पाकिस्तान मे सत्ता के दो केन्द्र हैं। रावलपिंडी जहां सेना मुख्यालय है, और इस्लामाबाद जहां राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, संसद, सुप्रीम कोर्ट आदि हैं, अर्थात् जहां सरकार हैं। पाकिस्तान की बड़ी त्रासदी है कि इस्लामाबाद का वह महत्व नहीं जो रावलपिंडी का है। सेना का मुख्यालय सारी सरकार पर हावी है। इसीलिए मज़ाक़ में कहाँ जाता है कि बाक़ी देशों के पास सेना है, पाकिस्तान की सेना के पास देश है ! 75 साल में पाकिस्तान की सेना ने तीन बार सत्ता पर क़ब्ज़ा किया और लगभग तीन दशक सीधी सरकार चलाई, जिस बीच भारत के साथ तीन युद्ध भी लड़े। अमेरिका, चीन और साऊदी अरब का पाकिस्तान की सेना के साथ सीधा सम्पर्क है। खाड़ी के तेल-समृद्ध देशों के नज़दीक उसकी लोकेशन उसे विशेष महत्व देती है। वह परमाणु सम्पन्न देश है। कई क़िस्म के आतंकवादी संगठन वहां पनप रहें हैं जिसके कारण चाहे आप उस देश को पसंद या नापसंद करो, आप उसको अधिक देर नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते।
पाकिस्तान में आसिम मुनीर नए सेनाध्यक्ष बन गए हैं पर रिटायर होने से पहले पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल बाजवा ने जो किया और जो कहा, वह उल्लेखनीय है। पाकिस्तान को कंगाली से बचाने के लिए उन्होंने चीन, अमेरिका और साऊदी अरब की यात्रा की। अगर अंतराष्ट्रीय मुद्रा कोष से पाकिस्तान को पैकेज मिला है तो इसका श्रेय जनरल बाजवा ले रहें हैं। उनका कहना है कि सेना ने अपने कर्तव्य से उपर उठ कर दोस्ताना देशों से सस्ती गैस लेकर दी है, जिस पर पाकिस्तान के सबसे प्रमुख अख़बार दी डॉन ने लिखा है, ‘क्या उन्होंने एक बार भी यह नहीं सोचा कि इन मसलों में पड़ना सेना का काम नहीं है?’ शायद ऐसे ही सवाल उठने पर जनरल बाजवा ने अपने विदाई भाषण में कहा, “ राजनीति में असंवैधानिक दखल देने के लिए हमारी सेना की आलोचना की जाती है। इसलिए पिछले साल फ़रवरी में बहुत सोच विचार के बाद सेना ने फ़ैसला किया कि वह किसी भी राजनीतिक मामले में दखल नहीं देगी। मैं आपको विश्वास दिलवाता हूं कि हम इस फ़ैसले पर अटल हैं, और रहेंगे”। बाजवा ने अपनी बची ख़ुची प्रतिष्ठा बचाना के लिए यह भी दावा किया है कि 1971 की लड़ाई में पाकिस्तान के 93000 सैनिकों ने नही, केवल 34000 सैनिकों ने भारतीय सेना के आगे समर्पण किया था, बाक़ी ग़ैर- सैनिक थे। यह पहली बार है कि किसी ने ऐसा झूठा दावा किया है। सारी दुनिया के अख़बारों की सुर्ख़ी थी कि 93000 पाकिस्तानी सैनिकों ने समर्पण किया है। पर यहाँ तो पाकिस्तान के सेना प्रमुख ही अपने 59000 सैनिकों का परित्याग कर रहें हैं।
जनरल बाजवा के सेना के राजनीति से दूर रहने के उपदेश को बहुत कम लोगों ने गम्भीरता से लिया है क्योंकि साथ ही उन्होंने यह भी कह दिया कि सेना का धैर्य असीमित नहीं है। यह भी मालूम नहीं कि उनका उत्तराधिकारी इससे सहमत भी है नही, आख़िर ‘ राजनीति में असंवैधानिक दखल’ तो पाकिस्तान की सेना के डीएनए में है। कोई संकेत नहीं कि सेना वापिस बैरकों में जाने को तैयार है। पाकिस्तान की सेना का दखल केवल राजनीति या प्रशासन में ही नहीं, उनका तो बड़ा आर्थिक साम्राज्य भी है। खुद जनरल बाजवा पर आरोप है कि उनके छ: साल के कार्यकाल में उनके परिवार, रिश्तेदारों और परिचितों ने देश और विदेश में 12.7 अरब रूपए की जायदाद इकट्ठी की