चुनाव के शोर-शराबे, गाली-गलौच और आरोप-प्रत्यारोप में कई महत्वपूर्ण मुद्दे औझल हो गए हैं और राजनीति का बेसुरापन हॉवी हो गया है। मेरा अभिप्राय देश में बढ़ते प्रदूषण से है जो बुरी तरह से सेहत और कई मामलों में जिंदगी को प्रभावित कर रहा है। प्रकाश सिंह बादल जब मुख्यमंत्री थे तो उन्होंने पंजाब के बारे कहा था कि “न साडा पानी साफ, न साडी हवा साफ और न ही साडा खाना साफ।“ और बादल तो देश के एक प्रमुख प्रगतिशील प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। अफसोस है कि देश में फैलते प्रदूषण के बारे कोई भी पार्टी या नेता प्रमुखता से बात नहीं कर रहा। उत्तराखंड में पर्यावरण से छेड़छाड़ की हम बहुत कीमत चुका हटे हैं लेकिन कोई सबक नहीं सीखा गया। चुपचाप हम तबाही को आमंत्रित कर रहे हैं। क्योंकि सेहत संबंधी मुद्दे चमत्कारी और नाटकीय नहीं हैं और उनसे वोट प्राप्त नहीं होते इसलिए राजनेता इन मुद्दों को नज़रअंदाज़ करते जा रहे हैं और इसके साथ नागरिकों की जिंदगियों को खतरे में डाल रहे हैं। किसी में भी सार्वजनिक सेहत को मुद्दा बनाने की राजनीति इच्छा नहीं है।
हाल ही में विश्व में वायुमंडल की गुणवत्ता (वर्ल्ड एयर क्वालिटी) रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के 20 सबसे प्रदूषित शहरों में से 15 भारत महान् में है। गुरुग्राम दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में प्रथम है। मनोहर लाल खट्टर सरकार ने गुडग़ांव को गुरुग्राम तो बना दिया जबकि प्राथमिकता लोगों की जिंदगी में सुधार होना चाहिए था उलटा यह और बदत्तर हो गई। इस रिपोर्ट के सार्वजनिक होने के बाद समझा गया था कि हरियाणा सरकार शर्मसार होगी और ठोस कार्रवाई करेगी लेकिन उनकी सेहत पर कोई असर नहीं हुआ चाहे लोगों की सेहत लगातार खराब हो रही है। न केवल गुरुग्राम बल्कि सारे एनसीआर क्षेत्र की हालत भयावह है लेकिन विभिन्न सरकारों का रवैया महालापरवाह है। चिंता की बात तो यह है कि जहरीली हवा के कारण सबसे अधिक प्रभावित समाज का वह वर्ग होता है जो सबसे कमज़ोर है, बच्चे, बीमार, गरीब और वृद्ध। इनकी सेहत को सबसे अधिक सुरक्षा की जरूरत है लेकिन वह खतरनाक स्तर तक गंदी हवा में जीवन व्यतीत करने के लिए मजबूर हैं। काश कोई नेता उठता और कहता कि “मैं आपकी सेहत पर पहरा दूंगा, मैं आपकी सेहत का ‘चौकीदार’ बनूंगा”
विशेषज्ञ बताते हैं कि 2.5 नामक बारीक पीएम तत्व अब कई शहरों में खतरनाक स्तर तक पहुंच गया है। यह फेंफड़ों को जकड़ते हैं और अनुमान है कि हर साल विश्व में 70 लाख लोगों की मौत इस कारण होती है। इनमें 6 लाख बच्चे हैं। हम पर्यावरण के मामले में कितने लापरवाह हैं वह राजधानी दिल्ली की हालत से पता चलता है। केन्द्र सरकार ने दिल्ली की सेहत का मामला केजरीवाल सरकार पर छोड़ दिया है जो उनके बस की बात नहीं। शायद आप सरकार की नाकामी प्रदर्शित की जा रही है पर केन्द्र सरकार भूलती है कि दिल्ली को चारों तरफ से भाजपा शासित प्रदेशों ने घेर रखा है। अगर दिल्ली गंदी है तो नोयडा, बहादुरगढ़, फरीदाबाद और गुरुग्राम भी बराबर गंदे हैं। दूसरा, दुनिया भर में हमारी बहुत बुरी छवि जा रही है कि भारत की राजधानी रहने लायक नहीं है। इस कारण कई राजनयिक यहां से बदली करवा चुके हैं।
पहले कहा गया कि दीवाली के कारण प्रदूषण है। बहुत बड़ा हौवा खड़ा किया गया। फिर पंजाब में जलने वाली पराली को जिम्मेवार ठहराया गया। अब तो न पराली जल रही है और दीवाली को चार महीने हो गए फिर दिल्ली प्रदूषित क्यों है? जब तक उपर से नीचे तक राजनीतिक इच्छा नहीं होगी दिल्ली प्रदूषित रहेगी। सुप्रीम कोर्ट जो पहले पटाखे चलाने पर सख्त था अब उनका भी कहना है कि “समझ नहीं आती कि लोग पटाखा उद्योग के पीछे क्यों भाग रहे हैं जबकि नजर आता है कि वाहन उद्योग प्रदूषण में अधिक योगदान डालता है।“ लेकिन इस पर कोई अंकुश नहीं लगेगा। अकेले दिल्ली में 40 लाख वाहन प्रतिदिन सडक़ों पर उतरते हैं। न ही बड़ी एसयूवी गाडिय़ों जो पैट्रोल और डीज़ल निगलती हैं, की बिक्री पर ही कोई अंकुश लगाया गया है। कार अब एक ‘स्टेटस सिम्बल’ बन चुका है। हर कोई कार रखना चाहता है। सार्वजनिक परिवहन की शौचनीय हालत के कारण भी अपना वाहन ले जाना जरूरी बन गया है।
