त्रासदी 1984 से बहुत पहले शुरू हो गई थी
अरनब गोस्वामी को दी गई राहुल गांधी की पहली इंटरव्यू से उठा गुब्बार थम नहीं रहा। क्योंकि यह लोग अपने घेरे में बंद रहते हैं और राहुल को तो अपने बारे तथा अपने परिवार के बारे बात करने का बहुत शौक है इसीलिए आभास नहीं कि देश बदल चुका है। मूर्ति भंजक हो गया है। पुरानी प्रतिष्ठाएं टूट रही हैं। राजनेताओं के प्रति जो आदर सत्कार था वह तेज़ी से खत्म हो रहा है। पिछले दस सालों के घपलों के कारण विशेष तौर पर गांधी परिवार अपनी आभा खो बैठा है। सोनिया गांधी को भी सरकार की असफलता तथा घपलों के लिए उतना ही जिम्मेवार ठहराया जा रहा है जितना डा. मनमोहन सिंह को; लेकिन फिर भी राबर्ट वाड्रा के ज़मीनी सौदे के बारे असुखद सवाल न उठा कर अरनब गोस्वामी ने राहुल का कुछ बचाव किया है, लेकिन अधिक नहीं। बार-बार सशक्तिकरण (22 बार) या सिस्टम बदलने का ज़िक्र (70 बार) उन्हें असुखद सवालों से बचा नहीं सकता। देश की हर समस्या का समाधान आरटीआई या सशक्तिकरण नहीं है। वह व्यवस्था को खोलना चाहते हैं लेकिन यह होगा कैसे? कांग्रेस के उपाध्यक्ष के तौर पर वह पहले भी तो यह कर सकते थे। उन्होंने कहा कि वे वंशवाद के खिलाफ है। इस जवाब पर विश्वास करना मुश्किल है। आखिर उनकी
क्या योग्यता है इसके सिवाय कि उनका जन्म इस परिवार में हुआ है?
फिर भी अच्छी बात है कि राहुल गांधी कुछ खुल रहे हैं। लोकतंत्र का यही तकाज़ा है। आशा है कि इस असुखद अनुभव के बावजूद वे यह वार्तालाप जारी रखेंगे। अब नरेंद्र मोदी की भी ऐसी लम्बी इंटरव्यू की इंतज़ार रहेगी। राहुल पार्टी में हाईकमान संस्कृति खत्म करना चाहते हैं लेकिन यह प्रयास सफल कैसे होगा? हाल ही में हमने देखा है कि उत्तराखंड के मुख्यमंत्री का चयन फिर सोनिया गांधी पर छोड़ दिया गया। उनकी अनुमति के बाद ही हरीश रावत को मुख्यमंत्री घोषित किया गया। अर्थात् जितना बदलने का प्रयास किया जाता है उतना ही कांग्रेस पार्टी वैसी रहती है। कांग्रेस एक स्थान पर खड़ी होकर भाग रही है।
राहुल चले तो नरेंद्र मोदी को कटघरे में खड़ा करने लेकिन अपने परिवार तथा पूरी कांग्रेस पार्टी को कटघरे में खड़ा कर गए क्योंकि वे एक बार फिर 1984 के नरसंहार का मामला जीवित कर गए। उन्होंने मान लिया कि इसमें कांग्रेसजन का हाथ हो सकता है। वैसे तो राहुल इस मामले में ईमानदार रहे हैं क्योंकि वे वही मान रहे हैं जो सब जानते हैं पर जिसे कांग्रेस पार्टी नकारती रही है। पार्टी अब सुरक्षात्मक है। वे यह दावा कैसे कर सकते हैं कि 1984 में राजीव गांधी की भूमिका 2002 में नरेंद्र मोदी से बेहतर थी? नरेंद्र मोदी को अभी तक हर अदालत से क्लीन चिट मिल चुकी है जबकि 1984 की घटनाओं के बारे विभिन्न जांच आयोग तो जलती पर नमक डाल गए हैं। राजीव गांधी के बचाव से केवल यह कहा जा सकता है कि हिंसा उस वक्त शुरू हो गई थी जब वे पूरे नियंत्रण में नहीं थे। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के कारण स्थिति नियंत्रण से बाहर थी और मां की हत्या के बाद उन्हें खुद संभलने में कुछ समय लगा लेकिन हमारे पास राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह के सहायक त्रिलोचन सिंह का बयान है कि प्रधानमंत्री राजीव गांधी तथा गृहमंत्री पी.वी. नरसिंहाराव ने स्थिति को नियंत्रण में लाने के राष्ट्रपति के फोन तक सुनने से इंकार कर दिया था। राजीव गांधी तथा कांग्रेस पार्टी की छवि को सबसे बड़ा आघात राजीव गांधी की ‘पेड़ गिर जाता है तो जमीन में हलचल होती है’, वाली टिप्पणी लगा गई है। यह एक ऐसी टिप्पणी है जो सभी स्पष्टीकरणों को तमाम कर गई है। इसे इतिहास कभी माफ नहीं करेगा। दिल्ली में ही 3000 से अधिक सिखों की हत्या को आप इस क्रूर लापरवाही से रफा-दफा नहीं कर सकते।
