दो कोरिया के बाद भारत-पाक? (After Koreas Indo-Pak ?)

कई लोग भावुक हो रहें हैं। जब से उत्तर तथा दक्षिण कोरिया के बीच संबंध बेहतर हुए हैं हमारे यहां तथा पाकिस्तान में भी, कई लोग उत्साह से भारत तथा पाकिस्तान के नजदीक आने के सपने देख रहें हैं। कहा जा रहा है कि भारत 70 वर्षों में विश्व की पांचवीं बड़ी अर्थ व्यवस्था बन सकता है तो अगर भारत तथा पाकिस्तान इकट्ठे होते तो हम दूसरी या तीसरी बड़ी अर्थ व्यवस्था होते।

पाकिस्तान में ऐसी आवाजें बहुत उठ रही हैं। अपनी आंतरिक समस्याओं तथा बेचैन माहौल के कारण वहां नैराश्य का वातावरण है। द डॉन अखबार के प्रमुख स्तम्भकार सायरल एलमीडिया ने लिखा है  “आखिर में हमें वह आग ही भस्म करती है जो हमने खुद जलाई हो।“ जुबेदा मुस्तफा लिखती हैं, “भारत के साथ वार्ता शुरू करने का समय आ गया है। एक समय यह हमारी खुशहाली तथा विकास के लिए जरूरी था पर आज यह कहा जा सकता है कि हमारा अस्तित्व ही इस पर निर्भर करता है।“ अमेरिका में पाकिस्तान के पूर्व राजदूत हुसैन हक्कानी ने अपनी नई किताब ‘रीइमैजनिंग पाकिस्तान; में सुझाव दिया है कि पाकिस्तान को इस क्षेत्र में अपनी  ‘भारतीय विरासत’ को स्वीकार करना चाहिए।

ऐसे माहौल के बीच कोरिया से नाटकीय घटनाक्रम सामने आ गया है लेकिन जो भारत और पाकिस्तान के एकीकरण के सपने देखते हैं वह हकीकत को नहीं समझते हैं। ठीक है कभी हम एक थे लेकिन पिछले 70 वर्षों में बहुत पानी बह चुका है इसे वापिस नहीं किया जा सकता। दो कोरिया और हमारी तथा पाकिस्तान की स्थिति में मूलभूत अंतर है। कोरिया का विभाजन शीत युद्ध के दौरान हुआ था। जो देश उस दौरान विभाजित हुए, जर्मनी, वियतनाम, यमन आदि धीरे-धीरे इकट्ठे हो गए। अब कोरिया की बारी लगती है।

भारत और पाकिस्तान अंग्रेजों की शरारत के शिकार हुए। विभाजन भी इस तरह खूनी करवाया गया कि 70 वर्षों के बाद भी लोग उभरे नहीं। यहां तो जिन्नाह की पुरानी तस्वीर को लेकर सर फूट रहें हैं। दोनों कोरिया के लोग एक ही जाति और एक ही धर्म के हैं। उनकी एक ही भाषा है। संस्कृति भी एक है। भारत और पाकिस्तान के बीच दुनिया भर की भिन्नता है। हमारा धर्म अलग है, राजनीति अलग है और संस्कृति बिल्कुल अलग है। कुछ अपवाद को छोडकऱ भारत एक उदार सैक्यूलर लोकतांत्रिक देश है जो पाकिस्तान अभी तक बन नहीं सका। अर्थात कुछ समानता नहीं है।

