सिंहासन खाली करो कि जनता आती है!
आम चुनाव लोकतंत्र का जश्न है। पांच साल उनके एक दिन हमारा! इस एक दिन में जनता अपना हिसाब बराबर करती है; इसलिए जरूरी है कि इस मौके का सही इस्तेमाल किया जाए। संसद के अंदर ‘माननीय’ ने पिछले दिनों जो व्यवहार किया है वह सोचने पर मज़बूर करता है कि हम किन्हें अपना प्रतिनिधि बना रहें हैं? यह भी दिलचस्प है कि इस एक दिन से बड़े-बड़े लोग आंतकित रहते हैं। ताकतवार मंत्रियों के भी जनता के इस सशक्त अधिकार से पसीने छूटते हैं। दिग्विजय सिंह और कुमारी शैलजा जैसे राज्यसभा में पहुंच चुके हैं। शीला दीक्षित केरल की राज्यपाल बन गई है। सिहासन खाली करो कि जनता आती है! इस बार तो लोगों के पास ‘इनमें से कोई नहीं’ का बंटन भी होगा। अपनी नाराज़गी व्यक्त करने के लिए आम आदमी को एक और अनोखा हथियार मिल गया है।
इन चुनावों में क्या होगा? क्या ये कुछ तय करेंगे या पहले जैसी बेस्वाद खिचड़ी ही पेश की जाएंगी? यह तो स्पष्ट है कि लोग पिछले 5 वर्ष के कुशासन से दु:खी हैं। यूपीए II की सरकार ने लोगों का न केवल कांग्रेस पार्टी बल्कि व्यवस्था के प्रति भी अविश्वास बढ़ा दिया है। आम राय है कि सब चोर हैं, जो बात सही नहीं है; लेकिन बदलाव की भावना प्रबल है। जो आज तक चलता रहा उसे लोग और बर्दाश्त करने को तैयार नहीं। निश्चित तौर पर भाजपा फ्रंटरनर है। तीसरे या चौथे मोर्चे की पार्टियां भी हैं लेकिन फिसलते नेताओं का यह जमघट किसी को उत्साहित नहीं कर रहा। मुलायम सिंह यादव, देवेगौड़ा, लालू प्रसाद यादव, शरदपवार, नीतीश कुमार, जैसे नेताओं का समय गुज़र रहा है। लोग अच्छे शासन के लिए तड़प रहे हैं जबकि ये लोग घिसे पिटे नारों को दोहराते जा रहे हैं।
बहुत हो चुका। सब्ज़बाग दिखा कर लोगों को बहुत भरमाया जा चुका है। कभी समाजवाद के नाम पर तो कभी धर्मनिरपेक्षता के नाम पर जनता की भावना का शोषण किया गया। और कुछ न चला तो फिर आरक्षण के हथियार का इस्तेमाल किया गया लेकिन देश बदल गया है। लोग स्मार्ट हो गए हैं। दो वर्ष पहले की ही बात है कि मुलायम सिंह यादव को उत्तर प्रदेश में भारी जीत मिली थी। उसी नाज़ुक मौके पर नीतीश कुमार ने भाजपा से रिश्ते तोड़ लिए और कांग्रेस से तार जोडऩे का प्रयास किया। वे नए ‘सैक्यूलर आइकॉन’ अर्थात् धर्मनिरपेक्ष प्रतीक बनना चाहते थे। नज़र प्रधानमंत्री की कुर्सी पर थी। पर इन दो वर्षों में कितना कुछ बदल गया? आज मुलायम सिंह यादव की सरकार बुरा प्रशासन देने के लिए कुख्यात है दूसरी तरफ बिहार में राम मनोहर लोहिया की औलाद, नीतीश कुमार तथा लालू प्रसाद यादव लावारिस हो गई हैं। न उसका कथित समाजवाद और न ही कथित धर्मनिरपेक्षता का उनका ढिंढौरा ही उनके काम आ रहा है। दूसरी तरफ हताश सरकार ने फिर आरक्षण का खेल खेलने का प्रयास किया है। चुनाव से ठीक पहले जाट समुदाय को ओबीसी की सूची में शामिल कर केंद्रीय नौकरियों तथा शिक्षा संस्थाओं में उनके लिए जगह आरक्षित कर दी हैं। सवाल उठता है कि क्या हरियाणा या पश्चिमी उत्तर प्रदेश या राजस्थान के जाट पिछड़े हैं? हरियाणा जहां के मुख्यमंत्री इस मामले में सब से सक्रिय रहे हैं, में तो जाट प्रभुत्व सम्पन्न और सबल जाति है। सत्ता पर इनका नियंत्रण है। अगर जाट भी पिछड़े हैं तो आज अगड़ी जाति कौन है? वास्तव में जाटों को अपनी स्थिति पर गर्व होना चाहिए और ऐसी किसी सुविधा से इंकार कर देना चाहिए था। पंजाब में जट्ट को भी पिछड़ी जातियों में शामिल किया जारहा है। चुनाव से पहले अमरेंद्र सिंह का मुंह बंद करने के लिए निर्णय लिया गया है जबकि पंजाब के जट्ट तो हरियाणा के जाट से भी अधिक प्रभावशाली स्थिति में हैं। क्या इन प्रदेशों में दूसरी जातियों के पिछड़े नहीं है? उनका अधिकार नहीं बनता?
