नरेंद्र भाई मोदी तथा जशोदाबेन
डूबते को तिनके का सहारा मिल गया! नरेंद्र मोदी के खिलाफ कांग्रेस के सभी हमले निष्प्रभावी निकलने के बाद अब पार्टी ने आधी शताब्दी पहले जशोदाबेन के साथ उनकी शादी का मामला जोर-शोर से उठा लिया है। जम्मू में राहुल गांधी ने इसका ज़िक्र किया तो कपिल सिब्बल कांग्रेस के प्रतिनिधिमंडल को लेकर चुनाव आयोग में शिकायत करने पहुंच गए। 2001, 2002, 2007 और 2012 के चुनाव में नामांकन पत्र दाखिल करते वक्त नरेंद्र मोदी ने अपने विवाहिक स्तर के बारे कुछ नहीं भरा था। अर्थात् एक प्रकार से न इंकार किया और न ही पुष्टि की थी कि वे विवाहित हैं। लेकिन क्योंकि इस बार सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया है कि आवेदन में कुछ भी खाली न छोड़ा जाए इसलिए पत्नी के सामने नरेंद्र मोदी ने जशोदाबेन का नाम भर दिया। यह तो बहुत समय से मालूम था कि नरेंद्र मोदी की शादी उस वक्त हुई थी जब वे अवयस्क थे। गृहस्थी की तरफ उनका झुकाव नहीं था इसलिए घर बार और पत्नी को छोड़ गए थे। एम वी कामथ तथा कालिंदी रणदेरी ने मोदी पर लिखी अपनी किताब में उनकी माता हीराबा का वर्णन किया है कि ‘नरेंद्र खुशी से अध्यात्म में लगा हुआ था और साधु संतों से मिलता रहता था। हम यह देख रहे थे कि हर दिन यह प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। हमें यह घबराहट थी कि एक दिन नरेंद्र घर बार संसार छोड़ कर भाग जाएंगे। नरेंद्र गृहस्थाश्रम में दिलचस्पी नहीं रखता था।’ स्कूल के बाद उनके हिमालय चले जाने की भी चर्चा है। मां-बाप की गलती है कि ऐसे व्यक्ति का उन्होंने विवाह करवा दिया। 1993 में गुजराती पत्रिका ‘अभियान’ में मोदी के अपूर्ण विवाह का वर्णन है। एक और लेखक निलंजन मुखोपाध्याय ने मोदी की जीवनी में जशोदाबेन के साथ उनके विवाह तथा उसके बाद उनके साथ न रहने के निर्णय तथा इसी के साथ शादी पर पर्दा डालने का प्रयास का ज़िक्र किया है। लेखक के अनुसार मोदी दोनों जनता तथा संघ परिवार से मामला छिपाना चाहते थे।
इस सारे मामले को 1960 के प्रसंग में देखना चाहिए। जब मोदी जवान हो रहे थे तो देश के कई हिस्सों में चाईल्ड मैरिज अर्थात् बच्चों की शादी आम थी। मोदी को भी जब तक समझ आई तो मालूम पड़ा कि उनकी मंगनी हो चुकी है। लेकिन उनकी मनोवृत्ति दूसरी थी, वे भ्रमण करना चाहते थे। संघ के प्रचारक के तौर पर भी वे विवाह नहीं कर सकते थे। इसलिए इस तथ्य को छिपाने का प्रयास किया गया। नरेंद्र मोदी अपनी जगह सही हैं। उनकी मर्जी के विरुद्ध उनका विवाह कर दिया गया जबकि वे इस झंझट में नहीं पड़ना चाहते थे। उन्होंने हाल में कहा भी है कि मैं भ्रष्टाचार क्यों करूंगा? मेरे तो आगे पीछे कोई नहीं है? लेकिन इसके दो परिणाम अब निकल आए हैं। एक कांग्रेस को उन पर हमला करने का मौका मिल गया। कहा जा रहा है कि वह महिलाओं की रक्षा कैसे करेगा जो अपनी पत्नी को इज्ज़त नहीं दे सका? दूसरा, मामला जशोदाबेन तथा उनकी