अबकी बार किस की सरकार? (Whose Government This Time?)

‘चोर’ – ‘चोर’ ,  ‘झूठा’ – ‘झूठा’ ,  ‘इस्तीफा दो’ – ‘इस्तीफा दो ‘। हम भारत के लोकतंत्र का जलूस निकलता देख रहें हैं। संसद में कागज़ के विमान चल चुके हैं गनीमत है कि अभी तक मामला धक्का-मुक्की या मार-पिटाई तक नहीं पहुंचा। पहले लोकसभा अध्यक्षों की ही तरह वर्तमान अध्यक्षा भी अराजक तत्वों के सामने बेबस नज़र आतीं हैं। बहुत पहले गद्दर पार्टी के नायक लाला हरदयाल ने ठीक ही कहा था कि  ‘पगड़ी अपनी संभालिएगा मीर, और बस्ती नहीं यह दिल्ली है!’   दिल्ली किसी की सगी नहीं।

लेकिन दिल्ली में क्या होता है इसकी कहानी 555 किलोमीटर दूर लखनऊ में भी लिखी जा रही है जहां बुआ-भतीजे का गठबंधन हो रहा है। उत्तर प्रदेश देश को 80 सांसद देता है जिनमें से भाजपा ने पिछली बार 71 सीटें जीती थी जबकि सपा दूर दूसरे स्थान पर थी और मायावती की बसपा शून्य का आंकड़ा भी तोड़ नहीं सकी। विधानसभा चुनावों में भी दोनों की दुर्गत हुई थी लेकिन तब से लेकर अब तक गोमती में बहुत पानी बह चुका है। भाजपा का ग्राफ गिरा है और वह प्रदेश में तीन लोकसभा उपचुनाव हार चुकी है। चुनावों में अपनी दुर्गत से सबक सीखते हुए मायावती तथा अखिलेश यादव अब इकट्ठे होकर लोकसभा चुनाव लडऩे वाले हैं। पिछली बार दोनों के मिलकर 44 प्रतिशत वोट थे जबकि भाजपा के 40 प्रतिशत थे इसलिए अगर वह इकट्ठे होकर लड़ते हैं तो भाजपा तथा कांग्रेस दोनों के लिए मुसीबत है। कांग्रेस की हालत अधिक खराब होने वाली है क्योंकि उसके लिए केवल दो सीटें अमेठी तथा रायबरेली ही छोड़ी गई है। अगर कांग्रेस की देश के सबसे बड़े प्रदेश में कोई हैसियत नहीं तो राष्ट्रीय स्तर पर वह एक प्रभावी विकल्प नहीं बन सकती। वहां अपने पैरों पर खड़े होना देश की सबसे पुरानी पार्टी के लिए बहुत मुश्किल नज़र आता है।

लेकिन भाजपा की जान भी उत्तर प्रदेश के तोते में बंद है। अगर अगली बार भी मोदी सरकार बननी है तो उत्तर प्रदेश में अच्छा प्रदर्शन लाज़मी होगा। अखिलेश यादव से सीबीआई की पूछताछ से परिवर्तन नहीं आएगा। लोग भी समझते हैं कि चुनाव कारण बदले की कार्रवाई हो रही है लेकिन भाजपा के भविष्य के लिए सबसे महत्वपूर्ण मायावती है। 2019 की चाबी बहनजी के पास लगती है क्योंकि वह ही उत्तर प्रदेश के गठबंधन के लिए ईंजन साबित हो रही है। देखना यह होगा कि मायावती क्या सौदेबाजी करती है?

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कह दिया है कि राम मंदिर पर अध्यादेश लाने की अगर जरूरत होगी तो यह स्थिति सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद ही पैदा होगी। वह समझदार हैं। राम मंदिर के नाम पर वोट मिलने वाले नहीं क्योंकि पार्टी इस मुद्दे को बहुत भुना चुकी है। भाजपा का जो अटल समर्थक है जिनका अंग्रेजी मीडिया का एक हिस्सा ‘भक्त’ कह कर मज़ाक उड़ाता है, की संख्या इतनी नहीं कि बेड़ापार हो सके। अगर यह समूह बड़ा होता तो भाजपा को कोई मुश्किल न होती। सरकार वह लोग बनाते हैं जो अनिर्णित हैं। अब लड़ाई इस 20 प्रतिशत को अपनी तरफ झुकाने की है।

और यह अनिर्णित वोटर केवल विकास के काम या विकास के नाम पर झुकता है। बांग्लादेश का उदाहरण हमारे पास है जहां शेख हसीना को अपने काम पर तीसरी बार जनादेश मिला है। यही रास्ता नरेन्द्र मोदी का होना चाहिए। मोतीलाल नेहरू या जवाहरलाल नेहरू की आलोचना करने से वोट नहीं मिलेंगे। मतदाता या तो आपके काम पर या आपके विरोधियों की विचारधारा या वादे पर वोट डालेंगे जैसे मध्यप्रदेश तथा राजस्थान में किसान ने कर्जा माफी के वादे पर कांग्रेस की सरकारें बना दी। किसी के परदादा या परनाना या दादा-दादी के खिलाफ वोट नहीं पड़ेंगे। चुनाव वर्तमान में और वर्तमान पर लड़ा जाना है, अतीत की कथित गलतियों को लेकर नहीं। नरेन्द्र मोदी को वोट अगर मिलेंगे तो उनके काम पर मिलेंगे और अगर नहीं मिलेंगे तो उनकी गलतियों के कारण नहीं मिलेंगे जिनमें प्रमुख नोटबंदी है।

