मेरा हक है फसले बहार पर!
आसाराम बापू, तरुण तेजपाल तथा जस्टिस गांगुली से घायल 2013 अपने अंतिम माह में देश को रोमांचित और आशावादी बना गया। ‘आप’ की जीत में हम राजनीति में आदर्शवाद की वापसी देख रहे हैं। गांधी जी का यह कथन याद आता है कि ‘‘नैतिकता के बिना राजनीति से दूर ही रहना चाहिए।’’ आदर्शवाद व्यावहारिक नहीं रहता क्योंकि यथार्थ बहुत कड़वा, बदसूरत और गंदा होता है लेकिन यहां इतना कड़वा, बदसूरत और गंदा है कि शुद्धि की बहुत जरूरत है। संभावना नहीं कि अरविंद केजरीवाल का परीक्षण अधिक सफल रहेगा क्योंकि निहिथ स्वार्थ सफल नहीं होने देंगे लेकिन किसी ने यह आस तो जगाई है कि ‘वो सुबह कभी तो आएगी!’ कि मूलभूत राजनैतिक मूल्यों में बदलाव हो सकता है और जो कुछ अब तक चलता रहा उसे और बर्दाश्त करने की जरूरत नहीं। हम एक नई राजनीति को उगते देख रहे हैं,
कुछ नहीं तो कम से कम ख्वाब-ए-सहर देखा तो है
जिस तरफ देखा न था अब तक उधर देखा तो है!
वह राजनीति जो केवल अपने लिए है को लोग रद्द कर रहे हैं और चारों तरफ फैले भ्रष्टाचार से परेशान लोगों ने बता दिया कि वोट की ताकत क्या है। यह संभावना प्रबल हो रही है कि चुनाव शराब, पैसा, बाहुबल या रिश्वत के रूप में कथित कल्याणकारी योजनाओं या चुनावी मैनेजमैंट के बिना ईमानदारी तथा पारदर्शिता से जीता जा सकता है। हम जीत का एक नया मंत्र देख रहे हैं। जो समझते रहे कि वे परिवार की कुर्बानियों की इमोशनल कहानी सुनाकर लोगों को भावुक बना देंगे उन्हें एक तरफ छोड़ राजनीति आगे बढ़ रही है। युवाओं को विशेषतौर पर ‘आप’ की कामयाबी ने उत्साहित कर दिया है कि ओल्ड आर्डर अर्थात् पुरानी व्यवस्था को बदला जा सकता है।
लाल बत्ती गुल कर दी गई। सिक्योरिटी चाहिए नहीं, बंगला अपने पास रखो। लोग वोट डालते थे बदलाव के लिए लेकिन पांच साल में कुछ नहीं बदलता था। एक चुनाव तथा दूसरे चुनाव के बीच लोकतंत्र की गुणवत्ता गिर जाती है। केवल चेहरे बदल जाते हैं। जिस तरह 2जी घोटाले या कोयला आबंटन घोटाले से निबटा गया या मायावती या मुलायम सिंह की जायदाद के मामले में सच्चाई को बाहर नहीं निकलने दिया गया उससे लोग नाराज हैं और एक भ्रष्टाचार रहित व्यवस्था को लेकर शहरी मतदाता उत्साहित हैं इसीलिए सबने टोपियां डाली हुई हैं। जिस दिल्ली को उन्होंने संवारा वहां ही शीला दीक्षित की 25000 वोट से हार बताती है कि हम प्रबल चुनावी बगावत देख रहे हैं।