दोनों कोरिया एक होना चाहते हैं जबकि भारत तथा पाकिस्तान में यह बात करना ही एक प्रकार से वर्जित है। पाकिस्तान में तो बहुत लोग समझते हैं कि भारत उन्हें हड़पना चाहता है जबकि भारत में ऐसी कोई रुचि नहीं है चाहे मुलायम सिंह यादव तथा संघ परिवार से जुड़े कुछ लोग यदाकदा अखंड भारत का सुझाव देते रहते हैं। पर हमें पाकिस्तान को मिला कर मिलेगा क्या? हम उनके जेहादियों को लेकर क्या करेंगे? उनसे अपना घर नहीं संभाला जाता हम उनकी समस्याएं अपने सर क्यों लेंगे? उनकी हालत यह है कि जहां हजारों पाकिस्तानी इलाज के लिए भारत का वीज़ा प्राप्त करने के लिए लाईन में खड़े होने को तैयार हैं क्योंकि पाकिस्तान में अच्छे हस्पताल नहीं हैं वहां उनके मुल्ला तथा राजनेता सडक़ों पर उतर कर आपस में भिड़ रहे हैं। सेना मदारी की तरह इन्हें नचाती है। सबसे लोकप्रिय राजनेता नवाज शरीफ को न्यायपालिका की सर्जिकल स्ट्राईक से जिन्दगी भर के लिए चुनाव लडऩे के अयोग्य घोषित कर दिया गया है।

नहीं, हमें पाकिस्तान के साथ नहीं मिलना। न यह व्यवहारिक है और न ही यह हमारे हित में है। पाकिस्तान बहुत समय से धार्मिक उग्रवाद और आतंकवाद को पाल रहा है। दोनों अब नियंत्रण से बाहर हो रहे हैं। उनके आर्मी चीफ जनरल कमर जावेद बाजवा का भी कहना है कि अगर बच्चे मदरसों में पढ़ेंगे तो आतंकवादी ही बनेंगे। लेकिन इसके लिए उनकी सेना ही तो जिम्मेवार है। जिया उल हक के समय से ही पाकिस्तान की सेना ने आतंक के कारखाने को संरक्षण दिया है। अब यह कारखाना कलपुर्जों की तरह कट्टर आतंकवादियों को बाहर निकाल रहा है। कट्टरवादियों ने तो कानून मंत्री जाहिद हमीद को इस्तीफा देने पर मजबूर कर दिया था और अब गृहमंत्री अहसान इकबाल उनकी गोली लगने से घायल हैं।

जब राजनेता आपसी दोस्ती की बात करते हैं तो हमें कारगिल मिलता है, मुंबई मिलता है, पठानकोट मिलता है। बहुत भारतीय प्रधानमंत्री पाकिस्तान के साथ दोस्ती के प्रयास में अपने हाथ जला चुके हैं लेकिन अब जनरल बाजवा जो बात कह रहे हैं वह जरूर महत्वपूर्ण है क्योंकि उन्हें सेना का समर्थन है और पाकिस्तान की विदेशनीति की शिल्पकार उनकी सेना ही है। कुछ समय से ‘बाजवा डॉकट्रिन’ चर्चा में है। इस सिद्धांत में उन्होंने भारत के साथ संबंध बेहतर करने की बात कही है। वह कश्मीर समस्या का समाधान नफरत, आतंकवाद या युद्ध से नहीं चाहते और उन्होंने पड़ोसियों के साथ पुल बनाने की बात कही है।

इंगलैंड के एक थिंक टैंक क्रस्ढ्ढ ने इस बात की पुष्टि की है कि जनरल बाजवा समझते हैं कि पाकिस्तान की खुशहाली का रास्ता भारत के साथ सहयोग के द्वारा है। पहली बार जनरल बाजवा ने इस्लामाबाद स्थित भारतीय सैनिक अधिकारी को पाकिस्तान दिन पर सैनिक परेड देखने के लिए आमंत्रित किया। उसके दो सप्ताह बाद उन्होंने कहा कि पाक सेना भारत के साथ शांति तथा वार्ता चाहती है। सितम्बर में भारत-पाकिस्तान की सेनाएं रुस में रुस और चीन के साथ मिल कर संयुक्त सैनिक अभ्यास में हिस्सा ले रही हैं।