ज़िन्दगी से संबंधित है। मोदी ने न उन्हें स्वीकार किया है न उन्हें आज़ाद ही किया। लगभग साढ़े चार दशकों से यह महिला उनकी पत्नी है लेकिन इसके अधिकार उन्हें नहीं मिले। अभी भी उनके पास चार साड़ियां हैं। लेकिन उन्होंने कोई शिकायत नहीं की। चावल खाने छोड़ दिए, नंगे पांव रहती है। प्रार्थना करती है कि नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बन जाए। जशोदाबेन ऐसी भारतीय नारी की मिसाल प्रस्तुत कर रही है जो आजकल नहीं मिलती। पूरी तरह से उपेक्षित होने के बावजूद कोई शिकायत नहीं, जिंदगी से गिला नहीं। खुद को पढ़ाया। फिर स्कूल में बच्चों को पढ़ाया, अब अपने भाईयों के पास रह रही है। अपने पति, जिसने उन्हें स्वीकार नहीं किया के लिए अपनी खुशियां कुर्बान कर दी। तलाक की अर्जी नहीं दी। प्रैस में शिकायत नहीं की। पढ़ी-लिखी है, ऐसा काम कर सकती थी। जो जिंदगी में मिला उसे खुशी से स्वीकार किया। ऐसे लोग आज कहां मिलते हैं!
चाहे विवाह नरेंद्र मोदी पर थोपा गया था लेकिन यह तो मानना पड़ेगा कि उन्होंने उस महिला के प्रति असंवेदनशीलता दिखाई है जिसकी किस्मत उनके साथ जुड़ी हुई है। मोदी चाहते तो मामले का पहले निपटारा कर सकते थे लेकिन इसके बावजूद यह मामला ऐसा नहीं जो ज्वलंत हो। यह उनका निजी मामला है जो कामकाज को प्रभावित नहीं करता। मतदाता से इसका कुछ लेना देना नहीं। कांग्रेस इसे उछाल रही है क्योंकि अभी तक सभी वार बेकार गए हैं। न ही इस मामले में झूठ ही बोला गया है। मोदी ने पहले शपथ पत्रों में यह नहीं लिखा कि वह अविवाहित हैं। और वह तथा जशोदाबेन पहले पति-पत्नी नहीं जो अलग रह रहे हैं। अगर दूसरी पार्टियों के नेताओं की निजी जिंदगी में झांका जाए तो बहुत कुछ गंदा मिल जाएगा। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने राज्यसभा का सदस्य बनते वक्त खुद को असम का नागरिक बताया। यह झूठ है। वे अमृतसर में जन्मे दिल्ली के रहने वाले हैं। एम. करुणानिधि की दो पत्नियां हैं जो अपनी-अपनी औलाद के लिए ज़ोर लगाती रहती हैं। गांधीजी तथा कस्तूरबा के रिश्ते भी संतोषजनक नहीं थे। जवाहरलाल नेहरू के कई प्रेम प्रसंग हैं जिन पर पर्दा पड़ा है। आज भी कई नेताओं की गर्लफ्रैंड हैं। जब तक उनकी निजी जिंदगी का उनके राजनीतिक या प्रशासनिक जीवन पर असर नहीं पड़ता तब तक यह मामला प्रासंगिक नहीं है। सोनिया गांधी अपनी विदेश यात्राओं के बारे जानकारी देने से इंकार करती हैं। शशि थरूर की पत्नी की मौत के बारे मीडिया ने अधिक खोज करने का प्रयास नहीं किया। यह भी नहीं कि मोदी अपनी जयदाद जशोदाबेन को ट्रांसफर करते जा रहे थे। सार्वजनिक जीवन के लिए नरेंद्र मोदी ने यह कुर्बानी दी थी। हमारा इतिहास ऐसे उदाहरणों से भरा हुआ है। याद रखना चाहिए कि बुद्ध ने भी अपनी पत्नी तथा परिवार को त्याग दिया था। सबसे प्रभावित जशोदाबेन है पर वह शिकायत नहीं कर रही।
नरेन्द्र भाई मोदी तथा जशोदाबेन,
well said & well written……..