है। सरकार की तरफ़ से जो प्रतिक्रिया आई वह भी दिलचस्प है कि हम जाँच कर रहें हैं कि यह जानकारी लीक कैसे हो गई? पर यह नहीं कहा कि यह ग़लत है। पाकिस्तान की सेना, विशेष तौर पर उसके उच्चाधिकारी, इतनी मौज में है कि वहाँ निश्चित समझा ज़ा रहा है कि कुछ नहीं बदलेगा। सेना किंग मेकर रहेगी। बाजवा का बयान केवल फ़ेस सेविंग है और सेना की हो रही बदनामी से बचने कि लिए दिया गया है। विशेष तौर पर इमरान खान द्वारा सेना की लगातार आलोचना ने सेना को रक्षात्मक बना दिया है।
पाकिस्तान में यह कोई बड़ा रहस्य नहीं कि सेना के पास बड़ा आर्थिक साम्राज्य है। जिसे पाकिस्तान की ‘मिलिटरी-इकॉनिमी’ कहा जाता है के बारे वरिष्ठ पत्रकार आयिशा सदीका का कहना है कि ‘यह एक विशाल अरबों डालर का व्यापारिक साम्राज्य है’। वह अपनी किताब मिलिटरी इंक इनसाईड पाकिस्तान मिलिटरी इकानिमी मे विस्तार से सेना के आर्थिक साम्राज्य की पोल खोलती हैं। पाकिस्तान में हमारे पूर्व राजदूत शरत सभ्रवाल भी लिखतें हैं कि ‘ राज्य की कमान प्रत्यक्ष ओर अप्रत्यक्ष तौर पर सम्भालने के अतिरिक्त पाकिस्तान की सेना ने विशाल आर्थिक साम्राज्य बना लिया है जो इसके लोगो, विशेष तौर पर अफ़सरों, को खूब पैसे कमा कर देता है’। सेना द्वारा चलाए जा रही बिसनेस में बेकरी, स्कूल, फार्म, प्राईवेट सैक्यूरिटी सर्विस से लेकर बैंक, बीमा कम्पनियाँ, रेडियो और टीवी चैनल,खाद, सीमेंट बनाने वाले कारख़ाना सब शामिल हैं। जो रिटायर हो जातें हैं उन्हें ज़मीन दी जाती है या बिसनेस करने के मौक़े दिए जातें है। लाहौर के एक सैनिक संस्थान के पास तो गॉल्फ़ कोर्स और शॉपिंग सेंटर भी है। सेना के विभिन्न कमान सिनेमा, गैस स्टेशन, मार्केट और मॉल के भी मालिक हैं। देश की सबसे बड़ी ट्रांसपोर्ट कम्पनी की मालिक भी सेना ही है। पाकिस्तान का शासक वर्ग बहुत भ्रष्ट है। नवाज़ शरीफ़ परिवार या भुट्टो-ज़रदारी परिवार के पास देश विदेश में अरबों डालर की जायदाद है। इन पर मुक़दमे भी चल रहे हैं पर किसी की जुर्रत नहीं कि किसी सैनिक अधिकारी पर उँगली भी उठा सके। यह पाकिस्तान की सेना की वर्तमान बदनामी का बड़ा कारण है।
बाढ़ के कारण तबाही, गिरती अर्थव्यवस्था जिसके बारे आशंका व्यक्त की जा रही है कि पाकिस्तान अगला श्रीलंका बन सकता है, के बीच देश किस दिशा में जाता है यह अब दो व्यक्तियों पर निर्भर करता है। इन में प्रधानमंत्री शाहबाज़ शरीफ़ शामिल नहीं। यह दो व्यक्ति है, पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान और नए सेनाध्यक्ष आसीम मुनीर। दोनों के बीच छत्तीस का आँकड़ा रहा है इसलिए टकराव की बराबर सम्भावना है। आसीम मुनीर जिन्हें ‘मुल्ला जनरल’ भी कहा जाता है क्योंकि उन्हें क़ुरान पूरी तरह से याद है, ने इमरान खान की पत्नी बुशरा बीबी के भ्रष्टाचार की पोल खोली थी जिस कारण इमरान खान ने आठ महीने पहले ही उन्हें आईएसआई के प्रमुख के पद से हटवा दिया था। अब शाहबाज शरीफ़ ने उन्हें सेनाध्यक्ष बनवा दिया है इस आशा के साथ कि वह इमरान खान के बढ़ते कदम रोक सकेंगे। पर ज़रूरी नहीं कि ऐसा हो। सेनाध्यक्ष बन आसीम मुनीर का रवैया बदल भी सकता है। ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो ने जनरल जिया उस हक़ को सेनाध्यक्ष बनाया था कि यह दीन लगने वाला व्यक्ति उन्हें चुनौती नहीं देगा। भुट्टो तो निजी वार्ता में जिया उल हक़ को ‘मेरा बंदर’ कहता था। जिया ने उसे फाँसी पर लटका दिया। नवाज़ शरीफ़ ने परवेज़ मुशर्रफ को सेनाध्यक्ष बनाया था। मुशर्रफ ने नवाज़ शरीफ़ को जेल में डाल दिया जहां से साऊदी अरब के शाही परिवार ने उन्हें निकलवा कर लंडन भिजवा दिया। नवाज़ शरीफ़ बार बार स्वदेश लौटने की सोचतें हैं पर हिम्मत नहीं पड़ रही।
