मैं 70 बसंत पार कर गया हूं। जिन्दगी कितनी जल्दी बीतती है यह अब कुछ आभास हो रहा है। पुरानी फिल्म ‘शोर’ के एक गाने की पंक्ति याद आती है, ‘कुछ पल के जीवन से एक उम्र चुरानी है!’ जब इंसान छोटा होता है तो 50 वर्ष आयु वाले को बहुत बूढ़ा समझता है लेकिन जब 50 वर्ष तक खुद पहुंचता है तो प्रतिक्रिया होती है अभी तो 50 का ही हूं! फिर 60! फिर 70! आगे कितने साल हैं यह कोई नहीं जानता। लेकिन विचलित नहीं होना चाहिए। जो होगा सो होगा।
मेरा कर्म में पूरा विश्वास है। खुद को पूरी तरह व्यस्त रखता हूं इसलिए जिसे पंजाबी में ‘सत्तरय्या भत्तरय्या’ कहा जाता है वैसा नहीं हूं। पूजा-पाठ में रुचि नहीं है क्योंकि मेरा मानना है कि मैं अपने समय का बेहतर इस्तेमाल कर सकता हूं। उतना ही काम करता हूं जितना 20-25 साल पहले करता था। सिर के बाल जरूर उड़ गए हैं। कभी-कभी पीठ दर्द होती है। सर्दियों में ठंड पहले से अधिक लगती है लेकिन इससे अधिक बहुत कुछ नहीं बदला। हां वरिष्ठ नागरिक होने का यह फायदा है कि रेल का किराया कम लगता है और आय कर में छूट अधिक मिलती है!
यह नहीं कि चुनौतियां नहीं आईं। कई बार,
ऐसा लगता है कि हर इम्तिहां के लिए
जिन्दगी को हमारा पता याद आया!
लेकिन यही तो जिन्दगी है। आशावादी दृष्टिकोण पालना चाहिए कि कल नया दिन होगा।
परिवार का समर्थन बहुत जरूरी है। मुझे एहसास है कि हर कोई इतना खुशकिस्मत नहीं होता। बहुत ऐसी मिसालें हैं कि जायदाद तो संतान हड़प लेती है पर बूढ़े मां-बाप को बेसहारा छोड़ देती है। अब मां-बाप को वृद्ध आश्रम छोड़ने का रिवाज यहां भी शुरू हो गया है। आधुनिक दुनिया की सबसे बुरी संस्था वृद्ध आश्रम है। मैंने पश्चिम में भी ओल्ड ऐज होम देखे हैं। सब सुविधाएं हैं। फाइव स्टार होटल जैसा माहौल है पर एक बात की कमी है जो सबसे जरूरी है। पारिवारिक प्रेम तथा देखभाल गायब है। बहुत अकेलापन है।
कईयों की तो मजबूरी है कि उनका कोई देखभाल करने वाला नहीं। एक बार आंखों के अस्पताल गया तो वहां एक बुजुर्ग (मेरे से भी!) को नर्स समझा रही थी कि आप के मोतियाबिंद आप्रेशन के दो घंटे के बाद आप घर जा सकोगे पर बुजुर्ग कह रहे थे कि ‘क्या मैं दो दिन यहां नहीं रह सकता? घर मुझे देखने वाला कोई नहीं।’ कितनी करुणा छिपी है इस एक वाक्य में, ‘घर मुझे देखने वाला कोई नहीं।’ कई बार सोचता हूं कि उस बुजुर्ग का क्या बना होगा?
पूर्वी चीन का एक किस्सा पढ़ा है जहां एक किसान हू ताओ का अंतिम संस्कार उसकी जीवन भर की कमाई लगभग 33000 डालर नकदी के साथ किया गया। उसके दो बेटे हैं लेकिन उन्होंने उसे मरने अकेला छोड़ दिया था इसलिए वह अपनी वसीहत में लिख गया था कि मेरे साथ मेरी जायदाद भी जला दी जाए।
बहुत कुछ संस्कारों पर निर्भर करता है। हर किसी पर तो यह असूल लागू नहीं होता पर अगर संतान लापरवाह तथा पथभ्रष्ट है तो बहुत कुछ इसमें अभिभावकों का भी हाथ है। उन्होंने ही सही मूल्य नहीं सिखाए होंगे। बहुत अधिक लाड-प्यार तथा खुला पैसा भी संतान को बिगाड़ देता है।
अपने अनुभव पर आधारित कुछ सुझाव दे रहा हूं कि यह बाकी वर्ष बेहतर गुजरें।
एक, खुद को बूढ़ा समझना बंद कर दो। मैं खुद को बूढ़ा नहीं समझता। मेरे लिए आयु मात्र एक अंक है, नम्बर है। जिन्दगी का लुत्फ उठाना किसी भी हालत में बंद नहीं होना चाहिए। मैं ट्रैवल बहुत करता हूं क्योंकि नई जगह देखने की जिज्ञासा बहुत है। एक किताब पास जरूर रखता हूं। फिल्में देखता हूं। मैं यह नहीं समझता कि मेरी उम्र अब आस्था चैनल देखने की ही रह गई है! मैं धार्मिक चैनल स्किप कर जाता हूं। वरिष्ठ नागरिक केसरी क्लब के एक कार्यक्रम में आयु के वृद्ध पर दिल से जवान महाशय दी हट्टी के महाशय धर्मपाल रैम्प पर नज़र आए। देख कर बहुत आनंद आया। एनडीटीवी के एक कार्यक्रम में 79 वर्षीय फारूख अब्दुल्ला ने अभिनेता रणवीर सिंह के बराबर नाच किया। यह जज्बा है जो सबको अपनाना चाहिए कि हंसने, नाचने, गाने के दिन खत्म नहीं हो गए सिर्फ इसलिए कि आयु का नम्बर ऊपर की तरफ और खिसक गया। अपने अमिताभ बच्चन खुद बनो (पर रेखा के बिना!)।
