
कोविड के कारण दो साल बंद रहने के बाद अब देश में ट्रैवल की बाढ़ आ गई है। मैं भी अपवाद नहीं हूँ। जब मौक़ा मिलता है निकल जाता हूँ। इस बार जालन्धर से गुरुग्राम गाड़ी से जाने का फ़ैसला किया। पहले जालंधर से दिल्ली या गुरुग्राम जाना बहुत तकलीफ़देह था क्योंकि लुधियाना या अम्बाला या पानीपत जैसे शहरों को पार करना ही चुनौती होती थी। लेकिन अब यह इतना आसान हो गया है कि 2001 की मशहूर फ़िल्म, ग़दर -एक प्रेम कथा, के उदित नारायण द्वारा गाए गाने को थोड़ा मोड़ते हुए कहा जा सकता है कि ‘ रब जाने कब गुजरा लुधियाना ओ कब जाने पानीपत आया!’ हाँ, मुटियार तो कोई नहीं मिली पर एक बंदा बहुत याद आया, नितिन गड़करी, क्योंकि उनका नाम हाईवे निर्माण का पर्यायवाची बन चुका है।
राष्ट्रीय राजमार्ग को आधुनिक बनाने का काम गम्भीरता से पहले अटलजी की सरकार ने लिया था। जी टी रोड जो कभी अफ़ग़ानिस्तान से लेकर 2400 किलोमीटर दूर बांग्लादेश तक जाती थी सिंगल टूटी फूटी सड़क थी। यही हाल दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई और मुम्बई को मिलाने वाले राजमार्गों का था। यह पहचानते हुए कि इससे समय और ईंधन दोनों की बर्बादी होती है, वाजपेयी सरकार ने Golden Quadrilateral जिसका अर्थ सुनहरा चतुर्भुज है, और जो दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई और मुम्बई को जोड़ता है, का निर्माण शुरू किया था। अटलजी हिन्दी के विद्वान थे इसलिए मालूम नहीं अंग्रेज़ी का इतना कठिन नाम क्यों रखा, पर बड़ा सड़क निर्माण तो शुरू हुआ। मनमोहन सिंह की सरकार ने यह जारी रखा पर इसे गति तब मिली जब नितिन गड़करी केन्द्रीय मंत्रिमंडल में सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री बने। निश्चित तौर पर प्रधानमंत्री मोदी का सहयोग मिल रहा है, पर अगर सड़क निर्माण में क्रान्ति आगई है तो बहुत श्रेय नितिन गड़करी को जाता है।
न केवल बड़े शहरों को जोड़ा जा रहा है पर चारों ओर धडाधड सड़कें बन रही है। जालन्धर से जयपुर का सफ़र जो कष्टदायक 12 घंटे था अब 6 घंटे रह गया है। जिसका अर्थ यह भी है कि एक ट्रक एक दिन में जालन्धर-जयपुर आना-जाना कर सकता है। देश में आप कहीं भी जाऐं लम्बे रूट के लिए छ: लेन हाईवे मिल जाएगी। पहाड़ी क्षेत्र भी अछूते नहीं रहे। मनमोहन सिंह सरकार के समय रोज़ाना 12 किलोमीटर सड़क बनती थी जो पिछले साल बढ़ कर रोज़ाना 37 किलोमीटर पहुँच चुकी है। सड़क निर्माण बहुत जटिल काम है। केवल अच्छे ठेकेदारों की ही ज़रूरत नहीं होती, भूमि अधिग्रहण बहुत विवादास्पद काम है। बीच में राजनीति भी आजाती है। पुल बनाने पड़ते है, पेड़ काटने पड़ते हैं जिस कारण पर्यावरणवादियों के विरोध का सामना करना पड़ता है। विशेष तौर पर पहाड़ी क्षेत्र में पहाड़ काटने के नुक़सान होते हैं, जैसे उत्तराखंड में हो रहा है। आलोचना का सामना करना पड़ता है। हिमाचल में भी चट्टाने गिरती रहती है। कई जगह लम्बी लम्बी सुरंगें बनाई जा रही हैं। रोहतांग दर्रे के नीचे बनी अटल टनल इसकी बढ़िया मिसाल है। यह काम वही कर सकता है जिसे अरुणाचल प्रदेश से सांसद और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष तपिर गाओ ने ‘स्पाईडरमैन’ कहा है क्योंकि उन्होंने देश भर में सड़कों का जाल बिछा दिया है। नितिन गड़करी।
लेकिन अभी मैं अपने सफ़र की बात करता हूँ। जालन्धर से गुरुग्राम का सफ़र जो कभी दस मुसीबत वाले घंटे लेता था, अब अपनी ‘गड्डी’ में छ: -साढ़े छ: घंटे में पूरा हो जाता है। एक प्रकार से आप बड़े शहर, फगवाड़ा, लुधियाना, राजपुरा, अम्बाला, करनाल, पानीपत के उपर से आप निकल जाते हैं। कुंडली के बाद आपको Western Periphery अर्थात् ‘ पश्चिमी घेरा’ की छ: लेन सड़क मिलती है। दिल्ली के इर्द-गिर्द Western Periphery और Eastern Periphery की विशाल रिंग रोड बना दी गई है जिससे पूर्व या पश्चिम या दक्षिण भारत को जाने वाले ट्रक अब राजधानी में प्रवेश नहीं करते। अनुमान है कि 55000 ट्रक दिल्ली को बाइपास कर जाते हैं। इससे ट्रैफ़िक और प्रदूषण सबका भला होता है। फिर सवाल यही है कि इतना भारी भरकम अंग्रेज़ी का नाम कौन ड्राईवर समझेगा?
