कमला और उषा, Kamala and Usha

अमेरिका के नवम्बर में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव को लेकर यहाँ असामान्य दिलचस्पी है। कारण हैं, कमला और उषा। दोनों देसी नाम हैं पर आजकल इनका प्रचलन कम हो गया है। प्रवासी भारतीयों पर आधारित  फ़िल्मों में भी यह नाम सुनाई नही देते पर अमेरिका में इनकी खूब गूंज है। कमला हैरिस अमेरिका की उप-राष्ट्रपति हैं। जो बाइडेन ने स्वास्थ्य के कारण चुनाव लड़ने से इंकार कर दिया है और सम्भावना है कि कमला हैरिस डेमोक्रेटिक पार्टी की राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार होंगी। उषा चिलुकुरी वेंस जे.डी.वेंस की पत्नि हैं जिन्हें डानल्ड ट्रम्प ने अपना उप-राष्ट्रपति का उम्मीदवार चुना है। अर्थात् अगर ट्रम्प राष्ट्रपति का चुनाव जीत जातें हैं तो उषा वेंस उपराष्ट्रपति की पत्नि होंगी। नवम्बर में अमेरिका के चुनाव में दोनों तरफ़ एक देसी चेहरा होगा। उनके चुनाव में ‘इंडिया फ़ैक्टर’ महत्वपूर्ण बन गया है। न्यूयार्क टाईम्स ने भी ‘सियासी ताक़त बन उभरा भारतीय अमेरिकी समुदाय’ शीर्षक अधीन लिखा है कि “ वाशिंगटन में व्हाइट हाउस में अगले चार साल किसी न किसी भारतीय मूल के व्यक्ति की मौजूदगी रहने वाली है”।दोनों कमला हैरिस और उषा वेंस प्रतिभाशाली हैं और उच्च शिक्षित हैं। दोनों वकील रही हैं। दोनों के परिवारों की जड़ दक्षिण भारत में हैं। इसीलिए अमेरिका के चुनाव को लेकर यहाँ इतना उत्साह है कि भारतीय-अमेरिकी सत्ता के केन्द्र में होंगे। पर हमें अपना जोश कुछ नियंत्रण में रखना चाहिए।

हाल ही में ऋषि सुनक ब्रिटेन का चुनाव हार कर हटें हैं। जब वह वहाँ प्रधानमंत्री बने तो भी यहाँ बहुत चर्चा थी कि एक भारतवंशी 10 डाउनिंग स्ट्रीट का निवासी है। आख़िर वह हिन्दू है, जो पहचान उन्होंने कभी नहीं छिपाई। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री के सरकारी निवास में दिवाली मनाई गई। धार्मिक कार्यक्रमों में दरवाज़े के बाहर जूते उतारे गए। पर उनके पौने दो साल की अवधि में दोनों देशों के सम्बंधों ने तनिक भी अंतर नहीं आया। दोनों देशों के बीच फ्री ट्रेड एग्रीमेंट पहले की तरह ही लटक रहा है। उल्टा उनकी सरकार प्रवासियों के प्रति अधिक आक्रामक थी। प्रायः यह देखा गया है कि जो खुद प्रवासी बन कर विदेशों में बसें हैं या जिनके परिवार प्रवासी बन कर वहाँ गए है, वह जब सत्ता पर आसीन होतें है तो उनके प्रति अधिक असंवेदनशील रहतें हैं जिनकी शक्लें उनके जैसी हैं। रवैया लगता है कि हम तो यहाँ आकर बस  गए हैं, तुम यहाँ आने की जुर्रत न करना। वह यह भी प्रभाव देना चाहतें हैं कि अपने मूल देश के प्रति उनके दिल में सॉफ़्ट कार्नर नहीं है। वह बॉलीवुड से प्रभावित हैं। अम्बानी परिवार की शादी में दौलत के अश्लील प्रदर्शन को उन्होंने बड़े मज़े से देखा होगा। घरों में पराँठे या डोसे बनते है। बाज़ार से भारतीय मसाले ख़रीदे जातें हैं, पर अपने भारतीय कनैक्शन को या तो छिपा कर  रखतें हैं या नकार देते हैं, जैसे कमला हैरिस ने किया है।

