पाकिस्तान में ख़तरनाक, अराजकता, Dangerous Chaos in Pakistan

पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान को पाकिस्तान के अर्धसैनिक बल रेंजरस ने इस्लामाबाद में हाईकोर्ट के प्रांगण से गिरफ़्तार कर लिया है। पाकिस्तान में इतिहास दोहराया गया  कि किसी भी राजनीतिक नेता को खुला नहीं छोड़ा जाता जो ताकतवार व्यवस्था को चुनौती देता है।  इमरान खान को सेना ने खड़ा किया था क्योंकि वह नवाज़ शरीफ़ के पर काटना चाहते थे। पर घमंड में इमरान खान खुद को इतना ताकतवार समझने लगे कि सेना को ही चुनौती देने लगे।  उन्होंने एक वरिष्ठ सैनिक अफ़सर पर आरोप लगाया है कि वह उनकी हत्या की साजिश रच रहा है। दो बार पहले प्रयास हो चुका है। इमरान खान पर 100 से अधिक केस हैं जिनसे वह अभी तक बचते बचाते निकल रहे थे कि काबू आ गए। रेंजरस के इस्तेमाल से ही पता चलता है कि कार्यवाही सेना की सहमति से हो रही है। अब इमरान खान को प्रधानमंत्री बनने नहीं दिया जाएगा। पाकिस्तान का इतिहास बताता है कि सेना न भूलती है न माफ़ करती है। सामरिक विशेषज्ञ माइकल कुगलमैन ने लिखा है, “ गिरफ़्तारी की टाइमिंग महत्वपूर्ण है। सेना का वरिष्ठ नेतृत्व इमरान खान के साथ अपना झगड़ा ख़त्म करने का इच्छुक नहीं है। इस गिरफ़्तारी से यह संदेश भेजा जा रहा है कि अब और बर्दाश्त नहीं किया जाएगा”। इमरान खान को कुछ महीने जेल में गुज़ारने के लिए तैयार रहना चाहिए। जनरल असीम मुनीर भी जनरल जिया उल हक़ और जनरल परवेज़ मुशर्रफ की नीति पर चल रहें हैं कि सेना की सर्वोच्चता को कोई चैलेंज बर्दाश्त नहीं किया जाता।

गिरफ़्तारी के खिलाफ देश भर में प्रदर्शन हो रहे हैं। पेशावर में रेडियो स्टेशन को जला दिया गया है। रावलपिंडी में सेना के मुख्यालय पर हमला किया गया और गेट तोड़ कर भीड़ अन्दर घुस आई। यह अभूतपूर्व है क्योंकि सेना मुख्यालय पाकिस्तान का सबसे शक्तिशाली परिसर है। अर्थात् सेना को भी एक प्रकार से चुनौती दे दी गई है। पाकिस्तान फिर ख़तरनाक अराजकता में कदम रख रहा है। गृहयुद्ध की स्थिति भी बन सकती है। आर्थिक पतन, राजनीतिक टकराव और समाजिक असंतोष ने उन्हें विनाश के कगार पर पहुँचा दिया है।  सबसे बड़ा नुक़सान यह होगा कि लोगों की मुसीबतें कम करने की जगह सरकार का सारा ध्यान इमरान खान और उसकी गिरफ़्तारी से उत्पन्न स्थिति को सम्भालने में लग जाएगा। अगर स्थिति न सम्भली तो सैनिक पलटे की सम्भावना बन जाएगी। पर जैसी पाकिस्तान की हालत है वह बहुत ही बेवकूफ जरनैल होगा जो इस समय इसे सम्भालने की कोशिश करेगा। इमरान खान ने कहा था कि वह ‘नया पाकिस्तान’ बनाएँगे, ‘रियासत-ए- मदीना’ का सपना दिखाया था पर पुरानी रियासत से झगड़ा ले बैठे और अब वह भी फँस गए और पाकिस्तान को भी फँसा दिया।

भारत के साथ रिश्ते पहले ही ख़राब हैं। गोवा में पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो की उपस्थिति में जयशंकर ने पाकिस्तान को ‘दुनिया में आतंक की फेक्ट्री का प्रमोटर’ कहा है।  पेशावर की प्रसिद्ध मस्जिद पर हमले जिसमें 101 लोग मारे गए थे, के बाद पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख़्वाजा आसिफ़ और गृहमंत्री राणा सनाउल्लाह ने माना कि पाकिस्तान की सबसे बड़ी गलती मुजाहिद्दीन जिन्हें हम आतंकवादी करतें हैं, को तैयार करना था। अमेरिका की पूर्व विदेश मंत्री मैडलिन एलब्राइट ने पाकिस्तान को दुनिया की सबसे ख़तरनाक जगह करार दिया था। उनके अनुसार, “इनके पास परमाणु हथियार हैं, इनके पास आतंकवाद है, उग्रवादी हैं, भ्रष्टाचार और भारी ग़रीबी है”।पर यह देश हमारा पड़ोसी है। जैसे प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने लाहौर में कहा था कि आप दोस्त बदल सकते हो पड़ोसी नहीं। यह हमारा दुर्भाग्य है।  बिलावल भुट्टो का कहना था कि जब तक जम्मू कश्मीर में  धारा 370 को ख़त्म करने का कदम वापिस नहीं लिया जाता तब तक भारत के साथ सामान्य वार्ता नहीं हो सकती। यह लोग समझते नही कि भारत आगे बढ़ आया है। हमारे लोग, हमारी सरकार, हमारी विदेश नीति के सामने नए लक्ष्य है। हम पाकिस्तान पर केन्द्रित नहीं रहे। हमारा विदेशी मुद्रा भंडार 600 अरब डालर है जबकि पाकिस्तान का केवल 4 अरब डालर है। अगर नीति में परिवर्तन होना है तो उधर होना है। इसके कोई संकेत नज़र नहीं आ रहे। इमरान खान की गिरफ़्तारी के बाद तो बहुत समय तक वह खुद से उलझे रहेंगे।

