‘विश्व नमस्ते दिवस’आयोजित करने का समय (Vishwa Namaste Divas)

जैसे-जैसे चीन में कोरोना वायरस का प्रभाव घट रहा है यह दूसरे लगभग 100 देशों में फैल गया है। एक लाख से अधिक संक्रमित हैं। इटली में तो हाहाकार मचा है और लगभग एक चौथाई देश को सील कर दिया गया है। अमेरिका जो अपनी भुगौलिक स्थिति के कारण खुद को सुरक्षित समझता था में भी 20 के करीब लोग मारे गए हैं। न्यूयार्क तथा कैलिफोर्निया स्टेट ने आपातकालीन स्थिति घोषित की है। दुनिया भर में 30 करोड़ बच्चे स्कूल नहीं जा रहे क्योंकि स्कूल बंद कर दिए गए हैं। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार इतिहास में पहली बार ऐसा हो रहा है। इसकी अलग सामाजिक प्रतिध्वनि होगी। बिल गेटस का कहना है कि कोरोना वायरस सदी की सबसे प्रचंड महामारी बन सकता है क्योंकि यह बहुत अधिक संक्रामक है।

भारत सरकार तथा इसका स्वास्थ्य मंत्रालय अभी तक इस महामारी से अच्छी तरह से निबटा है। यही कारण है कि अभी तक यहां संक्रमित लोगों की संख्या कम है। मंत्री हर्षवर्धन लगभग रोजाना लोगों से बात कर रहें हैं। प्रधानमंत्री तथा स्वास्थ्य मंत्री दोनों का संदेश है कि डरें नहीं पर सतर्क रहें। अभी तक यहां 40 के करीब ही लोग संक्रमित पाए गए हैं जिनमें आधे तो इटली से आए टूरिस्ट हैं लेकिन जैसी हमारी आबादी का घनत्व है और हमारे लोगों की गरीबी तथा अज्ञानता है, इस के कारण यहां इसके फैलने की संभावना सदा बनी रहेगी। यह भी समाचार है कि कुछ लोग इसका टैस्ट करवाने से भाग रहे हैं। कर्नाटक में दुबई से आए आदमी की तलाश हो रही है जो संक्रमित है पर छिपा हुआ है। सरकार ने इस वक्त हवाई अड्डों पर सतर्कता रखी हुई  है लेकिन जो पहले अंदर आ चुके हैं वह समस्या खड़ी कर सकते हैं। हमारा हैल्थ सिस्टम बहुत बढिय़ा नहीं है। डाक्टरों तथा हस्पतालों की भारी कमी है। सरकार ने बड़े हस्पतालों को तैयार रहने के लिए कहा है लेकिन तब क्या होगा अगर यह महामारी कस्बों या देहात में फैल गई? यह पुरानी बात नहीं जब 2017 में गोरखपुर के सरकारी हस्पताल में एक हजार से अधिक बच्चे मारे गए थे। पिछले साल कोटा में सौ बच्चे इसी तरह मारे गए। सरकारी हस्पतालों में गंदगी का अम्बार लगा है। ऐसे हैल्थ सिस्टम पर हम कितना भरोसा कर सकते हैं कि वह कोरोना जैसे वायरस का जरूरत पडऩे पर मुकाबला कर सकता है? गोरखपुर तथा कोटा के सरकारी हस्पतालों की गंदगी हम टीवी पर देख चुके हैं।