लोग केवल भ्रष्टाचार रहित व्यवस्था ही नहीं चाहते बल्कि वे बराबरी की व्यवस्था भी चाहते हैं जहां कोई आम या खास न हो। यह साईरन बजाती लाल बत्ती वाली गाड़ियां मेरे बराबरी के लोकतांत्रिक अधिकार का उल्लंघन करती हैं। लुटियन्स की दिल्ली में तो अति हो चुकी है। वे नेता जिनका लोगों के साथ सम्पर्क होना चाहिए था वे एकड़ों में फैले अपने बंगलों की ऊंची दीवारों के पीछे छिप जाते हैं। इस बेरुखी की कीमत चुकानी पड़ रही है, अब। लेकिन अभी भी समझ नहीं आई। बाबू जगजीवन राम की 6 कृष्णा मेनन मार्ग की पुरानी कोठी 25 साल के लिए लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार को गिफ्ट कर दी गई है। इसका औचित्य बाबूजी का ‘समाज के प्रति योगदान’ बताया गया। क्या बेहतर नहीं होता कि यहां बाबूजी के नाम पर नाइट शैल्टर बना दिया जाता या स्कूल बना दिया जाता? मीरा कुमार से भी बेहतर उम्मीद थी। जिस पद पर वह आसीन है आशा थी कि वे ऐसी पेशकश को ठुकरा देंगी। इस कोठी के प्रति उनकी भावना जरूर होगी लेकिन इसकी कीमत आम आदमी क्यों उठाए? इसी तरह तीन बंगले मायावती को अलाट कर महाबंगला बना दिया गया। आखिर इतनी सेवा की है। सरकार को गिरने नहीं दिया इसलिए यहां भी गिफ्ट तो बनता ही है। लेकिन जनता तो देख रही है। दिल्ली से बसपा का बिस्तर गोल क्यों हो गया? बहनजी को समझना चाहिए कि जनता उन्हें भी अब उसी व्यवस्था का हिस्सा समझते हैं जिसे कभी वे बदलना चाहती थी और जिसे लोग आज बदलने निकले हैं। गांधी परिवार तथा उनसे सम्बन्धित व्यक्तित्वों को कितने बंगले अलाट हैं? लोग अब इस जागीरदारी को जड़ से बदलना चाहते हैं। सही कहा गया,
आता है रहनुमाओं की नीयत में फतूर
उठता है साहिलों में वह तूफां न पूछिए!
2014 में क्या होगा? भारी अनिश्चितता के बीच एक बात तो तय है कि हम राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस का पतन देख रहे हैं। नीचे से ज़मीन खिसक रही है। एक अदृश्य प्रधानमंत्री, घोटालों में घिरी सरकार तथा एक उत्तराधिकारी जो प्रभाव यह दे रहा है कि राजनीति का ‘ज़हर’ पी कर वह देश पर मेहरबानी कर रहा है, अब कांग्रेस को बचा नहीं सकते। जब घोटाले छूट रहे थे राहुल गांधी नखरे करते रहे अब वे पार्टी के पतन को नहीं रोक सकते क्योंकि वे खुद भी इसका कारण हैं। बड़े लोगों का अहंकार अब बर्दाश्त नहीं। आईआईटी के छात्रों से भरे हाल में अपने गैस्ट स्पीकर से एक लड़के ने जब सवाल किया कि राहुल गांधी की उनकी डीएनए के सिवाए क्या विशेषता है तो सभी ने तालियां कर इस सवाल का अनुमोदन किया। लोग यह मानने को तैयार नहीं कि राहुल या प्रियंका का देश पर अधिक हक है क्योंकि वह गांधी है। आज लोग चाय वाले की तरफ उम्मीद से देख रहे हैं और आम आदमी की सरकार के साथ व्यापक सहानुभूति है। सोनिया गांधी का कहना कि हमारा भ्रष्टाचार ही न देखो विपक्ष का भ्रष्टाचार भी देखो, बताता है कि कहने को कुछ नहीं। हां, डा. मनमोहन सिंह के हश्र पर अफसोस है। पिछले दस वर्षों में देश की आर्थिक हालत बेहतर हुई है। लोगों में अधिक खुशहाली है, खर्चने के लिए अधिक पैसे हैं। यह श्रेय डा. मनमोहन सिंह को मिलना चाहिए था लेकिन महा भ्रष्टाचार के बारे उनकी मौन स्वीकृति तथा गठबंधन को उसका औचित्य दिखाना प्रधानमंत्री का इकबाल खत्म कर गए हैं। जिस वक्त राहुल गांधी ने मंत्रिमंडल के अध्यादेश को ‘नॉनसैंस’ कह रद्दी की टोकरी में फैंकने को कहा था, वह मौका था डॉक्टर साहिब के इस्तीफा देने का। कह देते नमस्कार! तुम संभालों मैं चलता हूं। लेकिन वे तो गोंद लगा कुर्सी से चिपके रहे। इस चाकरी की कीमत लोगों की नज़रों में गिरावट के रूप में उन्हें सहनी पड़ेगी।
