मामले को गंभीरता से देखेंगे”। स्मरण रहे कि 2019 में जम्मू कश्मीर में धारा 370 हटाए जाने के बाद बौखलाए पाकिस्तान ने सारे रिश्ते तोड़ दिए थे और कहा था कि जब तक जम्मू कश्मीर में पुरानी स्थिति बहाल नहीं होती यह रिश्ते भी बहाल नहीं होंगे। कहा गया कि संबंध सुधारने की ज़िम्मेवारी भारत की है। भारत के साथ व्यापार रूक गया। भारत तो बदला नहीं पर अचानक पाकिस्तान का सुर बदल गया है। जिसे ‘हाई हार्स’ कहा जाता है उससे वह उतरने के संकेत दे रहें हैं। समझ तो वह बहुत पहले गए थे पर अब उच्च स्तर पर स्वीकार किया जा रहा है कि भारत के साथ संबंध बेहतर किए बिना गति नहीं है। निश्चित तौर पर उनकी हालत ख़राब होगी तब ही कड़वा घूँट पी कर भारत से व्यापार की इच्छा व्यक्त की जा रही है। इसलिए धारा 370 पर कदम उल्टाने वाली शर्तें ठंडे बस्ते में डाल दी गई है। वैसे भी कश्मीर शांत है और वह जानते हैं कि न केवल यह सरकार, बल्कि भारत की कोई भी भावी सरकार जम्मू कश्मीर में धारा 370 बहाल नहीं करेगी।

भारत और पाकिस्तान के बीच कुछ व्यापार चल रहा है पर यह समुद्री या हवाई रास्ते से है। दुबई या सिंगापुर जैसी जगहों से हमारा माल पाकिस्तान पहुँच रहा है। ज़मीनी रास्ता अफ़ग़ानिस्तान के लिए खुला है पर हम पाकिस्तान के ज़मीनी रास्ते से केन्द्रीय एशियाई गणराज्यों को माल नहीं भेज सकते। इसके लिए अब ईरान की चाहबहार बंदरगाह का इस्तेमाल किया जा रहा है। हमारे कच्चे माल पर पाकिस्तान का कपड़ा उद्योग निर्भर करता है जो अब अपने महँगे उत्पाद के कारण भारत, बांग्लादेश और वियतनाम जैसे देशों द्वारा तैयार किए गए माल के आगे टिक नहीं रहा। उन्हें हमारी चीनी भी चाहिए जो सस्ती है। पाकिस्तान के वित्तमंत्री कह चुके हैं कि, “पाकिस्तान में कपास की माँग है।कपास की कम पैदावार से कपड़ा उद्योग प्रभावित हुआ है और दूसरे देशों की तुलना में भारत से चीनी सस्ती है”। लेकिन पाकिस्तान की समस्या कपास या चीनी की कमी से भी बहुत विशाल है। सीधी सी बात है कि देश दिवालिया होने के कगार पर है। जिसे जेल में बंद इमरान खान ने ‘भीख का कटोरा’ कहा था, को लेकर उनके हर प्रधानमंत्री को विभिन्न राजधानियों के चक्कर लगाने पड़ते हैं या आईएमएफ़ जैसी संस्थाओं के आगे गिड़गिड़ाना पड़ता है।

एशियन डिवेलप्मैंट बैंक के अनुसार 2023-24 में पाकिस्तान की विकास दर 1.9 प्रतिशत रहने की सम्भावना है। देश बुरे क़र्ज़ में है और महंगाई की दर 25 प्रतिशत है। विदेशी मुद्रा का रिसर्व न के बराबर है। देश में भारी असंतोष है। इसीलिए इसहाक डार का कहना है कि भूगोल की मजबूरी कहती है कि भारत के साथ व्यापार फिर शुरू किया जाए। पाकिस्तान में एक राय यह भी है जो चीन या अमेरिका पर निर्भरता कम करने की वकालत करती है। विकल्प भारत है। इकनॉमिक टाइम्स ने लिखा है कि, “पाकिस्तान द्वारा भारत के साथ व्यापार सम्बंध क़ायम करना नीति में महत्वपूर्ण शिफ़्ट है। वह अपनी आर्थिक स्थिति में सुधार और चीन पर निर्भरता कम करना चाहतें है… उनकी अर्थव्यवस्था लाईफ़ सपोर्ट पर है और वह एक जगह से दूसरी जगह  भिक्षा मिलने तक धक्के खा रहे हैं”। विश्व बैंक कह चुका है कि अगर प्रतिबंध हटा लिए जाऐं तो दोनों देशों के बीच वार्षिक व्यापार 2 अरब डॉलर से बढ़ कर 37 अरब डॉलर हो सकता है।

