
कितने कसाब और हैं वहां?
आखिर वह हो गया जिसकी देश को चार साल से इंतजार थी। मुंबई पर 26 नवम्बर 2008 के हमले जिसमें 166 लोग मारे गए थे, के एकमात्र जीवित आतंकवादी अजमल कसाब को पुणे की यरवदा जेल में फांसी पर लटका दिया गया। कई लोग कहेंगे कि हमारी प्रक्रिया ने बहुत समय लिया जिस दौरान उसे जीवित रखने पर 50 करोड़ रुपया खर्च किया गया। कई बार मजाक में कहा भी गया कि उसे बिरयानी खिलाई जाती है पर यह संतोष की बात है कि उसे पूरी न्यायिक प्रणाली से गुजरने के बाद फांसी दी गई। भारत ने दुनिया को साबित कर दिया कि यहां कानून का राज है और कसाब जैसे पाकिस्तानी आतंकवादी को भी अपना पक्ष रखने के पूरे अवसर दिए गए। बहुत आसान था कि पहले ही दिन उसे गोली से उड़ा दिया जाता लेकिन हम कोई अफ्रीकी देश तो हैं नहीं, न ही हिटलर या स्टैलिन के जमाने में रह रहे हैं। लेकिन भविष्य में ऐसे मामलों को फॉस्ट ट्रैक करने का रास्ता निकालना होगा।
कसाब को लगी फांसी से यह मामला खत्म नहीं होगा। असली सवाल तो यह है कि हम पाकिस्तान की भूमि से ऐसे और आतंकवादी हमलों को कैसे रोक सकते हैं? मुंबई पर हमले के चार साल बाद हम ऐसे किसी और हमले का सामना करने के लिए तैयार है? आखिर वहां अभी भी ऐसे तत्व मौजूद हैं जिन्हें भारत के साथ दुश्मनी के अतिरिक्त और कुछ नहीं सूझता। वह दोबारा भी कोशिश कर सकते हैं। पंजाब में जमीन में खुदी सुरंग पकड़ी जा चुकी है। क्या कोशिश थी? मुंबई पर हमला बताता है कि किस तरह ऐसी स्थिति का सामना करने के लिए हम बिल्कुल बेतैयार थे। कई घंटे तो एनएसजी दिल्ली से मुंबई नहीं पहुंच सकी क्योंकि हवाई जहाज उपलब्ध नहीं था। आगे से कुछ बेहतरी हुई है लेकिन विशेषज्ञ अभी भी हमें सावधान कर रहे हैं कि सब कुछ सही नहीं। ऐसी स्थिति से निबटने के लिए जो व्यवस्था कायम होनी है वह अभी भी लटक रही है। पी. चिदंबरम के गृहमंत्री हटने से भी फर्क पड़ेगा। अभी भी हम एक ‘सॉफ्ट स्टेट’ हैं, नरम लापरवाह राज्य हैं। इसके साथ ही सवाल उठता है कि जिन्होंने 26/11 की साजिश रची थी उन्हें सजा कब मिलेगी? कसाब ने माना था कि उसने हाफिज सईद के भडक़ाने वाले भाषण सुने थे। डेविड हैडली ने भी बताया था कि हमले के समय कराची के कंट्रोल रूम में पाकिस्तान की सेना तथा आईएसआई से जुड़े सेवारत अफसर मौजूद थे।
अजमल कसाब की तारीफ करते हुए पाकिस्तान तालिबान ने घोषणा की है कि वह कहीं भी भारतीय हितों पर हमला कर सकते हैं। यह देखते हुए कि लश्करे तोयबा जिसने कसाब और नौ अन्य को कराची से मुंबई पर हमला करने के लिए भेजा था, कि क्षमता अभी भी पूरी तरह से कायम है उधर से उठ रही धमकियों को गंभीरता से ही लेना होगा। पाकिस्तान तालिबान का कहना है कि ‘यह बहुत बड़ी हानि है कि एक मुसलमान को भारत की जमीन पर फांसी दी गई है।’ लेकिन पाकिस्तान के अंदर जो समझदार लोग हैं वह भी इस घटनाक्रम से कुछ परेशान नजर आ रहे हैं। फ्राईडे टाईम्स के सम्पादक राजा रूमी ने लिखा है, ‘आम प्रभाव था कि अफजल गुरू की तरह अजमल कसाब को भी फांसी नहीं दी जाएगी इसलिए घटनाक्रम से पाकिस्तान को धक्का पहुंचा है।’ पाकिस्तान के चैनलों ने मामले में उत्तेजना भरने का प्रयास नहीं किया पर इमरान खान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ ने तो बदले में सरबजीत सिंह को फांसी पर लटकाने की मांग की है। हमारे देश में बहुत संस्थाएं है जो इमरान खान को उसके ग्लैमर के लिए और परवेज मुशर्रफ को उनके बड़बोलेपन के लिए निमंत्रित करते रहते हैं। यहां आकर वे कुछ कहते हैं और पाकिस्तान के लोगों को कुछ और। ऐसे लोगों को हम मंच क्यों देते हैं? जहां तक सरबजीत सिंह का सवाल है वह वहां 20 साल से कैद में हैं। अब उसकी रिहाई और मुश्किल हो जाएगी, चाहे उसे फांसी पर न भी चढ़ाया जाए।
