9 सितंबर को होशियारपुर के एक गाँव में एक प्रवासी मज़दूर द्वारा अपहरण के बाद दुष्कर्म कर पाँच वर्ष के बच्चे की निर्मम हत्या की पंजाब में बहुत तीखी प्रतिक्रिया हुई है। लोग इस कुकृत्य से भारी आक्रोष में हैं। उत्तर प्रदेश और बिहार से आए प्रवासियों के खिलाफ एक प्रकार से बैकलैश शुरू हो गया है। कई लोग माँग कर रहें हैं कि इन्हें वापिस भेज दिया जाए। ग़ुस्सा ऐसा है कि कुछ प्रवासी अपनी सुरक्षा के बारे चिन्तित है और वापिस जाने के बारे सोच रहे हैं। होशियारपुर की वीभत्स घटना के बाद पंजाब के कई हिस्सों में प्रवासियों के खिलाफ स्पष्ट ग़ुस्सा नज़र आ रहा है। होशियारपुर और उसके आसपास की 20 पंचायतों ने प्रवासियों के खिलाफ प्रस्ताव पास किया है। और भी कई पंचायतों ने प्रस्ताव पास किया है कि वह प्रवासियों के वोट रद्द करवाएँगे और नए आधार कार्ड नहीं बनने देंगे। उनकी तम्बाकू-गुटका खाने की आदत का भी विरोध किया जा रहा है। कई तो अब इन को गाँवों से निकलने की धमकी दे रहें हैं। यह भी कहा जा रहा है कि गाँवों में इन्हें मकान और ज़मीन नहीं ख़रीदने देंगे। पंजाब में मुस्लिम प्रवासियों की बढ़ती संख्या से भी कुछ लोग चिन्तित हैं।
यह शिकायत भी है कि प्रवासियों की बढ़ती संख्या से पंजाब की डैमोग्रैफी (जनसंख्या का अनुपात) बिगड़ रहा है। पंजाब में 1966 में सिख 61% थे जो 2011 में घट कर 57.7% रह गए हैं। पर इसका कारण प्रवासियों का आगमन ही नहीं। बड़ी संख्या में पंजाबी यूथ अपनी धरती छोड़ विदेश भाग रहें है। यह स्वभाविक भी है। मानव सभ्यता में प्रवासन सदियों से चलता आरहा है। लोग उस तरफ़ भागते हैं जिस तरफ़ उन्हें बेहतर सम्भावना और मौक़े दिखाई देतें है। पंजाब से गए सिखों ने तराई के क्षेत्र को अपनी मेहनत से बसा दिया था। 2011 की जनसंख्या के अनुसार पंजाब की जनसंख्या 27 करोड़ थी। कुछ परिवर्तन आया होगा पर 18 लाख प्रवासी डैमोग्रौफी को कोई बड़ा ख़तरा नहीं है। लुधियाना में सब से अधिक 8 लाख प्रवासी रहतें हैं जिनके बल पर वहाँ के कारख़ाने चलतें हैं। बहुत प्रवासी मौसमी है जो फसल के अनुसार आते जाते हैं। अधिकतर के पास रिहायश नहीं है पर बहुत है जो पीढ़ियों से यहाँ बस चुकें हैं। जायदाद है, और उनके बच्चे पंजाबी बन चुकें हैं।
जो शिकायतें हम पश्चिम के देशों में अपने लोगों के बारे सुनते हैं कि वह स्थानीय लोगों का रोज़गार छीन रहें हैं वह पंजाब में प्रवासियों के बारे भी सुनने को मिल रही है। इस कारण कुछ ईर्ष्या भी है। पर यह नियंत्रण में रहती है क्योंकि पंजाब को इनकी ज़रूरत है। यह कारख़ानों, खेतों,दुकानों और घरों में काम करते है। पंजाब का अपना नौजवान यह काम करने को तैयार नहीं। उसकी नज़रें विदेश पर लगी रहती हैं जहां अब एक के बाद एक दरवाज़े बंद हो रहें है। अर्थात् प्रवासी उस वक़्त पंजाब की मजबूरी हैं। कुछ दशक पहले तक हिमाचल प्रदेश से बहुत लोग रोज़गार के लिए यहाँ आते थे। अब यह बंद हो गए हैं क्योंकि वहाँ रोज़गार मिलना शुरू हो गया है। इन लोगों के बारे ऐसी घटिया शिकायतें भी सुनने को नहीं मिलतीं थी क्योंकि पहाड़ के लोग मैदानी से अधिक शरीफ़ समझे जाते हैं पर अब कुछ हवा लग रही है। अब तो नेपाल से बहुत प्रवासी पंजाब आ रहें हैं। जालंधर से ही नेपाल बार्डर तक नियमित बस सेवा है। लुधियाना से और अधिक बसें चलती है।