दूसरी बात तय है कि भाजपा तथा नरेंद्र मोदी ही विकल्प हैं। भाजपा ही एकमात्र पार्टी है जो स्थाई सरकार दे सकती है और जिसके पास प्रशासनिक, आर्थिक मामलों या विदेश मामलों या सामरिक मामलों से निबटने के लिए पर्याप्त प्रतिभा है। देश में एक लॉबी है जो नरेंद्र मोदी को निशाना बनाती रही है। इनकी दुकान मोदी विरोध पर चलती है। इन्हें धक्का पहुंचा है कि अदालत ने 2002 के दंगों के मामले में उन्हें पूरी तरह बरी कर दिया है। अब कथित जासूसी के मामले में जांच करवाई जाएगी लेकिन एक भी सरकार बताईए जिसने जासूसी नहीं करवाई? दिलचस्प है कि कोई शिकायतकर्ता नहीं। जिसकी कथित जासूसी करवाई गई वह शिकायत नहीं कर रही पर मुद्दई सुस्त वकील चुस्त की नीति पर चलते हुए केंद्र ने जांच आयोग बैठा दिया है। बहरहाल मोदी विरोधी उद्योग को अब बंद कर देना चाहिए। ग्यारह वर्ष बहुत हो चुका।
तीसरा, आप या अरविंद केजरीवाल विकल्प नहीं हैं। यह तो मासूम आदर्शवादियों की टोली है जो चप्पे जितने दिल्ली की आधी जनता को मुफ्त पानी देकर अपनी पीठ थपथपा रहे हैं। यहां तो दशकों से पंजाब-हरियाणा का पानी विवाद खत्म नहीं हुआ या कावेरी के जल को लेकर कर्नाटक तमिलनाडु में तीखा झगड़ा नहीं निबटा। इन भले और भोले लोगों को अपनी चादर में रहना चाहिए और दिल्ली से बाहर सोचना भी नहीं चाहिए। रिजर्व बैंक ने भी कहा है कि राजनीतिक अस्थिरता से विकास प्रभावित होगा। देश को एक मजबूत केंद्र चाहिए। यह इस वक्त केवल भाजपा सरकार दे सकती है। छ: बंदो की यह आप ऐसी सरकार नहीं दे सकती। अभी तो उनका राजनीतिक यर्थाथ से सामना होना है। लेकिन इस संक्षिप्त समय में अरविंद केजरीवाल का योगदान भारी है। बाकी राजनीतिक दलों को भी चेतावनी है कि वे सुधर जाएं। मिॅडल क्लास विशेष तौर पर दबंग हो गई है। वह जनसंख्या का केवल दस प्रतिशत है लेकिन वह सदा देश को दिशा देती है। हम एक नए दिलेर परीक्षण के कगार पर हैं। 2013 नई सोच को जन्म दे गया है। हमें नई राजनीति चाहिए जहां प्रतिभा का सम्मान हो, वंश का नहीं। लोग अब एक प्रगतिशील, आधुनिक, बराबर भारत में अपना हक मांग रहे हैं। 2014 में उनका संदेश साफ है:
चाहे शाख हो सब्ज़ो वर्ग दे, चाहे गुलची गुलज़ार पर,
मैं चमन में चाहे जहां रहूं, मेरा हक है फसले बहार पर!
नया साल मुबारिक!
मेरा हक़ है फसले बहार पर !,
देश की राजनीती में मोदी ने तथा दिल्ली की राजनीति में केजरीवाल ने नई आशाओं को जन्म दिया है |