पुरानी कहावत है कि आप चाहे खुद को कितना भी बड़ा समझो कानून आपसे भी उपर है। इस वक्त चल रहे अम्रपाली मामले में जहां घर खरीदने वालों का 3500 करोड़ रुपया इस ग्रु्रप ने इधर-उधर कर दिया पर सुप्रीम कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी की है कि, “इस घपले के पीछे ताकतवर लोग हैं लेकिन वह कितने भी ताकतवर हो हम उन्हें सजा देंगे।”
सुप्रीम कोर्ट का यह सख्त संदेश अब पूर्व वित्तमंत्री पी चिदंबरम को भी समझ आ गया होगा जब कपिल सिब्बल तथा मनु अभिषेक सिंघवी जैसे नामवार वकीलों के उद्यम के बावजूद अदालत ने राहत देने से इंकार कर दिया। उन पर आरोप है कि उन्होंने एक मीडिया कंपनी के साथ साजिश कर अपने पुत्र कार्ति चिदंबरम को करोड़ों रुपए का फायदा पहुंचाया और वित्तमंत्री रहते हुए गलत तरीके से विदेशी निवेश को मंजूरी दी जिसमें भ्रष्टाचार हुआ। कार्ति पहले भी गिरफ्तार हो चुका है। चिदंबरम की हाई प्रोफाईल लीगल टीम के बावजूद सुप्रीम कोर्ट ने दखल देने से इंकार कर दिया। बड़ी अदालत का संदेश है कि आप के साथ बर्ताव आपने जो किया है उसके अनुसार होगा आपकी पदवी या आपके राजनीतिक प्रभाव को देख कर नहीं। दिल्ली की अदालत ने उनकी हिरासत चार दिन और बढ़ा दी है और अगर तब अदालत से राहत नहीं मिलती तो चिदंबरम को तिहार जेल की बैरक नंबर 7 भेज दिया जाएगा जहां आर्थिक अपराधियों को रखा जाता है।
चिदंबरम का INX मीडिया मामले में कितना अपराध है इसका फैसला अदालत करेगी लेकिन उल्लेखनीय है कि दिल्ली हाईकोर्ट ने उन्हें इस सारे मामले का ‘किंगपिन’ अर्थात सरगना कहा है। अभी तक यह प्रभाव था कि जो अमीर और ताकतवर हैं वह कानून को इतमिनान से चकमा देते सकते हैं इसीलिए हमारी जेलों में गरीब भरे हुए हैं जबकि सलमान खान, संजय दत्त, ललित मोदी, विजय माल्या, नीरव मोदी जैसे लोग अपने पैसे और अपने प्रभाव के कारण सामान्य जीवन व्यतीत कर रहे हैं। हमारे 40 प्रतिशत से अधिक सांसदों पर आपराधिक मामले हैं। यूपीए 2 के समय लाखों-करोड़ों रुपए के घपले हुए थे लेकिन सभी बड़े अभियुक्त बाहर आ गए और कई तो फिर सांसद बन चुके हैं। आशा है कि अब यह बदलेगा।
इस प्रकरण के दो और पक्ष हैं। एक पक्ष पूर्व वित्तमंत्री का रवैया है तो दूसरा उनकी पार्टी का रवैया है। जब हवाला मामले में लाल कृष्ण आडवाणी का नाम उछला था तो उन्होंने तत्काल संसद से इस्तीफा दे दिया और मामले का मर्द की तरह सामना किया। बरी होने के बाद ही वह संसद में वापिस लौटे थे जबकि कानून का सामना करने की जगह चिदंबरम भूमिगत हो गए। 27 घंटे किसी को पता नहीं चला कि वह किधर हैं। आगे-आगे चिदंबरम पीछे-पीछे सीबीआई, ईडी खूब तमाशा बना। बाद में उनका लंगड़ा स्पष्टीकरण था कि मैं वकीलों के साथ केस तैयार कर रहा था। जब कोई केस तैयार करता है तो मोबाईल बंद नहीं करता। आखिर में वह बाहर आए तब जब सारे देश में उनकी पार्टी का मज़ाक बनना शुरू हो गया कि उनका पूर्व गृहमंत्री ही भगौड़ा है। मैं इस बात से सहमत हूं कि सीबीआई को उनके घर की दीवार नहीं फांदनी चाहिए थी। उन्हें निकालने के और सभ्य रास्ते हो सकते थे पर जो व्यक्ति देश का वित्तमंत्री तथा गृहमंत्री रहा हो उससे यह अपेक्षा नहीं की जा सकती कि वह एक भगौड़े की तरह बर्ताव करेगा। अगर कुछ गलत नहीं किया तो 27 घंटे छिपे क्यों रहे? शराफत के साथ जांच का सामना क्यों नहीं किया?
और उनकी पार्टी के बारे क्या कहा जाए? क्या कांग्रेस पार्टी समझती है कि देश में उनके कुछ लोग हैं जो कानून से उपर होने चाहिए चाहे कितना भी भ्रष्टाचार किया हो? चिदंबरम को यह सलाह देने की जगह कि वह बंदा बन कानून का सामना करे पार्टी ने अपनी सबसे बड़ी कानूनी तोपें मैदान में उतार दी जिन्होंने हर अदालत का दरवाजा खटखटाया। खूब हाय-तोबा मचाई गई। ‘किंगपिन’ तो हाईकोर्ट ने उन्हें करार दिया पर गुस्सा सरकार पर निकाला या कि क्योंकि चिदंबरम सरकार के खिलाफ लिखते हैं इसलिए उनसे बदले की कार्रवाई हो रही है। यह ध्यान नहीं रखा गया कि पूर्व वित्तमंत्री का पुत्र कार्ति जेल की हवा खा आया है। वह मामला भी वित्तीय अपराध का था। कार्ति को पार्टी का टिकट दिया गया और द्रमुक की मेहरबानी से वह जीत भी गया। क्या संदेश है कि आप चाहे कितने भी भ्रष्ट हों अगर आप कांग्रेसी हो तो सब कुछ माफ है?