हम चीन की तरह शहर के शहर बंद नहीं कर सकते। केरल में भी अब 5 और मरीज़ निकल आए हैं। केरल की जो व्यवस्था है उसकी बराबरी कम ही प्रदेश कर सकते हैं। विशेष तौर पर उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश जैसे प्रदेश अभी बहुत पिछड़े हैं। चीन ने तो पंद्रह दिन में 1000 बैड का हस्पताल तैयार करवा लिया था ऐसी संक्रियता की कल्पना हम कर ही नहीं सकते। यहां जो पहले है वही ठीक से काम करना शुरू कर दे तो ही गनीमत होगी। दिल्ली के दंगे बता गए हैं कि हमारी व्यवस्था कितनी लच्चर हो सकती है लेकिन इस महामारी और इसके द्वारा पैदा अस्थिरता से सबक जरूर सीखना चाहिए और पब्लिक हैल्थ सिस्टम में अधिक निवेश की जरूरत है। जो निजी हस्पताल हैं उनका सहयोग लेना चाहिए क्योंकि इनमें से कई विश्व स्तर के हैं।

चीन लडखड़़ाता धीरे-धीरे सामान्यता की तरफ चल रहा है। चीन के कई कारखानों में कामकाज फिर से शुरू हो रहा है और भारत के लिए यह राहत की बात है। चीन उत्पादन कर हब है दुनिया की सप्लाई-चेन का महत्वपूर्ण और अभिन्न अंग है। वहां पैदा हुए विघ्न का दुनिया भर पर लम्बा असर पड़ेगा। भारत के लिए यह रुकावट बहुत गलत समय आई है जबकि अर्थ व्यवस्था पहले ही धीमी पड़ रही है। तेल के दाम में कमी से कुछ राहत मिलेगी लेकिन कोरोना की परछाई हमारी अर्थ व्यवस्था पर पडऩी शुरू हो गई है। वैसे यह मौका भी हो सकता है क्योंकि दुनिया समझ गई है कि चीन की टोकरी में लगभग सभी अंडे डालना बुद्धिमत्ता नहीं है। इसलिए चीन पर निर्भरता कम होगी लेकिन इसका हमें कितना फायदा होगा यह कहा नहीं जा सकता। मौका हड़पने के मामले में यह सरकार वह चुस्ती नहीं दिखा रही जो पिछले कार्यकाल में नज़र आई थी।

भारत की अर्थ व्यवस्था भारी मात्रा में चीन पर निर्भर है। बताया गया है कि इस साल के पहले नौ महीनों में भारतीय उपभोक्ता और कंपनियों ने पांच में से एक चीज़ जो खरीदी वह चीन से आयातित थी। चाहे ओटोमोबाईल क्षेत्र हो या इलैक्ट्रानिक क्षेत्र हो या दवाइयों का क्षेत्र हो, हम चीन के कच्चे या पक्के माल पर बहुत निर्भर हैं। अगले महीने तक कई कंपनियों में माल की किल्लत शुरू हो जाएगी। टूरिस्ट तथा हवाई क्षेत्र अपनी जगह प्रभावित है। जर्मनी की एयरलाईन लुफथांसा ने अपने 150 जहाज़ खड़े कर दिए हैं। भारत में अब मांग का संकट और बढ़ेगा। अगर योरुप तथा अमेरिका भी मंदी से ग्रस्त हो जाते हैं तो और समस्या बढ़ेगी। ऐशिया स्थित फाईनैंशल सर्विस गु्रप नोमूरा को आशंका है कि 2020 में वैश्विक विकास की दर अनुमानित 3.1 प्रतिशत से गिर कर 1.6 प्रतिशत रह सकती है। इसका दुनिया भर पर भारत समेत बुरा प्रभाव पड़ेगा। चीन के बंद पड़े कारखानों के कारण अगर यहां कारखाने बंद होने लग पड़े तो बेरोजगारी भी बढ़ेगी।

