
कारप्रेट घुसपैठ
बड़े कारप्रेट घराने अपने हित के लिए किस तरह सरकारी तंत्र में घुसपैठ कर नाजायज़ फायदा उठाने का प्रयास करते रहे हैं यह केन्द्रीय सरकार के मंत्रालयों में जासूसी करने के प्रयासों से पता चलता है। सरकारी निर्णयों तथा नीतियों की दिशा को समय से पहले जानने के लिए भारत सरकार के कार्यालयों में चोरियां तक करवाई गईं। नीति, बैठकों की कार्रवाई, नए प्रस्ताव आदि से सम्बन्धित दस्तावेज को चोरी करवाया गया यह जानने के लिए कि सरकार क्या सोच रही है? डीजल, पेट्रोल आदि के दाम में एक रुपए के परिवर्तन से इन कम्पनियों को अरबों रुपए का फायदा मिलता है इसलिए पूर्व जानकारी प्राप्त करने के लिए हर प्रकार के नाजायज़ हथकंडे इस्तेमाल किए जाते हैं। कई बार नीति के बारे पूर्व जानकारी मिल जाने से वह सरकार पर दबाव डालने में भी सफल हो जाते हैं। बड़े औद्योगिक घरानों के दबाव में मंत्री तक बदले जाते रहे हैं। पिछली सरकार के समय यह चर्चा थी कि तेल मंत्री मणिशंकर अय्यर तथा जयपाल रेड्डी को इसलिए बदला गया था क्योंकि वह प्रमुख औद्योगिक घरानों के हित के मुताबिक चलाने को तैयार नहीं थे। नवीनतम घटना पेट्रोलियम मंत्रालय में कारप्रेट जासूसी की है। कई लोग पकड़े गए हैं जिनमें पांच बड़ी कम्पनियों के उच्चाधिकारी भी शामिल हैं। पेट्रोल मंत्रालय के अलावा कोयला तथा ऊर्जा मंत्रालय में भी जासूसी की गई।
अब सवाल उठता है कि जो इन तीन मंत्रालय में होता रहा है वह और किस किस मंत्रालय में चल रहा है? पेट्रोल के अलावा कोयला, टेलीकाम आदि मंत्रालयों में अरबों रुपए के निर्णय लिए जाते हैं। वास्तव में वित्त, वाणिज्य जैसे केन्द्रीय सरकार का हर आर्थिक मंत्रालय संवेदनशील है यहां वह निर्णय लिए जाते हैं जिनका अरबों रुपए का प्रभाव पड़ता है। रक्षा मंत्रालय में भी अरबों रुपए के अनुबंध होते हैं जिनमें विदेशी कम्पनियों को दिलचस्पी रहती है। कई पूर्व सैनिक अधिकारियों पर उंगली उठ चुकी है। ऐसे निर्णय जानने के लिए यह कम्पनियां कुछ भी करने को तैयार हैं। विदेशी कम्पनियां अकसर शिकायत करती हैं कि उन्हें यहां बराबर मैदान नहीं मिलता इसलिए वह कई बार निवेश में दिलचस्पी नहीं दिखातीं। यह भी शिकायत रही है कि तेल मंत्री आमतौर पर वह होता है जिसे बड़ी कम्पनियों का आशीर्वाद हो तथा जो तेल तथा गैस के मामले में उनके हितों की रक्षा करता हो। गैस उत्पादन की कीमत को लेकर पहले भी कई शिकायतें मिली हैं। अब भी आंध्रप्रदेश के तट पर ्यत्र ष्ठ६ बेसिन पर रिलायंस उद्योग द्वारा गैस की जमाखोरी को लेकर लम्बी मध्यस्थता चल रही है। अरविंद केजरीवाल रिलायंस तथा मुकेश अंबानी के खिलाफ खुला आरोप लगा रहे हैं। आशा है अब रिलायंस तथा दूसरी बड़ी कम्पनियों एस्सार, केयर्न्स इंडिया, जुबिलैंट एनर्जी, रिलायंस एडीएजी की नापाक दखल का पुख्ता प्रमाण मिलने के बाद सरकार इस घुसपैठ की गहराई में जाएगी तथा राजनीतिज्ञ-अफसरशाही-कारपे्रट मिलीभगत को पूरी तरह तमाम करेगी। यह सांठगांठ बिलकुल बंद होनी चाहिए और देश के प्राकृतिक साधनों का देश की जनता के हित में दोहन होना चाहिए। कारप्रेट घराने अपना लाभ कमाएं पर जो जायज़ हो।