लेकिन एक बात कहना चाहूंगा कि जिन्हें ‘दंगे’ कहा जाता है ये वास्तव में दंगे नहीं थे। दंगे दो तरफी लड़ाई को कहा जाता है यह तो सुनियोजित नरसंहार था। जिन पर हमला किया गया वह अपना बचाव कर ही नहीं सके। गुजरात में दोनों तरफ से लोग मारे गए थे। चाहे मुसलमानों की संख्या अधिक थी पर सौ से अधिक हिन्दू भी पुलिस गोली का शिकार हुए थे जबकि दिल्ली तथा दूसरी जगह हमलों में केवल सिख ही मारे गए। इसीलिए यह ‘दंगे’ की परिभाषा में नहीं आता। लेकिन इसके साथ यह भी कहना चाहूंगा कि उन दिनों केवल यही गलत नहीं हुआ। त्रासदी 1984 से बहुत पहले शुरू हो गई थी। पंजाब तथा उसके बाहर बहुत कुछ गलत हुआ था। पंजाब में उग्रवाद खड़ा किया गया। कांग्रेस तथा अकालीदल दोनों इसके जिम्मेवार हैं। अगर कांग्रेस ने जरनैल सिंह भिंडरावाला को ताकत दी तो अकाली भी भावना भड़काते रहे। परिणाम हुआ कि पंजाब में हज़ारों बेकसूरों की हत्या हुई। दफ्तरों, घरों, दुकानों, स्कूलों में भारी संख्या में हिन्दू मारे गए। बसों और ट्रेनों से निकाल कर मारे गए। जो राजनेता उग्रवाद को हवा देते रहे वे अब फिर सत्ता में है। लेकिन याद रखना चाहिए कि अगर पंजाब को उग्रवाद के हवाले न किया जाता तो न ब्लूस्टार होता, न इंदिरा गांधी मारी जाती और न ही सिखों का कत्लेआम होता। ऐसा चक्र शुरू कर दिया जो तबाही मचा गया। पर जो हज़ारों बेकसूर पंजाब में मारे गए उसके लिए कौन जिम्मेवार है? क्या इन हज़ारों मौतों के लिए भी माफी मांगी जाएंगी? आखिर पंजाब में भी हज़ारों परिवार बर्बाद हो गए। यहां भी उग्रवादियों ने नस्ली सफाई का प्रयास किया था जो सफल नहीं हुआ। यह पंजाब की कड़वी सच्चाई है जिसे कोई स्वीकार करने को तैयार नहीं।
जब इस खूनी नाटक का अंत हुआ तो 30000 पंजाबी मारे जा चुके थे। पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल कई तरह के स्मारक बना रहे हैं पर बार-बार इस मांग के उठने के बावजूद पंजाब में आतंकी हिंसा में मारे गए बेकसूर तथा निरीह लोगों की याद में स्मारक बनाने को तैयार नहीं। उन्होंने कभी बेकसूरों की हत्या की निंदा भी नहीं की। सिखों के नरसंहार की जांच के लिए एसआईटी के गठन की मांग हो रही है लेकिन क्या कोई आयोग, या एसआईटी यह जांच करेगी कि किन परिस्थितियों में पंजाब को उग्रवाद की आग में धकेला गया? कौन थे इसके लिए जिम्मेवार? यह राजनीति का मामला नहीं है। यह मामला राहुल गांधी की टिप्पणी से भी बहुत बड़ा है। बाद में इंदिरा गांधी ने मारग्रेट थैक्चर को पत्र लिखा था कि हमें मालूम नहीं था कि स्वर्ण मंदिर में इतने हथियार हैं, ‘तब कोई चारा नहीं रह गया था।’ यह तो सही है कि शायद तब कोई चारा नहीं रहा था पर सवाल यह है कि ऐसी परिस्थितियां ही क्यों बनाई गई कि स्वर्ण मंदिर को किले में परिवर्तित कर दिया गया? और साथ ही यह निश्चित करने की जरूरत है कि भविष्य में ऐसा कुछ दोहराया न जाए। हमें देश भर में ऐसी परिस्थिति पैदा करनी हैं कि हिंसा की गुंजायश ही न रहे। न धार्मिक उग्रवाद पैदा किया जाए, न बेकसूरों को मारा जाए, न किसी पवित्र धार्मिक स्थल पर देश विरोधियों का कब्ज़ा हो, न वहां कार्रवाई की जरूरत पड़े, न कोई नेता अपने सुरक्षाकर्मियों के हाथों मारा जाए और न ही कभी देश की राजधानी या किसी और शहर में किसी भी समुदाय के लोगों का इस तरह नरसंहार हो।
त्रासदी 1984 से बहुत पहले शुरू हो गई थी ,
कटू सत्य का इतना निर्भीक ब्यान!
Respected sir
Very touching article……., i belong to Batala, ,,,,,,,,, my three young Hindu neighbours selectively shoot by terrorist……….. during Bus journey from Jalandhar to Batala………… i too have seen bomb explosions and Bullet fires in killing people in Batala during RamNavmi Shoba Yatra………so many hindu’s .were killed …………But no body bothers to talk……………about them…