चिदंबरम के मामले में कांग्रेस के हाईकमान में जो भगदड़ और बेचैनी नजर आई उससे तो यह प्रभाव मिलता है कि घबराहट है कि आगे किसी की बारी है? इसीलिए चिदंबरम के मामले में तीखी प्रतिक्रिया की गई लेकिन ऐसी कांग्रेस पार्टी की हालत बन गई है वह उसे बचाने की कोशिश भी कर रही है जिसे अदालत ने मनी लौंड्रिंग के मामले में प्रमुख साजिशकर्त्ता कहा है और जो पिछले 19 महीनों में लगभग दो दर्जन बार जमानत करवा चुका है।
सब जानते हैं कि कश्मीर में स्थिति सामान्य नहीं है फिर राहुल गांधी एंड कंपनी ने वहां जबरदस्ती घुसने का प्रयास कर क्या सिद्ध करने का प्रयास किया है? जिस समय सरकार स्थिति को नियंत्रण में लाने की कोशिश कर रही है इस तमाशे की क्या जरूरत थी? पिछले कुछ सप्ताहों में देश ने तीन अनूठे नेता खो दिए, शीला दीक्षित, सुषमा स्वराज तथा अरुण जेतली। तीनों शालीनता की राजनीति करते थे और देश के प्रति इनका बहुत योगदान है। दिल्ली को संवारने में शीला दीक्षित का बड़ा हाथ था। सुषमा स्वराज जैसा संवेदनशील विदेशमंत्री देश ने नहीं देखा। अपने कार्यकाल में उन्होंने हजारों जिंदगियों को छुआ था। अरुण जेतली जैसी कुशाग्र बुद्धि शायद ही किसी नेता के पास हो। इस सरकार को बनाने और संभालने में उनका विशेष हाथ था। प्रधानमंत्री मोदी को इनका सहारा था। जेतली वह व्यक्ति थे जो मोदी को भी इंकार कर सकते थे लेकिन जेतली वह राजनेता भी थे जिनके सभी राजनीतिक दलों में दोस्त थे। ऐसा होना भी चाहिए। यह भी वर्णन योग्य है कि जिस तरह आडवाणीजी ने मोदी, जेतली, सुषमा, वैंकेया नायडू, प्रमोद महाजन आदि को संरक्षण दिया और नेतृत्व संभालने के काबिल बनाया उसी तरह अरुण जेतली ने निर्मला सीतारमण, पियूष गोयल, धमेन्द्र प्रधान, अनुराग ठाकुर आदि के लिए जगह बनाई। वह कईयों के गुरु थे। भाजपा की अगली पंक्ति धीरे-धीरे तैयार हो रही है पर कांग्रेस में युवा नेता निरुसाहित हैं। किसी को आगे बढ़ने नहीं दिया जा रहा कि कहीं राहुल गांधी के लिए खतरा न बन जाए।
दोनों सुषमा स्वराज और अरुण जेतली ने मंत्री हटते ही सरकारी आवास त्याग दिया था जबकि अगर वह चाहते तो बने रह सकते थे। दिल्ली में तो परम्परा है कि एक बार सरकारी निवास मिल गया तो उसे खाली करने की जरूरत नहीं। लयूटन की दिल्ली के ठीक बीच स्थित 6 कृष्ण मेनन मार्ग का बंगला खाली करने की जगह पूर्व स्पीकर मीरा कुमार ने इसे अपने पिता बाबू जगजीवनराम के स्मारक में बदलवा लिया। ऐसे कई ‘स्मारक’ नई दिल्ली में हैं। कांग्रेस के सांसद आनंद शर्मा ने ऊंची शिकायत की है कि सरकार ने पूर्व सांसदों को अपने सरकारी बंगले एक सप्ताह में खाली करने के लिए कहा है। उनके अनुसार यह आदेश सख्त और एकपक्षीय है। उनके अनुसार पूर्व सांसदों को एक चपड़ासी से कम पैंशन मिलती है। कांग्रेस का यह नेता क्यों नहीं समझता कि चपड़ासी को तो सेवाकाल की पूरी अवधि के बाद पैंशन मिलती है।
लोकसभा चुनाव खत्म हुए तीन महीने हो गए पर यह ‘पूर्वज’ बंगलों में बने हुए थे। अमेरिका का राष्ट्रपति और इंग्लैंड का प्रधानमंत्री पद छोड़ते ही सरकारी आवास छोड़ जाते हैं जबकि कांग्रेस का यह नेता कह रहा है कि क्योंकि हम राजनेता हैं इसलिए हमारे डटे रहने का विशेेषाधिकार हैं। लेकिन चिदंबरम के मामले से इन सब को पता चल जाएगा कि “तुम जानते नहीं कि मैं कौन हूं” वाली संस्कृति की एक्सपायरी डेट आ गई है।
हमारे भी है मेहरबान कैसे कैसे (The kind of 'Leaders' We Have),