
खान अब्दुल गफ्फार खान जिनके नाम पर पेशावर के पास बाचा खान विश्वविद्यालय बनाया गया है, देश के विभाजन के खिलाफ थे। जब कांग्रेस विभाजन के लिए तैयार हो गई तो बादशाह खान नाराज़ हो गए और उन्होंने सवाल किया था कि हमें किसके सहारे छोड़ा जा रहा है? बाचा खान विश्वविद्यालय पर आतंकी हमले के बाद उनका पाकिस्तान की अवधारणा का विरोध एक बार फिर सही साबित हो रहा है। विश्वविद्यालय के छात्र बताते हैं कि हमला करने वाले ‘बिलकुल हमारे जैसे थे।’ उनके जैसे तो वह होंगे ही क्योंकि वह हैं तो उनमें से ही। पाकिस्तानी कौम का यह दुर्भाग्य है कि उनका अपना ही एक हिस्सा उन जानवरों की तरह है जो अपनी ही संतान को खा जाता है।
पठानकोट पर हमला के अपराधियों के खिलाफ प्रभावशाली कार्रवाई का वायदा कर पाकिस्तान की सरकार मुकरती नज़र आती है। एक महीने के बाद फिर कह दिया कि सबूत पर्याप्त नहीं हैं जबकि भारत का कहना है कि सटीक और कार्रवाई योग्य सबूत दिए थे। पठानकोट हमले के बारे एक एफआईआर दर्ज नहीं की गई। पंजाबी का मुहावरा याद आता है, ‘मन हरामी हुज्जतां ढेर!’ मसूद अजहर के खिलाफ अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की गई। नवाज शरीफ यह कह कर कि पठानकोट घटना से भारत-पाक वार्ता में रुकावट आई है, अपनी बेबसी जाहिर कर रहे हैं। जब हमें बड़े-बड़े वायदे किए जा रहे थे तो पाकिस्तानी विशेषज्ञ तथा लेखिका आयशा सद्दीका जो खुद भावलपुर से हैं जहां मसूद अजहर का मुख्यालय है, ने लिखा था, ‘जिस वक्त यह समाचार फैलाया जा रहा था कि पाकिस्तान की सरकार कार्रवाई कर रही है, भावलपुर में तो कुछ नहीं हो रहा था।’
आज के पाकिस्तान में पैदा होना ही श्राप समान है क्योंकि यहां तो बचपन और जवानी को निशाना बनाया जा रहा है। पोलियो जैसी बीमारी के खिलाफ टीका नहीं लगाया जा सकता, लड़कियों को पढ़ाना मुसीबत है। आजाद सोच पर पहरा लगाया गया है और अब स्कूलों तथा विश्वविद्यालयों पर हमले कर उनकी आने वाली पीढ़ी के प्रतिभाशाली तथा सर्वश्रेष्ठ युवाओं को सुनियोजित तरीके से खत्म किया जा रहा है। ग्लोबल टैरेरिस्ट डाटा के अनुसार पाकिस्तान में 850 शिक्षा संस्थाओं पर हमले हो चुके हैं और पाकिस्तान वह देश है जहां सबसे अधिक, 450 लोग, स्कूलों में मारे गए हैं। जेहादी पाकिस्तान के बचपन से उसका बचपन छीन रहे हैं। जैसे मुर्तज़ा हैदर ने लिखा है, ‘बच्चों को इम्तिहान की चिंता होनी चाहिए गोली से उड़ाए जाने की नहीं।’
पाकिस्तान का सभ्य समाज अब सवाल कर रहा है कि यह गुड और बैड टैरेरिस्ट वाला अंतर कब तक चलता जाएगा जबकि सब एक ही नफरत भरे मलकुंड से आते हैं? सरकार पश्चिम पाकिस्तान में सक्रिय आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई तो करती है पर जैश-ए-मुहम्मद जैसे संगठन के खिलाफ कार्रवाई करने को तैयार नहीं जो उनके पंजाब में स्थित है क्योंकि नवाज शरीफ की पार्टी मुस्लिम लीग को इनके वोट तथा समर्थन चाहिए। बाहर से कुछ मदरसे सील किए हैं पर अंदर काम चल रहा है। जैश-ए-मुहम्मद का जिक्र करते हुए जाहिद हुसैन लिखते हैं, ‘यह कैसे हो गया कि एक प्रतिबंधित संगठन जिसके दफ्तर अब सुरक्षा एजेंसियां बंद करने का दावा कर रही हैं, को सारे पंजाब में अपने दफ्तर चलाने की इजाज़त दी गई थी?’
