धर्मांतरण और घर वापिसी

धर्मांतरण और घर वापिसी

आगरा में 57 बंगाली मुस्लिम परिवारों की हिन्दू धर्म में वापिसी को लेकर बवाल रुक नहीं रहा। विपक्ष उत्तेजित है कि ‘हिन्दू एजेंडा’ थोपा जा रहा है तो दूसरी तरफ संघ परिवार से सम्बन्धित संगठन ‘घर वापिसी’ के इस अभियान को जोर शोर से जारी रखने की बात कह रहे हैं। कईयों की सैक्युलर आत्मा तड़प रही है इसमें अंग्रेजी के न्यूज़ चैनल भी शामिल हैं। यह लोग खुद को यहां अंग्रेजी सभ्यता के रक्षक समझते हैं इसीलिए यह स्वीकार नहीं कर रहे कि सदियों से इस देश में धर्मांतरण होता रहा है लेकिन क्योंकि यह हिन्दू धर्म से बाहर वन-वे-स्ट्रीट थी इसलिए किसी को गंभीर आपत्ति नहीं हुई। जब तक हिन्दू धर्म से लोग निकलते रहे सब कुछ सही था लेकिन अब घर वापिसी के हलके से प्रयास के बाद संविधान भी याद आ रहा है और सैक्युलरवाद भी। तर्क है कि अगर कोई स्वेच्छा से धर्म का परिवर्तन करता है तो किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए लेकिन जो अरबों गल्फ पैट्रो डालर यहां आ रहे हैं वह किस मकसद से आ रहे हैं? अमेरिका तथा योरूप के अमीर देशों से भी अरबों डालर ईसाई चैरिटी को यहां पहुंच रहे हैं जिसकी आड़ में लोभ-लालच से धर्मांतरण का काम चल रहा है। 2012 में 6 करोड़ डालर ईसाई मिशनरियों के लिए पश्चिमी देशों से भेजा गया कुल मिला कर यह 10 करोड़ डालर बनता है। इसका इस्तेमाल किधर हुआ? जिनके कल्याण का दावा किया जाता है उन्हें बाईबल क्यों पकड़ाई जाती है? यह ‘स्वेच्छा’ कैसे रह गई?
यह ऐतिहासिक तथ्य है कि भारत भूमि से पैदा हुए सभी धर्म, हिन्दू, जैन, बौद्ध या सिख किसी ने भी अपने प्रसार के लिए तलवार या थैली का सहारा नहीं लिया। यही बात इस्लाम या क्रिश्चैनिटी के लिए नहीं कही जा सकती। नवम्बर 1999 में पोप जॉन पॉल द्वितीय भारत आए थे। दिल्ली की सभा में उन्होंने कहा था कि वह प्रार्थना करते हैं कि ‘तीसरी सहस्त्राब्दि में एशिया में आस्था की बड़ी फसल काटी जाएगी।’ यह ॥्नक्रङ्कश्वस्ञ्ज ह्रस्न स्न्नढ्ढञ्ज॥ या ‘आस्था की फसल’ क्या है यह हम उत्तर-पूर्व तथा अपने आदिवासी क्षेत्रों और केरल में देख ही रहे हैं। स्वामी विवेकानंद, महात्मा गांधी, डा. राधाकृष्णन तथा अटल बिहारी वाजपेयी सब ने ईसाई मिशनरियों की गतिविधियों के बारे लोगों को सावधान रहने को कहा था। गांधीजी विशेष तौर पर स्पष्ट तथा मुखर थे। यंग इंडिया में 8 फरवरी 1923 को उन्होंने लिखा था, ‘ईसाई मिशनरियों का काम तबाही लाया है… यह किसी भी और बिजनेस की तरह बिजनेस है।’ उन्होंने बार-बार मिशनरियों को लताड़ते हुए कहा, ‘हर देश का धर्म उसके लोगों के लिए पर्याप्त है। उनके धर्मांतरण की जरूरत नहीं।’ वह फिर लिखते हैं, ‘लक्ष्य हिन्दू धर्म को उसकी जड़ों से उखाडऩा तथा उसकी जगह एक और धर्म को स्थापित करना है।’ गांधीजी ने भी शिकायत की कि अगले ॥्नक्रङ्कश्वस्ञ्ज के लिए बजट तय किया जा रहा है। मदर टेरेसा ने बहुत काम किया था। वास्तव में वह हमारे साधु संतों के लिए मिसाल थीं। उन्होंने ऐसे लोगों को भी गले लगाया जिनके ऊपर कीड़े चल रहे थे और जिनसे हमारे लोग दूर रहते हैं पर मदर टेरेसा ने भी एक क्षण के लिए भूलने नहीं दिया कि जो कुछ भी वह कर रही हैं वह जीसस के लिए कर रही हैं। गांधीजी ने सवाल किया था कि अगर कोई डाक्टर मेरा ईलाज करता है और वह ईसाई है तो मैं ईसाई क्यों बनूं? ईसाई मिशनरी स्कूलों या अस्पतालों का जो काम कर रहे हैं उसकी आड़ में वह धर्मांतरण भी करवाते हैं। मदर टेरेसा का तो कहना था कि उन्हें हर इंसान में जीसस नज़र आते हैं। अगर यही बात मोहन भागवत या कोई और कहें कि उन्हें हर इंसान में राम नज़र आते हैं तो देखिए कैसी सुनामी आती है!
समाज सेवा का सहारा लेकर ईसाईयत का प्रचार किया गया और हिन्दू धर्म तथा हिन्दू धर्म के देवी-देवताओं का मज़ाक उड़ाया गया। हिन्दू समाज में जाति प्रथा से उन्हें मौका भी मिल गया। राम बिलास पासवान ने एक बार कहा था कि ‘बाबर के साथ कितने मुसलमान आए थे? केवल 40। वह करोड़ों कैसे बन गए?’ इसका जवाब वह खुद देते हैं, ‘ऐसा हमारे जैसे लोगों के कारण हुआ था। दलित तथा निचली जाति के लोगों को मंदिर में प्रवेश नहीं मिला इसलिए वह मस्जिदों में चले गए।’