अगर नोटबंदी को एकतरफ रख दें, चाहे यह आसान नहीं है क्योंकि इसने बहुत जिंदगियां तबाह की थी, बाकी मोदी सरकार का काम संतोषजनक रहा है। इसमें प्रधानमंत्री मोदी का अपना योगदान बहुत है क्योंकि वह खुद पैसे से दूषित नहीं। कोई व्यक्तिगत इलज़ाम उन पर नहीं ठहरता। सुप्रीम कोर्ट से राफेल मामले में सरकार को क्लीन चिट मिलने के बावजूद राहुल गांधी इसे लेकर हिस्टीरिया पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं। केजरीवाल की तरह वह बार-बार वही आरोप दोहरा रहे हैं लेकिन केजरीवाल की ही तरह कोई सबूत नहीं दे रहे। वह समझते हैं कि कीचड़ उछालने से कुछ तो जम जाएगा। शायद बोफोर्स का बदला लेना चाहते हैं या अगस्ता वैस्टलैंड मामले से ध्यान हटाना चाहते हैं लेकिन राफेल और बोफोर्स में मूलभूत अंतर है। बोफोर्स में दलाली का पैसा गांधी परिवार के मित्र क्वाट्रोच्ची तथा उसकी पत्नी के स्विस बैंक खातों में जमा पाया गया था जबकि राफेल के मामले में कोई ‘मनी ट्रेल’ अर्थात पैसे के निशान नहीं है।

मोदी सरकार का विकास के मामले में रिकार्ड अच्छा है। उन्होंने देश को बदलने की भी कोशिश की है। जीएसटी का आगे चल कर अच्छा प्रभाव रहेगा। बीच का भ्रष्टाचार खत्म करने के लिए लोगों के खातों में सीधा पैसा आ रहा है। पिछले तीन सालों में ग्रामीण क्षेत्र में 1 करोड़ घर बनाए गए हैं। देश के शत-प्रतिशत गांवों तक बिजली पहुंच चुकी है। अगर इन दावों में कुछ कमी-पेशी भी है तब भी काम बहुत हुआ है। केन्द्र की पांच योजनाएं उज्जवला, मुद्रा बैंक कर्जा, बेघरों के लिए घर, गरीबों के लिए जन-धन बैंक खाते और आखिरी मील तक पहुंचने के लिए सड़कें, से लोगों की जिंदगियों में सुधार आया है। इसके बावजूद राजस्थान, मध्यप्रदेश तथा छत्तीसगढ़ में पार्टी हार क्यों गई?  इसका जवाब है कि नोटबंदी तथा जीएसटी से गतिमान अर्थव्यवस्था को धक्का पहुंचा था जिसका असर चारों तरफ पड़ा है। जब नौकरियां चली जाएं, बैंकों से मिलने वाला कर्ज़ा कम हो जाए और खेत की पैदावार से पर्याप्त आय न मिले तो भाजपा जीत भी कैसे सकती थी?

नरेन्द्र मोदी के बावजूद भाजपा को चुनौती बहुत है। अब तो कई किस्म की राय उछाली जा रही है। वरिष्ठ मंत्री नितिन गडकरी ने कहा है कि नेतृत्व को हाल की हार की जिम्मेवारी लेनी चाहिए। समझा जाता है कि निशाना अमित शाह थे। भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव तथा विचारक राम माधव का भी मानना है कि भाजपा को बदलना होगा। उनका लिखना है कि  “भाजपा को केन्द्रीय प्रेरणा चाहिए लेकिन कदम विकेंद्रित होने चाहिए।“ क्या इसमें नेतृत्व की आलोचना है जो केवल दो गुजराती नेताओं पर केन्द्रित नज़र आती है? अब बाबा रामदेव जो 2014 में नरेन्द्र मोदी के भक्त थे का भी कहना है कि कोई नहीं कह सकता कि 2019 में कौन प्रधानमंत्री होगा? पश्चिम बंगाल के भाजपा अध्यक्ष दिलीप घोष ने तो यह भी कह दिया है कि बंगाल से पीएम बनने के लिए सबसे उपयुक्त व्यक्ति ममता बैनर्जी है।

ममता बैनर्जी का नाम फिर उछालने से पता चलता है कि मामला कितना पेचीदा है और नरेन्द्र मोदी को चुनौती केवल राहुल गांधी से ही नहीं। ममता बैनर्जी, मायावती, केसीआर, शरद पवार, चंद्र बाबू नायडू आदि बहुत से नेता कतार में हैं। अर्थात पूरी जंग की तैयारी हो रही है लेकिन यह निश्चित नहीं कि कौन किससे भिड़ रहा है। पर एक बात तो निश्चित है कि एक पार्टी का एकछत्र शासन खत्म हो रहा है, आगे गठबंधन सरकार बनेगी। यह भी हो सकता है कि प्रादेशिक नेता तय करें कि किस की सरकार नहीं बनानी है और किसे 272 के पार पहुंचाना है?

सरकार ने सामान्य वर्ग को 10 प्रतिशत आरक्षण देने का फैसला किया है। अर्थात  ‘समाजिक न्याय’ से हट कर आरक्षण को आर्थिक आधार से जोड़ा जा रहा है। सरकार का यह फैसला अदालत में टिकता है या नहीं कहा नहीं जा सकता पर इससे मोदी ने एक बार फिर पहल छीन ली है। विपक्ष को समझ आ जाएगी कि नरेन्द्र मोदी कितने दमदार विरोधी हैं। आने वाले दिनों में वह कुछ और नज़ारा दिखा सकते हैं। वह बहुत आसानी से दिल्ली त्यागने वाले नहीं।

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Chander Mohan is the grandson of the legendary editor of Pratap, Mahashya Krishan. He is the son of the famous freedom fighter and editor, Virendra. He is the Chief Editor of ‘Vir Pratap’ which is the oldest hindi newspaper of north west india. His editorial inputs on national, international, regional and local issues are widely read.