पंजाब में कहीं ट्रैफ़िक पुलिस नज़र नहीं आती इसलिए ड्राइवर की मौज है। इसीलिए दुर्घटना भी बहुत होती है। ओवरलोड ट्रक कई बार पलट जाते हैं। जालन्धर के ठीक बीच ऐसा ही ट्रक पलट गया और उसके नीचे एक होनहार युवक, जो पायलट बनने की तैयारी कर रहा था, की दब कर मौत हो गई। इस बार भी रास्ते में गन्ने से भरा ट्रक पलटा मिला। कोई देखने वाला नहीं। हाईवे पुलिस है ही नहीं। पंजाब में रात को धुँध में हाईवे पर रुके ट्रकों के साथ दुर्घटना और मौत के समाचार मिलते रहतें है। विदेशों में ट्रक रूकने के लिए साइड में अलग जगह बनी होती है ताकि हाईवे पर ट्रैफ़िक के रास्ते में रुकावट न आए। इस ओर ध्यान देना चाहिए। एक और तरफ़ विशेष ध्यान देने की ज़रूरत है कि हमारे हाईवे पर टू-वहीलर या साइकिलिस्ट के लिए कोई प्रबंध नहीं है जिससे वह गंभीर दुर्घटना का शिकार हो सकते हैं। पिछले चार सालों में ऐसी दुर्घटनाओं में 86 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। हमारे यहां आर्थिक तौर पर छोटे लोग बहुत है। हाईवे की योजना बनाते समय साइकल वाले या टू-वहीलर वाले को विशेष ध्यान में रखना चाहिए। हाईवे पर बढ़ती वाहनों की संख्या बताती है कि देश कितनी तेज़ी से प्रगति कर रहा है पर हमारे ड्राइवरों की अनुशासनहीनता के कारण बहुत दुर्घटना होती है। लोग लेफ़्ट-राइट बेपरवाह चलाते है। शहरों में भी रैड-लाइट जम्प करना सामान्य है। स्कूलों से सही ट्रेनिंग दी जानी चाहिए।
पंजाब से गुजर कर हरियाणा में प्रवेश करते ही अंतर नज़र आजाता है। वहाँ 90 किलोमीटर की स्पीड लिमिट है और इसे सख़्ती से लागू करवाया जाता है। हरियाणा से गुजर रहा हर ड्राइवर जानता है कि अगर स्पीड लिमिट के उपर गए तो चलान घर आजाएगा। केवल Western और Eastern Periphery में स्पीड लिमिट 120 किलोमीटर है बाक़ी जगह 90 से उपर जाना मना है। हरियाणा वैसे भी अब पंजाब से बेहतर प्रशासित प्रदेश है। दिल्ली के साथ उसकी नज़दीकी का हरियाणा ने खूब फ़ायदा उठाया है। हम पंजाबी तो अपनी पुरानी प्रतिष्ठा का खा रहें हैं। हमारे शहर अर्बन स्लम बन चुकें हैं जिनकी टूटी फूटी सड़कें और कूड़े के ढेर बताते हैं कि प्रदेश किस तरह सरकारी तिरस्कार और प्रशासनिक लापरवाही का शिकार है। मैं एक सप्ताह केरल में घूमा हूँ। कहीं गंदगी या टूटी सड़क नहीं मिली। पंजाब में सरकार शहरों की परवाह नहीं करती और मुख्यमंत्री मान का बहुत समय प्रदेश से बाहर पार्टी की राजनीति में व्यतीत हो रहा है। समझ नहीं आता कि दूर गुजरात में उनके रोड शो का क्या तुक था? प्रदेश में बढते ड्रग्स, गैंगस्टर और विदेश भाग रही नौजवान पीढ़ी किसी भी सरकार के लिए चिन्ता का विषय होना चाहिए। यह भी दुख है कि शहरों और क़स्बों में हमारे जनप्रतिनिधि भी बुरी तरह फेल हो गए है। जिसे ‘सिस्टम’ कहा जाता है,वह उन्हें निगल गया है।
