जांबाज़ पायलट विंग कमांडर अभिनंदन जिसने दुश्मन की हिरासत में गज़ब की बहादुरी तथा मर्यादा दिखाई है ने देश को रोमांचित कर दिया है। बहुत देर के बाद हमें कोई हीरो मिला है जिस पर हम गर्व कर सकें। लेकिन असली कहानी अलग है। हमने दशकों की कमज़ोर तथा जरूरत से अधिक उदार तथा सहनशील नीति को त्याग दिया है। च्गुजराल डाकट्रिनज् अर्थात गुजराल सिद्धांत जो शांतिवादी था तथा जिसकी मूल आत्मा थी कि बड़ी ताकत होने के नाते भारत पर अधिक जिम्मेवारी है तथा हमें अपने पड़ोसियों के साथ अच्छे संबंध रखने चाहिए और गंभीर उत्तेजना के बावजूद संयम रखना चाहिए, को अब त्याग दिया गया है। पुलवामा के बाद भारत बदला है और पड़ोसी को संदेश दिया गया है कि हमारी बर्दाश्त खत्म हो रही है और अगर तुम बंदा नहीं बनोगे तो हम अपनी मर्ज़ी से तुम्हारे ठिकानों, चाहे वह कहीं भी हो, पर प्रहार करेंगे।
बालाकोट में जैश-ए-मुहम्मद के कैंप पर भारत का हवाई हमला पाकिस्तान के प्रति हमारी नीति में निर्णायक मोड़ है। पाकिस्तान के अंदर हमला कर नरेन्द्र मोदी वहां तक पहुंच गए हैं जहां वाजपेयी ने संसद पर हमले, इंडियन एयरलाईंस के विमान के अपहरण के समय, या मनमोहन सिंह ने मुंबई पर 26/11 के हमले के बाद जाना मुनासिब नहीं समझा था। इंडियन एयरफोर्स को सीमा पार भेज कर मोदी सरकार ने पाकिस्तान को सख्त संदेश भेजा है। पाकिस्तान का कुछ भी हमारे लिए पाक नहीं रहेगा। हम आप के आतंकी ठिकानों और उनके नेतृत्व पर हमला करेंगे, वह जहां भी है, चाहे वह पाकिस्तान के अंदर ही क्यों न हो। यह नया आक्रामक भारत है जिसका सामना पाकिस्तान कर रहा है। हम बहुत देर अंतर्राष्ट्रीय जैंटलमैन रह चुके हैं। च् गुजराल डॉकट्रिन ज् की जगह तीखे ‘मोदी डॉकट्रिन’ ने ले ली है।
ऐसा करते वक्त हमने उनके ‘परमाणु डॉकट्रिन’ जिसकी छत्रछाया में वह इतमिनान आतंकी कारनामे करते रहे हैं की भी धज्जियां उड़ा दी है। यह भी संदेश दिया गया है कि अगर आज बालाकोट है तो कल भावलपुर या मुरीदके भी हो सकता है। अपने परमाणु हौवे से पाकिस्तान ने आतंकी हमले के खिलाफ हमारी सामान्य सैनिक कार्रवाई को रोक रखा था। दुनिया भी बार-बार हमें समझाती रही कि वह एक असंतुलित देश है कुछ भी कर सकता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बहुत जोखिम उठाया है। पहले उरी और अब बालाकोट में कार्रवाई के दौरान कुछ भी गड़बड़ हो सकती थी। हमारा जानी और दूसरा नुकसान हो सकता था जिसका खामियाज़ा राजनीतिक नेतृत्व को भुगतना पड़ता। पर ऐसे नरेन्द्र मोदी हैं। अधिक किन्तु-परन्तु नहीं सोचते और रिस्क उठाने से घबराते नहीं। उन्हीं की हिम्मत से पाकिस्तान का परमाणु भूत हमने गले से उतार दिया है।
लेकिन यह केवल सामरिक जीत ही नहीं यह बड़ी कूटनीतिक जीत भी है। दुनिया का नज़रिया बदला है। वह लोग अब शांत हो जाने चाहिए जो नरेन्द्र मोदी की विदेश यात्राओं पर सवाल उठाते थे। इन्हीं यात्राओं के बल पर मोदी ने दुनिया के नेताओं के साथ व्यक्तिगत संबंध कायम किए जो आज काम आ रहे हैं। पाकिस्तान ने भी देख लिया कि पुलवामा के बाद P-5 अर्थात सुरक्षा परिषद के पांच स्थाई सदस्यों में से किसी ने भी उसका साथ नहीं दिया और अधिकतर ने यह ही कहा कि वह आंतक के खिलाफ कार्रवाई करे। चीन भी इस बार अपने ‘फौलादी मित्र’ की मदद के लिए खुलेआम नहीं आया और पहली बार है कि जम्मू-कश्मीर में किसी आंतकी हमले की सुरक्षा परिषद ने निंदा की हो।
महत्वपूर्ण है कि इस्लामी देशों के संगठन ओआईसी ने पहली बार पाकिस्तान की घोर आपत्ति के बावजूद भारत को आमंत्रित किया और विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने वहां फिर एक बढ़िया भाषण दिया। भारत को मिले निमंत्रण पर पाकिस्तान ने बहिष्कार करने की धमकी दी थी लेकिन यूएई टस से मस नहीं हुआ। सऊदी अरब तथा यूएई पाकिस्तान के अभिन्न मित्र रहें हैं लेकिन अब परिवर्तन आया है। भारत के साथ भी बराबरी हो रही है जो पहले नहीं थी। यह नरेन्द्र मोदी की कूटनीति की बड़ी सफलता है।