असली चिंता पाकिस्तान के समाज के उग्रवादी तत्वों को लेकर है। वहां भारी संख्या में बेरोजगार लावारिस नौजवान हैं जिन्हें जेहादी सब्जबाग और जन्नत के सपने दिखा कर आतंक के रास्ते पर भेज रहे हैं। अजमल कसाब भी एक गरीब घर से निकला हुआ बेरोजगार अनपढ़ लफंगा था जो मजदूरी कर पेट भरता था। जेहादियों ने उसे गुरबत और लाचारी से निकलने का ‘सम्मानजनक’ रास्ता दे दिया। बताया जाता है कि लश्करे तोयबा के ट्रेनिंग कैंप में रहने के बाद जब वह वापिस अपने गांव गया तो वे ही परिवार और वे ही गांववासी जो उसे दुत्कारते थे, उसे नए सम्मान से देखने लगे। सवाल है कि ऐसे कितने और घर से निकाले हुए अनपढ़ बेरोजगार लावारिस नौजवान वहां जेहादियों के चंगुल में आने के लिए इधर-उधर बिखरे हुए हैं? पाकिस्तान की वरिष्ठ टिप्पणीकार और लेखिका आईशा सद्दीका ने लिखा है, ‘जहां तक अजमल कसाब का सवाल है वह अब एक ऐसा प्रतीक बन गया है जिसका इस्तेमाल और कसाब पैदा करने के लिए किया जाएगा। सवाल केवल यह है कि कसाबों की इस नई पीढ़ी का कहां और कब इस्तेमाल किया जाएगा?’
यह सवाल पाकिस्तान सरकार तथा भारत सरकार दोनों को चिंतित करेगा। पाकिस्तान की सरकार को इसलिए क्योंकि जेहादी जो भी करेंगे उसका परिणाम पाकिस्तान को भुगतना पड़ेगा और भारत को इसलिए कि कसाब की फांसी का बदला वह केवल भारत से ही ले सकते हैं। हमें अपनी तटीय तथा आंतरिक सुरक्षा की खामियों को दूर करना है। हमारे देश में बहुत से दयालु लोग हैं जिनका दिल पाकिस्तान के लिए धडक़ता है। पाकिस्तान के साथ संबंध सामान्य तब तक नहीं हो सकते जब तक 26/11 के सूत्रधारों के खिलाफ उचित कार्रवाई नहीं होती और वह देश बार-बार दिए गए अपने आश्वासन कि उनकी भूमि हमारे खिलाफ इस्तेमाल नहीं होने दी जाएगी, पर अमल नहीं करते। यह कहना कि हम लाचार हैं पर्याप्त नहीं है। पाकिस्तान तो अभी तक कराची के कंट्रोल रूम जहां से 26/11 के आतंकियों का संचालन किया गया में मौजूद मेजर सलीम, मेजर इकबाल तथा हमजा की मौजूदगी से ही इंकार करता है। उनकी आवाज के नमूने हमें नहीं सौंपे गए। जो सात लोग योजना बनाने और इसे क्रियान्वित करने के आरोप में पकड़े गए उनकी निचली अदालतों में सुनवाई पूरी नहीं हुई। बार-बार जज बदला जाता है।
चार साल के बाद कई सवाल अभी भी ऐसे हैं जिनके जवाब नहीं मिले। बेकसूर नागरिकों के कत्लेआम के पीछे किन का दिमाग था? ऐसा कर वे क्या प्राप्त करना चाहते थे? कहां और कैसे ये गनमैन ट्रेन किए गए और उन्हें हथियार दिए गए? किन्होंने उनका दिमाग खराब कर इस नापाक अभियान पर भेजा था? किन्हों ने इसके परिचालन के लिए सहूलियत दी जिसमें भारतीय बंदरगाह तक पहुंचने के लिए किश्ती देना भी शामिल था? और क्या कारण है कि यह गतिविधियां पाकिस्तान में किसी के ध्यान में नहीं आई?
यह सवाल मेरे नहीं हैं। यह सवाल पाकिस्तान के प्रमुख अखबार ‘डॉन’ ने अपने संपादकीय में किए हैं। अर्थात् अभी भी वहां समझदार और संवेदनशील लोग अपनी आवाज उठाने का प्रयास करते हैं पर ‘डॉन’ ने भी कसाब को ‘गनमैन’ कहा है, आतंकवादी नहीं! लगता है कि अभी भी सच्चाई का सामना करने को वे तैयार नहीं! जो अभी तक वहां पकड़े गए उनमें लश्करें तोयबा का कमांडर जाकी उर्र रहमान लख्वी भी है। दिलचस्प है कि दो वर्ष से हाई सैक्यूरिटी रावलपिंडी के अदियाला जेल में कैद में रहते हुए भी वह एक बच्चे का बाप बन गया!
-चन्द्रमोहन