
सर्वेक्षण पर विलाप
चुनाव आयोग को जनमत सर्वेक्षण पर पाबंदी लगाने की सिफारिश कर कांग्रेस पार्टी ने अपनी असुरक्षा की भावना को ही प्रकट किया। इसी पार्टी ने कर्नाटक में चुनाव से पहले सर्वेक्षण का स्वागत किया था क्योंकि इसमें पार्टी की जीत की भविष्यवाणी की गई थी, और पार्टी आसानी से यह चुनाव जीत भी गई। पर आजकल क्योंकि सभी सर्वेक्षण बता रहे हैं कि आने वाले मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ तथा दिल्ली के चुनावों में पार्टी की हालत खराब है इसलिए पार्टी ने सर्वेक्षणों पर पाबंदी की वकालत की है। और यह पहली बार नहीं कि कांग्रेस को मीडिया के साथ समस्या आई हो। दिसंबर 2011 में सूचना तथा प्रसारण मंत्रालय ने फेसबुक, गुगल तथा यू-ट्यूब को चेतावनी दी थी कि कांग्रेस के नेता के खिलाफ ‘आपत्तिजनक सामग्री’ के प्रसारण को लेकर उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई हो सकती है। यह सही है कि कई बार बहुत आपत्तिजनक तथा अश्लील सामग्री अपलोड की जाती है लेकिन आजकल के युग में तो इसे बर्दाश्त ही करना पड़ेगा। मंत्रालय ने फिर मीडिया की आलोचना की कि 15 अगस्त को लालकिले से प्रधानमंत्री के भाषण की तुलना उसी दिन नरेंद्र मोदी के भाषण से कर प्रधानमंत्री के पद की अवमानना की गई है। ऐसी ही शिकायती प्रवृत्ति अब जनमत सर्वेक्षण के बारे नज़र आ रही है। दिग्विजय सिंह का कहना है कि ये सर्वेक्षण एक तमाशा बन गए हैं। कोई भी पैसा देकर अपने मुताबिक सर्वेक्षण प्राप्त कर सकता है।
इसमें कोई शक नहीं कि अभी सर्वेक्षण का विज्ञान यहां पूरी तरह से विकसित नहीं हुआ। 2004 में सब सर्वेक्षण एनडीए की भारी जीत की भविष्यवाणी कर रहे थे जबकि जीत यूपीए की हो गई। अर्थात् जरूरी नहीं कि सर्वेक्षण पूरी तरह से सही साबित हो। यह पूरी तरह से विश्वसनीय भी नहीं है। कई बार पैसे देकर सर्वेक्षण प्राप्त करने की भी चर्चा है। दल की स्थिति को ध्यान में रख कर सर्वेक्षण तैयार किए जा चुके हैं। सर्वेक्षण का साम्पल भी छोटा होता है। कुछ हज़ार लोगों की राय जान कर करोड़ों लोगों के फैसले के बारे निष्कर्ष निकालना भी जायज़ नहीं है। भारत में दुनिया भर की भिन्नता है लोग एक जैसा नहीं सोचते। अर्थात् जनमत सर्वेक्षण को सही बनाने के लिए अभी और मेहनत करने की जरूरत है। अरुण जेतली ने भी स्वीकार किया है कि अभी यह विकसित हो रहा विज्ञान है। यह जरूरी है कि सर्वेक्षण करने वाले लोग अपनी विधि के बारे पूरी जानकारी सामने रखें लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि इस पर पाबंदी ही लगा दी जाए। और यह भी नहीं कि वोटर सर्वेक्षण देख कर ही वोट करते हैं। आखिर 2004 के सर्वेक्षणों के बावजूद एनडीए को लोगों ने सत्ता से निकाल दिया था। कुछ लोग जिन्होंने अपना मन नहीं बनाया अवश्य प्रभावित हो सकते हैं लेकिन यह प्रमाण नहीं कि जनता सर्वेक्षण को देख कर मतदान करती है।
आखिर में यह मामला अभिव्यक्ति की आज़ादी से जुड़ा हुआ हैं। अगर सर्वेक्षण पर पाबंदी लगाई जा सकती है तो अगला कदम राजनीतिक टिप्पणी या बहस पर भी पाबंदी लगाने का हो सकता है। जो हारने की स्थिति में है वह अभिव्यक्ति की आज़ादी के नियम बदलने का प्रयास करेंगे। आजकल टीवी पर खूब बहस होती है जिसे लोग दिलचस्पी से सुनते हैं। साफ नज़र आता है कि कई टिप्पणीकार एक विशेष पार्टी का पक्ष ले रहे हैं स्वतंत्र विचार व्यक्त नहीं कर रहे। लेकिन यह लोकतंत्र है, हमारा संविधान अपनी बात कहने की इज़ाज़त देते हैं, वह सही हो या गलत। लोग इतने अपरिपक्व नहीं हैं कि समझ न सकें कि कौन सही बोल रहा है और कौन गुमराह करने का प्रयास कर रहा है? यही स्थिति इन सर्वेक्षणों के बारे हैं। यह अभिव्यक्ति की आज़ादी तथा सूचना के अधिकार का हिस्सा है। अगर यह सर्वेक्षण गलत निकलेंगे तो लोग भविष्य में इन्हें देखना ही बंद कर देंगे।
कांग्रेस की यह दखल उनके लिए गलत समय में आई हैं। प्रभाव यह मिलता है कि क्योंकि पार्टी हार रही है इसलिए बौखलाहट में यह पाबंदी चाहती हैं। सभी सर्वेक्षण इस वक्त बता रहें हैं कि लोकप्रियता में नरेंद्र मोदी राहुल गांधी से बहुत आगे हैं। भाजपा की स्थिति हर प्रांत में कांग्रेस से बेहतर है। कांग्रेस यह चाहती है कि 2014 के आम चुनाव से पहले यह सर्वेक्षण बंद हो जाएं। अर्थात् इस वक्त पार्टी में बेचैनी है जिसके कारण ऐसी मांग की जा रही है जिसे लोग पसंद नहीं करेंगे। वैसे भी इन पर पाबंदी से ज़मीनी स्थिति तो बदलेगी नहीं। पार्टी यह तो मांग कर सकती है कि यह सर्वेक्षण अधिक तार्किक और विश्वसनीय बनाएं जाएं पर इन पर पाबंदी की मांग जायज़ नहीं। आशा है कि चुनाव आयोग इनके दबाव में नहीं आएगा क्योंकि आज का भारत अभिव्यक्ति पर किसी भी तरह की पाबंदी को पसंद नहीं करेगा। और बेहतर होगा कि संदेशवाहक पर रोक लगाने की जगह कांग्रेस पार्टी संदेश सुधारने का प्रयास करे।
सर्वेक्षण पर विलाप,
very rightly said sir…Congress and many smaller parties have written to the Election Commission in favour of banning opinion polls in a reply to a query. The recent opinion poll predictions may not be very melodious to some political parties especially congressas they are going against them. There are also serious concerns about the impartiality and authenticity of some poll predictions. However, we need not forget that freedom of political opinion, its expression is the heart of democracy, and we need not crush it for political gains or losses.