वादे हैं वादों का क्या?
सोवियत यूनियन के पूर्व प्रधानमंत्री निकिता कु्रशचेव ने कहा था कि राजनीतिज्ञ वह होता है जो वहां पुल बनाने का वायदा करता है जहां कोई नदी नहीं है। आजकल पंजाब में नींव पत्थर रखने की जो सुनामी आई हुई है उसे देख कर क्रुशचेव का यह कथन याद आ जाता है। शासन विरोधी भावना जिसे ‘एंटी इकमबंसी’ कहा जाता है का सामना कर रही पंजाब की वर्तमान सरकार लोगों का ध्यान हटाने के लिए धड़ाधड़ हज़ारों करोड़ रुपए के नींव पत्थर रख रही है लेकिन सवाल तो यह है कि इनके लिए पैसा कहां है? जिस सरकार को अपने कर्मचारियों के वेतन तथा दूसरी सुविधाएं देने में भारी परेशानी हो रही है वह इन नींव पत्थरों पर निर्माण के लिए पैसा किधर से लाएगी? अपनी दूसरी अवधि में बादल सरकार का ग्राफ भी उसी तरह गिर रहा है जिस तरह केंद्र की मनमोहन सिंह सरकार का गिरा है। कई मंत्रियों के खिलाफ गंभीर आरोप हैं। विशेष तौर पर ड्रग तस्कर जगदीश भोला जो रहस्योद्घाटन कर रहा है उसने सरकार के लिए बड़ी परेशानी खड़ी कर दी है। पंजाब के घर-घर में इस मामले की चर्चा है क्योंकि नशे का जाल यहां बहुत फैल चुका है और बहुत बड़ी सामाजिक समस्या बन चुका है। भाजपा के एक मंत्री पर 2 वोट बनाने के मामले में क्रिमिनल केस दर्ज हो चुका है। ऊपर से खुद मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ब्लूस्टार के दौरान उनकी भूमिका को लेकर विवाद में फंस गए हैं।
अमृतसर में सुखबीर बादल ने कहा है कि 2000 करोड़ रुपए के विकास कार्य शुरू किए गए हैं। कुछ वर्ष पहले इसी तरह लुधियाना में मैट्रो शुरू करने की घोषणा की गई थी। तब भी इसी तरह बड़े-बड़े विज्ञापन निकाले गए थे। आज उसका कोई नाम नहीं लेता। जालन्धर में 550 करोड़ रुपए के ग्रुप हाऊसिंग प्रॉजैक्ट का शिलान्यास रखा गया। लेकिन समस्या यह है कि यह ज़मीन तो पहले ही 400 करोड़ रुपए के कर्ज़ को लेकर बैंक के पास गिरवी है। क्या गिरवी रखी गई ज़मीन पर हाऊसिंग बोर्ड का प्राजैक्ट बन सकता है? एक नींव पत्थर रख कर दूसरे की तरफ दौड़ा जा रहा है। इन परियोजनाओं के टैंडर भी नहीं बुलाए गए लेकिन घोषणाएं की जा रही हैं। पंजाब के लोगों को इतना बेवकूफ क्यों समझा जा रहा है कि वे इन हवाई किलों से संतुष्ट हो जाएंगे? जालन्धर में ही 52 करोड़ रुपए से एलिवेटेड सड़क का नींव पत्थर रखा गया जबकि इस वक्त शहर की हर सड़क टूटी हुई है। इनकी मुरम्मत के लिए भी पैसे नहीं हैं नया निर्माण कैसे होगा? बठिंडा में 2007 में क्रिकेट स्टेडियम का पत्थर रखा गया। उस पर एक ईंट और नई नहीं लगी।
इस वक्त आप जो चाहें वह वादा करने के लिए सरकार तैयार है पर वित्तीय हालत इतनी खराब है कि इस बार सरकार बजट भी पेश नहीं कर रही। पड़ोसी हरियाणा, हिमाचल प्रदेश तथा उत्तराखंड अपने अपने बजट पेश कर चुके हैं लेकिन पंजाब ‘वोट ऑन अकाऊंट’ पेश करेगा। मार्केट से पहले ही 8800 करोड़ रुपए उधार लिए जा चुके हैं। जगह-जगह सरकारी ज़मीन को गिरवी रखा जा रहा है। वेतन तथा डीए देने की 2000 करोड़ रुपए की देनदारी है। शायद आशा है कि चुनाव के बाद राजग की सरकार बनेगी और नरेंद्र मोदी ट्रक भर कर दिल्ली से नोट भेज देंगे! आखिर सुखबीर बादल बार-बार कह रहे हैं कि बादल साहिब तथा मोदीजी पुराने मित्र हैं। पर पंजाब उन कुछ प्रदेशों में से है जहां कांग्रेस बराबर मुकाबला करती नज़र आ रही है। ‘आप’ को भी यहां व्यापक समर्थन है। नींव पत्थर की इस क्रीड़ा से यह स्थिति बदल नहीं जाएगी। यह ट्रेलर हमने पहले देखा हुआ है।
