
कांग्रेस का अंतिम मुगल?
56 दिन किसी अज्ञात जगह छुट्टी बिताने के बाद जनाब वापिस आ गए और आते ही उन्हें बेमौसम बरसात से किसानों की दुर्गति की चिंता सताने लगी है। उन्होंने किसानों के लिए विपदा की इस घड़ी में अपनी छुट्टी कम करने के बारे क्यों नहीं सोचा? अब अवश्य उन्होंने मोदी सरकार पर तीखा निशाना साधा है शायद यह प्रभाव हटाना चाहते हैं कि वह वास्तव में पप्पू नहीं हैं। किसानों के लिए जमीन की बात कर कहीं वह अपनी जमीन तलाश रहे हैं। कांग्रेस की बहुत सी समस्याएं हैं। अपने इतिहास में सबसे कम, 44 सांसद, संख्या तक वह गिर चुके हैं। देश का बड़ा हिस्सा, नरेन्द्र मोदी की भाषा में, कांग्रेस मुक्त हो चुका है। इसका बड़ा कारण राहुल खुद हैं जिनकी भगौड़ा प्रवृत्ति पार्टी के लिए खतरा है। देश को यह भी बताया नहीं गया कि वह किधर गए हैं? अपनी सिक्योरिटी को भी लेकर नहीं गए। एक जनप्रतिनिधि के बारे इतनी गोपनीयता जायज़ है? कांग्रेस अभी तक यह प्रभाव दे रही हैं कि उसका नेतृत्व एक न्यारा रहस्यमय शाही परिवार है जिसे अपनी गतिविधियों के बारे जनता को कोई स्पष्टीकरण देने की जरूरत नहीं है। जब सारी दिल्ली निर्भया कांड से तड़प रही थी तो अपने आप को जनता का हितैषी जतलाने वाला यह परिवार अपने बंगलों से बाहर नहीं निकला था।
यह सुविधा अब उपलब्ध नहीं। अपने बारे खुद तैयार किया गया विस्मय खत्म हो गया है। राहुल का जिस तरह सोशल मीडिया में मज़ाक बना है उससे इस परिवार के दिमाग से यह बची खुची धारणा खत्म हो जानी चाहिए कि वह भारत की जनता के लिए भगवान का दिया गया कोई वरदान है। पार्टी के अंदर से खुद राहुल की क्षमता के बारे सवाल उठ रहे हैं। राहुल के समर्थक दिग्विजय सिंह को भी कहना पड़ा कि ‘राजनीति पार्ट टाइम जॉब नहीं है।’ उनकी शौकिया राजनीति से कांग्रेसजन परेशान हैं। कभी गायब हो जाते हैं तो कभी उग्र हो जाते हैं लेकिन उन्हें समझना चाहिए कि रणछोड़ होने की गुंजाइश अब उनके पास नहीं। या वह डटे रहें नहीं तो सदा के लिए विपासना या जहां भी वह नियमित जाते हैं, वहां लौट जाएं। ऐसा प्रभाव मिलता है कि पार्टी मां-बेटे के अलग कैम्पों के बीच बंट गई है पर सब जानते हैं कि एक बात पर परिवार, सोनिया, राहुल, प्रियंका, एकजुट है कि कांग्रेस की बागडोर उनके हाथ में ही रहेगी चाहे पार्टी तबाह हो जाए इसीलिए राहुल को उनकी लाख नादानियां माफ होंगी। कई बार शून्य बनाने के बावजूद उन्हें स्टार बल्लेबाज माना जाएगा। न अनुभवी दिग्विय सिंह, न 1980 से लगातार जीतने वाले कमलनाथ, न प्रतिभाशाली ज्योतिरादित्य सिंधिया और न ही लोकप्रिय सचिन पायलट या कोई और। राहुल के अतिरिक्त किसी और के लिए कांग्रेस का बड़ा दरवाज़ा बंद है। यह पार्टी का सबसे बड़ा दुर्भाग्य है। अगर राहुल ने खुद को नहीं बदला तो वह कांग्रेस के अंतिम मुगल साबित हो सकते हैं।
‘सूट बूट की सरकार’ अपने इस जुमले पर राहुल गांधी बहुत खुश थे। लोकसभा में उन्होंने बहुत आक्रामक भाषण दिया पर दामाद जी क्या डालते हैं, लंगोटी? किसान, मजदूर, गरीब की बात कही पर क्यों यह भाषण पहले सुना हुआ लगता था? ऐसे भाषण तो 1970 के दशक में इंदिरा गांधी दिया करती थीं। गरीबी हटाओ! लेकिन गरीबी हटी क्या? अगर आज दुनिया में सबसे अधिक गरीब, निरक्षर, बीमार, बेरोजगार भारत में हैं तो इसके लिए उस सरकार को तो जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता जो केवल 11 महीने पहले आई है। सवाल तो है कि आजादी के 68 वर्ष के बाद भी ऐसी हालत क्यों है? मनरेगा जैसी योजना की जरूरत क्यों है? बड़ी आबादी अभी भी खुले में शौच के लिए जाने पर मजबूर क्यों है? क्या इसका कारण यह तो नहीं कि हमने गरीबों का महिमामंडन तो किया पर गरीब को गरीब रखा ताकि उसकी मजबूरी का राजनीतिक लाभ उठाया जा सके? 