दूसरा, चिड़चिड़ाना बंद करो। और जो चिड़चिड़े रहते हैं, बहुत शिकायत करते हैं, ऐसे बोरिंग लोगों से दूर रहो। समय से पहले नहीं मरना। बहुत बुजुर्ग भूल जाते हैं कि वह भी कभी जवान थे और उनके बच्चे अगली पीढ़ी से हैं जिनकी अपनी दिलचस्पी है, अपनी मजबूरियां हैं और अपनी चुनौतियां भी हैं। जरूरी नहीं कि वह आप की तरह ही सोचेंगे। विवाहित बेटा हर समय आपके साथ चिपका नहीं रह सकता, उसे अपना परिवार भी देखना है। जैसे अंग्रेजी में कहा गया है GIVE THEM SPACE अर्थात् उन्हें अपनी जगह दो।
कई बुजुर्ग हैं जो नाराज हो जाते हैं अगर उनकी बात मानी न जाए। हो सकता है कि आपकी संतान गलत निर्णय ले रही हो पर एक बार शादी हो गई, बाल-बच्चे हो गए तो फैसला उन पर छोड़ दो। अगर आप अप्रिय बन जाओगे तो संभावना खड़ी हो जाएगी कि आपके बच्चे आपसे अलग हो जाएं। जरूरी नहीं कि आपकी बड़ी आयु का मतलब बढ़ा हुआ विवेक भी हो।
तीसरा, खुद को व्यस्त रखो। मेरा सौभाग्य है कि मेरे पास कलम है इसलिए भड़ास निकालना आसान है। जैसे किसी ने कहा है,
कभी कभी यूं भी हमने अपने जी को बहलाया है
जिन बातों को खुद नहीं समझा औरों को समझाया है!
लेकिन हर कोई पत्रकार नहीं बन सकता। इसलिए अपनी इच्छा के अनुसार दूसरे क्षेत्रों में रुचि रखो। सामाजिक कामों में योगदान डालो। जो धर्म कर्म में लगना चाहते हैं उन्हें किताबें भी पढ़ना चाहिए। व्यायाम जरूर करो। याद रखो कि अगर व्यायाम के लिए समय नहीं निकालोगे तो बीमारी के लिए समय निकालना पड़ेगा! इस उम्र में सैर सबसे माफिक बैठती है। ब्लड प्रैशर, हार्ट, डायबिटीज सब नियंत्रण में रखती है।
चौथा, आशावादी दृष्टिकोण रखो। यह कई बार आसान नहीं होता लेकिन दुखी रहने से भी तो कुछ नहीं बनेगा। सब कुछ आपके नजरिए पर निर्भर करता है। अगर आयु को पराजित करना है तो सक्रिय रहो। हर वक्त खुशी और सुख नहीं रहता। निदा फाजली साहिब रहे नहीं पर वह सही फरमा गए हैं कि
किसी को भी यहां मुकम्मल जहां नहीं मिलता,
कहीं जमीं तो कहीं आसमां नहीं मिलता।
पांचवां, जिन्दगी से संघर्ष करना है उससे पराजित नहीं होना। हालीवुड की पूर्व प्रसिद्ध अभिनेत्री सोफिया लॉरेन ने एक बार कहा था, ‘आपके अंदर एक युवा फुव्वारा है…जब आप इस स्रोत का दोहन करना जान जाओगे तो आप सही मायने में आयु को पराजित कर जाओगे।’
हमारे सामने दशरथ माझी की मिसाल है जिसने पहाड़ के बीच से रास्ता निकाल डाला था। हर आदमी माझी नहीं बन सकता है लेकिन हम कुछ तो प्रयास कर सकते हैं। अपने गली, मुहल्ले, सड़क, बाजार से शुरू हो कर समाज के प्रति योगदान डाल सकते हैं। कई बुजुर्ग हैं जो निशुल्क शिक्षा देते हैं। यह नहीं समझना चाहिए कि बस अब रुक जाएं। बुलावा आने वाला है। पुरानी फिल्म वक्त का यह गाना याद रखो ‘आगे भी जाने न तू, पीछे भी जाने न तू। जो भी है बस यह इक पल है।’ इसे समझना और पहचानना बहुत मुश्किल होता है। हर इंसान की परिस्थिति अलग होती है लेकिन महत्व वह रखता है जो इब्राहिम लिंकन ने कहा था, AND IN THE END, IT’S NOT THE YEARS IN YOUR LIFE THAT COUNTS. IT’S THE LIFE IN YOUR YEARS, ‘आखिर में आपकी जिन्दगी में वर्ष महत्व नहीं रखते, आपके वर्षों में जिन्दगी रखती है!’
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nice artical sir,
such may par kar maza aa gaya.