‘गड्डी’ द्वारा सफ़र का बड़ा आनन्ददायक पहलू रास्ते में आते ढाबे है जहां सस्ता लज़ीज़ भोजन मिलता है। यहाँ वह मिलता है जो मैकडोनाल्ड या पिज़ा हट नहीं दे सकते। ढाबों पर खड़ी बड़ी बड़ी लग्ज़री कारें बताती है कि अन्दर से हम सब देसी है, और अपने खाने की तड़प रहती है। मैं वहाँ आलू का पराँठा ज़रूर खा कर जाता हूँ। साथ दही, मक्खन की टिकिया और आचार मिलता है। साथ कड़क चाय। सफ़र की थकावट ख़त्म हो जाती है। खाना भी फटाफट मिलता है ताकि समय बर्बाद न हो। यह ढाबे भी बदलें हैं। यात्रा कर रही पब्लिक की ज़रूरत को देखते हुए सफ़ाई रखी जाती है। टॉयलेट साफ़ सुथरे मिलतें हैं। साथ चूर्ण और आचार ख़रीदने की दुकान होती है। आजकल जगह जगह ‘हवेली’ नामक ढाबे मिलेंगे जिनमें पंजाबी माहौल देने की कोशिश की जाती है। यह पहले जालन्धर में शुरू हुआ था। यह इतना सफल हुआ कि हर शहर के नाम के साथ ‘हवेली’ मिलेगी। पंजाब से गुजरते हुए कहीं पराली जलती नहीं देखी। वैसे भी यहाँ इस साल पराली जलाने की घटनाएँ पिछले साल से 30 प्रतिशत कम रही है। पर जब मैं यह लेख लिख रहाँ हूं दिल्ली में प्रदूषण का स्तर Severe अर्थात् गम्भीर बताया गया है। मेरा सवाल दिल्ली वालों से है कि पहले तो अपने प्रदूषण के लिए आप पंजाब को बदनाम करते रहे, अब आप की हवा इतनी प्रदूषित क्यों है कि बाहर निकलने से घबराहट होती है ?
महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने नितिन गड़करी की तुलना शिवाजी महाराज से कर विवाद खड़ा कर दिया। शिवाजी महाराज से किसी की तुलना नहीं हो सकती पर निश्चित तौर पर गडकरी केन्द्रीय मंत्रिमंडल के काबिल मंत्रियों में शामिल हैं। मैं उन से एक बार जालंधर में मिला हूँ जब वह भाजपा अध्यक्ष थे। साधारण पैंट और टी-शर्ट पहनी हुई थी। आजकल भाजपा नेताओं का जो शानदार स्टाइल है उससे कोसों दूर थे। 30 मिनट बिलकुल स्पष्ट बेबाक़ बात कही। वैसे भी वह अपने रोचक और बेबाक़ बयानों के लिए मशहूर हैं। उन्हीं में यह हिम्मत है कि उस मंत्रिमंडल का सदस्य रहते हुए जो रोज़ाना पिछली सरकार को लताड़ता रहता है, कह सकें कि ‘आर्थिक सुधारों के लिए देश मनमोहन सिंह का ऋणी रहेगा’। याद करिए कि अटलजी ने इंदिरा गांधी को ‘दुर्गा’ कहा था। दुख है कि हम यह राजनीतिक शिष्टता कहीं पीछे छोड आएँ हैं। कोई दूसरे को ‘रावण’ कह रहा है तो कोई ‘ सद्दाम हुसैन’। लेकिन संतोष है कि अभी भी कुछ लोग बाक़ी हैं जिनकी सोच तुच्छ राजनीति से उपर है। बिहार के विपक्षी नेता तेजस्वी यादव ने कहा है कि ‘जब तक नितिन गड़करी मंत्री है मुझे बिहार के लिए सोचने की ज़रूरत नहीं’। यह गड़करी के काम का अभिवादन है कि वह किसी भेदभाव से उपर उठ कर अपने कर्तव्य पथ पर चल रहें हैं जिससे उनकी लोकप्रियता बढ़ रही है। शायद यही कारण है कि उन्हें एक तरफ़ करने की कोशिश भी बराबर चल रही है। वह भाजपा के अध्यक्ष रहें हैं फिर भी उन्हें पार्टी की सर्वोच्च संस्था, संसदीय बोर्ड, से हटा दिया गया है। पर नितिन गड़करी को हाशिए पर लगाना आसान नहीं होगा क्योंकि उनका किया काम सारे देश में फैल चुका है।