एक पत्र और लिखें प्रियंका

एक पत्र और लिखें प्रियंका

डा. मनमोहन सिंह नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण के साथ ही नई दिल्ली में रेस कोर्स रोड स्थित प्रधानमंत्री का निवास छोड़ कर मोतीलाल नेहरू मार्ग के उस सरकारी बंगले में चले गए जो पहले दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित का निवास होता था। शीला दीक्षित ने इस बंगले में 26 ए सी लगवाए थे। इससे पता चलता है कि ये लोग अपने ऐशो आराम के लिए जनता के पैसे के प्रति किस तरह अपराधिक तौर पर लापरवाह हैं। डा. मनमोहन सिंह केवल चार-पांच ए सी ही चाहते हैं। राष्ट्रपति बनने के बाद प्रणब मुखर्जी को कुछ सप्ताह राष्ट्रपति भवन के गैस्ट हाऊस में रहना पड़ा था क्योंकि पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने राष्ट्रपति भवन एक दम खाली नहीं किया था। वे वैकल्पिक सरकारी आवास के तैयार होने की इंतज़ार कर रही थी। यह सही नहीं है क्योंकि बहुत पहले से पता होता है कि अवधि कब खत्म हो रही है उससे एक दिन अधिक भी सरकारी निवास में नहीं रहना चाहिए। अरविंद केजरीवाल ने भी दिल्ली के मुख्यमंत्री पद से हटने के बावजूद अपना सरकारी निवास खाली नहीं किया। वे इसका 80,000 रुपए मासिक किराया दे रहे हैं। पंजाब में राजेंद्र कौर भट्ठल हटने के बावजूद 20 साल उस बंगले में रहती रही जो विपक्ष के नेता के लिए आरक्षित है। उन्हें निकालने के लिए सरकार को अदालत का सहारा लेना पड़ा। नई दिल्ली में कितने ‘भूतपूर्व’ हैं जो सरकारी बंगलों में डटे हुए हैं? सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बावजूद दो दर्जन ऐसे नेता हैं जो सरकारी बंगले खाली नहीं कर रहे। यह तो बेशर्मी है। पांच साल के बाद भी 26 तुगलक रोड का बंगला लालू प्रसाद यादव के नाम है। जाते जाते यूपीए की सरकार मीरा कुमार, तरुण गोगाई, नंदन नीलेकणि, राबर्ट वाड्रा के वकील के टी एस तुलसी को सरकारी बंगले अलाट कर गई है। नई दिल्ली में तीन बंगले इकट्ठे कर मायावती का महाबंगला बनाया गया। सरकारी जयदाद का इस तरह मनमर्जी तथा बेदर्दी से आबंटन क्यों हो? यह जनता की जायदाद है किसी के बाप की जायदाद तो है नहीं कि बांट दो। नई दिल्ली में नेहरू-गांधी परिवार से संबंधित वर्तमान तथा पूर्व सदस्यों के नाम पर कितने बंगले अलॉट हैं? माले मुफ्त दिले बेरहम?

ऐसा केवल हमारे देश में होता है कि पूर्व नेता सरकारी बंगले में डटे रहते हैं। इंग्लैंड में जिस दिन चुनाव परिणाम निकलते हैं उस सुबह पूर्व प्रधानमंत्री 10 डाऊनिंग स्ट्रीट का सरकारी आवास खाली कर देते हैं और शाम तक नये प्रधानमंत्री वहां प्रवेश कर जाते हैं। चुनाव परिणाम की घोषणा तथा अमेरिकी राष्ट्रपति के पद ग्रहण करने में कुछ सप्ताह का समय होता है। उससे पहले पूर्व राष्ट्रपति व्हाईट हाऊस खाली कर देतें है। जब वहां राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री रिटायर होते है या चुनाव हारते हैं तो सरकारी आवास छोड़ कर अपने निजी आवास में चले जाते हैं पर यहां वे एक सरकारी निवास को छोड़ कर दूसरे सरकारी आवास में चले जाते हैं। सेहत पर कोई असर नहीं। उनके रहने का सारा बोझ गरीब करदाता उठाता रहता है। मुझे इस बात पर आपत्ति है कि बाकी उम्र डा. मनमोहन सिंह तथा श्रीमती गुरशरण कौर करदाता के खर्चे पर रहेंगे। यह गैर कानूनी नहीं। भाई लोगों ने कानून ही ऐसा बनाया है कि पूर्व राष्ट्रपति या पूर्व उपराष्ट्रपति या पूर्व प्रधानमंत्री तथा उनकी पत्नी/पति रिटायर होने के बाद भी सरकारी खर्चे पर सरकारी आवास में रह सकते हैं। हमने वे अशोभनीय दृश्य भी देखे जब पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह के देहांत के बाद उनके परिवार ने नई दिल्ली के कौपरनिक्स मार्ग स्थित आवास को खाली करने में भारी अनाकानी की थी।

लेकिन डा. मनमोहन सिंह को इन सबसे अलग समझा गया है इसलिए अफसोस है कि उन्होंने सरकारी आवास में शिफ्ट होने से इंकार नहीं किया। वे इस मुफ्तखोरी के चक्र को तोड़ सकते थे। वे कह सकते थे कि बहुत दशकों से मैं सरकारी मेहमान रहा हूं अब क्योंकि मैं रिटायर हो गया हूं इसलिए अपने खर्चे पर अपने आवास में रहूंगा। अगर डॉक्टर साहिब ऐसा करते तो देश में उनकी इज्जत बढ़ती और एक नई स्वस्थ परंपरा कायम होती कि रिटायर होने के बाद नेता सरकारी मेहमान नहीं रहेंगे। पर उलटा मनमोहन सिंह भी 2.5 एकड़ के सरकारी बंगले में चले गए हैं। कितने माली, कितने चौकीदार, सुरक्षाकर्मी, कितना तामझाम चाहिए होगा? डा. मनमोहन सिंह को मोतीलाल नेहरू बंगले का बिजली-पानी का बिल भी नहीं देना पड़ेगा। इन माननीय ‘पूर्व’ को ये सुविधाएं दी ही क्यों जाएं? अब वह कौनसी सार्वजनिक हित की जिम्मेवारी निभाते हैं कि यह मेहरबानी की जाए?