पर क्या आपसी व्यापार शुरू होगा? अतीत में भी सम्बंध ख़राब होते रहे पर व्यापार चलता रहा। अब सम्बंध बहुत बिगड़ चुकें है। पाकिस्तान में अभी भी एक राय है जो भारत के साथ सम्बंध सुधारने के खिलाफ है। इसहाक डार की भी आलोचना हो रही है कि उन्होंने अक़्ल की बात क्यों कही है। विशेषज्ञ मुशर्रफ ज़ैदी का कहना है, “विदेश मंत्री डार भारत के साथ व्यापार की बात करते हैं। पाकिस्तान के एलीट वर्ग की आदत है कि वह दोस्ती का हाथ माँगता रहता है जो अस्तित्व में नहीं है”। यह बात आंशिक तौर पर सच है। भारत के हर प्रधानमंत्री ने पाकिस्तान की तरफ़ दोस्ती का हाथ बढ़ाया, और वह हाथ झुलस गया। दोस्ती के प्रयास के इवज़ में अटल बिहारी वाजपेयी को कारगिल, मनमोहन सिंह को मुम्बई हमला और नरेन्द्र मोदी को उरी, पठानकोट और पुलवामा के हमले मिले। लेकिन एक बात मुशर्रफ ज़ैदी की ज़रूर सही लगती है,इस वक़्त भारत में पाकिस्तान के साथ सम्बंध सामान्य करने और व्यापार शुरू करने की बहुत इच्छा नहीं है। ‘दोस्ती का हाथ’ मौजूद नहीं है। हमारी कोई मजबूरी भी नहीं है। हमारी बड़ी अर्थव्यवस्था है हमें पाकिस्तान के साथ व्यापार के बहुत फ़ायदे भी नहीं हैं। वहाँ से ऐसा कोई आयात नहीं जिसके बिना हमारा गुज़ारा नहीं हो रहा। हाँ, हमारा इसमें हित ज़रूर है कि पाकिस्तान से अफ़ग़ानिस्तान और केन्द्रीय एशियाई गणराज्यों के लिए ज़मीनी रास्ता खुल जाए। पंजाब में आपसी व्यापार को लेकर एक वर्ग में उत्साह ज़रूर है। दोनों देशों के बीच व्यापार से बहुत लोगों को यहाँ रोज़गार मिलता था।2019 से पहले रोज़ाना 200 ट्रक यहाँ से सीमा पार जाते थे। अब सिर्फ़ अफ़ग़ानिस्तान से माल आता है जिससे उनका धंधा चलता है जो ड्राई फ़्रूट और मसाले का व्यापार करते हैं।

दक्षिण एशिया के विशेषज्ञ माइकल कुगेलमैन का कहना है कि, “बड़ी अर्थव्यवस्था के कारण भारत को पाक के साथ व्यापार में कम फ़ायदा है…मुझे उम्मीद नहीं कि भारत चुनाव के बाद व्यापार शुरू करेगा…जब तक पाकिस्तान के साथ आतंकवाद से जुड़ी चिन्ताओं पर पाकिस्तान कार्रवाई नहीं करता, भारत बातचीत नहीं करेगा”। “हक़ीक़त है कि पाकिस्तान को आज भारत की ज़रूरत भारत को पाकिस्तान की ज़रूरत से बहुत अधिक है”, यह इकनॉमिक टाइम्स का  कहना है। हमारी अर्थव्यवस्था मज़बूत है और हम उन विकासशील देशों के लिए बाज़ार खोलने के बहुत इच्छुक नहीं जिनका सस्ता माल हमारे उद्योगपतियों के लिए चुनौती बन सकता है। हमारी अर्थव्यवस्था उनसे 10 गुना बढ़ी है। दोनों में कैसी ग़ैर बराबरी है वह कारों की बिक्री से पता चलता है। पिछला साल नवम्बर में पाकिस्तान में केवल 5000 कारें बिकी थी जबकि भारत में 3.6 लाख कारें इसी महीने बिकी थी। पाकिस्तान के  कमजोर विकास के कारण यह फ़ासला बढ़ता जाएगा। एक समय ज़रूर था जब यहाँ पाकिस्तान के साथ सम्बंध बेहतर करने कि लिए लॉबी थी। यह लोग वाघा सीमा पर जा कर मोमबत्तियाँ जलाते थे। पाकिस्तान की अपनी लगातार बेवक़ूफ़ियों के कारण वह जज़्बाती लम्हा गुज़र चुका है। ऐसा लगता है कि सारे देश ने सामूहिक तौर पर यह फ़ैसला कर लिया है कि हम पाकिस्तान के बिना रह सकते हैं।