पर मैं प्रवासियों के बहिष्कार के अभियान की बात कर रहा था। इस अभियान से सरकार, किसान और कारख़ानेदार सब चिन्तित है। मुख्यमंत्री भगवंत मान ने हत्या की निंदा करते हुए कहा है कि, “देश में कोई भी कहीं काम कर सकता है”। उनकी बात सही है। पंजाबी खुद प्रगतिशील होने का कारण देश विदेश में बसें हुए है। कई प्रदेशों में पंजाबी जन प्रतिनिधि बन चुकें है। वहाँ उनके आधार कार्ड भी हैं और वोट पहचान पत्र भी। अगर यहां बिहार और उत्तर प्रदेश के प्रवासियों के खिलाफ अभियान चलेगा तो इसकी प्रतिक्रिया दूसरे प्रदेशों में भी हो सकती है। किसी को भी देश में कहीं भी बसने और काम करने का संवैधानिक अधिकार है। केवल अपराध करने का अधिकार नहीं है।
कुछ साल पहले ऐसा ही अभियान दिल्ली में उत्तर पूर्व से आए लोगों के खिलाफ चला था। लौटने के लिए उन्होंने तो दिल्ली के स्टेशन भर दिए थे। यह घटना फ़रवरी 2014 की है जब दिल्ली के मुनीरका में उत्तर पूर्व की एक महिला से बदसलूकी के बाद दो गुटों में टकराव हो गया था। इससे पुराने पूर्वाग्रह सतह पर आ गए। स्थानीय लोग पूर्व के लोगों को ‘चिनकी’ कहने लगे और उनके रहन सहन और खान पीन पर आपत्ति शुरू हो गई थी। मकान मालिकों ने इन्हें मकान ख़ाली करने को कह दिया था।सोशल मीडिया पर इनके खिलाफ अभियान चलाया गया जैसे आज पंजाब में प्रवासियों के विरूद्ध चलाया जा रहा है। आख़िर में सरकार को दखल देना पड़ा और समझ आ गई कि उत्तर पूर्व के लोगों के बिना काम नहीं चलता।
ऐसा ही आभास अब पंजाब में भी हो रहा है। खन्ना मंडी के कमिशन एजेंट हरबंस सिंह रोशा का कहना है कि, “इन्हां तो बिना पंजाब दी गड्डी नही चलदी”। वहाँ हज़ारों काम करतें हैं। उद्योगपति अपनी जगह चिन्तित हैं। उद्योगपति बादिश जिंदल ने मुख्यमंत्री को पत्र लिख कर प्रवासियों के खिलाफ प्रचार को रोकने की माँग की है। उनका कहना था कि “प्रदेश की अर्थव्यवस्था इनके कारण तरक़्क़ी कर रही है”।उनकी चिन्ता स्वभाविक है। किसी भी कारख़ाने में 90 प्रतिशत लेबर बाहर से है। ज़मींदार अपनी जगह चिन्तित है क्योंकि प्रवासियों के बिना खेती नहीं हो सकती। विशेष तौर पर धान की रोपाई इनके बिना नहीं हो सकती। ज़मींदार और कारखानेदार इनकी क़ीमत जानते हैं इसीलिए इन्हें पूरी सुरक्षा देते हैं। कई इन्हें आवास देते हैं। कई तो पीढ़ियों से यहां है। वह बराबर के पंजाबी है। ट्रिब्यून अख़बार में उद्योगपति टीआर मिश्रा ने बताया है कि वह 60 साल पहले यहाँ आए थे और यहाँ बस गए। वह कहतें है, “मैं इस बात का