प्रियंका वाड्रा ने एसपीजी के प्रमुख को पत्र लिख कहा है कि उन्हें तथा उनके परिवार को हवाई अड्डो पर जांच से विशेष छूट नहीं चाहिए, इसलिए इसे वापिस ले लिया जाए। हवाई यात्रियों के विभिन्न संगठनों ने भी इस बात पर आपत्ति की है कि हवाई अड्डो पर राबर्ट वाड्रा की तलाशी नहीं ली जाती। विभिन्न हवाई अड्डो पर जिन विशिष्ट व्यक्तियों को तलाशी से छूट है उनकी सूची में सबसे नीचे राबर्ट वाड्रा का नाम है। इसे तत्काल वापिस लिया जाना चाहिए। उन्हे जैड प्लस सुरक्षा भी क्यों चाहिए? कहां से खतरा है? यह मामला राजनीतिक बदला लेने का नहीं बल्कि उस वीआईपी संस्कृति को खत्म करने का है जिसने देश को दो हिस्सों में बांट दिया है, जो विशेषाधिकार प्राप्त हैं और जो हम जैसे आम हैं।

प्रियंका के पत्र से कई सवाल उठते हैं। उन्हें तथा उनके परिवार को 9 वर्ष पहले विशेष एसपीजी सुरक्षा दी गई जो उन्हें हवाई अड्डों पर सुरक्षा से मुक्त करती है। उस वक्त उन्होंने इस पर आपत्ति क्यों नहीं की? आखिर राबर्ट वाड्रा है क्या इसके सिवाए कि उनका विवाह गांधी परिवार की बेटी के साथ हुआ था? उसी ने राबर्ट को सुरक्षा कर्मियों से घिरा वीवीआईपी बना दिया। जब कानून बना तो एसपीजी सुरक्षा केवल प्रधानमंत्री तथा उनके परिवार के लिए दी गई फिर गांधी परिवार को शामिल करने के लिए इसमें पूर्व प्रधानमंत्री के परिवार को भी शामिल कर लिया गया। सोनिया, राहुल, प्रियंका तथा उनके बच्चे भी शामिल हैं। राबर्ट को विशेषाधिकार इसलिए मिलता है क्योंकि वे पतिदेव हैं। अब प्रियंका का कहना है कि वे सब इससे ‘अम्बैरेस’ अर्थात् परेशान हैं पर पहले यह अम्बैरेसमेंट व्यक्त क्यों नहीं की गई? वास्तव में हमारे जैसे एक लोकतंत्र में किसी से भी ऐसा वीवीआईपी बर्ताव क्यों हो? मुझे मालूम नहीं कि इस वक्त यह सुविधा है या नहीं, पर एक वक्त तो मायावती को प्रसन्न करने के लिए उनकी कार को हवाई जहाज़ तक पहुंचने की अनुमति थी ताकि बहिनजी को आम लोगों के साथ हवाई अड्डे की इमारत तक बस में सफर न करना पड़े। हैरानी नहीं कि लोग उन्हें तथा उनकी पार्टी को रद्द कर रहे हैं क्योंकि यह आम से खास बन गई है।

मंत्री या सांसद या मुख्यमंत्री या अफसर आम लोगों की तरह लाईन में क्यों खड़े नहीं हो सकते? राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्य न्यायाधीश, लोकसभा अध्यक्ष को छोड़ कर बाकी सब बराबर होने चाहिए। गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पार्रिकर अपने सामान के साथ लाईन में खड़े होकर आम यात्री की तरह सुरक्षा जांच से गुजरते हैं। बाकियों को ऐसा करने में क्यों तकलीफ होती है? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सरकार का मोटापा कम करने का वायदा किया है। शुरूआत वीवीआईपी संस्कृति जो मुफ्तखोरी को प्रेरित करती है, को खत्म करने से होना चाहिए। नई दिल्ली के ल्यूटन क्षेत्र में एकड़ों में फैली कोठियों में वे लोग क्यों रह रहे हैं जिनका सरकार से कोई लेना-देना नहीं? इसी के साथ यह आशा है कि प्रियंका वाड्रा सरकार को एक और पत्र भी लिखेंगी कि धन्यवाद! मेरे पति का कारोबार बल्ले बल्ले है हमें सरकारी कोठी नहीं चाहिए इसलिए दिल्ली की लोधी इस्टेट स्थित बंगला हम खाली कर रहे हैं। और क्योंकि हम आम हैं इसलिए हमें किसी भी तरह का विशेषाधिकार या सरकारी सुविधा या सुरक्षा या रियायत नहीं चाहिए। इन्हें तत्काल वापिस लिया जाए।

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Chander Mohan is the grandson of the legendary editor of Pratap, Mahashya Krishan. He is the son of the famous freedom fighter and editor, Virendra. He is the Chief Editor of ‘Vir Pratap’ which is the oldest hindi newspaper of north west india. His editorial inputs on national, international, regional and local issues are widely read.