प्रधानमंत्री का बना रहना ही अब ‘नॉनसेंस’ होगा
क्या कांग्रेस के प्रथम परिवार ने अपना बलि का बकरा ढूंढ लिया? सीताराम केसरी, पी.वी. नरसिंहा राव के बाद मनमोहन सिंह? डा. मनमोहन सिंह के बचे खुचे सत्ताधिकार को उनकी ही पार्टी के उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने ध्वस्त कर दिया। उन्हें उस समय सार्वजनिक झाड़ डाली गई जब वे अमेरिका यात्रा पर थे और पहले राष्ट्रपति बराक ओबामा और बाद में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ के साथ उनकी मुलाकात होने वाली थी। ऐसी संवेदनशील वार्ताओं से पहले तो विपक्ष भी सरकार की आलोचना से परहेज करता है पर यहां राहुल गांधी ही मनमोहन सिंह के मंत्रिमंडल द्वारा पारित माननीय दागियों को अभयदान देने वाले अध्यादेश को पत्रकार सम्मेलन में घुस कर नॉनसैंस अर्थात् बकवास कह रहे थे और नाटकीय ढंग से कह रहे थे कि इसे फाड़ कर एक तरफ फैंक दो।
बराक ओबामा तथा नवाज़ शरीफ के साथ सफल मुलाकातें कर तथा बाद में रूस तथा चीन के नेताओं से मिल कर मनमोहन सिंह इज्जत और मर्यादा के साथ अपना पद छोड़ना चाहते थे। लेकिन उन राहुल गांधी जिनके अधीन काम करने की दुर्भाग्यपूर्ण इच्छा प्रधानमंत्री कुछ दिन पहले व्यक्त कर चुके हैं, ने उनके पद तथा उनका अपना अवमूल्यन कर दिया। छिपने की जगह नहीं छोड़ी गई। न केवल प्रधानमंत्री बल्कि इस पूरे केंद्रीय मंत्रिमंडल की स्थिति ही ‘नॉनसैंस’ बन गई है क्योंकि राहुल गांधी ने बता दिया है कि उनकी सरकार के विवेक पर लोगों को भरोसा नहीं करना चाहिए। मनमोहन सिंह तथा उनके पूरे मंत्रिमंडल के खिलाफ एक प्रकार से अविश्वास प्रस्ताव पारित कर दिया है।
पर केवल मंत्रिमंडल के खिलाफ ही नहीं उन्होंने तो अपनी मम्मी के नेतृत्व के खिलाफ भी अविश्वास प्रस्ताव पारित कर दिया है। आखिर इस ‘नॉनसैंस़’ अध्यादेश को केवल मंत्रिमंडल में ही नहीं बल्कि सोनिया गांधी की मौजूदगी में कोर ग्रुप ने भी हरी झंडी दी थी। इस सरकार के संदर्भ में यह संभव ही नहीं कि ऐसा कोई कदम सोनिया गांधी की अनुमति के बिना उठाया गया हो। 21 सितंबर को सोनिया गांधी तथा मनमोहन सिंह ने यह अध्यादेश जारी करने का निर्णय लिया था। कांग्रेस पार्टी ने सार्वजनिक तौर पर अध्यादेश लाने की जरूरत का समर्थन किया था। इतने दिन राहुल गांधी किधर थे? संसद में भी इस पर चर्चा हुई थी, मंत्रिमंडल ने दो बार इस पर सहमति की मोहर लगाई थी। यह संभव नहीं कि जो बात सारे देश को पता थी वह कांग्रेस के भोले उपाध्यक्ष को अचानक 27 सितम्बर को मालूम हुई। इस अध्यादेश को रोकने के लिए कई मौके राहुल गांधी के पास थे। बार-बार वरिष्ठ मंत्री इसकी वकालत कर रहे थे। यह गरीब तो अब बगले झांक रहे हैं। उन्हें समझ नहीं आ रहा कि उसका विरोध कैसे करें जिसका समर्थन वह जोर-शोर से कर चुके हैं और जिसके विरोध के लिए वह विपक्ष को कोसते रहे हैं।