बिलावल भुट्टो के नाना ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो ने 1970 में  कहा था कि पाकिस्तान घास खा लेगा, भूखा रह लेगा पर अपना परमाणु बम ज़रूर बनाएगा।  2023 में पाकिस्तान के पास परमाणु बम ज़रूर है, पर वह अंतरराष्ट्रीय भिखारी बन चुका है।  रोटी के लिए वहाँ दंगे हो रहे है। शाहबाज़ शरीफ़ ने माना है कि “हर बार क़र्ज़ माँगना बुरा लगता है।  हम एटमी पॉवर हैं पर हम हर जगह भीख माँगते फिर रहें है। इससे अधिक शर्मनाक कुछ नहीं”। लेकिन यह शहबाज़ शरीफ़ की मजबूरी है। 4 अरब डालर का विदेशी मुद्रा भंडार केवल एक महीने के लिए काफी है। उसके बाद क्या करना है? 25 साल पहले पाकिस्तान की जीडीपी भारत से 25 प्रतिशत अधिक थी आज भारत की जीडीपी 10 गुना अधिक है।  सत्तारूढ़ इलीट समुदाय समझता रहा कि उनकी महत्वपूर्ण भुगौलिक स्थिति के कारण विदेशी सहायता मिलती रहेगी। पर दुनिया बदल गई। हमारी दक्ष कूटनीति ने भी पाकिस्तान को अप्रासंगिक बना दिया।  नेताओं और नौकरशाहों को ज़िम्मेवार ठहराते हुए उनके रक्षामंत्री ख़्वाजा अब्बास से माना कि देश दिवालिया हो चुका है।

जहां पाकिस्तान के प्रभावशाली धनाढ्य वर्ग के लोग लंडन और दुबई में धड़ाधड़ जायदाद ख़रीद रहें हैं आम पाकिस्तानी आटे की एक बोरी के लिए धक्के खा रहा है। गूगल ट्रेंडस में वहाँ सब से ज़्यादा सर्च किया गया शब्द है ‘वीज़ा’। यह माँग वहाँ उठ रही है कि आर्थिक दुर्गत से उभरने के लिए भारत से व्यापार शुरू करो। पर नहीं! पाकिस्तान की सत्तारूढ़ व्यवस्था का कहना है कि पहले कश्मीर में धारा 370 हटेगी फिर हम अपने लोगों का पेट भरने की कोशिश करेंगे! घास खा लेंगें पर भारत से व्यापार शुरू नहीं करेंगे! आटे के लिए हाहाकार मचा है। कई जगह मुफ़्त आटा वितरण की दुकानों को लूटा जा चुका है। खाद्यान्न वितरण के दौरान भगदड़ और लूटपाट में  तीन दर्जन लोग जान गवां चुके हैं।  ग़रीबी से पीड़ित  भूखे लोगों द्वारा डाके डालने की घटनाओं में भारी वृद्धि का समाचार है। कराची शहर में एक महीने में लगभग 10000 अपराध का समाचार है। वहाँ बंदरगाह में सैकड़ों जहाज़ खड़े हैं और हज़ारों कंटेनर जमा है। भुगतान हो तो माल उठे। राष्ट्रीय दिवालियापन दीवार पर लिखा नज़र आता है।  

पाकिस्तान में मुद्रा स्फीति 35 से 40 प्रतिशत बताई जा रही है। विदेशों से मदद पर्याप्त मदद नही मिल रही। इस्लामाबाद का चेम्बर ऑफ एंड इंडस्ट्री माँग कर चुका है कि खाद्यान्न संकट से उभरने के लिए भारत से आयात किया जाए जो सस्ता होगा पर पाकिस्तान की सरकार इतनी असुरक्षित है कि कोई कदम उठाने को तैयार नही। उन्हें डर है कि अगर कोई कदम उठाएँगे तो इमरान खान और दूसरे विरोधी राजनीतिक फ़ायदा उठा जाएगा। लेकिन वहां से बुरी खबर डेली-बेसिस पर मिल रही है। पाकिस्तान की वरिष्ठ पत्रकार ज़ाहिदा हिना का कहना है कि “अब तो हमारे पास अपने पैरों पर खड़ा होने की कल्पना करने की ताक़त भी नहीं बची”। नैशनल डे परेड से हथियारों वाली गाड़ियाँ हटा ली गईं थीं क्योंकि सेना के पास तेल के लिए पैसे नहीं थे।

