हमारी आज़ादी को 75 वर्ष हो गए पर यह वह वर्ष भी है जब 75 साल पहले नए आज़ाद हुए देश की राजधानी के ठीक बीच एक महात्मा की गोली मार कर हत्या कर दी गई थी। मोहनदास कर्मचन्द गाँधी को ‘महात्मा’ की उपाधि रविन्द्रनाथ टैगोर ने दी थी। सरदार पटेल उन्हें बापू कहते थे। उन्हें ‘राष्ट्रपिता’ पहली बार नेताजी सुभाष चंद्र ने कहा था। यह वही नेताजी हैं जिन्हें गांधी ने दो बार कांग्रेस अध्यक्ष नहीं बनने दिया था पर जिन्होंने आज़ाद हिन्द फ़ौज की तीन ब्रिगेड के नाम ‘गांधी ब्रिगेड’, ‘नेहरू ब्रिगेड’ और मौलाना अबुल कलाम आज़ाद के नाम पर ‘आज़ाद ब्रिगेड’ रखा था। इससे उस वकत के नेताओं के उच्च चरित्र का पता चलता है कि देश की आज़ादी के लक्ष्य के सामने अपनी महत्वकांक्षा या अहम् को महत्वहीन समझते थे। सरदार पटेल जवाहरलाल नेहरू से वरिष्ठ थे। कांग्रेस जन में भी वह अधिक स्वीकार्य थे। पटेल की जीवनी के लेखक राजमोहन गांधी ने लिखा है कि गांधी पटेल को साथी और छोटा भाई समझते थे जबकि नेहर बेटा समान थे। गांधी ने बेटे को उत्तराधिकारी बना दिया जिसे पटेल ने चुपचाप स्वीकार कर लिया था। दोनों में मतभेद थे पर राष्ट्रीय हित के लिए दोनों एकजुट थे। गांधी की हत्या के बाद नेहरू ने पटेल को बहुत विनम्र पत्र लिखा था कि ‘हमारा कर्तव्य है कि संकट का सामना दोस्तों और साथियों की तरह करें’। इस पर बराबर विनम्रता दिखाते हुए पटेल ने जवाब दिया था, ‘हम दोनों आजीवन एक संयुक्त लक्ष्य की प्राप्ति के लिए साथी रहें है। हमारे देश का सर्वोच्च हित और हमारा एक दूसरे के प्रति स्नेह और सम्मान हमारे मतभेदों से श्रेष्ठ है’।
इससे एक दिन पहले कांग्रेस पार्टी को सम्बोधित करते हुए पटेल ने पहली बार नेहरू को ‘माई लीडर’ कहा था। पहले देश की आज़ादी और फिर उसके नव निर्माण के लिए उस समय के नेतृत्व ने अपने मतभेदों और स्वार्थ को एक तरफ़ फेंक दिया था। आज उनके बीच कथित मतभेदो को उछाला जा रहा है जबकि सभी बड़े नेता, गांधी, नेहरू, पटेल, सुभाष, ने देश के लिए क़ुर्बानियों दी और बड़े सामूहिक लक्ष्य के लिए इकट्ठे थे। दुख होता है कि आज कुछ लोग विशेष तौर पर गांधी और नेहरू की छवि को मलीन करने की कोशिश कर रहें है। पर वह सफल नहीं होंगे क्योंकि देश और दुनिया इसकी इजाज़त नहीं देंगे।
30 जनवरी 1948 जब गांधीजी शाम के 5 बजे प्रार्थना सभा की तरफ़ जा रहे थे तो पहले पाँव छू कर नत्थूराम गोडसे ने उन्हें गोली मार दी थी। पटेल जो गांधीजी को मिल कर लौट चुके थे तत्काल वहाँ लौट आए। उनके अनुसार महात्मा का चेहरा ‘शांत और निर्मल और क्षमाशील नज़र आता था’। यह भी उल्लेखनीय है कि इन 75 सालों में एक बार भी गांधी परिवार के किसी सदस्य ने मुख्य हत्यारे या साज़िशकर्ताओं के खिलाफ घृणा का एक अपशब्द नहीं कहा। गहरे शोक में भी गांधी के दो बेटों, मनीलाल और रामदास, ने सरकार से अपील की कि हत्यारे का मृत्यु दंड माफ़ कर दिया जाए। गोपालकृष्ण गांधी लिखतें हैं कि बेटों ने वह प्रयास किया “जो उनके पिता चाहते …और परिवार को कभी कुछ ऐसा नहीं सिखाया गया कि जिससे वह हत्यारे से नफ़रत करते”। आज के माहौल में जब शताब्दियों पुराने बदले लेने की हिंसक बातें हो रही है और गांधी के स्तर को कम करने और उनके हत्यारे का महिमागान किया जा रहा है, गांधी परिवार की यह उदारता मिसाल होनी चाहिए। राजीव गांधी की हत्या के बाद ऐसी ही उदारता उनके परिवार ने हत्यारों के प्रति दिखाई थी। प्रियंका गांधी तो जेल में जाकर नलिनी से मिल आईं थी। ऐसी उदारता दिखाना आसान नही है।
