महाराष्ट्र में स्थानीय निकाय के चुनाव एक बार फिर बता गए हैं कि विपक्ष चाहे कुछ भी कहे, नोटबंदी का भाजपा को नुकसान नहीं हुआ जबकि मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस का पतन जारी है। मैं नहीं कह रहा कि देश कांग्रेस मुक्त हो रहा है जैसे कुछ विश्लेषक कह रहे हैं क्योंकि पंजाब में पार्टी का प्रदर्शन संतोषजनक रहा है लेकिन यह तो स्पष्ट ही है कि पार्टी तेजी से अपना आधार खो रही है। असली समस्या संजय निरूपम की नहीं है असली समस्या है कि कांग्रेस की दिल्ली कमजोर है जिसका असर प्रदेशों पर पड़ रहा है। राहुल गांधी फालतू बनते जा रहे हैं। पार्टी को खुद को नया स्वरूप देना होगा। नई तस्वीर बनानी होगी। लेकिन बनाएगा कौन?
लेकिन असली कहानी महाराष्ट्र में भाजपा की सफलता है। शिवसेना का साथ छोड़ने के बाद भाजपा की सीटों में 175 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। 37052 करोड़ रुपए बजट वाले बृहन्मुम्बई नगर निगम (बीएमसी) के चुनावों में चाहे शिवसेना नम्बर ढ्ढ रही पर उसकी सीटें पिछली बार से केवल 9 बढ़ीं जबकि भाजपा की 51 सीटें बढ़ी हैं। कांग्रेस की सीटें पिछली बार से 22 कम हुईं और शरारती महाराष्ट्र नव निर्माण सेना क्या ‘नवनिर्माण’ करेगी जबकि वह खुद ध्वस्त हो रही है और उसकी सीटें 20 कम हो गईं। शिवसेना के उद्धव ठाकरे बहुत अहंकार में थे पर शिवसेना का आधार भी कम हो रहा है। शरद पवार की एनसीपी का भी अंत आ रहा है।
महाराष्ट्र का फतवा भाजपा तथा युवा मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस के नाम गया है। जब फडणवीस को मुख्यमंत्री बनाया गया तो चर्चा थी कि अनुभवहीन हैं, युवा हैं। यही उनकी अब विशेषता बन गई है। वह ताज़ा हैं, नई सोच है। मुम्बई को विशेषतौर पर नई सोच की बहुत जरूरत है। भारत की आर्थिक राजधानी चरमरा रही है। चारों तरफ से दबाव है। जनसंख्या बहुत है। बाहर से बहुत लोग रोजगार के लिए यहां आते हैं। ऊपर से बीएमसी अपने भ्रष्टाचार के लिए कुख्यात है। अभी तक सभी पार्टियां इसका कामधेनु की तरह इस्तेमाल करती रही हैं। यह बंद होना चाहिए और इसे शंघाई या सिंगापुर जैसा आधुनिक महानगर बनाया जाना चाहिए।
मुम्बई अधिकतर भारतीयों के लिए सपनों का शहर है। बॉलीवुड भी इसे अलग चमक देता है लेकिन आधी मुम्बई भीड़ भरी तंग चालों में या गंदे स्लम्स में रहने के लिए मजबूर है। बहुत लोग फुटपाथों पर सोते हैं जिन पर कुछ एक्टर गाड़ियां चढ़ाते रहते हैं। सड़कें टूटी हुई हैं। अगर कटुता छोड़ दोनों पार्टियां इकट्ठी आती हैं और शिवसेना का मेयर बनता है तो भी भाजपा को सुशासन की शर्त रखनी चाहिए। मुम्बई और दिल्ली दोनों महानगरों को बेहतर प्रशासन चाहिए।
जहां यह परिणाम देवेन्द्र फडणवीस की व्यक्तिगत सफलता है पर इसमें बड़ा हाथ नरेन्द्र मोदी की छवि का है जिन पर लोगों का भरोसा कायम है कि वह देश बदलना चाहते हैं। इससे पहले ओडिशा, गुजरात, फरीदाबाद, चंड़ीगढ़, मध्यप्रदेश, राजस्थान सब जगह स्थानीय चुनावों में भाजपा का प्रदर्शन अच्छा रहा है। जहां स्थानीय परिस्थिति भी इसके लिए जिम्मेवार है वहां सब परिणामों में एक ही सांझ है और वह है नरेन्द्र मोदी। यह भी स्पष्ट है कि देश में नरेन्द्र भाई मोदी के बराबर का कोई और नेता नहीं है। महाराष्ट्र के परिणामों के बाद तो केजरीवाल भी खामोश हैं।
