हंगामें हैं, हंगामों का क्या

हंगामें हैं, हंगामों का क्या

रविवार को कांग्रेस ने दिल्ली की रामलीला ग्राऊंड में विशाल रैली कर एक बार फिर अपनी संगठनात्मक क्षमता का परिचय दे दिया। सबसे अधिक लोग हरियाणा से थे इसीलिए कार की छत्त पर बैठे भुपिन्द्र सिंह हुड्डा बहुत आश्वस्त और प्रसन्न नजर आ रहे थे। पर इस महारैली के चित्र देख कर और त्रिमूर्ति के भाषण सुन कर मेरा तो यही कहना है,

यह जश्न, यह हंगामें, दिलचस्प खिलौने हैं

कुछ लोगों की कोशिश है कुछ लोग बहल जाएं!

यह सही है कि यह सरकार मनरेगा और सूचना के अधिकार जैसी क्रांतिकारी योजनाएं ले कर आई थी पर यह पिछली मनमोहन सिंह सरकार का योगदान था। वर्तमान सरकार की कारगुजारी तो पूरी तरह से नकारात्मक रही है।  प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने एक बार फिर एफडीआई की वकालत की है। फिर आर्थिक सुधारों का गुणगान किया गया। खुद अमेरिका के कई बड़े शहरों से वालमार्ट को भगा दिया गया पर हमारे यहां प्रभाव यह दिया जा रहा है कि विदेशी कंपनियां आएंगी खुशहाली लाएंगी। कई क्षेत्रों में एफडीआई की जरूरत है पर रिटेल जिस पर 5 करोड़ भारतीयों का रोजगार निर्भर है से यह खतरनाक छेड़छाड़ बहुत बड़े सामाजिक विस्फोट को आमंत्रित कर रही हैं।

हमने सोचा था कि आर्थिक उदारवाद से हमें लाल फीताशाही और सरकारी नियंत्रण से छुटकारा  मिल जाएगा, भ्रष्टाचार कम होगा और भारत की प्रतिभा को खुल खेलने का मौका मिलेगा। इसका यह प्रभाव जरूर हुआ है कि कई भारतीय ब्रैंड अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अब सम्मानित हैं। ‘मेड इन इंडिया’ को अब अनादर और मजाक से नहीं देखा जाता। लेकिन प्रधानमंत्री ने लगाम ढीली छोड़ दी जिस कारण इतना भ्रष्टाचार हुआ कि अब उदारवाद या सुधारवाद एक गाली बन गई है। लोग तो समझते है कि और एफडीआई इसलिए आमंत्रित की जा रही है क्योंकि यह लोग और पैसा बनाना चाहते हैं। कई मामलों में राजनेता-अफसर-बड़े उद्योगपति सहबिस्तर पाए गए। सरकार कहती है कि गैस सिलेंडर महंगे करने पड़ रहें हैं क्योंकि सबसिडी बिल बहुत बड़ गया है। पर अगर सरकार श्वेतपत्र निकाले तो मालूम हो जाएगा कि केवल रिलायंस पर जो मेहरबानी की गई वह एलपीजी पर सबसिडी से भी अधिक है। आम लोगों के लिए तो अब रोटी बनानी ही समस्या बन गई है।

निर्णय लेते समय आम आदमी की समस्या के प्रति आपराधिक बेपरवाही दिखाई जाती है जबकि ‘कैप्टनस ऑफ इंडस्ट्री’ का पूरा ध्यान रखा जाता है। लोगों की समस्या के प्रति बेपरवाही ऐसी है कि हिमाचल के चुनाव से दो दिन पहले एलपीजी की कीमत बढ़ाने का फैसला ले लिया गया जबकि वहां चुनाव में भाजपा इसे बड़ा मुद्दा बना चुकी थी। फिर दबाव में इसे स्थगित भी कर दिया। अब अगर वहां कांग्रेस जीतती है तो यह केवल वीरभद्र सिंह का योगदान होगा नहीं तो केंद्रीय सरकार ने तो पांव पर कुल्हाड़ा चला ही दिया था। हमारा शिक्षा तथा स्वास्थ्य ढांचा अभी भी वैसा है जैसे आजादी के समय था। हर वर्ष पांच साल से कम आयु के 17 लाख बच्चे इलाज के अभाव से मारे जाते हैं। दुनिया में सबसे अधिक नवजात बच्चे यहां ही मरते हैं। अधिकतर लोगों को साफ पीने का पानी भी नहीं मिलता। लेकिन इस तरफ  किसी का ध्यान नहीं है पर लोगों को एफडीआई का सब्जबाग दिखाया जा रहा है। जयराम रमेश ने जो शब्द इस्तेमाल किए वह अनुचित थे पर टॉयलेट की जरूरत पर उन्होंने जो जोर दिया है वह अनुचित नहीं है। हालत है कि घर में टॉयलेट को प्राथमिकता नहीं दी जाती पर हाथ में मोबाईल अवश्य हैं!