क्रस्ढ्ढ की इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि एक और उच्च सैनिक अधिकारी मेजर जनरल अहमद हयात ने एक योजना तैयार की है जिसका निष्कर्ष यह है कि  च्च्आप उस पड़ोसी के साथ जो आप से छ: गुना बड़ा है स्थाई दुश्मनी में नहीं रह सकते।ज्ज् जनरल हयात का भी मानना है कि भारत के साथ सामान्य संबंधों से पाकिस्तान की आर्थिक तरक्की हो सकेगी।

पाकिस्तान की सेना के रवैये में आए इस परिवर्तन पर गदगद पाक पत्रकार सोहेल वरैच ने जनरल बाजवा का धन्यवाद किया है कि उन्होंने “70 वर्षों की अंधी राष्ट्रीयता को त्याग कर हकीकत का सिद्धांत अपनाया है जो पड़ोसियों के साथ शांतमय अस्तित्व पर आधारित है।“  बड़ा सवाल तो लेकिन यह है कि यह कथनी करनी में परिवर्तित भी होगी? नियंत्रण रेखा पर फायरिंग वैसे ही चल रही है। कश्मीर में पाकिस्तान हिंसा करवा रहा है और अब तो अफगानिस्तान में 7 भारतीय इंजीनियर अगवा कर लिए गए हैं। यह अच्छा संदेश नहीं है। लेकिन फिर भी जनरल बाजवा का कहना महत्व रखता है।

यह सब परिवर्तन क्यों आया? बड़ा कारण उनकी आतंरिक स्थिति है। उनसे तो हाफिज सईद ही संभाला नहीं जा रहा है जो राजनीति में कदम रखना चाहता है। एक और कारण यह भी है, जिसे पूर्व विदेश सचिव जी पारथासारथी ने भी लिखा है, कि देश में असंतोष इतना है कि सिंध, ब्लूचिस्तान तथा खैबर-पखूतनखवा में हालात बेकाबू हो रहे हैं। तीसरा कारण अमेरिका से उनके बिगड़ते रिश्ते हैं। डोनाल्ड ट्रम्प की सरकार तो पाकिस्तान को खलनायक समझती है और उन पर दुनिया भर के प्रतिबंध लगाए जा रहे हैं। चौथा,  अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी पाकिस्तानी अलग-थलग हो गए हैं। कई देशों में पाकिस्तानियों का स्वागत नहीं किया जाता। पांचवां, पाकिस्तान के चीन के साथ अच्छे संबंध हैं लेकिन वहां के पढ़े-लिखे वर्ग में यह अहसास है कि कहीं आर्थिक गलियारा OBOR दूसरा ईस्ट इंडिया कंपनी ही न बन जाए। छठा, पाकिस्तान का विदेश मुद्रा का भंडार तेजी से गिर रहा है। वह जानते हैं कि उन्हें भीख के कटोरे के साथ शीघ्र अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के पास जाना पड़ेगा जो अपनी अपमानजनक शर्तें लगाएगा।

उन्हें यह भी समझ आ गया है कि भारत के साथ दुश्मनी के कारण पाकिस्तान भटक गया है। कई लोग बहुत समय से वहां कहते आ रहे हैं कि कश्मीर को हासिल करने के प्रयास में वह पाकिस्तान को ही खो रहे हैं। लेकिन भारत और पाकिस्तान दो  कोरिया नहीं है। हम कभी एक नहीं हो सकते लेकिन हां, दोनों के बीच शांतमय अस्तित्व हो सकता है। सभ्य पड़ोसियों की तरह रह सकतें हैं। यह प्रयास होना भी चाहिए। आप जहां हो वहां खुश रहो, हम जहां हैं हमें खुश रहने दो। बीच में नफरत की जो दीवार है उसे तोडऩे की जरूरत है लेकिन यह उन पर निर्भर करता है जिन्होंने इस दीवार को खड़े करने के लिए अपना घर ही जला लिया।

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Chander Mohan is the grandson of the legendary editor of Pratap, Mahashya Krishan. He is the son of the famous freedom fighter and editor, Virendra. He is the Chief Editor of ‘Vir Pratap’ which is the oldest hindi newspaper of north west india. His editorial inputs on national, international, regional and local issues are widely read.