पाकिस्तान का भविष्य अंधकारमय बनता जा रहा है। इस्लाम के नाम पर नफरत की विचारधारा को बंदूक की नोक पर फैलाने का प्रयास हो रहा है। इस आत्मघाती विचारधारा से निबटने में पाक राष्ट्र ने स्पष्ट इरादा नहीं दिखाया जो उनके वर्तमान संकट का बड़ा कारण है। यह कैसा देश है जहां ताबूत तैयार करना अब बड़ा धंधा बन गया है?
यह घोषणा कर कि वह दोबारा सेनाध्यक्ष नहीं बनना चाहते सेनाध्यक्ष राहिल शरीफ अपनी नाकामी स्वीकार कर रहे हैं। चुन चुन कर खत्म करने की नीति कामयाब नहीं हो रही है। पेशावर तथा पठानकोट पर हमला करने वाले एक ही मानसिकता की पैदाइश है जो नफरत फैलाती है। आईएसआई के पूर्व अधिकारी असाद मुनीर ने यह लिख कर सबको हैरान कर दिया कि भारत पर दोष लगाने की जगह पाकिस्तान को हमलावरों के लिए अंदर तलाशना चाहिए। दूर स्विट्जरलैंड के शहर डावोस से नवाज शरीफ ने दहाड़ते हुए कहा था कि जिन्होंने हत्या की वह मुसलमान नहीं हैंउनका सफाया किए बिना वह चैन से नहीं बैठेंगे। शरीफ साहिब के इस बयान के बाद हालीवुड की पुरानी फिल्म याद आ गई THE MOUSE THAT ROARED, अर्थात् वह चूहा जो दहाड़ता है। इससे पहले भी नवाज शरीफ साहिब ‘अपनी जमीन से आतंकवाद को खत्म करने और किसी के खिलाफ आतंक के लिए अपनी जमीन के इस्तेमाल की इज़ाजत न देने के पाकिस्तान के राष्ट्रीय संकल्प’ की बात कह चुके हैं। उन्होंने ऐसा अब फिर कहा है लेकिन पाकिस्तान के भावलपुर में जैश-ए-मुहम्मद का मदरसा तथा उसका मुख्यालय तो पहले की तरह ही चल रहे हैं। इसी तरह पाक अधिकृत कश्मीर तथा खैबर पखतूनख्वा में आतंकियों के ट्रेनिंग कैम्प भी चल रहे हैं।
पाकिस्तान की सैनिक व्यवस्था समझती है कि भारत को नियंत्रण में रखने तथा हल्के युद्ध के लिए उन्हें जेहादियों का सहारा लेना जरूरी है। अगर पाकिस्तान ने वास्तव में लोकतंत्र बनना है तो उसके समाज में मूलभूत परिवर्तन आना चाहिए और सेना की सर्वोच्चता खत्म करनी होगी। सिद्दीका लिखती हैं, ‘भारत पर केन्द्रित मिलिटैंसी के प्रति नागरिक सरकार तथा सेना का नजरिया अलग है। यह लगता है कि जहां वजीर-ए-आजम नवाज शरीफ अमन चाहते हैं और एक डरपोक चिकन की तरह कभी-कभार अपना सिर बाहर निकाल लेते हैं, वहीं सेना दोनों तरफ के नागरिकों के बीच वार्ता या दोनों प्रधानमंत्रियों के बीच दोस्ती को बर्दाश्त करने को तैयार नहीं है।’
यह भारत-पाक रिश्ते की त्रासदी है कि जिनके साथ हम दोस्ती बढ़ाना चाहते हैं उनकी हालत एक डरपोक चिकन जैसी है जो कभी-कभार सिर निकालता है पर जब सेना का दबका पड़ता है तो फिर छिप जाता है। आखिर भय है कि कहीं ‘हॅडलॅस चिकन’ न बन जाए! इसलिए नवाज शरीफ पर भरोसे का कुछ नहीं बनेगा, नरेन्द्र मोदी लाहौर के कितने भी चक्कर लगा लें। भारत सरकार को भी हर मौसम के साथ पाकिस्तान की नीति बदलना बंद करना चाहिए।
भारत सरकार और पाकिस्तान का चिकन (Government of India and Pakistani Chicken),