पटरी से उतरती ट्रेन,पाकिस्तान, Pakistan Ready To Derail

पाकिस्तान के बलूचिस्तान में क्वेटा से पेशावर जा रही जाफ़र एक्सप्रेस के हाईजैक का प्रकरण ख़त्म हो गया है। कितने लोग मारे गए इसके बारे कोई स्पष्ट जानकारी नहीं है। सरकार का दावा है कि 33 बाग़ी (पाकिस्तान इन्हें आतंकवादी कहता है) मारे गए जबकि बलूच लिबरेशन आर्मी (बीएलए) का दावा है कि पाकिस्तान के 100 सैनिक मारे गए और कई अभी भी बंधक हैं। इस संख्या से भी बहुत अधिक महत्व रखता है कि 400-500 लोगों से भरी ट्रेन को ही हाइजैक कर लिया गया और वह ट्रेन दो दिन युद्ध- क्षेत्र बनी रही। ऐसी वारदात के लिए न केवल दम चाहिए बल्कि बहुत प्लानिंग और स्थानीय समर्थन की ज़रूरत चाहिए। अस्त्र शस्त्र चाहिए। इस ट्रेन पर 2018 और 2023 में भी हमले हो चुकें हैं। 2023 में तो दो महीने में दो बार इस ट्रेन पर एक ही जगह हमला हुआ था। ताज़ा घटना के छ: दिन बाद बीएलए के बाग़ियों ने सेना के जवानों को ले जा रही बस पर विस्फोटक से भरी बाइक से हमला कर दिया। कितने लोग मारे गए यह तो मालूम नहीं पर बलूचिस्तान में बार बार हो रहे हमलों पर प्रमुख पाकिस्तानी पत्रकार हमीद मीर की टिप्पणी सही उतरती है कि “पाकिस्तान की सरकार का बलूचिस्तान से नियंत्रण ख़त्म होता जा रहा है”।

पिछले कई दशकों से बीएलए बलूचिस्तान में बग़ावत में लगी हुई है। गुरिल्ला युद्ध-नीति का इस्तेमाल किया गया। हमला कर वह पहाड़ों और गुफ़ाओं में छिप जाते थे पर 2018 बाद रणनीति बदल दी गई है। अब वह पाकिस्तान की सेना और अधिकारियों पर सीधे आत्मघाती हमले कर रहें हैं। हमले भी पूरी योजना के साथ किए जातें हैं। 2018 के बाद बीएलए ने ग्वाडर, कराची, तुरबत, बोलन आदि में एक दर्जन से अधिक आत्मघाती हमले किए हैं। हालत इतनी गम्भीर है कि पाकिस्तान की संसद में उनके वरिष्ठ नेता मौलाना फजलुर्रहमान ने चेतावनी दी है कि “बलूचिस्तान के 5-7 ज़िले पूरी तरह से बाग़ियों के क़ब्ज़े में है जहां पाकिस्तान की सेना का कोई नियंत्रण नहीं है। यह खुद को आज़ाद घोषित कर सकते है और संयुक्त राष्ट्र इन्हें मान्यता दे सकता है जिससे पाकिस्तान के टुकड़े हो सकते हैं”। बलूचिस्तान और खैबर पख़्तूनख्वा में तो पहले ही समानांतर सरकारें चल रहीं हैं।

मौलाना फ़ज़लुर्रहमान कोई आम नेता नहीं है, वह पाकिस्तान की सबसे बड़ी धार्मिक पार्टी जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम के नेता हैं। उनका कहना है कि बलूचिस्तान और खैबर पख़्तूनख्वा में कोई सरकार नाम की चीज नहीं है।  इस ट्रेन हाईजैक ने उनकी बात की पुष्टि कर दी कि बलूचिस्तान धीरे धीरे पाकिस्तान के हाथ से फिसलता जा रहा है। पाकिस्तान पर उनके पंजाब का प्रभुत्व है और पंजाब के लिए बाक़ी प्रांतों का शोषण किया जाता है। सबसे अधिक शोषण बलूचिस्तान का हुआ है। पाकिस्तान की सेना में भी पंजाबी भरे हुए हैं। पाकिस्तान में हमारे पूर्व राजदूत टीसीए राघवन ने कहा है, “बलूचिस्तान की बहुत पुरानी शिकायतें हैं जिनका समाधान ढूँढने का कोई प्रयास नहीं किया गया”। ग़रीबी, असमानता, ऐतिहासिक शिकायतों, जातीय टकराव, सरकारी उपेक्षा के घालमेल के कारण वहां स्थिति नियंत्रण से बाहर जा रही है।उनकी जातीय, भाषाई और सांस्कृतिक पहचान को कुचलने की कोशिश की गई। अब इसका नतीजा भुगतने का समय आ गया है। पाकिस्तान एक परमाणु सम्पन्न देश है और उनके पास एक शक्तिशाली सेना है। वह इसी ग़लतफ़हमी में बैठे है कि यह बाग़ी हमारा क्या बिगाड़ लेंगे? बात ग़लत भी नहीं पर वह भूले हैं कि सुपर पावर सोवियत यूनियन का भी पतन हो गया था। अब पुतिन पुराना साम्राज्य इकट्ठा करने की कोशिश कर रहें हैं।