यह अध्यादेश वास्तव में नानॅसैंस है, बकवास है। सरकार उस मामले पर अध्यादेश ला रही थी जिसे सुप्रीम कोर्ट एक बार ही नहीं बल्कि दो बार असंवैधानिक करार चुकी है। अगर यह कानून बन जाता तो दागी ही हमारे कानून बनाते रहते। इस बेशर्म कदम से यह सरकार लोकतंत्र में लोगों का विश्वास और कम कर रही थी। यह अध्यादेश वास्तव में रद्दी की टोकरी में फेंकने के लायक है लेकिन राहुल गांधी पहले दखल दे कर इसे रोक सकते थे। प्रधानमंत्री तथा उनके मंत्रिमंडल को सार्वजनिक झाड़ डालने की जरूरत नहीं थी। सोनिया गांधी ने आज तक प्रधानमंत्री की इज्जत का मज़ाक नहीं बनाया पर उनके पुत्रश्री तो प्रधानमंत्री का लतीफा बना गए हैं। उनके सत्ताधिकार का ह्रास हो गया है। कौन अब इस प्रधानमंत्री को देश-विदेश में गंभीरता से लेगा यह जानते हुए कि कांग्रेस के प्रथम परिवार का सदस्य जिसे पार्टी भावी प्रधानमंत्री पेश कर रही है, उनके तथा उनके मंत्रिमंडल के प्रति अविश्वास व्यक्त कर रहा है।
डा. मनमोहन सिंह की जो दुर्गत हो रही है उसे लेकर उनसे सहानुभूति हो रही है। ऐसी सार्वजनिक बेइज्जती तो कभी किसी प्रधानमंत्री की नहीं हुई। उनकी वफादारी का आखिर में उन्हें यह ईनाम मिला। वह कह सकते है,
हम बावफा थे इसलिए नज़रों से गिर गए
शायद तुम्हें तलाश किसी बेवफा की थी!
क्या यह समझ लिया कि चुनाव नजदीक हैं और मनमोहन सिंह एक लायबिल्टी है, बोझ है? इस फटकार के बाद दो ही विकल्प रहते हैं। या राहुल गांधी सार्वजनिक तौर पर खेद प्रकट करें नहीं तो प्रधानमंत्री को स्वदेश लौट कर इस्तीफा दे देना चाहिए। उन्हें अब ‘वफादार सिपाही’ की भूमिका निभाना बंद कर देना चाहिए। इस अपमान के बाद उनका पद पर बने रहना केवल ढीठाई ही व्यक्त करेगा पर अगर वे बलि का बकरा बनना चाहें तो उनकी मर्ज़ी है।
इसी के साथ ज़हन में यह सवाल उठता है कि, अब तेरा क्या होगा लालू?
प्रधानमंत्री का बना रहना ही अब ‘नॉनसेंस’ होगा,
Respected Sir Well said. I present before you the stats that our current Prime Minister Mr. ManMohan Singh is the third in the list among who has enjoyed maximum tenure as prime minister’s office after Pt. Jawharlal Nehru , Smt. Indira Gandhi,. But I am afraid he will not be remembered like great prime ministers Pt. Lal Bahudar Shastri , I.K Gujral, Morar Ji Desai who has enjoyed very less office as compare to him. His silence on many important issues has caused great concerns.
Thanks to Supreme Court who has pulled government on so many important issues.
हमारे प्रधानमंत्री जी ने सहनशीलता और सहिष्णुता का परिचय दिया है. तभी तो इतना बेईज्ज़त होने के बाद भी चेहरे पर शिकन तक नहीं है. लगता है उन्हें किसी ने समझाया है के एक स्टेट्समैन का व्यवहार ऐसा ही होना चाहिए.तभी तो पिछले नौ सालों से उन पर किसी बात का असर नहीं होता. चाहे कोई भी घोटाला हो, रटा रटाया भाषण देना उनका काम बन गया है.
पर इस सब में वो शायद भूल गए हैं की मनमोहन सिंह होने के साथ वो १२० करोड़ लोगों के नेता हैं. दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के प्रधानमंत्री हैं , दुनिया के सबसे जवान देशों में से एक के लीडर हैं.
उनकी इस so called strategy से भारत के लोगों का सर झुक गया है. strategy कोई भी हो अपनी इज्ज़त और उस से भी बढ़ कर अपने देश के सम्मान को ध्यान में रख कर आचरण करना चाहिए.