प्रधानमंत्री कहते हैं ऐसा माहौल बनाना चाहिए कि ईमानदार अधिकारी फैसले से न डरें। पर माननीय, माहौल तो आपने ही बनाना है। आपके सामने अशोक खेमका का हश्र है केवल इसलिए कि उन्होंने प्रथम दामाद की जमीन खरीद पर सवाल उठाए थे। वास्तव में सबसे अधिक निराश डा. मनमोहन सिंह ने किया है। उन्होंने देश के साथ अन्याय किया है। उनके पास पर्याप्त अनुभव, बौद्घिक शक्ति, ईमानदारी और प्रतिभा है। वह देश को बहुत ऊंचाई तक लेकर जा सकते लेकिन उन्होंने निम्न राजनीति के आगे समर्पण कर दिया। जो समझौते उन्होंने किए उसने भ्रष्टाचार, महंगाई और कारप्रेट अनाचार का यह पिटारा खोल दिया। अगर आप चाहते हैं कि लोग कुर्बानियां दें तो आपको अच्छी सरकार देनी चाहिए और अर्थव्यवस्था पर पूरी नजर रखनी चाहिए। मनमोहन सिंह के अब तक के 8-9 वर्ष के शासन ने हमें एक अत्यंत भ्रष्ट समाज बना दिया। कोई भी घोटाला चाहे वह केंद्र में हो या किसी प्रदेश में, हजारों करोड़ रुपए से कम नहीं है। इतिहास मनमोहन सिंह के प्रति बेरहम रहेगा। राहुल गांधी का कहना था कि ‘सबसे बड़ी समस्या हमारा तंत्र है। मौजूदा तंत्र में आम आदमी के लिए सभी दरवाजे बंद हैं। पूरे देश के युवाओं को यह तंत्र ठोकर मार कर गिरा देता है लेकिन विपक्ष ने कभी तंत्र सुधारने की बात नहीं की…।’ दिसंबर 85 में कांग्रेस के शताब्दी समारोह में राजीव गांधी ने भी लगभग यही बात कही थी पर ‘सिस्टम’ को बदलेगा कौन? इन 27 वर्षों में तो परिवर्तन आया नहीं। जो विपक्ष में बैठे हैं वे सिस्टम नहीं बदल सकते सिस्टम को तो वही बदल सकते हैं जो दो बार से सरकार चला रहे हैं लेकिन इन्होंने तो स्थिति को और बदतर बना दिया। राहुल गांधी उस सिस्टम से नाराज हैं जिसके शिखर पर वे खुद स्थापित हैं! उनकी शिकायत है कि आम आदमी के लिए सिस्टम के दरवाजे बंद हैं लेकिन जिन युवाओं को वे राजनीति में बढ़ा रहे हैं वे भी क्या आम आदमी के प्रतिनिधि हैं? वे तो सब इसलिए स्थापित हैं क्योंकि उनके बड़े परिवार राजनीति के पुराने खिलाड़ी हैं।

राहुल का खुद को इस जीर्ण व्यवस्था और अलोकप्रिय सरकार से अलग करने का प्रयास लगता है। मैं उन्हें दुष्यंत के यह शब्द  याद करवाना चाहता हूं:

सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं

मेरी कोशिश है कि यह सूरत बदलनी चाहिए!

इस सूरत बदलने के लिए राहुल गांधी ने भी क्या किया इसके इलावा कि खुद इसमें हाथ गंदे नहीं किए? पर ‘टू बी आर नॉट टू बी’, अभी तक उनका भी सवाल लगता है। न ही वे देश के सामने जो ज्वलंत मुद्दे हैं उनके बारे ही अपने विचार प्रकट करने का कष्ट करते हैं। और न ही सिस्टम की आलोचना करने से वे खुद को मनमोहन सिंह सरकार से दूर ही कर सकते हैं। इस सरकार के यश अपयश दोनों के वे भागीदार रहेंगे। अगर मानव संसाधन जैसा एक विभाग संभाल कर वे कुछ कर दिखाते तो भी समझ आता। केवल हंगामें खड़े करने से तो कुछ नहीं बदलेगा। यह बात मैं वहां दिए गए सोनिया गांधी के भाषण के बारे भी कह रहा हूं। भाजपा पर वार करते हुए उनका कहना था कि जो आरोप लग रहे हैं वे गले तक भ्रष्टाचार में डूबे हुए हैं। निश्चित तौर पर अपने अध्यक्ष के कारण भाजपा जवाबदेह बन रही है। लेकिन सोनियाजी, सारा मामला कांग्रेस बनाम भाजपा का ही नहीं। असली बात तो हमारी, भारत की जनता, आम आदमी की है, जिन्हें आपके दामाद साहिब ‘मैंगो पीपल’ कह अमर कर गए है। हमें तो जवाब मिलना चाहिए कि,

(1) आपकी इस दूसरी सरकार के दौरान इतनी भयानक महंगाई क्यों हुई है?

(2) आपकी इस सरकार के दौरान इतना भयानक भ्रष्टाचार क्यों हुआ?

भाजपा को एक तरफ छोड़ दीजिए, हम लोगों को तो इसका जवाब मिलना चाहिए। जवाब देने के लिए समय भी अधिक नहीं रहा। क्षितिज पर चुनाव नजर आ रहे हैं।

-चन्द्रमोहन

VN:F [1.9.22_1171]
Rating: 0.0/10 (0 votes cast)
VN:F [1.9.22_1171]
Rating: 0 (from 0 votes)
About Chander Mohan 707 Articles
Chander Mohan is the grandson of the legendary editor of Pratap, Mahashya Krishan. He is the son of the famous freedom fighter and editor, Virendra. He is the Chief Editor of ‘Vir Pratap’ which is the oldest hindi newspaper of north west india. His editorial inputs on national, international, regional and local issues are widely read.