आरक्षण का हथियार इस वक्त कारगर नहीं होगा। मेरा मानना है कि जनता का मूड बदला हुआ है। अगर आप कुछ को आरक्षण दे रहे हो तो बाकियों को वंचित भी तो कर रहे हो। उनकी नाराज़गी बढ़ेगी। ओबीसी कोटे में भीड़ बहुत बढ़ रही है दूसरी जातियों के हिस्से कम हो जाएंगे। संविधान निर्माता इसे एक अस्थाई प्रावधान ही समझते थे। मुख्यमंत्रियों को लिखे अपने पत्र में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने लिखा था, ‘मैं खास कर नौकरियों में किसी प्रकार के आरक्षण को नापसंद करता हूं… आरक्षण एक प्रकार से बैसाखी होगी जिससे शरीर को कोई स्फूर्ति नहीं मिलेगी।’ पहले प्रधानमंत्री उदारवादी सोच के नेता थे जो वोट बैंक के चक्कर में नहीं थे। अफसोस है कि उनका नाम लेकर कांग्रेस पार्टी को चला रहे उनके वंशज आरक्षण को वोट प्राप्त करने का अस्त्र समझते हैं। अगर छ: दशकों के बाद भी जाटों को आरक्षण देना इसलिए जायज़ माना जा रहा है कि वे पिछड़े हैं तो सवाल उठता है कि आप किस विकास का दावा कर रहे हो? एक तरफ आप दावा कर रहे हैं कि हमने बहुत तरक्की की है तो दूसरी तरफ एक सबल और प्रभावशाली जाति को ही ‘पिछड़ा’ घोषित कर रहे हो। हैरानी है कि इन्हें अपना विरोधाभास कहीं नज़र नहीं आता। समय आ गया है कि आरक्षण के इस सारे घोटाले पर बहस की जाए। जो पहले ही सम्पन्न है, सबल है, आयकर देते है, फायदा उठा चुके हैं, उन्हें आरक्षण का लाभ क्यों दिया जाए? कांग्रेस के महासचिव जनार्दन द्विवेदी के सुझाव पर गौर करने का समय आ गया है कि आरक्षण आर्थिक आधार पर होना चाहिए। जो पिछड़ा है, गरीब है, वंचित है, दबा हुआ है, उसे आरक्षण दिया जाए उसकी जाति कुछ भी हो। यहां राजनीति आड़े आती है लेकिन देश बदल रहा है। कई पुराने बुत तोड़े जा रहे हैं, और कई खुद-ब-खुद टूट रहे हैं।
यह 1989 का भारत नहीं है जब मंदिर-मंडल के मुद्दे छाए हुए थे। जाट आरक्षण से पिछड़ों के आरक्षण का मज़ाक बना दिया गया है और मुसलमान भी समझ गए हैं कि केवल इफ्तार पार्टी में टोपी डालने वाले उनका कल्याण नहीं कर सके। पुरानी राजनीतिक शब्दावली अब अपना महत्त्व खो बैठी है, क्योंकि इसके नीचे देश को शर्मनाक कुशासन, भ्रष्टाचार तथा वंशवाद दिया गया। कांग्रेस के पतन का भी यही कारण है। मैंने बहुत पहले लिखा था कि कांग्रेस 100 का आंकड़ा पार नहीं करेगी, मेरी बात सही निकल रही है। कांग्रेस के प्रभुओं ने नए युवा महत्त्वाकांक्षी भारत को नहीं समझा। गांधीजी की हत्या 66 वर्ष के बाद कोई मसला नहीं है। युवा भारत समझता है कि विकास, नौकरी, सुशासन पर उसका अधिकार है; उन्हें 10 जनपथ से भेजी खैरात नहीं चाहिए। लोग लिजलिज सरकार से तंग आ गए हैं वे अब मज़बूत केंद्र चाहते हैं। सब संकेत ये ही हैं कि देश को यह मिलने वाला है।
अंत में: पर्यावरण से संबंधित एक कार्यक्रम के लिए जालन्धर में श्री सुंदरलाल बहुगुणा को बुलाया गया था। उनके ठहरने का इंतज़ाम एक फाईव स्टार होटल में कर दिया गया। खर्चा मेजबान संस्थान का था। अगले दिन सुबह जब बहुगुणाजी ने चाय मंगवाई तो उनसे बिल पर दस्तखत करवाए गए। तब उन्हें मालूम हुआ कि वे कितने महंगे होटल में ठहरे हुए हैं। दु:खी होकर सामान उठा कर बाहर आ गए कि मैं इतनी महंगी जगह नहीं रह सकता। घर वापिस लौटने के लिए तैयार थे। क्या चार्टर्ड फ्लाईट वाले अरविंद केजरीवाल इस घटना से कुछ सबक सीखेंगे कि असली क्या है, नकली क्या?
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है!,
With Modi choosing to fight from Varanasi …….I feel BJP will sweep UP & Bihar……..bringing the party close to the corridors of power……
Moreover………erstwhile friends who left it branding it as a “Communal ” outfit ….are returning / aligning in hordes ………seeing it forming the next government…….
This shows that “communal ” & “secular” are mere buzzwords…….conveniently used, abused & manipulated ……….for political goals…….