हाल ही में जब विदेश मंत्री जयशंकर से पूछा गया कि किस देश को वह सबसे बड़ी चुनौती समझतें हैं तो उनका बेबाक़ जवाब था, ‘पाकिस्तान’। इसका अर्थ है कि अविश्वास ख़त्म नहीं हुआ। हमें यह ज़रूर फ़ायदा होगा कि क्षेत्र में स्थिरता आएगी और पाकिस्तान चीन की गोद में बैठना बंद कर देगा। यह भी सकारात्मक है कि 2021 से नियंत्रण रेखा पर गोलाबारी बंद है। लेकिन उन्हें जिममेवार बनाना हमारी ज़िम्मेवारी नहीं है। इमरान खान के समय 2021 में भी उन्होंने भारत से आयात करने वाली कपास और चीनी पर लगाया एकतरफ़ा प्रतिबंध वापिस ले लिया था पर अगले ही दिन उनकी कैबिनेट ने निर्णय पलट दिया क्योंकि कट्टरपंथियों ने विरोध किया था जबकि तत्कालीन सेनाध्यक्ष जनरल बाजवा पक्ष में थें। अभी तक पाकिस्तान के वर्तमान सेनाध्यक्ष जनरल असीम मुनीर ने इस मुद्दे पर मुँह नहीं खोला इसलिए मालूम नहीं कि वह क्या चाहतें हैं। वह सब कुछ पलट सकतें हैं। विशेषज्ञ सी.राजा मोहन ने दिलचस्प टिप्पणी की है, “ भारत के साथ व्यापार अक़्ल की बात है पर पाकिस्तान के साथ समस्या यह है कि सही करने की राजनीति वहाँ काफी मुश्किल है”।

पाकिस्तान के पड़ोसी ईरान और अफ़ग़ानिस्तान के साथ सम्बंध कड़वे हो चुकें हैं। वास्तव में भारत के साथ उनके सम्बन्ध पड़ोसी इस्लामी देशों से बेहतर है। कम से कम सीमा शांत है। वह जानते है कि वह एक कोनें में फँस चुके हैं। अर्थव्यवस्था की ज़रूरत है कि वह सभ्य पड़ोसी की तरह रहें पर आंतरिक राजनीति ऐसी है कि वह सही कदम उठाने से हिचकिचाते है। नवाज़ शरीफ़, शहबाज़ शरीफ़, आसिफ़ ज़रदारी सब समय समय पर भारत के साथ व्यापार शुरू करने की वकालत कर चुकें है पर राजनीति हावी हो जाती है। शरीफ़ बंधुओं की पार्टी पीएमएनएल का विशेष तौर पर समृद्ध और औद्योगिक वर्ग में आधार हैं जिन्हें सदैव भारत के साथ व्यापार में अपना हित नज़र आता है पर इतिहास बताता है कि उनकी सरकारें कट्टरपंथियों के आगे समर्पण करने में भी देर नहीं लगाती। पर यह उनकी समस्या। हमें वेट एंड वॉच की नीति अपनानी चाहिए। अभी तो चुनाव हो रहे है पर उनके बाद भी जब तक पाकिस्तान बंदा नहीं बनता और आतंक का अपना नल बंद नहीं करता, हमें व्यापार शुरू करने में दिलचस्पी नहीं दिखानी चाहिए। आपसी सम्बन्ध उनकी सनक या शरारत पर निर्भर नहीं होने चाहिए। वह स्विच ऑन स्विच ऑफ नहीं कर सकते। न ही उन्हें डूबने से बचाना हमारी ज़िम्मेवारी हो सकती है।

VN:F [1.9.22_1171]
Rating: 0.0/10 (0 votes cast)
VN:F [1.9.22_1171]
Rating: 0 (from 0 votes)
About Chander Mohan 739 Articles
Chander Mohan is the grandson of the legendary editor of Pratap, Mahashya Krishan. He is the son of the famous freedom fighter and editor, Virendra. He is the Chief Editor of ‘Vir Pratap’ which is the oldest hindi newspaper of north west india. His editorial inputs on national, international, regional and local issues are widely read.