पाकिस्तान का जिस तरह गठन हुआ, और आज़ादी के बाद से ही जैसा नेतृत्व उसे मिला, उसी में उसके वर्तमान संकट और संभावित मरण के बीज छिपें है। पाकिस्तान में हमारे एक और पूर्व राजदूत शरत सभ्रवाल अपनी किताब इंडियाज़ पाकिस्तान कौननड्रम में इसका निचोड़ बतातें हैं, “ पाकिस्तान में दूसरे जातियों के लोगों की क़ीमत पर पंजाबियों पर मेहरबानी से दूसरों में असंतोष पैदा होने स्वभाविक था। यह उग्र जातीय राष्ट्रवाद के रूप में प्रकट हो रहा है”। सबसे अधिक यह भावना बलूचिस्तान और खैबर पख़्तूनख्वा के लोगों में हैं। पाकिस्तानी पत्रकार आयशा सिद्दीका का बलूचिस्तान की स्थिति के बारे कहना है, “नई पीढ़ी की पाकिस्तान राष्ट्र से कोई अपेक्षा नहीं…लोगों के ज़हन में अलगाव है। जो पढ़ा लिखा यूथ है वह लड़ने को तैयार है”। बलूचिस्तान में अलगाव की भावना के पीछे अन्याय और शोषण की लम्बी कहानी है। किसी भी प्रांत का इस तरह शोषण नहीं किया गया जैसे बलूचिस्तान का किया गया। शुरूआत जिन्ना ने ही की थी। 

आज़ादी के बाद मार्च 1984 तक बलूचिस्तान आज़ाद रहा था। कबाइली नेता और कलात के खान जिनका उस प्रांत पर प्रभाव था आज़ाद रहना चाहते थे पर उन पर पाकिस्तान मे शामिल होने का बहुत दबाव डाला गया। वह मान तो गए लेकिन वहाँ आज़ादी के लिए लालसा ख़त्म नहीं हुई। वहां पाँच बार बग़ावत की स्थिति बन चुकी है और पाँच ही बार सैनिक दमन से उन्हें कुचला गया। पहले बग़ावत का नेतृत्व क़बायली सरदार करते थे पर पाँचवीं बग़ावत जो 2005 को शुरू हुई और अब तक चल रही है, ने इसकी शक्ल बदल दी। यह एक महिला डाक्टर से सेना के कैप्टन द्वारा रेप के बाद शुरू हुई थी। बग़ावत का अब नेतृत्व पढ़े लिखे नौजवान और मिडिल क्लास कर रही थी। हालत यह बन चुकी है कि वहाँ पाकिस्तान की सरकार सरकारी इमारतों पर राष्ट्रीय दिवस पर झंडा नहीं लहरा सकती। सरकार और सेना ने इस बग़ावत का जवाब क्रूर दमन से दिया है। हज़ारों की संख्या में युवकों को घरों से उठा लिया गया। कईयों के शव तो जंगलों में फेंक दिए गए पर कई ‘ग़ायब’ हैं। बाग़ियों पर हवाई हमले किए गए। 2015 में बलूच विद्रोह को दबाने के लिए एफ-16 विमानों से हमला किया गया। 1000 किलोग्राम के बम गिराए गए। कई गाँव जला दिए गए। इसने समस्या को और विकराल बना दिया। हम ने भी कश्मीर में विरोध का सामना किया है पर अपने नागरिकों पर हवाई हमले कभी नहीं किए।  