लेकिन बढ़ते प्रदूषण का कारण केवल वाहन नहीं है। उद्योग, निर्माण, गंदगी, जनसंख्या का दबाव, चूल्हा जलना और नागरिक उदासीनता भी प्रदूषण को गहरा कर रहें हैं। चीन ने बीजिंग ओलम्पिक के दौरान हुई किरकिरी के बाद सख्ती से प्रदूषण पर नियंत्रण किया है। 2017 के मुकाबले 2018 में चीन में प्रदूषण के स्तर में 12 प्रतिशत की कमी आई है। 2010 के बाद दुनिया में खतरनाक पीएम 2.5 के स्तर में 10 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इस पर नियंत्रण कर मौतें रोकी जा सकती हैं और ऐसी मौतों का पांचवां हिस्सा भारत में है। सरकार ने लोगों की समस्या का ध्यान रखते हुए आयुष्मान भारत योजना शुरू की है जिसके द्वारा लगभग 10 करोड़ कमजोर परिवारों को मुफ्त इलाज का फायदा मिलेगा लेकिन अगर मुझे माफ किया जाए तो मैं कहना चाहूंगा कि इलाज और बीमा तो बाद की बात है, जरूरत तो है कि सेहत पर ध्यान दिया जाए ताकि बीमा की कम से कम जरूरत पड़े।
कड़वा सच्च है भारत दुनिया में बीमारी की राजधानी बन रहा है। दिल्ली के ही आधे बच्चों के फेंफड़ों में गड़बड़ है। वायु में प्रदूषण देश मेें पांचवां सबसे बड़ा कातिल है। पहले हमें बताया गया कि ‘मच्छर रहेगा, मलेरिया नहीं।‘ अब हालत यह है कि मच्छर भी है, मलेरिया भी है और अब इनका बाप डेंगू भी आ गया। चिकनगुंया और स्वाईन फ्लू आदि भी है। दुनिया की कौन सी बीमारी है जो यहां नहीं है? हमारी नदियां बुरी तरह से प्रदूषित हैं। गंगा को साफ करते-करते ही करोड़ों रुपए लगा दिए लेकिन आंशिक सुधार हुआ है। अब शायद नितिन गडकरी कोई चमत्कार कर सकें। नरेन्द्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे तो उन्होंने अहमदाबाद में साबरमती का तट चमका दिया था पर दिल्ली में बहती यमुना में तो कई जगह उपर जहरीली सफेद झाग है। हमारी हरी भी छत लगातार कम हो रही है जिसके अपने अलग दुष्प्रभाव हैं।
हमें सोचना चाहिए कि भावी पीडिय़ों के लिए हम कैसा भारत छोड़ कर जा रहे हैं? जो रहने लायक न हो? इस खतरनाक तस्वीर को बदलने के लिए सरकार, उद्योग, समाज, अफसरशाही, शैक्षणिक समुदाय,एनजीओ सबको मिल कर काम करना चाहिए। भारत तरक्की कर रहा है पर विकास की कीमत भी चुकानी पड़ती है। हमें ऐसी उत्पादन तथा खपत व्यवस्था की तरफ जाना है जो कम प्रदूषण पैदा करती हो लेकिन हम तो केवल विकास ही नहीं सरकारी लापरवाही, उदासीनता तथा भ्रष्टाचार की भी कीमत चुका रहें हैं। नगर निगम और नगर पालिकाएं भ्रष्टाचार के अड्डे बन चुके हैं। मुंबई में गिरते फुट ब्रिज भ्रष्टाचार की असली कहानी बताते हैं। पाबंदी के बावजूद नदियों के तट पर अवैध खनन धड़ल्ले से चल रहा है। सबके सामने यह हो रहा है लेकिन क्योंकि कुछ राजनेता संलिप्त हैं इसलिए कोई रोक नहीं है।
वायुमंडल में प्रदूषण के जो जानलेवा तत्व है उन्हें कम करना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए पर यह है नहीं। जीवन-मरन से संबंधित इस मुद्दे को हमने ओझल कर दिया है। बहुत खतरनाक तस्वीर उभर रही है। यहां खाने की चीज़ों पर भी हानिकारक स्प्रे होता है। त्यौहार के समय मिठाई मेें भी मिलावट होती है जो कई बार घातक सिद्ध होती है। इसलिए देश के कर्णधारों से अनुरोध है कि चुनाव से फारिग होकर कृप्या अपनी नज़र-ए-इनायत इधर भी मोड़िए और देखिए कितनी तबाही हो रही है। स्वच्छ भारत अभियान बढ़िया सोच है पर यह बेमतलब है अगर आपकी राजधानी दिल्ली ही अस्वच्छ हो। बाकी शहरों की भी यही हालत है। कवि डॉ. आशिष वत्स ने शायद इसी परिस्थिति के लिए लिखा था,
ये शहर भी क्या शहर है,
हवाओं में धुआं है, फिज़ाओं में ज़हर है!