
कहतें हैं कि अमिताभ बच्चन के माता पिता, हरिवंश राय बच्चन और तेज़ी बच्चन, ने गांधीजी के ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ से प्रेरित होकर अपने पहले बेटे का नाम ‘इंक़लाब’ रखा था। हरिवंशराय बच्चन कवि, लेखक और सांसद थे और तेज़ी बच्चन पाकिस्तान के लायलपुर के सिख परिवार से थीं। बाद में अमिताभ नाम रखा गया। नाम चाहे बदल गया हो पर हरिवंशराय बच्चन और तेज़ी बच्चन की संतान द्वारा विशेष तौर पर 1973 में आई ज़ंजीर से समाज में जो इंक़लाब शुरू किया वह कौन बनेगा करोड़पति के रास्ते आजतक जारी है।पुराने ज़माने में ब्लैक में टिकट लेकर बहुत लोग अमिताभ बच्चन की फ़िल्म पहला दिन पहले शो देखने जाते थे। अंधेरा सिनेमा हॉल में उनके साथ हम सब हंसे, रोए, नाचे, गाए, रोमांस किया। आज भी उनके 80 वें जन्मदिन पर कौन बनेगा करोड़पति के सैट पर उनके साथ बहुत लोग भी भावुक हुए थे।
जब कोलकाता के ईडन गार्डन में भारत और पाकिस्तान के बीच टी-20 मैच के शुरू होने से पहले उन्होंने राष्ट्र गान गाया था तो रोंगटे खड़े हो गए थे। वाघा बार्डर पर जब उनकी अद्वितीय आवाज गूंजती है कि ‘मैं अमिताभ बच्चन विश्व के सबसे बड़े सीमा सुरक्षाबल बीएसएफ़ की वीरता और शौर्य को सलाम करता हूँ’, तो दर्शक झूम उठते हैं। वैसे बताने की ज़रूरत नही कि ‘ मैं अमिताभ बच्चन बोल रहा हूँ’, क्योंकि सब जानते है कि यह गरजती आवाज एक ही बंदे की हो सकती है ! दिलचस्प है कि इसी आवाज़ को ऑल इंडिया रेडियो ने दो बार रिजैक्ट किया था। जब वह पहली बार वह अमिताभ बच्चन को मिले, तो मनोज कुमार ने उनकी आवाज़ की तुलना ‘ गरजते बादल’ से की थी। पर अपनी शुरूआती फ़िल्म रेशमा और शेरा में अमिताभ बच्चन का रोल एक गूँगे का था। फ़िल्म उद्योग में अमिताभ बच्चन का प्रवेश बहुत मुश्किल था। बहुत जगह उन्हें रिजैक्ट किया गया। कहा गया कि यह लम्बू स्टार मैटेरियल नहीं है। किसी ने सुझाव दिया कि ‘पिता की तरह कविता लिखा करो’ तो किसी ने कहा कि ‘कोई हीरोईन इसके साथ काम करने को तैयार नहीं’ होगी। दिलचस्प है कि उन्होंने एक प्रकार से हीरोइन की छ: पीढ़ियों के साथ काम किया है। माला सिन्हा, नूतन, वहीदा रहमान से शुरू हो कर रेखा, ज़ीनत अमान, हेमा मालिनी, जया से होते हुए वह रानी मुखर्जी और माधुरी दीक्षित के रास्ते दीपिका पादुकोण और तपसी पन्नू तक पहुँच चुकें है। पर सफ़र जारी है। सब से अधिक चर्चा रेखा को लेकर हुई थी। मैंने यश चोपड़ा से पूछा था ‘आपने सिलसिला में अमिताभ -जया-रेखा को कैसे ले लिया?’ हंसने लगे और बोलो ‘ तीनों को मनाने के बाद मैं अगले दिन ही स्विट्ज़रलैंड भाग गया’!