बलूचिस्तान पाकिस्तान का सबसे बड़ा, सबसे समृद्ध, सबसे कम जनसंख्या वाला पर सबसे गरीब प्रांत है। बलूचिस्तान में पाकिस्तान की ज़मीन का 44 प्रतिशत है जबकि जनसंख्या मात्र 6 प्रतिशत ही है। क्योंकि जनसंख्या कम है इसलिए सरकार वहाँ के लोगों की आकांक्षाओं को सैनिक बूट के नीचे कुचलने का प्रयास करती है। यह क्षेत्र प्राकृतिक गैस, सोना, कोयला, ताँबा जैसे प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर है। इसकी एक खान में 40 करोड़ टन सोना बताया जाता है। स्थानीय लोग शिकायत करते हैं कि इन खनिज संसाधनों का पंजाब और चीन के लिए इस्तेमाल किया जाता है जबकि बलूचिस्तान गरीब का गरीब है। विकास की प्रक्रिया से उन्हें अछूता रखा गया। पाकिस्तानी पत्रकार उमर फारूक खान लिखतें हैं, “बलूचिस्तान की त्रासदी उस ज़मीन की त्रासदी है जहां प्राकृतिक गैस और सोना है जिससे पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था चलती है जबकि उसके अपने लोग आशाहीन स्थिति में रह रहें है”। इस भावना ने पहले असंतोष और अब बग़ावत भड़का दी है जो गृह युद्ध की शक्ल ले सकता है।

 अरब सागर से लगते इस प्रांत की सामरिक स्थिति बहुत महत्व रखती है। इसके एक तरफ़ ईरान है तो उत्तर में अफ़ग़ानिस्तान। यही कारण है कि चीन की इसमें इतनी दिलचस्पी है। चीन अपनी ज़रूरतों के लिए लम्बे समुद्री रास्ते पर निर्भर है जिसमें कभी भी विरोधी ताक़तें रूकावट डाल सकती हैं। इसीलिए उसने चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे पर 65 अरब डालर खर्च किया है। इस गलियारे का एक महत्वपूर्ण हिस्सा अरब सागर के तट पर बनाई ग्वाडर बंदरगाह है जिसके द्वारा चीन अपना व्यापार शुरू करना चाहता है। ग्वाडर से उसके लिए ज़मीनी रास्ता खुल जाता है पर उनका दुर्भाग्य है कि यह बंदरगाह बलूचिस्तान में स्थित है और वहाँ के लोग चीनी लोगों से भी बराबर नफ़रत करते हैं। पिछले कई सालों से चीनी लोगो पर वहाँ हमले हो रहें हैं। उन्हें भी बलूचिस्तान के शोषक वर्ग में गिना जाता है। इस गलियारा से स्थानीय लोगों को दूर रखा गया। वहाँ काम कर रहे चीनी सहमे हुए हैं और वहाँ से निकलना चाहते हैं पर उनकी सरकार ने इतना निवेश किया हुआ है कि फँस गए है। वह मान नहीं सकते की पैसा डूब गया है जबकि यह गलियारा बेकार बनता जा रहा है।   

नवीनतम ट्रेन हाईजैक की घटना के लिए अफ़ग़ानिस्तान और भारत को ज़िम्मेवार ठहराया गया जबकि असली बात है कि पाकिस्तान एक असफल राष्ट्र है जिसकी अप्रतिनिधिक सरकार बदनाम सेना के बल पर टिकी हुई है। वह आतंकवाद को स्टेट पालिसी की तरह इस्तेमाल करते रहे हैं, अब क़ीमत चुका रहें हैं। चारों तरफ़ अफ़रातफ़री है क्योंकि कोई भी संतुष्ट नहीं है। पाकिस्तान दुनिया का दूसरा सबसे अधिक आतंकवाद से ग्रस्त देश है। एक साल में आतंकवाद सम्बंधित मौतों में 45 प्रतिशत का इज़ाफ़ा हुआ है। आर्थिक हालत जर्जर है। उन पर 124.5 अरब डालर का क़र्ज़ है जो जीडीपी का 42 प्रतिशत बनता है। हर साल क़ीमतें 30 प्रतिशत बढ़ रहीं हैं। वह भारत से व्यापार खोलना चाहतें हैं पर हमारी सरकार तैयार नहीं। ऐसी ख़स्ता हालत में पाकिस्तान को बलूचिस्तान में गम्भीर स्थिति का सामना है। अर्थ व्यवस्था ढह रही है, लोकतंत्र कमजोर पड़ चुका है, लोगों का विश्वास ख़त्म हो रहा है। शाहबाज़ शरीफ़ की सरकार अप्रासंगिक बन रही है। जन समर्थन जेल में बंद इमरान खान के साथ है। बलूचिस्तान में यह बग़ावत पाकिस्तान के अस्तित्व के लिए गम्भीर ख़तरा है। जाफ़र एक्सप्रेस का हाइजैक बताता है कि खुद पाकिस्तान की ट्रेन पटरी से उतर सकती है।

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Chander Mohan is the grandson of the legendary editor of Pratap, Mahashya Krishan. He is the son of the famous freedom fighter and editor, Virendra. He is the Chief Editor of ‘Vir Pratap’ which is the oldest hindi newspaper of north west india. His editorial inputs on national, international, regional and local issues are widely read.