दूसरा मामला भी राजनीतिज्ञ-अफसरशाही-कारप्रेट सांठगांठ का है। कोयला ब्लाक नीलामी से अब तक 80,000 करोड़ रुपए अर्जित किए गए हैं। अभी 204 में से केवल 21 ब्लाक नीलाम हुए हैं तथा अनुमान है कि कुल राजस्व 7 से 15 लाख करोड़ रुपए तक पहुंच सकता है। इसका मतलब यह है कि मनमोहन सिंह सरकार के समय कोयला ब्लाक आबंटन में भारी घपला था और सीएजी विनोद राय का आंकलन कि इससे सरकारी खजाने को 1.86 लाख करोड़ रुपए की चपत पहुंची, सही था। वास्तव में राय का हानि का आंकलन कम रहेगा क्योंकि खुली नीलामी से सरकार को लाखों करोड़ रुपए अतिरिक्त मिलेंगे। अब मैदान सबके लिए खुला है इसलिए कम्पनियां जोर शोर से नीलामी में हिस्सा ले रही हैं। इसका यह भी अर्थ है कि मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, महाराष्ट्र तथा झारखंड जैसे प्रांतों को हजारों करोड़ रुपया अतिरिक्त राजस्व का मिलेगा जो वह अपने विकास पर खर्च सकेंगे। इस सारे मामले में सबसे अधिक फजीहत पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की हुई है जो उस वक्त कोयला मंत्री भी थे जब मनमर्जी से यह कोयला ब्लाक अलाट किए गए थे। डा. मनमोहन सिंह की शराफत की छवि के पीछे कितने घोटाले हुए हैं? 2जी का मामला भी तब का ही है। ऐसी ईमानदारी क्या करना जो अपने पीछे भारी बेईमानी को छिपाए हुए है? सवाल यह भी उठता है कि मनमोहन सिंह ने सही निर्णय क्यों नहीं लिए? वह किसके दबाव में थे? यह भी उच्च स्तरीय सांठगांठ की एक मिसाल है जहां इस विकासशील देश के प्राकृतिक संसाधनों को कुछ हाथों में सौंप दिया गया। आशा है कि मोदी सरकार इस घपले की तह तक जाएगी कि किस तरह कुछ प्रभावशाली औद्योगिक घराने देश की अर्थव्यवस्था को पर्दे के पीछे से नचाते रहे हैं। सरकार जो कदम उठा रही है इनका स्वागत है। प्रधानमंत्री ने वायदा किया था कि ‘न खाऊंगा न खाने दूंगा’। इस पर सख्ती से अमल करने का समय अब है। लेकिन याद रखना चाहिए कि दिल्ली कोई धर्मस्थल नहीं और लोग यहां संत नहीं। सूचना प्राप्त करने के लिए बड़ी कम्पनियां कुछ भी कर सकती हैं। कहीं यह न हो कि सूचना प्राप्त करने के प्यादे बदल जाएं और कीमत बढ़ा दी जाए। जरूरत यह है कि सरकार इस जासूसी कांड पर कार्रवाई तार्किक शिखर तक लेकर जाए। देखना यह है कि किन के आदेश पर यह होता रहा है? सरकारी दस्तावेजों की चोरी अति गंभीर मामला है।