कमला हैरिस भारतीय-अफ्रीकी मूल की हैं। पिता जमैका से थे और माँ श्यामला गोपाल तमिलनाडु से। माँ 19 वर्ष की आयु में वहाँ गईं थी। उनके अपने अनुसार वह वहाँ रहने के लिए नही, पढ़ने के लिए गईं थीं पर शादी कर वहाँ बस गईं। जब कमला पाँच वर्ष की थी तो माँ बाप का तलाक़ हो गया और दोनों बेटियों, कमला और माया की परवरिश मां ने की। माँ हिन्दू थीं और दोनों बेटियां माँ के साथ भारत आती रही है पर हैरानी की बात है कि माँ ने भारतीय-कलचर की जगह अपने तलाकशुदा पति की ब्लैक -कलचर को वहां अपना लिया। अपनी आत्मकथा ‘द ट्रुथ वी होल्ड’ में कमला हैरिस लिखतीं हैं “मेरी माँ बिल्कुल समझ गई थी कि वह दो ब्लैक लड़कियों को बडा कर रहीं हैं”। फिर वह लिखतीं है, “मेरी माँ यह निश्चित करना चाहती थीं कि हम आत्मविश्वासी और गर्वित ब्लैक औरतें बने”। अर्थात् माँ ने ही भारत के साथ किसी भी रिश्ते को ख़त्म कर दिया। वह चाहती तो लड़कियाँ ‘ब्लैक’ की जगह ‘ब्राउन’ औरतें बन सकती थी। लड़कियों से अब यह आशा नहीं करनी चाहिए कि वह खुद को भारतीय या एशियन कहेंगी। कमला हैरिस भी खुद को ‘अमेरिकन’ कहती है जो जायज़ है क्योंकि उनका जन्म वहाँ हुआ था और वहीं की नागरिक हैं, पर भारतीय सम्बंध को इस तरह त्याग देने की भी ज़रूरत नहीं थी। कैनेडी परिवार आयरलैंड से है, उन्होंने यह सम्बंध छिपाने की कभी कोशिश नही की। चार साल से कमला हैरिस वहाँ उपराष्ट्रपति हैं पर भारत के साथ जुडने का कोई प्रयास नहीं किया।अगर  कमला हैरिस राष्ट्रपति बन गईं तो प्रवासियों के प्रति उनकी नीति नरम नहीं होगी, यह भूलते हुए कि उनकी माँ भी इसी तरह वहां आई थीं।

उषा वेंस का रास्ता कुछ अलग रहा है। उन्होंने अपनी हिन्दू पहचान नहीं छोड़ी। उनका तो विवाह ही हिन्दू रीति रिवाज से हुआ था। (सम्पादक जी, विवाह की तस्वीर गूगल पर उपलब्ध है। अगर आप चाहें तो वहाँ से ले सकतें हैं)। वह प्रवासी ब्राह्मण भारतीय दम्पति की संतान हैं। वह और उनका पति लॉ स्कूल में मिले थे। न केवल उनकी शादी हिन्दू रीति रिवाज से हुई, उनका पति वैजीटेरियन भी बन गया। उषा वेंस ने तो स्वीकार किया है कि क्योंकि उनके माँ बाप हिन्दू है इसलिए उनकी इतनी अच्छी परवरिश हुई हैं। उनके उच्च शिक्षित परिवार में कई वेद और उपनिषद के पंडित हैं। परदादी 96 वर्ष की प्रो.शांताअम्मा अभी भी फिसिक्स पढ़ाती हैं। यह भारत की सबके वृद्ध प्रोफ़ेसर हैं। जे.डी.वेंस ने उषा के बारे कहा है कि वह उनकी मार्ग दर्शक हैं और जहां तक वह पहुँचे हैं उस में उनकी पत्नि का बड़ा हाथ है।

लेकिन उषा वेंस की समस्या है, जो कमला हैरिस की भी है, कि अमेरिकी समाज का बड़ा वर्ग नस्ली है और ऐसे सफल ‘दूसरे’ लोगों को स्वीकार करने को तैयार नही। जब रिपब्लिकन पार्टी के सम्मेलन में उषा अपने माता पिता और अपने पालन पोषण की प्रशंसा कर रही थी तो कुछ लोगों ने पोस्टर उठाए हुए थे जिन पर लिखा हुआ था, ‘सामूहिक निर्वासन’, सब को वापिस भेजो ! एक ब्राउन महिला की सफलता गोरों का बड़ा वर्ग पचा नहीं सकता। डानल्ड ट्रंप भी ‘प्रवासी हमले’ की शिकायत कर चुकें है। अगर ट्रम्प राष्ट्रपति बनते हैं और जे.डी. वेंस उपराष्ट्रपति, तो निश्चित तौर पर प्रवासियों के प्रति सख़्ती होगी। उषा वेंस कुछ नहीं कर सकेंगी।

1960 से ही भारतीय के विशिष्ट और समृद्ध वर्ग ने अमेरिका की खुली सीमा का फ़ायदा उठाया है। आज भी हमारे राजनीतिक वर्ग के बहुत बच्चे विदेश में पढ़ रहें हैं और बाद में वहाँ बसने का इरादा रखे हैं। हमारे लोग वहां बहुत सफल रहें हैं। विश्व की कई बड़ी कम्पनियों के सीईओ भारतीय मूल के हैं। माईक्रोसॉफ्ट के सत्या निडाल और गूगल के सुन्दर पचाई सब अपनी भारतीय पहचान को स्वीकार करते हैं। अजय बंगा वर्ल्ड बैंक के प्रेसिडेंट हैं। निकी हेली अमेरिका में गवर्नर और अमेरिकी राष्ट्रपति की कैबिनेट में रह चुकीं हैं। हमारे लोग प्रतिभाशाली और मेहनती है इसीलिए वह दुनिया भर में धाक जमा रहें हैं। दुबई में सबसे ज़्यादा 35000 जायदाद भारतीय ख़रीद चुकें हैं। 2023-24 में प्रवासी भारतीयों ने 119 अरब डालर स्वदेश भेजे थे। अमेरिका और योरूप, जर्मनी को छोड़ कर, के लोग बहुत मेहनत के आदि नहीं है। केवल चीनी हमारे जैसे हैं। उन्हें भी बचपन से मेहनत की आदत डाली जाती। है। इसीलिए वह देश इतनी तरक़्क़ी कर रहा है और इसीलिए विदेशों में मौक़ा मिलने पर भारतीय और चीनी समुदाय के लोग इतने सफल रहतेँ हैं। पर वह वापिस स्वदेश लौटना नहीं चाहते।