अभिनेता जितेंद्र ने उन्हें हिन्दी सिनेमा का नम्बर 1 से 10 कहा था। आज भी फ़िल्मों की कहानी उन्हें देख कर लिखी जाती है।मैंने खुद पिंक, पीकू और गुलाबों सिताबो सिर्फ़ इसलिए देखी क्योंकि उसने अमिताभ बच्चन थे। गुलाबों सिताबो के सनकी पर प्यारे चुनन मिर्ज़ा की भूमिका कौन और अदा कर सकता था? इसी तरह क्या सोचा भी जासकता है कि कौन बनेगा करोड़पति के होस्ट की भूमिका कोई और निभा सकता है? हम सब यह शो केवल सवाल जवाब के लिए ही नहीं देखते, हम अमिताभ बच्चन को देखने के लिए भी देखतें हैं। उनकी भाषा, उनकी शैली, उनकी आवाज़, हाज़िरजवाबी सब प्रभावित करती हैं। जितनी शालीनता और धैर्य से वह कई फ़िज़ूल लोगों से निपटते हैं, वह भी देखने और अनुकरण करने लायक़ है। सिद्धार्थ बसु जो कई साल इस कार्यक्रम से सम्बंधित रहे हैं ने बताया है कि वह सैट पर 12 से 14 घंटे रहते हैं। वह 22 साल से ऐसा कर रहें हैं और सिद्धार्थ बसु उन्हें ‘मास्टर ऑफ हिस आर्ट’ कहते है। ठीक है कभी कभी उनकी ड्रेस सैन्स अजीब लगती है और स्पष्ट है कि चेहरे की झुर्रियों छिपाने की भी कोशिश है, पर कौन परवाह करता है। हम सब तो इस 80 वर्षीय के जादू से मंत्रमुग्ध है।
पर शुरू में ऐसा नहीं था। जब 1969 में पहला रोल सात हिन्दोस्तानी में मिला तो कहा गया कि तेजी बच्चन की मित्र प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सिफ़ारिश पर यह रोल दिया गया जिस बात का प्रतिवाद लेखक-निर्देशक ख़्वाजा अहमद अब्बास ने किया था। बहुत वर्ष गांधी परिवार और बच्चन परिवार के सम्बंध घनिष्ठ रहे। सोनिया गांधी जब पहली बार इटली से आईं तो दिल्ली में बच्चन परिवार के घर ठहरी थीं। शादी में अमिताभ बच्चन ने भाई का फ़र्ज़ निभाया था। 1985 की एक इंटरव्यू में सोनिया गांधी ने तेजी बच्चन के बारे कहा था ‘वह मेरी तीसरी माँ हैं’। पहली माँ पाओला मैंनो, दूसरी इंदिरा गांधी और तीसरी तेज़ी बच्चन। पर बाद में दोनों परिवारों के रिश्ते बहुत बिगड़ गए। ऐसा क्यों हुआ इसकी कोई पक्की जानकारी नहीं है पर लगता है कि राजनीति के कारण रिश्ते बिगड़ गए। बोफ़ोर्स के कारण राजीव गांधी मुश्किल में आगए और गांधी परिवार की शिकायत है कि उस समय अभिन्न दोस्त रहे बच्चन ने अपने फ़िल्मी कैरियर को बचाने के लिए दूरी बना ली। अमिताभ राजनीति को ‘मलकुंड’ कहते हुए सदा के लिए छोड़ गए चाहे जया बच्चन अभी भी राजनीति में हैं। गांधी परिवार के बारे पूछे जाने पर एक बार अमिताभ बच्चन ने कटाक्ष किया था, ‘कहाँ मुक़ाबला है? वह राजा है हम रंक हैं’। रिश्ते किस निम्न स्तर तक पहुँच गए थे वह इस बात से पता चलता है कि सोनिया गांधी के नेतृत्व में यूपीए ने रेखा को उस राज्य सभा में नामज़द किया जहां जया बच्चन पहले से मौजूद थीं। जया बच्चन को अपनी सीट बदलवानी पड़ी थी।
लगातार 13 फ़्लाप के बाद 1973 में अमिताभ बच्चन को सलीम-जावेद द्वारा लिखित ज़ंजीर में काम करने का मौक़ा मिला और इतिहास बदल गया। इस फ़िल्म से एंग्री यंग मैन का आग़ाज़ हुआ। युवाओं के बाग़ी स्वभाव और व्यवस्था से हताशा को बुलंद आवाज़ मिल गई। दिलचस्प है कि यह फ़िल्म बहुत अभिनेताओं द्वारा इंकार करने के बाद चक्कर लगाते लगाते अमिताभ बच्चन के पास पहुँची थी। सलीम खान बताते हैं ‘ फैले हुए असंतोष के कारण आम आदमी ने खुद को अमिताभ के चरित्र जो अन्याय के साथ भिड़ने को तैयार हैं चाहे इस प्रक्रिया में वह कुछ नियमों को ही रौंद रहा है, से