  इमरान खान हमारी ‘आज़ाद’ विदेश नीति की तारीफ़ कर चुकें  हैं। उनके पूर्व एयर चीफ़ मार्शल शहज़ाद चौधरी ने कहा है कि “ दो परस्पर विरोधी महाशक्तियाँ दावा कर रहीं हैं कि भारत उनका मित्र-राष्ट्र है। अगर यह कूटनीतिक कामयाबी नहीं तो और क्या है”? पर अब वहाँ पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल बाजवा के भारत के प्रति रुख़  को लेकर ज़बरदस्त बहस हो रही है। जनरल बाजवा ने भारत के साथ सम्बंध बेहतर करने का  प्रयास किया था।  बाजवा अधिक व्यवहारिक हैं और समझ गए कि इस हालत में पाकिस्तान भारत के साथ युद्ध नहीं कर सकता। पाकिस्तान के दो पत्रकारों हमीद मीर और नसीम ज़हीरा ने बताया है कि 2021 में जनरल बाजवा ने बताया था कि वह भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभल से गुप्त वार्ता कर रहें हैं कि कश्मीर मसले का कोई सम्माननीय समाधान निकल सके क्योंकि “पाकिस्तान के पास भारत के साथ लड़ने के लिए न तो आर्थिक ताक़त है और न युद्ध सामग्री”। इन दोनों पत्रकारों के रहस्योद्घाटन से वहाँ सनसनी पैदा हो गई है क्योंकि बाजवा ने यह भी कहा था कि पाकिस्तान भारत से लड़ाई लड़ने में असमर्थ है और “ पाकिस्तान के टैंकों पर ज़ंग लगा है  और सेना की मूवमेंट के लिए डीज़ल नहीं है”। हमीद मीर का तो आरोप है कि बाजवा ने कश्मीर पर भारत के साथ ‘डील’ कर ली थी। यह हास्यास्पद है। वहां जो व्यवहारिक या भारत के साथ सही निर्णय लेने की कोशिश करता है उस पर यह आरोप चिपका दिया जाता है कि वह बिक गया है।  पुलवामा में आतंकी हमले और भारतीय वायु सेना द्वारा बालाकोट पर हमले के बाद सम्बंध बहुत बिगड़ गए थे। बाजवा इस रास्ते पर चलने की निरर्थकता जल्द समझ गए थे। उनके और अजीत डोभाल के बीच वार्ता से 2021 में नियंत्रण रेखा पर युद्ध विराम हो गया था जो आज तक लगभग कायम है। पर सामरिक विशेषज्ञ सी.राजा मोहन ने सही लिखा है “जो भूत पाकिस्तान की सेना ने पिछले  वर्षों में बेलगाम किए हैं -जेहाद की लत, देश के अन्दर धार्मिक उग्रवादियों को ताकतवार बनाना, कश्मीर पर शोर को व्यवहारिक नीति पर हावी होने देना- से छुटकारा पाना आसान नहीं है”।

भयावह संकट के बीच इमरान खान की गिरफ़्तारी ने गम्भीर समाजिक और राजनीतिक टकराव खड़ा कर दिया है। वैसे भी यह एक उद्देश्य हीन देश है जिसकी दिलचस्पी केवल जेहाद और कश्मीर में है। लोक कल्याण प्राथमिकता नहीं लगती। रिसर्च संस्थान एटलांटिक कौंसिल के अनुसार पाकिस्तान का अगले 10 वर्ष में पतन हो सकता है। 10 वर्ष तो लम्बा समय है वहाँ तो कल की ख़बर नहीं। खैबर पख़्तूनख्वा की एक तिहाई ज़मीन पर आतंकवादी संगठन तहरीक -ए -तालिबान -पाकिस्तान का क़ब्ज़ा है। इस स्थिति में भारत क्या कर सकता है? बेहतर होगा कि हम अराजकता में झुलस रहे अपने पश्चिमी पड़ोसी से दूरी बना कर रखें। हम उनके अशुभ घटनाक्रम को कोई मोड़ नहीं दे सकते। अगर वह खुद को तबाह करना चाहें तो हम कुछ  कर भी नहीं सकते।  उनके वितमंत्री का कहना है “पाकिस्तान को अल्लाह ताला ने बनवाया था  इसलिए इसकी हिफ़ाज़त, तरक़्क़ी, और ख़ुशहाली अल्लाहताला की ज़िम्मेवारी है”। पाकिस्तानी हुक्मरान भी खूब हैं, सब कुछ तबाह  कर ज़िम्मेवारी अल्लाहताला पर डाल रहें हैं!

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Chander Mohan is the grandson of the legendary editor of Pratap, Mahashya Krishan. He is the son of the famous freedom fighter and editor, Virendra. He is the Chief Editor of ‘Vir Pratap’ which is the oldest hindi newspaper of north west india. His editorial inputs on national, international, regional and local issues are widely read.