देश का पहला किल्लर-स्कैम
बोफोर्स से लेकर 2जी तथा कोयला आबंटन तक इस देश ने ढेर सारे स्कैम देखे हैं पर मध्यप्रदेश का व्यापमं घोटाला पहला किल्लर स्कैम है, पहला खूनी घोटाला है जिसमें अभी तक यह ही नहीं तय हो रहा कि कितने लोग मारे गए हैं पर संख्या दर्जनों में है। पिछले कुछ दिनों में तो धारावाहिक अप्राकृतिक मौत हो रही थी जैसा अब आसाराम मामले में भी हो रहा है। मामला देश से बाहर तक छा गया। न्यूयार्क टाईमस ने सुर्खी दी ‘आज कोई नहीं मरा!’ यह वह घोटाला है जिसमें व्यावसायिक कालेजों की सीटें पैसे लेकर बेची गईं और असंख्य परीक्षाओं में पैसे, नकल, आंसर-शीट से खिलवाड़, जाली लोगों का दूसरों की जगह परीक्षा में बैठना, के कारण मध्यप्रदेश में परीक्षाएं ही लतीफा बन गईं। सरकारी नौकरियां पैसे लेकर बेच दी गईं। बाकायदा रेट तय थे। ऐसा कई प्रदेशों में हो चुका है और हो रहा है अंतर यह है कि मध्यप्रदेश का यह घोटाला इतना व्यापक तथा इतना गहरा है कि यह खूनी रूप धारण कर चुका है।
इस घोटाले में 2000 लोग जेल में हैं। 500 भगौड़ा हैं। 2000 करोड़ रुपए का यह घोटाला बताया जाता है। मध्यप्रदेश के राज्यपाल ही अपराधी नम्बर 10 हैं। यह तो साफ ही है कि कई सतह पर इस घोटाले में ताकतवर लोग संलिप्त हैं। शिक्षा मंत्री जेल में हैं। एफआईआर में किसी ‘मंत्राणी’ का भी जिक्र है लेकिन पुलिस छोटे मोटों को पकड़ती रही जबकि असली जरूरत तो बड़े मगरमच्छों को पकडऩे की है। मास्टरमाइंड कौन है? एक है या अनेक हैं?
समाचार छपा है कि आईएएस, आईपीएस के अफसरों तथा जजों के बच्चों ने डैंटल कालेज में सीटें खरीदी हैं। पत्रकार अक्षय सिंह की मौत तो बिल्कुल काबिले बर्दाश्त नहीं। जो मामले की जांच करेगा, उसके बारे जानकारी इकट्ठी करेगा, वह मारा जाएगा? मध्यप्रदेश है या उत्तर कोरिया? हालत तो यह बन गई है कि केन्द्रीय मंत्री उमा भारती को कहना पड़ा कि ‘मैं भी भयभीत हूं।’ भाजपा के नेतृत्व को भी समझना चाहिए कि यह उनका 2जी है। पिछले कुछ महीनों से शिवराज सिंह द्वारा सही जांच को मामला सौंपने में नखरे बहुत महंगे साबित हुए हैं। उन्होंने मध्यप्रदेश में बढिय़ा काम किया, प्रदेश को ‘बीमारू’ प्रदेशों से निकाला गया लेकिन अब उनकी प्रतिष्ठा पर खून के धब्बे पड़ गए हैं। इन्हें मिटाना आसान नहीं होगा।
एक और बड़ी चिंता है। लगभग 1000 नौजवान जेल में कैद हैं। यह वह हैं जिन्होंने पैसे दिए थे इनका भविष्य तबाह हो चुका है। कईयों के मां-बाप भी अंदर हैं। कई लड़कियां गिरफ्तार हो चुकी हैं। एक बाप की शिकायत है कि उसकी लड़की को पकडऩे 50 पुलिस वाले आए, जैसे कि वह आतंकवादी हो। एक की शिकायत है कि उनकी लड़की टॉपर थी फिर भी वह पांच दिन थाने में रही। इसके लिए कौन जिम्मेवार है, वह जिन्होंने रिश्वत दी या वह व्यवस्था जिसने ऐसा माहौल बना दिया कि रिश्वत के बिना चारा नहीं था? जो युवा जेल में हैं उनके बारे चिंता होती है। अभी से मनोचिकित्सक यह चेतावनी दे रहे हैं कि यह किशोर युवा अपराध की तरफ बढ़ सकते हैं। जब जेल से बाहर आएंगे तो हीन भावना तथा हताशा से ग्रस्त होंगे। बदनाम हो चुके होंगे। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, इन जवान जिंदगियों को तबाह करने के लिए भी कौन जिम्मेवार हैं?