लेकिन इस सरकार के लिए सबसे बड़ी समस्या है कि उसकी सबसे बड़ी पूंजी मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल की छवि पर आंच आने लगी है। मामला तब से शुरू हुआ जब राहुल गांधी ने अरनब गोस्वामी के साथ इंटरव्यू में यह बात कबूल कर ली कि 1984 के नरसंहार में कांग्रेस के लोग शामिल थे। अकाली दल ने तब कांग्रेस पर जबरदस्त हमला कर दिया लेकिन यह उलटा पड़ा क्योंकि 1984 के घटनाक्रम में बादल साहिब की अपनी भूमिका को लेकर कांग्रेस ने असुखद सवाल खड़े कर दिए। बादल कहते रहे कि स्वर्ण मंदिर में सेना की कार्रवाई से पहले वे जेल में थे, लेकिन कांग्रेस यह साबित करने में सफल रही कि बादल को तो कार्रवाई के छ: दिन के बाद गिरफ्तार किया गया। बादल का कहना था कि वे 16-17 साल जेल में रहे जबकि कांग्रेस का कहना है कि वे मात्र 40 महीने जेल में रहे थे जिसमें 19 महीने एमरजैंसी के हैं। बादल अपनी जेल यात्राओं के बारे भी कोई ब्यौरा देने को तैयार नहीं हैं। अमरेंद्र सिंह का यह भी कहना है कि प्रकाश सिंह बादल तत्कालीन गृहमंत्री पी.वी. नरसिंहा राव को 28 मार्च 1984 को मिले थे तथा स्वर्ण मंदिर में फौजी कार्रवाई का समर्थन किया था। उनका यह भी आरोप है कि बादल खालिस्तानी कमांडो फोर्स के गुरजंट सिंह राजस्थानी गुट की सुरक्षा में रहे थे।
प्रकाश सिंह बादल अब इन आरोपों के बारे खामोश हैं। वे केवल अमरेंद्र सिंह को झूठा कह रहे हैं लेकिन जो अमरेंद्र सिंह कह रहे हैं उसका प्रतिवाद भी नहीं कर रहे क्योंकि 1984 की घटनाओं के बहुत दस्तावेज मौजूद हैं जिसमें अकाली नेताओं की दोगली भूमिका के प्रमाण हैं कि किस तरह वे उग्रवाद को सार्वजनिक समर्थन देते रहे तो दूसरी तरफ सरकार से कहते रहे कि भिंडरावाला को कुचल दो। अब प्रकाश सिंह बादल की विश्वसनीयता पर एक और जबरदस्त चोट पहुंची है। मामला स्वर्ण मंदिर के अंदर आतंकवादियों की यादगार का है। जब यह यादगार बन रही थी तो बादल साहिब का कहना था कि पंजाब सरकार या अकाली दल का इससे कुछ लेना देना नहीं, यह मामला शिरोमणि गुरुद्वारा कमेटी का है जबकि सब जानते हैं कि एसजीपीसी बादल परिवार की जेबी संस्था है। प्रधान के नाम का लिफाफा बादल साहिब की जेब से निकलता है। पोल अब खुल गई जब एसजीपीसी के प्रधान अवतार सिंह मक्कड़ ने कह दिया कि आतंकियों की जो यादगार स्वर्ण मंदिर में बनी है वह मुख्यमंत्री की रजामंदी से बनी है क्योंकि शिरोमणि कमेटी का नियंत्रण सीएम के पास है।
बादल मक्कड़ के कथन पर इतने भड़क गए कि मीडिया के सामने तीन बार कह दिया कि मक्कड़ झूठ बोल रहे हैं पर मक्कड़ ने अभी तक अपना कथन वापिस नहीं लिया। यह उल्लेखनीय है कि प्रकाश सिंह बादल पंजाब में जो हजारों बेकसूर मारे गए उनकी याद में स्मारक बनाने को तैयार नहीं। जब से वे मुख्यमंत्री बने हैं उन्होंने कई स्मारक बनवाए हैं लेकिन बार-बार मांग के कभी भी मारे गए 30,000 बेकसूरों की याद में स्मारक बनाने को हामी नहीं भरी! क्यों? इसलिए क्योंकि अधिकतर बेकसूर हिन्दू थे? मैं प्रकाश सिंह बादल को एक उदारवादी नेता समझता हूं लेकिन ऐसी उनकी राजनीति नहीं है। उन्होंने कभी पंजाब में उस वक्त हिन्दुओं के कत्ल की निंदा नहीं की और न ही कभी किसी मारे गए हिन्दू के घर शोक मनाने ही गए जबकि मारे गए आतंकियों के भोग पर वे जाते रहे। भाजपा के नेता सुषमा स्वराज तथा अरुण जेतली का कहना है कि उन्होंने उग्रवादियों के प्रति अकाली दल के रवैये में कोई नरमी नहीं देखी लेकिन ये सज्जन स्वर्ण मंदिर के अंदर आतंकियों की यादगार का निर्माण, बादल साहिब की खामोश सहमति तथा अवतार सिंह मक्कड़ के बयान के बारे क्या कहेंगे? क्या यह भी ‘तुष्टिकरण’ की एक मिसाल नहीं जिसके बारे भाजपा बहुत शिकायत करती रहती है? पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह के हत्यारे बलवंत सिंह राजोआना को ‘जिंदा शहीद’ का खिताब दिया जा चुका है जबकि सब जानते हैं कि एसजीपीसी ही नहीं अकाल तख्त पर भी बादल परिवार का नियंत्रण है।
वादे हैं वादों का क्या?,