गांधी की हत्या क्यों की गई? उनके प्रति आज नफ़रत क्यों फैलाई जा रही है?एक कारण यह बताया जाता है कि वह मुसलमानों का पक्ष लेते थे। बाद में यह भी जोड़ा गया कि गांधी और नेहरू देश के विभाजन के लिए ज़िम्मेवार है। जहां तक देश के विभाजन का सवाल है, एक व्यक्ति जो अंत तक इसका विरोध करते रहे वह महात्मा गांधी थे जबकि दोनों नेहरू और पटेल इसको अपरिहार्य समझते थे। गांधी ने विभाजन की योजना के बारे कहा था, “ आज मैं खुद को अकेला समझ रहा हूँ। सरदार और जवाहरलाल दोनों समझते हैं कि मेरी सोच ग़लत है और अगर विभाजन हो जाता है तो निश्चित तौर पर शान्ति लौट आएगी…”। जहां तक उनकी मुस्लिम परस्ती का सवाल है वह वास्तव में सही हिन्दू थे जो दूसरे धर्मों को सम्मान से देखते थे। उनकी मनपसंद राम धुन में ‘ईश्वर’ भी है और ‘अल्लाह’ भी। जब उन्हें गोली लगी तो मुँह से ‘हे राम’ निकला था। वह सही समझते थे कि भारत तब ही शांतिमय रह सकता है अगर सब समुदाय आपसी मेल से रहें। वह हिन्दू धर्म के उच्च सिद्धांतों को मानते थे कि ईश्वर तक पहुँचने के और भी रास्ते हो सकते है। हत्या वाले दिन जवाहरलाल नेहरू के बाद राष्ट्र को सम्बोधित करते हुए सरदार पटेल ने स्पष्ट कर दिया कि गांधी की हत्या एक हिन्दू युवक ने तीन बार गोली मार कर की थी। उनका कहना था कि ‘यह भारत के लिए शोक,शर्म और संताप का दिन है’। सरदार ने यह भी कहा,’ वह पागल युवक जिसने उनकी हत्या की थी इस ग़लतफ़हमी में था कि वह उनके उच्च कार्य को तबाह कर देगा। पर शायद भगवान चाहते हैं कि उनकी मृत्यु से गांधी जी का महान मिशन पूरा और समृद्ध हो’।
सरदार पटेल के शब्द भविष्यदृष्टा थे। गोडसे की जो गोलियाँ उन्हें लगी वह गांधी को अमर बना गईं। अगर उनकी सामान्य मृत्यु होती तो शायद उनके प्रति इतना सम्मान न होता। गांधी के अहिंसा, प्रेम, भाईचारा, सर्वधर्म सम भाव, शान्ति, के उनके विचारों को ख़त्म नहीं किया जा सकता क्योंकि वह सर्व व्यापी हैं। गांधी के विचार आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने उस वकत थे। वह केवल भारत के ही आदर्श नहीं वह दुनिया के आदर्श है। शायद ही किसी देश की राजधानी होगी जहां गांधी का बुत न लगा हो या जहां महात्मा गांधी रोड न हो। संयुक्त राष्ट्र ने उनके जन्मदिन 2 अक्तूबर को अहिंसा का अंतरराष्ट्रीय दिवस घोषित किया था। आज भी अगर किसी को सम्मान देना हो तो उसे ‘ गांधी’ या ‘गांधीवादी’ कहा जाता है। नैलसन मंडेला को दक्षिण अफ़्रीका का गांधी कहा गया। मार्टिन लूथर किंग जूनियर की तुलना गांधी से की जाती है क्योंकि नैलसन मंडेला की तरह वह भी गांधी की अहंसा की शिक्षा से प्रेरित थे और उनकी भी हत्या की गई।