पर इमरान खान इन सब से अलग है। उनके जैसी लोकप्रियता कम ही किसी पाकिस्तानी राजनेता को मिली होगी। उन पर हुए क़ातिलाना हमले के बाद उनका रुतबा और बढ़ गया है। वह भी अपना लॉंग मार्च इस्लामाबाद जहां सरकार है नही, रावलपिंडी लेकर गए हैं जहां सैनिक मुख्यालय है। अर्थात् सेना के अधिकारियों को सीधी चुनौती है कि मुझे रोकोगे तो जनता का सामना करना पड़ेगा। वहाँ विशाल जनसभा को सम्बोधित करते हुए उन्होंने यह घोषणा भी की है कि उनकी पार्टी विधानसभाओं से इस्तीफ़ा देंगी। इमरान खान जल्द चुनाव चाहते हैं इसलिए दबाव बना रहे हैं। अगर आज वहाँ चुनाव हो जाते हैं तो वह निश्चित सत्ता में आ जाएँगे। शाहबाज़ शरीफ़ और आसीम मुनीर दोनों की कोशिश होगी कि चुनाव निर्धारित अगस्त 2023 से पहले न हों। इस कश्मकश में पाकिस्तान की हालत और ख़राब हो सकती है।
पाकिस्तान की सेना के लिए बड़ी समस्या उसकी गिरती विश्वसनीयता है। जो चीन में आजकल कम्यूनिस्ट पार्टी का और ईरान में मुल्ला – हुकूमत का हाल हो रहा है वहीं पाकिस्तान की सेना का हो रहा है। यह सब बहुत शक्तिशाली रहें हैं पर अब चूल्लें हिल रही है। कई बार इंसान ख़ुद को इतना सर्व शक्तिमान समझता है कि पता ही नहीं चलता कि नीचे से ज़मीन कब खिसक गई है। जनरल बाजवा के छ: साल सेना की प्रतिष्ठा तबाह कर गए हैं। इमरान खान के सेना पर हमलो ने पाकिस्तान की सेना को इतना कमजोर कर दिया है कि घटनाक्रम को अपने मुताबिक़ मोड़ने की उनकी क्षमता कमजोर हो गई है। विशेषज्ञ सी.राजा मोहन ने लिखा है कि पाकिस्तान की गिरती अर्थव्यवस्था को फिर से जीवंत करना और उसके तुलनात्मक पतन को रोकना जनरल मुनीर के बस की बात नहीं लगती। इमरान खान को सम्भालना मुश्किल हो रहा है। सेना के ज़ख़्मों पर नमक छिड़कने के लिए इमरान, जो भारत के मित्र नहीं है, लगातार भारत की आज़ाद विदेश नीति की प्रशंसा कर रहें हैं। इशारा यह है कि अपने हित के लिए सेना ने पाकिस्तान को विदेशी ताक़तों के आगे गिरवी रखा है। उन्होंने यह भी कहा है कि अमेरिका पाकिस्तान को ‘भाड़े के गनमैन’ की तरह इस्तेमाल करता रहा है। अमेरिका और सेना पर इमरान खान का जुड़वां हमला उन्हें इस समय बहुत समर्थन दिलवा रहा है।
आसीम मुनीर पुलवामा का हमला जिसने हमारे 40 जवान शहीद हुए थे, का मास्टर माईंड है। वह तब आईएसआई का प्रमुख था। वह भारत विरोधी तत्वों को संरक्षित प्रोत्साहन देने के लिए कुख्यात है। जनरल बाजवा ने तो हमारे साथ सम्बंध बेहतर करने का कुछ प्रयास किया था जनरल मुनीर से कोई आशा नहीं। हमारी केवल यह आशा हो सकती है कि नियंत्रण रेखा पर फ़रवरी 2021 से लागू युद्ध विराम जारी रहे। नियंत्रण रेखा से अंतराष्ट्रीय दबाव में घुसपैठ कुछ कम हुई है पर सीमा पार से ड्रोन द्वारा ज़्यादा मात्रा में हथियार और ड्रग्स गिराए जा रहे हैं। हमारे लिए तो सबसे बेहतर नीति यही है कि पश्चिम के पड़ोसी देश में फैलती अराजकता से खुद को अलग रखे। वह खुद ही लड़ झगड़ कर अपने को तबाह कर रहें हैं, किसी और की इसमें दखल की उन्हें ज़रूरत नहीं!