दिल्ली अभी दूर है (Dilli Abhi Door He)

April 26, 2016 Chander Mohan 0

‘संघ मुक्त भारत’ का आह्वान देकर नीतीश कुमार ने अभी से 2019 के लिए अपनी महत्वकांक्षा की ऊंची घोषणा कर दी है। वह चाहते हैं कि संघ, अभिप्राय नरेन्द्र मोदी तथा भाजपा से है, को हराने के लिए एक महागठबंधन बनाया जाए जिसका नेतृत्व (और कौन?) वह खुद करें। ‘संघ मुक्त भारत’ कैसा होगा? यह कोई राजनीतिक दल नहीं। और जिस संघ की देश भर में 57,000 शाखाएं हैं उससे मुक्ति नीतीशजी को कैसे मिलेगी? 1967 में राम मनोहर लोहिया ने कांग्रेस के खिलाफ ऐसा महागठबंधन बनाने का प्रयास किया था। लोहिया का कांग्रेस विरोधी गठबंधन स्थायी नहीं रहा था। मोरारजी देसाई, वीपी सिंह, चन्द्रशेखर, देवेगौड़ा और इन्द्र कुमार गुजराल की सरकारें लड़खड़ातीं और अंतरविरोध से भरी हुई थीं इसलिए […]

Andhera gum ka pighulne ko he

May 26, 2015 Chander Mohan 0

अंधेरा गम का पिघलने को है! एक साल पूरा हो गया, अच्छे दिन नहीं आए। इतनी जल्दी आ भी नहीं सकते थे। शंघाई में प्रवासी भारतीयों को सम्बोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि ‘दुख भरे दिन बीते रे भैय्या, सुख भरे दिन आयो रे।’ यह एकदम नहीं हो सकता था। नेतृत्व को अपने लोगों को न केवल ‘सुख भरे दिनों’ के लिए बल्कि मेहनत, तंगी, कुर्बानी के लिए भी तैयार रखना चाहिए कि अचानक परिवर्तन नहीं होगा। अगर इस सरकार के कामकाज का आंकलन करना है तो देखना होगा कि इनसे 12 महीने पहले हम कहां थे? हमारी तो हर नीति को लकवा मार गया था। मुद्रास्फीति 9 प्रतिशत पर थी और विकास दर कम होकर 5 […]

Suit boot ki rajniti

May 19, 2015 Chander Mohan 0

सूट-बूट की राजनीति हमारी राजनीति किस तरह कई बार फिज़ूल बन जाती है यह ‘सूट-बूट’ के जुमले के लगातार प्रयोग से पता चलता है। विदेशों में 56 दिन के अज्ञातवास से लौटे राहुल गांधी को इस संसद अधिवेशन में बहुत आक्रामक अवतार में देखा गया। शायद 56 इंच और 44 सीटों से होश ठिकाने आ गई है। हाल ही हम ब्रिटेन चुनाव देख कर हटे हैं जहां पराजित दोनों नेताओं, एड मिलिबैंड तथा निक कलैग ने नैतिक जिम्मेवारी समझते हुए इस्तीफा दे दिया। गांधी परिवार ऐसी कुर्बानी में विश्वास क्यों नहीं रखता? उलटा राहुल तो भारत की खोज पर निकले हुए हैं। जैसे नकारात्मक कभी नरेन्द्र मोदी तथा अरविंद केजरीवाल थे, ऐसे ही राहुल गांधी भी कोशिश कर रहे हैं। […]

ख्वाब-ए-सहर देखा तो है

September 3, 2014 Chander Mohan 0

ख्वाब-ए-सहर देखा तो है जो सरकार पांच वर्ष चलनी है उसके पहले 100 दिन क्या मायने रखते हैं? ‘हनीमून पीरियड’ या ‘100 दिन’ यह सब मीडिया की देन है। प्रधानमंत्री मोदी तो खुद मान चुके हैं कि वह तो ‘आउटसाइडर’ हैं दिल्ली को समझने में उन्हें समय लगेगा। लेकिन इसके बावजूद क्योंकि मामला उठा है इसलिए पहले 100 दिन की कारगुजारी पर नज़र दौड़ाई जा सकती है। विपक्ष व्यंग्य कर रहा है कि अच्छे दिन कहां हैं जबकि अरुण जेटली का कहना है कि हालात सुधरने लगे हैं। 2014-15 की पहली तिमाही में आर्थिक विकास की दर 5.7 रही है। यह पिछले दो सालों में सबसे अधिक है और पहला संकेत है कि अर्थव्यवस्था पटरी पर लौट रही है। नरेन्द्र […]