इतिहास कई प्रकार के नेताओं से भरा हुआ है। कइयों ने तलवार और बंदूक़ के बल पर राज करने की कोशिश की और उनका हश्र परवेज़ मुशर्रफ जैसा हुआ। हिटलर कभी दुनिया का सबसे ताकतवार आदमी था पर बर्लिन में जहां वह दफ़नाया गया उसके उपर कार पार्क है। लेकिन दूसरे नेता हैं जिन्होंने दिलों पर राज किया। गांधी अपनी मिसाल से गरीब और पिछड़े लोगों को प्रेरित कर सके और सबने मिंल कर उस वकत के सबसे ताकतवर साम्राज्य को बोरिया बिस्तर बांधने पर मजबूर कर दिया।लोगों की हिस्सेदारी ने लोकतंत्र की जड़ें मज़बूत कर दी जो आज हमारे संविधान की मूल भावना है। वह समझ गए थे कि हिंसा एक बार अनियंत्रित हो जाए तो बाद में इसे सम्भालना मुश्किल है। उन्हें आभास था कि हमारे समाज में कई दरारें हैं जिन्हें उभरने नहीं देना नहीं तो वह क़ाबू से बाहर हो सकती हैं। इसीलिए वह हिन्दू-मुस्लिम सद्भाव पर इतना ज़ोर देते थे।
आज का भारत गांधी के अहिंसा के विचार पर नहीं चल रहा, न चल ही सकता था। ज़माना बहुत बदल गया पर दुख है कि साम्प्रदायिक सद्भाव के उनके संदेश का मज़ाक़ उड़ाया जा रहा है और कुछ लोग उनके विरोधियों को उठाने में लगें है। लेखक और राजनीतिक विश्लेषक असीस नन्दी का कहना है कि ‘आज विनायक दामोदर सावरकर भारत के राष्ट्रपिता और गांधी सौतेले पिता बनते जारहें हैं’। मैं इस आँकलन से सहमत नहीं क्योंकि चाहे कुछ ताक़तें गांधी का स्तर नीचा करने में लगी है पर आम भारतीय के दिल में गांधी के प्रति जो श्रध्दा और जगह है वह कोई और नहीं ले सकता। आख़िर इस देश के पास गांधी के सिवाय और आदर्श कौन है? जहां वह गए वहीं दंगे रूक गए। आज किस के पास यह नैतिक ताक़त है ? आज तो नेता कहते रहते हैं कि ‘मत करो’ ,‘मत करो’ ,कोई सुनता नहीं। अफ़सोस यह है कि गांधी के हत्यारे नत्थूराम गोडसे के महिमागान का प्रयास एक वर्ग कर रहा है। नई विचारधारा तैयार की जा रही है। इसमें कोई बुराई नहीं पर एक हत्यारे को शान्तिदूत के बराबर खड़ा कर क्या मक़सद प्राप्त होगा? वैचारिक मतभेद की सदा गुंजायश रहेगी पर हिंसा की कोई जगह नहीं होनी चाहिए।
गोडसे का देश के प्रति योगदान क्या था इसके सिवाय कि उसने प्रार्थना सभा की तरफ़ जाते एक बीमार, निहत्थे, 78 वर्षीय व्यक्ति जिसने सुरक्षा लेने से इंकार कर दिया था, की हत्या कर दी थी? उसने उसे ‘वध’ कहा था। गोडसे और उसके साथी गांधी को ‘हिन्दुओं का दुश्मन’ और ‘पाकिस्तान का पिता’ कहते थे। जब नफ़रत फैल जाती है या फैलाई जाती है तो विवेक काम करने से इंकार कर देता है। आज कल गोडसे पर किताबें लिखी जा रही हैं। कई लोग इस हत्यारे का बुत लगाने की माँग कर रहें हैं तो कुछ उसका मंदिर बनाना चाहते हैं। एक फ़िल्म भी बनाई गई है जिसने दोनों को आमने सामने रखा गया है। आज के उग्र माहौल में गांधी का मज़ाक़ बनाया जा रहा है, उनका अपमान किया जा रहा है। गांधी को ऐसे प्रयासों का आभास था इसीलिए एक बार उन्होंने कहा था कि, “ पाप तो इतिहास के आरम्भ काल से चला आ रहा है लेकिन उसकी उपासना हमने अभी शुरू की है”।
लेकिन यह सफल नहीं होगा क्योंकि गांधी का सम्मान बहुत गहरा है, देश में भी और विदेश में भी। अहिंसा और साम्प्रदायिक सद्भाव का उनका संदेश आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना 75 साल पहले था। उन्होंने इतिहास की धारा बदल दी थी। वैसे भी अगर आधुनिक भारत के इतिहास से गांधी को निकाल दो तो हमारे पास बचेगा क्या? इस नैतिक कंगाली से बचने की ज़रूरत है। गोडसे ने उनका शारीरिक ‘वध’ अवश्य कर दिया गया पर उनके विचारों का ‘ वध’ नहीं हो सकता। यह देश की सामूहिक चेतना में स्थापित हो चुके हैं।