व्यापमं का घोटाला शिवराज सिंह चौहान से पहले शुरू हो गया था लेकिन उन्होंने इसे रोकने या व्यवस्था सही करने का कोई प्रयास नहीं किया। आखिर में राजभवन भी संलिप्त हो गया और विपक्ष मुख्यमंत्री के परिवार पर भी दोष लगा रहा है। लेकिन उससे भी अधिक चिंताजनक सवाल है कि मध्यप्रदेश की व्यवस्था कैसी है कि वर्षों से इस घोटाले को बर्दाश्त किया जाता रहा? कितना घपला हुआ? यह प्रभाव मिलता है कि व्यवस्था गली सड़ी है जिस पर अपराधी तत्व हावी हो गए हैं। राजनेताओं, अफसरों तथा अपराधियों का भाईचारा है। कानून-व्यवस्था की परवाह नहीं और वहां अपराधी-व्यवस्था चल रही है? एसआईटी ने हाईकोर्ट को बताया है कि जांच कर रही एसटीएफ के अधिकारी भी अपनी सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं। एक एसडीएम ने माना है कि उसे अपनी जान का खतरा है। वहां कैसा शासन दिया जा रहा है कि अपराधी दनदनाते रहे और आम आदमी यहां तक कि अधिकारी भी असुरक्षित महसूस कर रहे हैं? यह भी समाचार छपा है कि लोग नए डाक्टरों की जगह पुराने डाक्टरों के पास जा रहे हैं क्योंकि मैडिकल कालेजों में 3000 संदिग्ध डाक्टरों की भर्ती हुई थी।
आज के भारत में यह कैसे संभव है? मध्यप्रदेश की तो डिग्री की कीमत ही खत्म हो गई। नरेन्द्र मोदी ने दिल्ली में पारदर्शी व्यवस्था कायम कर दी है लेकिन प्रदेश में वही चल रहा है जो वर्षों से चला आ रहा है। यह भी मालूम नहीं कि सीबीआई कितनी कारगर सिद्ध होती है? चाहे मुलायम सिंह यादव हो, चाहे मायावती हो, चाहे आरूषि तलवार का मामला हो या निठारी में बच्चों की हत्याएं हों, सीबीआई की कारगुजारी ऐसी नहीं रही कि वह इस पर गर्व कर सके पर जरूरी है कि यह पता लगाया जाए कि सरगना कौन है? कौन कौन से राजनेता तथा अफसर इसमें संलिप्त हैं? ‘मंत्राणी’ कौन है जिसका एफआईआर में जिक्र है? इसी के साथ यह भी जांच की बड़ी जरूरत है कि इतनी अप्राकृतिक मौतों के पीछे कौन है? इतनी संख्या में रहस्यमय मौतें बताती हैं कि पीछे कोई व्यवस्थित माफिया काम कर रहा है।
और बहुत जरूरी है कि मुख्यमंत्री चौहान, उनके साथियों तथा उनके रिश्तेदारों की भूमिका की गहन जांच की जाए। कल्पना कीजिए कि अगर चौहान भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार होते, जैसा कुछ वरिष्ठ नेता चाहते थे, तो आज देश की हालत क्या होती! चौहान की स्थिति अमान्य बनती जा रही है। अंत की शुरुआत लगती है। मामला केवल इन चार दर्जन मौतों का ही नहीं, चौहान के शासन में मध्यप्रदेश की व्यवस्था खोखली और भ्रष्ट हो गई और इस पर अपराधी तत्व हावी हो गए और मुख्यमंत्री तब तक तमाशा देखते रहे जब तक लोकराय ने उन्हें मजबूर नहीं कर दिया कि मामला सीबीआई को सौंपा जाए। अगर हजारों छात्र गलत ढंग से उच्च शिक्षा संस्थाओं में प्रवेश पा गए और इतनी ही संख्या में सरकारी नौकरियों की बंदरबांट हुई तो जिम्मेवार तो मुख्यमंत्री की ही है। प्रदेश की प्रतिष्ठा तबाह करने के बाद कुर्सी पर बने रहने का नैतिक अधिकार शिवराज सिंह चौहान खो बैठे हैं। याद रखिए एक रेल हादसे के बाद लाल बहादुर शास्त्री ने इस्तीफा दे दिया था। देश स्तब्ध है। विदेशों में हमारी बदनामी हो रही है। जिस तरह का भ्रष्ट प्रशासन चौहान ने दिया उससे शंकाएं बढ़ी हैं इसलिए आज उनसे कहना चाहता हूं,
तेरे रहते ही लुटा है चमन बागवां
कैसे मान लूं कि तेरा इशारा नहीं था?