लेकिन नरेन्द्र मोदी की भी जिम्मेवारी है कि वह लोगों की समस्याओं का इलाज ढूंढें और बेहतर स्थानीय प्रशासन दिलवाएं। महाराष्ट्र के चुनावों से उत्तर प्रदेश में सपा की चिंता की लकीर बढ़ेगी क्योंकि सहयोगी कांग्रेस कमजोर हुई है। इसका बचे हुए चुनाव पर असर पड़ सकता है। अखिलेश का दांव उलटा पड़ सकता है। कांग्रेस की दुर्दशा जारी है। सफलता की कहानी केवल भाजपा है। लेकिन सफलता के साथ जिम्मेवारी भी बढ़ती है।
लेकिन अफसोस यह है कि उत्तर प्रदेश में पांच चरण के मतदान के बाद यह आभास हो रहा है कि एक बार फिर सारी कहानी बदल रही है। अब विकास की बात नहीं हो रही। भावनात्मक मुद्दे उठा कर तथा घटिया जुमले के सहारे लोगों को प्रभावित करने का प्रयास हो रहा है। सोनिया गांधी ने एक भावुक चिट्ठी लिख लोगों के साथ परिवार के रिश्ते को याद करवाया है।
अभी तक चुनाव प्रचार में काफी घटियापन नजर आया है। अखिलेश यादव ने ‘गुजरात के गधों’ का जिक्र किया तो प्रधानमंत्री ने भी गधों की वफादारी का जिक्र कर जवाब दे दिया। बिजली, पानी, सड़क छोड़ कर गधों की क्वालिटी पर बहस हो रही है! तुम्हारा गधा मेरे गधे से बेहतर गधा कैसे है! प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बसपा को ‘बहनजी सम्पत्ति पार्टी’ कह दिया। जवाब में मायावती ने मोदी को दलित विरोधी कह दिया। भाजपा अध्यक्ष ने कहा है कि जनता को ‘कसाब’ से छुटकारा पाना चाहिए। उनका मतलब है कि ‘क’ कांग्रेस, ‘स’ समाजवादी पार्टी और ‘ब’ बसपा। अफसोस की बात है कि भाजपा जैसी बड़ी और प्रभावशाली पार्टी के अध्यक्ष को ऐसे बेसर पैर के जुमलों का इस्तेमाल करना पड़ रहा है। राहुल गांधी डीएनए की बात कर रहे हैं। इसका क्या कोई तुक बनता है? साऊंड बाइट देने तथा सोशल मीडिया को भरपूर रखने के लिए भी ऐसे जुमलों का प्रयोग हो रहा है।
कब्रिस्तान/श्मशान का मामला अनावश्यक उठा कर नरेन्द्र मोदी जो पहले विकास का वायदा करते थे, अब अचानक ध्रुवीकरण का प्रयास कर रहे हैं। पहले यह लग रहा था कि भाजपा इन मुद्दों से दूर रहेगी। राम मंदिर का मसला नहीं उठाया। जो चार परिवर्तन यात्राएं भाजपा ने निकालीं उनमें एक भी अयोध्या से नहीं गुजरी। अगर उत्तर प्रदेश में अखिलेश की सरकार ने और केन्द्र में मोदी की सरकार ने बहुत अच्छा काम किया है तो फिर इन बांटने वाले मुद्दों को उठाने की जरूरत क्या है?
उत्तर प्रदेश की असली समस्या है कि यह बहुत बड़ा प्रदेश है जिसे संभालना मुश्किल है। इसके चार टुकड़े होने चाहिए। दूसरा, यह अति पिछड़ा है। प्रदेश तरक्की नहीं कर रहा और देश पर बोझ है। बाकी ‘बीमारू’ प्रदेश बिहार, मध्यप्रदेश और राजस्थान फिर भी प्रयास कर रहे हैं पर उत्तर प्रदेश धार्मिक तथा जातीय दलदल में फंसा हुआ है। प्रदेश बीमार है और जो डाक्टर इसका इलाज कर सकते हैं वह बीमारी बढ़ा रहे हैं। इस तर्कहीन चुनाव प्रचार को देखते हुए तो उत्तर प्रदेश वाले कह सकते हैं,
किस रहनुमा से पूछिए मंजिल का कुछ पता,
हम जिनसे पूछते हैं उन्हें खुद पता नहीं!