दुख की बात है कि हम अपने देश में  ऐसा मौक़ा पैदा नहीं कर सके।  असली मुद्दों की जगह हम कांवड़ यात्रा के रास्ते में नाम लिखवाने जैसे फ़िज़ूल मामलों में उलझे रहतें है। फ़ोकस सही नहीं है। यह चिन्ता की बात है कि बहुत भारतवासी विदेशों में स्थाई बस रहें हैं। कई करोड़ों रूपए खर्च कर विदेशी नागरिकता या गोल्डन वीज़ा ले रहें हैं। शिकायत है कि भारतीय पासपोर्ट के साथ पश्चिम के देशों में आना जाना मुश्किल हो जाता है। कारोबारियों के लिए यह विशेष परेशानी है। हर बार वीज़ा लेना पड़ता है जबकि एंटिगुआ, ग्रेनाडा, सेंट कीट्स जैसे छोटे देशों के पासपोर्ट अमेरिका और योरूप में आवाजाही के लिए आसान रहते हैं। इस साल भारत छोड़ने वालों की संख्या लगभग 50000 है, पर यह सिलसिला बढ़ रहा है। जो छात्र बाहर पढ़ने जाते हैं वह भी लौटना नहीं चाहते। बेरोज़गारी, प्रदूषण, महिला असुरक्षा, साम्प्रदायिक राजनीति, सरकारी दखल, ऊँचे कर, बहुत से कारण है कि लोग विदेश में बसना चाहतें है। कारोबारी शिकायत करतें हैं कि यहाँ ‘ईज़ ऑफ बिसनेस’ नहीं है।

विदेशों में हमारे समुदाय की सफलता ईर्ष्या भी पैदा कर रहा है। विशेष तौर पर अमेरिका में भारतीयों पर नस्ली हमले बढ़ रहें है क्योंकि समझा जा रहा है कि हमारे लोग वहाँ नौकरियाँ छीन रहे है। विज्ञान, मेडिसिन,टेकनालिजी, बिसनेस, आदि में हम अव्वल हैं। अंग्रेज़ी का हमें ज्ञान है। अमरीकी संसद में 5 और विधानसभाओं में 40 भारतीय-अमेरिकी सदस्य हैं। वहाँ के प्रवासी समुदायों में सबसे शिक्षित और सबसे समृद्ध भारतीय समुदाय है। हम चींनियों से आगे निकल गए हैं। वहां की आईटी कम्पनियाँ भारत से युवा सॉफ़्टवेयर इंजीनियर भारी संख्या में भर्ती कर रही हैं। एक सर्वेक्षण के अनुसार 2018 में भारतीयो की औसत आय 119858 डालर थी जबकि अमरीकियों की औसत मात्र 65902 डालर थी। तब से लेकर अब तक विशेष परिवर्तन नहीं आया। उल्टा हमारे लोगों का प्रसार बढ़ रहा है। अमेरिका के गोरे बड़ी मुश्किल से ब्लैक लोगों को  बर्दाश्त करने लगें हैं क्योंकि वह बराबर नहीं हैं पर उनके लिए प्रतिभाशाली भारतीयों, जो हॉलीवुड और नैटफलिक्स तक में भी जगह बना रहें हैं, को पचाना कठिन हो रहा है।

ऐसे समय में कमला और उषा उनके शिखर पर पहुँचने में सफल रही हैं। जहां यह ख़ुशी का मौक़ा है वहाँ यह नहीं भूलना चाहिए कि दोनों को नस्ली नफ़रत का सामना करना पड़ा है, और आगे भी करना पड़ेगा। दूसरा, यह दोनों ही अमेरिका में जन्मीं पली है और वहाँ की नागरिक हैं। भारत के साथ रिश्ता उनकी प्राथमिकता में नहीं होगा।

VN:F [1.9.22_1171]
Rating: 0.0/10 (0 votes cast)
VN:F [1.9.22_1171]
Rating: 0 (from 0 votes)
About Chander Mohan 755 Articles
Chander Mohan is the grandson of the legendary editor of Pratap, Mahashya Krishan. He is the son of the famous freedom fighter and editor, Virendra. He is the Chief Editor of ‘Vir Pratap’ which is the oldest hindi newspaper of north west india. His editorial inputs on national, international, regional and local issues are widely read.