कोरोना का कोई इलाज है? चाहे हमारे कई  ‘सियाने’ जैसे असम से भाजपा का एक विधायक, गौमूत्र तथा गोबर के इलाज की बात कह रहे हैं, लेकिन हकीकत है कि क्योंकि यह नया वायरस है इसलिए इसके बारे अधिक जानकारी नहीं है। इसकी दवा निकलने में भी साल-डेढ़ साल लग सकता है। अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रम्प को आशा है कि अप्रैल तक जब गर्मी बढ़ने लगेगी यह वायरस कमज़ोर पड़ जाएगा। प्रसिद्ध सर्जन डॉ. नरेश त्रेहन ने भी कहा है कि 35 डिग्री तापमान के उपर वायरस खत्म हो जाता है। कुछ और विशेषज्ञ कह रहे हैं कि शुष्क भारत की चरम गर्मियों में यह वायरस टिकेगा नहीं और गर्म तापमान तथा उमस में तबाही नहीं मचा सकेगा।

ऐसा होगा या नहीं यह तो अगले महीने में पता चलेगा लेकिन कई विशेषज्ञ इस विचार से सहमत नहीं क्योंकि भारत में सारा साल ही फ्लू का वायरस रहता है चाहे गर्मियों में इसका प्रकोप कुछ कम हो जाता है। नैशनल जियौगरफिक मैसज़िन ने एक लेख में बताया है कि जरूरी नहीं कि यह नया वायरस भी उसी तरह बर्ताव करे और गर्मियों में इसका प्रकोप कम हो जाए। अमेरिका में टैक्सास के डॉ. पीटर होटज़ का कहना है कि यह मानना कि गर्मियों में यह शांत हो जाएगा, जल्दबाजी होगी। लंडन के डॉ. डेविड हेमन का कहना है कि इस वायरस के बारे पर्याप्त जानकारी नहीं है कि बदलते मौसम में यह कैसे बदलेगा। यह भी आशंका है कि अगर यह कमज़ोर पड़ गया तो अगले साल फिर लौट सकता है। अर्थात अभी से इस वायरस की आयु या अवस्था के बारे कुछ नहीं कहा जा सकता लेकिन इसके कारण दुनिया भर मेें खलबली मच गई है। हम वैश्वीकरण की कीमत चुका रहे हैं जैसे पूर्व विदेश सचिव श्याम सरन ने भी कहा है कि कोरोना के कारण  ‘अनिश्चित दुनिया थोड़ी और अनिश्चित बन गई है।’ लेकिन इस वक्त कोरोना वायरस हमारी जिंदगी की हकीकत बन चुका है इसलिए जरूरी है कि इसका समझदारी से सामना किया जाए। अफवाहों तथा टोटकों पर विश्वास न करते हुए जो सरकार या डॉक्टर कह रहें हैं उस पर ही ध्यान देना चाहिए। जो डायबटीज़, दिल या उच्च रक्तचाप के वृद्ध मरीज़ हैं उनके लिए समस्या बढ़ सकती है। पूरे एहतियात की जरूरत है।
27 फरवरी को अपने लेख में मैंने लिखा था कि दुनिया को भारत से तीन बातें सीखनी चाहिए ताकि भविष्य में ऐसी विपदा से बचा जा सके, (1) नमस्ते, हैंडशेक नहीं। (2) दाह संस्कार, दफनाना नहीं और (3) शाकाहारी भोजन मासाहारी नहीं। यह खुशी की बात है कि इसरायल के प्रधानमंत्री बैंजामिन नेतन्याहू ने अपने लोगों से अपील की है कि हाथ मिलाने की जगह वह  ‘भारतीय परम्परा नमस्ते’ को अपनाएं। भारत की नमस्ते की इस सांस्कृतिक परम्परा का दुनिया भर में प्रचार किया जाना चाहिए। प्रधानमंत्री मोदी ने दुनिया में  ‘विश्व योग दिवस’ शुरू करवा दिया है। अब  ‘विश्व नमस्ते दिवस’ आयोजित करवाने की जरूरत है।

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Chander Mohan is the grandson of the legendary editor of Pratap, Mahashya Krishan. He is the son of the famous freedom fighter and editor, Virendra. He is the Chief Editor of ‘Vir Pratap’ which is the oldest hindi newspaper of north west india. His editorial inputs on national, international, regional and local issues are widely read.