60-67 प्रतिशत जनसंख्या अभी भी कृषि पर निर्भर है अमेरिका में केवल 2 प्रतिशत है। हमारे यहां किसान सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में केवल 18 प्रतिशत का योगदान दे रहे हैं। अर्थात् असंतुलन है। कृषि लाभदायक नहीं रही। आज सबसे बड़ी जरूरत है कि लोगों को कृषि से निकाल कर दूसरे क्षेत्रों में रोजगार दिया जाए और कृषि पर निर्भरता कम की जाए। 5 करोड़ युवा हैं जो 25 वर्ष की आयु से कम हैं और जिन्हें रोजगार की तलाश है लेकिन नौकरी मिलेगी कैसे? इसके लिए उद्योग तथा दूसरे क्षेत्रों में निवेश की जरूरत है, औद्योगिक कॉरिडोर की जरूरत है और इन सबके लिए जमीन चाहिए। नई सरकार को अपनी नीतियां लागू करने के लिए समय मिलना चाहिए।
इस सरकार की गलती रही है कि यह पहले भूमि अधिग्रहण का अध्यादेश ले आई फिर लोगों को समझाने की कोशिश की। विपक्ष को भी एकजुट होने दिया। विपक्ष की उचित आपत्तियों पर गौर होना चाहिए पर नई शुरुआत तथा नई दिशा की जरूरत है। वैकल्पिक मॉडल की जरूरत है। जिस सरकार ने कोयला ब्लाक की नीलामी कर उद्योगपतियों को 2 लाख करोड़ रुपए अधिक देने पर मजबूर किया उसे आप उद्योगपतियों की सरकार नहीं कह सकते। आप अन्नदाता की तारीफ करते हो लेकिन अन्नदाता से भी पूछिए कि वह क्या चाहता है, अपने लिए और अपनी संतान के लिए? अगर देश का गरीब या देश का किसान राहुल के शब्दाडम्बर को पसंद करता होता तो वह कांग्रेस को 44 सीटों पर सीमित क्यों कर देता? देश को एक प्रभावशाली विपक्षी पार्टी की जरूरत है और यही कांग्रेस फंसी हुई है क्योंकि लोग एक साफ सुथरी और वंशवाद से मुक्त कांग्रेस चाहते हैं। पर अब धीरे धीरे कांग्रेस की बागडोर राहुल गांधी के हाथ में आ रही है जिनकी कभी ऑन तो कभी ऑफ लीडरी से देश आशंकित है। पीढ़ी परिवर्तन प्रकृति का नियम जरूर है लेकिन जिसे आप उत्तराधिकारी बनाना चाहते हो वह तो बार-बार यह प्रदर्शित कर चुके हैं कि उन्हें राजनीति से चिढ़ है। (ज़हर है, वह खुद बता चुके हैं।) कल को वह फिर विपरीत परिस्थिति देख कर थाइलैंड या म्यांमार या इटली या कहीं और भाग गए तो? सोनिया गांधी इस प्राचीन संस्था से अन्याय कर रही हैं। पर दिलचस्प है कि सोनिया गांधी भी कह रही हैं कि मैंने पूरा नहीं सुना पर लोग कह रहे हैं कि राहुल ने अच्छा भाषण दिया है। राहुल के भाषण पर तालियां बजाने वाली मां का जोश कम क्यों हो गया? सोनिया में भी कहीं हताशा नज़र आ रही है।
अंत में : राहुल गांधी 56/57 दिन गायब रहे। वह बजट अधिवेशन के पहले हिस्से से भी गायब रहे। वह जन प्रतिनिधि हैं पर जनता के प्रति अपनी ड्यूटी से वह भाग गए। इस दौरान उन्होंने वेतन-भत्ता भी लिया, सरकारी आवास भी उनके पास रहा। बिजली, पानी का भी इस्तेमाल हुआ होगा। एसपीजी सुरक्षा भी खाली उनके इंतजार में बैठी रही होगी। क्या समय नहीं आ गया कि ऐसे लापरवाह और भगौड़ा जन प्रतिनिधियों पर हृश 2शह्म्द्म ठ्ठश श्चड्ड4 अर्थात् काम नहीं तो वेतन नहीं का नियम लगाया जाए जो आजकल दूसरे क्षेत्रों में लगाया जाता है?