जोड़ना शुरू कर दिया…हम तक पहुँचने से पहले अमिताभ की प्रतिभा छिपी हुई थी…बाद में हमने उनके साथ दीवार, त्रिशूल और शोले में उनके अन्दर की आग का इस्तेमाल किया था’। सलमान खान और जावेद अख़्तर ने 22 फ़िल्में लिखी थीं जिनमें से 11 अमिताभ बच्चन के साथ थीं। जावेद अख़्तर लिखतें है कि, ‘इस में कोई शक नहीं कि जो अभिनय अमिताभ बच्चन ने ज़ंजीर और दीवार ने किया वह कोई दूसरा नहीं कर सकता था’। लेकिन उन्होंने ऐंग्री यंग मैन की ही भूमिका नहीं निभाई उन्होंने अभिमान, कभी कभी,सिलसिला, जैसी भावनात्मक फ़िल्में भी की। चुपक चुपके और अमर अकबर एंटनी जैसी फ़िल्मों नें उन्होंने बढ़िया कामेडी भी की।
आज हम ऐंग्री यंग मैन से कौन बनेगा करोड़पति के शालीन और धैर्यवान बुजुर्ग तक आ पहुँचे हैं जो आराम से आम लोगों की कहानियाँ सुनते हैं और जो ज़्यादा भावुक हो जाते हैं उन्हें आँख पोंछने के लिए गिन कर तीन टिशू पेपर भी देतें है। आयु से उनकी आभा कम नहीं हुई, न लोकप्रियता ही कम हुई। उनकी लोकप्रियता का कारण कारण क्या है? मैं अपनी पीढ़ी के बारे कह सकता हूँ कि हम सब उनके साथ खुद को जोड़ते हैं। पर उनकी विख्याती तो हर पीढी और हर वर्ग को छूती है। वह भारत में भी उतने ही लोकप्रिय हैं जितने इंडिया में है।बीबीसी के एक सर्वेक्षण में उन्हें स्क्रीन का सबसे बड़ा सितारा चुना गया है। समय के साथ वह बदले हैं, और उस समय की परिस्थिति को वह अभिव्यक्त करतें हैं। जब पिंक फ़िल्म में एक रेप पीड़ित के वकील की भूमिका में वह गरजते हैं कि ‘ इन लड़कों को समझना चाहिए कि नो का मतलब नो होता है…और जब कोई नो कहता है तो आपको रूक जाना है’, तो देश में बढ़ रहे दुष्कर्मों से त्रस्त समाज एक दम सहमत हो जाता है। भाषा और अभिव्यक्ति पर उनकी प्रवीणता उन्हें अद्वितीय बना देते है, जैसे लता मंगेशकर थीं। उनके डायलॉग जैसे डॉन को पकड़ना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है, या रिश्ते में हम तुम्हारे बाप होते हैं, नाम है शहंशाह, अब लोक- कथा का हिस्सा बन चुकें हैं। डॉयलॉग तो सब एक्टर बोलते हैं पर जो शब्द अमिताभ बच्चन के मुँह से निकलते है, उनकी बराबरी नहीं है। मुग़ले आज़म के पृथ्वी राज कपूर याद आ जाते हैं। और यह भी याद करने की ज़रूरत कि 63 वर्ष की आयु में उन्होंने कजरा रे में ग़ज़ब का ठुमका लगाया था।
उनकी शालीनता, मेहनत का जज़्बा, डॉयलॉग डिलिवरी, उनका लम्बा ऊँचा व्यक्तित्व, सस्तेपन से सदा दूर रहना, बहुत कुछ है जो बच्चन को परिभाषित करता है। शत्रुघ्न सिन्हा जिनके साथ उनकी स्पर्धा रही है, ने इंडिया टुडे से कहा है, ‘अगर अमिताभ बच्चन आज अमिताभ बच्चन है तो इसका कारण उनकी सम्पूर्णता है’। पर अमिताभ बच्चन का गुणगान करते वकत उन्हें मिली विरासत को नहीं भूलना चाहिए। वह हरिवंशराय और तेजी बच्चन की संतान है, वह साधारण हो ही नहीं सकते थे। हरिवंशराय बच्चन ने अपनी जीवनी में अपने बड़े बेटे के ‘कला-साहित्य के जिस सुरुचि- संस्कारी वातावरण में पला बढ़ा हुआ’, और उसकी कला,चरित्र,व्यवहार और ईमानदारी के बारे लिखा है। उनका लिखना है कि अमिताभ कभी ओछी बात कर ही नही सकता। कारण कुछ भी हो, निष्कर्ष यही है कि हरिवंशराय बच्चन का बड़ा पुत्र राष्ट्रीय खजाना है, वह अनूठे हैं, एकमात्र हैं। आज़ाद भारत की कहानी में यह ‘इंकलाब’ एक मुख्य पात्र रहेंगे। चाहे सरकार ने नहीं दिया, पर भारत की जनता के लिए वह भारत रत्न हैं।