प्रमाण हूँ कि पंजाब के समाज ने मुझे स्वीकार किया”। यह संतोष की बात है कि कई किसान जत्थेबंदियां, लेबर यूनियन, बुद्धिजीवी,लेखक, पत्रकार सब अपील कर रहें हैं कि प्रवासियों के खिलाफ नफ़रत भरे अभियान को रोका जाए। सोशल मीडिया पर प्रवासियों के खिलाफ अभियान देखने के बाद आनंदपुर साहिब की म्यूनिसिपल कौंसिल के प्रधान हरजीत सिंह जीता ने उन्हें बाहर निकालने के विरूद्ध पुलिस में बाक़ायदा शिकायत दर्ज करवाई है। उनका कहना है कि ऐसा सिख परम्परा के विरूद्ध है और इससे पंजाब में साम्प्रदायिक तनाव पैदा हो सकता है। उनका कहना है कि गुरुद्वारे सब के सांझें है “और अगर मैं पटना साहिब माथा टेकने जा सकता हूँ तो दूसरी जगह से श्रद्धालु आनंदपुर साहिब भी आ सकतें हैं”।
यह पंजाबियत की भावना है जो स्वाभाविक भी है, क्योंकि यह गुरुओं की धरती है जिन्होंने किसी भी तरह के भेदभाव के खिलाफ आवाज़ उठाई थी। प्रवासी विरोधी अभियान पंजाब के उदार चरित्र के खिलाफ है। इसे तत्काल बंद करना चाहिए। बिहार में पटना साहिब से विशेष रिश्ता है क्योंकि गुरू गोबिन्द सिंह की जन्मस्थली है। हम बिहारी को कैसे निकाल सकते हैं? पर डर का माहौल ऐसा बनाया जा रहा है कि कुछ वापिस जाने के लिए तैयार है। यह केवल उन्हीं का दुर्भाग्य नहीं होगा, पंजाब का भी दुर्भाग्य होगा। एक मानसिक तौर पर अस्वस्थ व्यक्ति की घिनौनी हरकत के लिए सारे समुदाय को सूली पर लटकाना सही नहीं होगा। काली भेड़ें सब के पास है। पंजाबियों में भी है। हम तो बड़े बड़े गैंगस्टर पैदा कर रहें हैं। जो सलूक विदेशों में हमारे लोगों के साथ किया जा रहा है वैसा हमें अपने लोगों के साथ नहीं करना चाहिए। जो उस व्यक्ति ने किया वह माफ़ नहीं होना चाहिए। आशा है सरकार और पुलिस जल्द से जलद उचित सजा देगी ताकि एक मिसाल क़ायम हो सके।
पर यह भी नहीं भूलना चाहिए कि प्रवासियों का बड़ा वर्ग पूरी ईमानदारी से अपनी ड्यूटी निभाता है। बड़े ज़मींदार एच.एस. ढिलों ने मुझे बताया कि उनके पास नेपाल से आए परिवार की तीसरी पीढ़ी काम कर रही है। कभी कोई शिकायत नहीं उठी। मेरे अपने पास प्रवासी काम करते है। बड़ी अच्छी तरह काम करते हैं। कई पंजाबी तो रखवाली के लिए प्रवासियों के हवाले मकान जायदाद छोड़ कर विदेश चलें गए हैं।
मुझे आशा है कि आख़िर में भाईचारा और पंजाबियत की भावना प्रबल रहेगी। पंजाब में पहले ही बहुत चुनौतियाँ है। बाढ़ ने हालत और ख़राब कर दी है। अब यह नया संकट नहीं खड़ा करना चाहिए। हमें समाजिक और आर्थिक अस्थिरता नही चाहिए। बिहार में होने वाले चुनावों के कारण भी मामला भड़काया जा सकता है। यह सब लिखने के बाद यह ज़रूर कहना चाहूँगा कि जो बाहर से आते हैं उन पर कुछ नज़र ज़रूर रखी जानी चाहिए। पुलिस को सक्रिय होना पड़ेगा ताकि अपराधी क़िस्म के लोग प्रवेश न पा सके। अनियंत्रित प्रवेश कई बार समस्या खड़ी कर सकता है। जैसे होशियारपुर के गाँव में हो कर हटा है।