पाकिस्तान तबाह हो रहा है। उनकी हालत बताती है कि क्या हो सकता है अगर आप अपने लोगों के कल्याण से अधिक अपने पड़ोसी से नफरत करते हैं। आर्थिक तौर पर वह दिवालिया है। पाकिस्तान अब अंतर्राष्ट्रीय भिखारी बन चुका है। यही कारण है कि इमरान खान शांति की बात कर युद्ध के खतरे गिना रहे हैं। वह जानते हैं कि पाकिस्तान में 4/5 दिन से अधिक युद्ध लडऩे का दम नहीं है। पाकिस्तान में भी बार-बार सवाल उठ रहे हैं कि इस नफरत की नीति से मिला क्या है? पत्रकार खुरर्म कुरैशी ने सवाल किया है कि “क्या हाफिज सईद या मसूद अजहर जैसों का बचाव करना वास्तव में हमारे हित में है?” वरिष्ठ पत्रकार मरिआना बाबर लिखतीं हैं, ”आज जंग जैसे जो हालात हैं इसकी असली वजह क्या है? इसकी वजह पाकिस्तान में जेहादियों तथा तालिबान जैसों की मौजूदगी है… पाकिस्तान को अपने यहां चल रहे तमाम आंतकी कैंपों को नष्ट करना चाहिए।“ एक और वरिष्ठ पत्रकार आयशा सिद्दीका लिखतीं हैं, “हमें गंभीरता से बैठ कर उस कीमत का आंकलन करना चाहिए जो इन आतंकी संगठनों को रखने के लिए हम अदा कर रहे हैं।“
लेकिन यह उनका मामला है। हमें तो अपनी नीति तय करनी है और अपने देश के अंदर आंतकी वारदातों को खत्म करवाना है। इमरान खान शांतिदूत बन बार-बार डायलॉग की बात कर रहे हैं पर वार्ता होगी किस बात पर? क्या पाकिस्तान इन लोगों के खिलाफ कारगर कार्रवाई करेगा जो भारत में आंतक कर रहे हैं? यह लिटमस टैस्ट होना चाहिए। हमें भी समझना चाहिए कि अभिनंदन की रिहाई से हमारा मकसद पूरा नहीं होता। मूल मुद्दा पाकिस्तान में आतंक का खात्मा है यह मुद्दा अभी जस का तस है। और हमले हो सकते हैं। अगले हमले पर हमारी प्रतिक्रिया कैसी होगी? हमारा मकसद उनके आंतकी निर्यात को समाप्त करना है। यह ही ‘द मोदी डॉकट्रिन’ का लक्ष्य होना चाहिए। उन पर लगातार दबाव चाहिए कि वह जैश-ए-मुहम्मद तथा लशकरे तोयबा जैसे संगठनों के खिलाफ कार्रवाई करे। समय गुजरने के साथ हमें ठंडे नहीं पड़ जाना चाहिए जैसे अतीत में होता रहा है। वार्ता होनी है तो आंतक के खात्मे पर होनी चाहिए। इस लम्बी लड़ाई के दौरान धक्के भी लग सकते हैं। पुलवामा जैसी और वारदात भी हो सकती है इसके लिए भी तैयार रहना चाहिए।
पाकिस्तान में रह चुके हमारे राजदूत सतीश चंद्र का कहना है कि च्च् उनका रवैया दुश्मन वाला है चाहे उन्हें कश्मीर भी दे दो… मैं इस संभावना को रद्द नहीं करता कि वह कहीं भी कभी भी जवाब दे सकते हैं।” यही विचार अधिकतर सुरक्षा विशेषज्ञों का है कि पाकिस्तान अभी सीधा नहीं हुआ इसलिए हमें लम्बी लड़ाई के लिए नीति तैयार करनी चाहिए और उनके लिए ऐसी किसी शरारत की कीमत बढ़ानी चाहिए। कश्मीर के अंदर स्थिति को सुधारने की जरूरत है और आतंकवादियों को जो स्थानीय समर्थन मिल रहा है उसे सख्ती से तोडऩा है। और सबसे महत्वपूर्ण है कि यह चुनावी मामला नहीं बनना चाहिए। यह राजनीतिक मामला नहीं है। कुछ नेता पाकिस्तान में हुए नुकसान का सबूत मांग रहे हैं वह देश का अहित कर रहे हैं। वायुसेना प्रमुख धनोआ का सही कहना है कि उनका काम टॉरगेट को हिट करना है जो उन्होंने किया। लाशें गिनना वायुसेना का काम नहीं। हताहत की संख्या कुछ भी हो अधिक महत्व हवाई हमला है कि भारत की वायुसेना ने पाकिस्तान के रक्षा कवच में घुस कर दूरी तक बमबारी की जिससे पाकिस्तान के जरनैलों को उनकी दुर्बलता का डरावना संदेश मिल गया है। वहां कितने मारे या कितना नुकसान हुआ है वह महत्वपूर्ण नहीं है। हमारे गैर जिम्मेवार नेताओं को यह भी याद रखना चाहिए कि चुनाव आते-जाते हैं, सरकारें भी आती-जाती है। स्थाई केवल देश और उसके लोगों का हित है।
द मोदी डॉकट्रिन (The Modi Doctrine),