यह कथित उच्च हिन्दू जातियों का अहम था जिसने धर्मांतरण की मुहिम को बल दिया। अगर इन लोगों की खतरनाक गतिविधियों को हमने रोकना है तो दलित, गरीब तथा पिछड़ों को आत्मसम्मान भी देना है और विकास भी। जब यह हो जाएगा तो किसी भी लालच में कोई घर छोड़ कर नहीं जाएगा। विदेशी धर्म हमारे कुछ लोगों पर थोप दिए गए लेकिन उधर जाकर भी बराबरी नहीं मिली नहीं तो दलित मुसलमान या दलित ईसाई अपने लिए एससी/एसटी/ओबीसी स्तर की मांग न करते। पर यह तो हकीकत है कि हिन्दू समाज के एक वर्ग ने अपने ही लोगों के साथ घोर ज्यादती की है। यही कारण है कि बीआर अम्बेदकर को भी बौद्ध धर्म अपनाना पड़ा था क्योंकि वह जाति विहीन समाज चाहते थे लेकिन अम्बेदकर ने भी कहा था कि अगर वह ईसाई बन जाते तो वह भारतीय न रहते इसलिए बौद्ध धर्म अपना लिया था। ईसाई मिशनरियों का अभियान बहुत सौफस्टीकेटेड है। वह चुपचाप अपना काम कर रहे हैं हमारे अनाड़ी बजरंगियों की तरह नहीं कि ले देकर 57 बंगाली मुसलमान परिवारों की घर वापिसी की लेकिन उसके लिए भी टीवी के कैमरे बुला कर बवंडर खड़ा कर लिया जबकि यह मिशनरी लोगों को फुसला कर झारखंड या उड़ीसा या उत्तर पूर्व के अनजान गांवों में अपना काम चुपचाप कर जाते हैं, किसी को खबर तक नहीं होती।
धर्मांतरण के कारण हमारे समाज में भारी तनाव है क्योंकि योजनाबद्ध तरीके से हिन्दू धर्म को कमजोर करने का प्रयास हो रहा है। आंध्रप्रदेश में भी पिछले कुछ वर्षों में ईसाई जनसंख्या में 50 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। जितना पैसा ईसाई मिशनरियों तथा इस्लामिक संगठनों के पास है उसके सामने तो हिन्दू संगठन अव्यवस्थित तथा बेचारे हैं। सरकार ने प्रस्ताव रखा है कि धर्मांतरण पर ही पाबंदी लगा दी जाए पर कांग्रेस पार्टी तैयार नहीं क्योंकि अगर सोनिया जी की पार्टी धर्मांतरण पर पाबंदी का समर्थन करती है तो यह उसके सैक्युलरवाद के खिलाफ जाता है। जब तक हिन्दू धर्म से लोग बाहर जाते रहे सोनिया गांधी की पार्टी को आपत्ति नहीं थी लेकिन अगर इसी तरह किसी की घर वापिसी हो जाए तो कांग्रेस को तकलीफ है।
करोड़ों हिन्दुओं का धर्मांतरण हो गया है कोई बोला नहीं, 57 मुसलमानों की घर वापिसी पर तूफान खड़ा हो गया। यह सही है कि संविधान अपने धर्म के चुनाव का अधिकार देता है लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि अपने अपने धर्म के फैलाव के लिए विदेशों से अरबों रुपए यहां भेजे जाएं ताकि जो कमजोर है उसे काबू किया जा सके। और जब आप इस पैसे पर रोक लगाने की कोशिश करेंगे तो सभी पश्चिमी या मध्य पूर्व की सरकारें चिल्ला उठेंगी। याद रखना चाहिए कि ‘सैक्युलर’ अमेरिका का राष्ट्रपति बाईबल पर हाथ रख अपने पद की शपथ लेता है।
यहां जो भी धर्म है वह अपने लोगों के लिए सही है। भारत की सभ्यता दुनिया में सबसे पुरानी सभ्यताओं में से एक है। इसके लिए हमें किसी मिशनरी की जरूरत नहीं पड़ी जो बात राष्ट्रपिता गांधी, जिनके विचारों पर कोई सवाल नहीं कर सकता, भी बार-बार कह चुके हैं।

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About Chander Mohan 749 Articles
Chander Mohan is the grandson of the legendary editor of Pratap, Mahashya Krishan. He is the son of the famous freedom fighter and editor, Virendra. He is the Chief Editor of ‘Vir Pratap’ which is the oldest hindi newspaper of north west india. His editorial inputs on national, international, regional and local issues are widely read.

2 Comments

  1. धन्यबाद महोदय ,आपके इस कटु सत्य को छद्म धर्मनिरपेक्षताबादी कैसे पचा पाएंगे. इनकी तो दूकान ही इस पाखण्ड पर चल रही है जागरूकता अभियान की आवश्यकता है
    समर शेष है नहीं पाप का भागी केवल ब्याघ्र जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उसका भी इतिहास

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  2. सैंकड़ों सालों से चले आ रहे मतांतरण पर किसी सेक्युलर वामपंथी नेता ने आवाज़ नहीं उठाई …………फिर घरवापसी पर इतना शोर क्यों ?………

    यह सेक्युलर नहीं …….यह लोग sick—ular हैं ….

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