राहुल के लिए पिच टेढ़ी

राहुल के लिए पिच टेढ़ी

 

विदेशमंत्री सलमान खुर्शीद का कहना है कि  राहुल गांधी कांग्रेस के सचिन तेंदुलकर हैं।  कांग्रेस पार्टी ने हाल ही में औपचारिक रूप  से राहुल गांधी को चुनाव समन्वय समिति  का अध्यक्ष भी बना दिया है। अर्थात्  अगला चुनाव उनकी कमान के नीचे लड़ा  जाएगा। अगर सलमान खुर्शीद की तुलना  को सामने रखा जाए तो कहा जा सकता है  कि कांग्रेस की तरफ से राहुल गांधी बैटिंग  खेलेंगे। चुनाव से 18 महीने पहले यह  मामला तय कर कांग्रेस विशेष तौर पर यह  संदेश देना चाहती कि भाजपा के अंदर  अराजक स्थिति की तुलना में उसका घर  पूरी तरह से व्यवस्थित है।

लेकिन यह लिखने के बाद जरूर कहना  चाहूंगा कि राहुल गांधी कोई सचिन  तेंदुलकर नहीं हैं। वे राजनीति के मास्टर  ब्लास्टर नहीं हैं। वास्तव में बहुत स्लो  स्कोरर हैं।  उन्हें भी अपने दरबारियों की  चमचागिरी में नहीं आना चाहिए। यह सही  है कि राजनीति में हार-जीत चलती है।  सचिन तेंदुलकर भी जल्द ऑऊट हो चुके हैं  पर राहुल गांधी अपनी एक सफलता तो  बताएं? एक ‘शतक’ तो बताएं? यूथ  कांग्रेस को प्रभावी बनाने का भी उनका  प्रयास सफल नहीं हुआ। अभी तक उन्होंने  जो भी हासिल किया है वह अपनी पैदायश  के कारण हासिल किया है। वे गांधी  परिवार के चिराग हैं, इंदिरा गांधी के पौत्र  और राजीव और सोनिया गांधी के पुत्र हैं।  इस वक्त उनकी केवल यह ही विशेषता है।  उन्होंने खुद अपना कोई शतक नहीं  जमाया। इसके उलट पहले बिहार और फिर  उत्तर प्रदेश में वह बहुत जल्द ऑऊट हो  गए थे। कहा जाता है कि कई लोग जन्म  से महान् होते हैं कई महानता प्राप्त करते  हैं तो कईयों पर महानता थौंपी जाती है।  राहुल गांधी की भी यही हालत है कि उन  पर महानता थोंपी जा रही है।

राहुल गांधी का दुर्भाग्य भी है कि आजकल  उनकी पार्टी और सरकार की स्थिति  संतोषजनक नहीं है। एक तरफ घोटालों ने  सरकार की साख खत्म कर दी है तो दूसरी  तरफ संगठन की हालत भी खस्ता है।  सरकार जो निर्णय ले रही है उसने हालात  और बुरे कर दिए हैं। महंगाई पर कोई  नियंत्रण नहीं। कार्यकर्ता तो लोगों को यह  समझा नहीं सकते कि रिटेल में एफडीआई  की क्या जरूरत है? गैस सिलेंडर सीमित  कर और बाकी महंगे कर हर घर को  सरकार ने अपने खिलाफ कर दिया है। मैं  नहीं समझता कि इतनी बड़ी भारत सरकार  सस्ते गैस सिलेंडर नहीं दे सकती। आखिर  जहां चाहे वे मेहरबान हो ही जाते हैं। बड़े  उद्योगपतियों का ध्यान रखा जाता है पर  आम आदमी की मुसीबतें बढ़ा अजब  संवेदनहीनता दिखाई जा रही है। आर्थिक  दिशा को लेकर भी भ्रम हैं। सरकार एक  तरफ खींच रही है तो पार्टी दूसरी तरफ।  सरकार पूरी तरह से समाजवाद को  तिलांजलि देना चाहती है। राहुल गांधी को  यह संतुलन कायम करना होगा लेकिन  मालूम नहीं कि वे ऐसा चाहते भी हैं या  नहीं क्योंकि अभी तक कोई नहीं जानता  कि देश के आगे ज्वलंत मुद्दों पर उनके  विचार क्या हैं? बाहर रह वह उस  ‘व्यवस्था’ की आलोचना कर चुके हैं  जिसकी सरंक्षक उनकी अपनी माता है।  जिन सांसदों ने संसद के अंदर सब से कम  प्रश्न पूछे या भाषण दिए उनमें राहुल गांधी  एक हैं। संसद में योगदान लगभग शून्य  है। कोई नहीं जानता कि राष्ट्रीय/अंतर्राष्ट्रीय  मुद्दों पर उनके विचार क्या हैं?  अर्थ-व्यवस्था को वे कैसे सुधारना चाहेंगे?  माओवाद, आरक्षण, तेलंगाना, पाकिस्तान  आदि मुद्दों पर उनकी सोच क्या हैं? उनके  नजदीकी मंत्री जयराम रमेश कह रहे हैं कि  देश में जन स्वास्थ्य व्यवस्था ध्वस्त हो  गई है। यह बांग्लादेश और कीनिया जैसे  देशों से भी बुरी है। पर इसके लिए  जिम्मेवार कौन है? नौ वर्षों से तो यहां  सोनिया जी की ही सरकार है। जब राहुल  बोलते हैं तो कई बार अंग्रेजी के मुहावरे के  अनुसार अपना पैर अपने मुंह में डाल लेते  हैं, जैसे उन्होंने एफडीआई तथा कारगिल  की दुर्भाग्यपूर्ण तुलना कर किया है। क्या  कारगिल के समय कांग्रेस पार्टी वाजपेयी  सरकार का समर्थन न करती तो  पाकिस्तान का करती? वे क्यों भूलते हैं कि  मुंबई पर भी हमला हुआ था और उस  वक्त दिल्ली और मुंबई दोनों जगह कांग्रेस  की सरकारें थी और पूरे देश ने घोर  सरकारी चूक के बावजूद सरकार का  समर्थन किया था।

उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में  सोनिया गांधी की रायबरेली की सभी सीटों  पर कांग्रेस को पराजय का सामना देखना  पड़ा था। राहुल गांधी की अमेठी सीट में  कांग्रेस केवल दो विधानसभा सीटों पर ही  जीत सकी है। अर्थात् गांधी ब्रैंड खतरे में  है। मुस्लिम समर्थन खिसकने का भी भय  है। घबराहट है कि जिस तरह एक बार  इंदिरा गांधी और संजय गांधी हार गए थे  वैसा ही हश्र सोनिया गांधी तथा राहुल  गांधी का न हो। इस हालत में प्रियंका क्या  कर लेंगी कहा नहीं जा सकता। उत्तर  प्रदेश विधानसभा चुनावों में तो उनका जादू  नहीं चला था, क्या गारंटी है कि 2014 में  चल जाएगा विशेष तौर पर जब केंद्रीय  सरकार की बदनामी पहले से अधिक है?  राहुल या प्रियंका के दखल से कुछ बदलने  वाला नहीं जब तक कि सरकार की हालत  बेहतर नहीं होती। ऊपर से राबर्ट वाड्रा के  जमीनी मसलों तथा ‘यंग इंडिया’ के  मामलों से परिवार की बदनामी हुई है। खुद  को निम्न विवादों और घपलों से अलग  रखने के गांधी प्रयास को धक्का पहुंचा है।  ठीक है इन मामलो का कुछ नहीं बनेगा  आखिर सरकार इनकी है, लेकिन लोगों की  सोच में परिवर्तन तो शुरू हो गया है कि  परिवार अब घपलों से ऊपर नहीं रहा।  साफ-सुथरी चमक फीकी हुई है। राहुल  गांधी को अपने हमउम्र उमर अब्दुल्ला,  अखिलेश यादव, सुखबीर बादल से कुछ  सीखना चाहिए जिन्होंने गलतियां की,  लेकिन जिम्मेवारी से नहीं भागे। एक  पलायनवादी युवराज कांग्रेस की डूबती  नैय्या को नहीं बचा सकता विशेषतौर पर  उस वक्त जब लोग परिवर्तन चाहते हैं।  आज से शुरू हो रहा संसद का अधिवेशन  राहुल गांधी द्वारा नेतृत्व की क्षमता  दिखाने का बढिय़ा मौका हो सकता है। देश  इंतजार में है।

अगर राहुल गांधी ने वास्तव में देश का  नेता बनना है तो उन्हें अपने विचार सोच  समझ कर लोगों के सामने रखने चाहिए।  अभी तक उन्होंने बहुत आरामपरस्त  जिंदगी व्यतीत की है अब कड़े फैसले और  जबरदस्त संघर्ष के लिए उन्हें तैयार होना  है। उनकी टीम बहुत कमजोर है। अकेला  सचिन तेंदुलकर भी बेड़ा पार नहीं लगा  सकता उन्हें भी अच्छे साथी चाहिए।  कांग्रेस का दुर्भाग्य है कि प्रदेशों में स्थानीय  नेताओं को मसल दिया गया है। बड़े  खिलाड़ी नहीं रहे जबकि विपक्ष के प्रादेशिक  नेता शतक लगा रहे हैं। नरेंद्र मोदी तीहरा  शतक लगाने की तैयारी में हैं। गुजरात का  चुनाव बहुत बड़ी परीक्षा होगी लेकिन  लगता है कि कांग्रेस के नेतृत्व ने पहले ही  हथियार डाल दिए हैं। विज्ञापनों से सोनिया  गांधी तथा राहुल गांधी के चेहरे गायब हैं।  मोदी का किला भेदने का आत्मविश्वास  नहीं है और परिवार के वारिस को एक और  पराजय से दूर रखा जा रहा है। अर्थात्  कांग्रेस के कथित सचिन तेंदुलकर के लिए  पिच टेढ़ी नजर आ रही है। बचाव केवल  इतना है कि विरोधी टीम, भाजपा, में  अस्तव्यस्तता और भी अधिक नजर आ  रही है। हालत तो यह है कि संसद में मैच  शुरू होने से पहले कप्तान गडकरी को दूर  इटानगर भेजा जा रहा है जबकि ड्रैसिंग  रूम में ही भावी कप्तान को लेकर  घमासान शुरू हो गया है। नागपुर वाले  कोच ने ही टीम को उलझा दिया है। उन्हें  दिल्ली वाले ऑल राऊंडर पसंद नहीं हैं!

-चन्द्रमोहन

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Chander Mohan is the grandson of the legendary editor of Pratap, Mahashya Krishan. He is the son of the famous freedom fighter and editor, Virendra. He is the Chief Editor of ‘Vir Pratap’ which is the oldest hindi newspaper of north west india. His editorial inputs on national, international, regional and local issues are widely read.