मेरे पास बेटी है !

‘मेरे पास बेटी है!’

दीवार फिल्म का शशि कपूर का डॉयलाग उलटाते हुए आज मां कह रही है कि ‘मेरे पास बेटी है।’ मेरा अभिप्राय सोनिया गांधी के चुनाव क्षेत्र राय बरेली में उनकी बेटी प्रियंका वाड्रा द्वारा दिए गए आक्रामक तथा जज्बाती भाषणों से है। कांग्रेस का प्रथम परिवार घिरा महसूस कर रहा है। इसलिए अचानक प्रियंका को सक्रिय और आक्रामक कर दिया गया। पहले सुलतानपुर जाकर उन्होंने बिना किसी उत्तेजना के वरुण गांधी पर ‘विश्वासघात’ का आरोप मढ़ दिया और अब रायबरेली जाकर शिकायत की कि उनके परिवार को जलील किया जा रहा है। विशेष तौर पर उनके पति पर हमले किए जा रहे हैं इसलिए संदेश दे दिया कि वह ऐसे हमलों का सामना करने के लिए तैयार है। परिवार की पुरानी परंपरा है कि जब वे फंस जाते हैं तो जज़्बात का सहारा लेते हैं। सोनिया गांधी भी बार-बार अपनी ‘कुर्बानी’ को भुनाने का प्रयास कर चुकी है। राहुल ने भी प्रयास किया लेकिन वे लोगों के साथ रिश्ता कायम करने में सफल नहीं हुए इसलिए अब मुस्कराती लेकिन दृढ़ प्रियंका के द्वारा संदेश भेजा जा रहा है। विपक्ष को बताया जा रहा है कि प्रियंका में मोदी की बराबरी करने की क्षमता है। हर शब्द, हर कटाक्ष, हर वाक्य का वह बराबर जवाब दे सकती है। आखिर जनार्दन द्विवेदी ने बताया है कि बहुत पहले राजीव गांधी ने कहा था कि उनकी बेटी में राजनीति समझ है। अब परिवार बता रहा है कि प्रियंका का इस्तेमाल वर्जित नहीं है। पर यह संदेश केवल विपक्ष के लिए ही नहीं है।
यह संदेश कांग्रेसजनों के लिए भी है। परिवार 16 मई के बाद की रणनीति भी तैयार कर रहा है। अभी तक तो यही संकेत है कि कांग्रेस 1996 के अपने सबसे कमज़ोर जोड़ से भी नीचे रह सकती है। ऐसी स्थिति में गांधी परिवार की प्रासंगिकता पर सवाल उठ सकते हैं। पार्टी के अंदर पुराने नेता तथा राहुल ब्रिगेड को लेकर पहले ही दरार नज़र आ रही है। सोनिया गांधी की जीवनी लिखने वाले रशीद किदवाई ने कहा है ‘नेहरू-गांधी परिवार तथा कांग्रेस जन के बीच सौदा बिल्कुल सीधा और सपाट है। पार्टी के कार्यकर्ता अंधी भक्ति देते हैं और परिवार जबरदस्त चुनावी जीत दर्ज करवाता है। यह रिश्ता तब बदल जाता है जब यह वायदा पूरा नहीं किया जाता।’ अतीत में कांग्रेसजन बगावत कर चुके हैं। इंदिरा गांधी तथा राजीव गांधी दोनों को इसका सामना करना पड़ा था। ऐसी स्थिति से बचने के लिए भी प्रियंका को आक्रामक किया गया। उन्हें सुल्तानपुर भी सोच समझ कर भेजा गया कि जहां तक परिवार के हितों का सवाल है कोई रिश्ता मायने नहीं रखता। वह किसी से भी टक्कर लेने को तैयार है। राहुल की ‘स्टार पावर’ नहीं है। इसलिए फोक्स बेटे से हटा कर बेटी पर किया जा रहा है।
इस वक्त तो प्रयास है कि इतना कुछ बच जाए और नियंत्रण में रहे ताकि अगला चुनाव लड़ा जा सके। वे जानते हैं कि नरेंद्र मोदी दयालु तथा मेहरबान नहीं होंगे। राजस्थान की सरकार पहले ही राबर्ट वाड्रा के भूमि सौदों की जांच कर रही है। सोनिया गांधी का कहना है कि लड़ाई ‘भारतीयता’ तथा ‘हिन्दोस्तानियता’ की है जबकि असली लड़ाई परिवार 16 मई के बाद अपनी हस्ती कायम रखने की लड़ रहा है। सोनिया बता रही हैं कि मेरे पास एक और तीर है। मेरे पास बेटी है। लेकिन बेटी अपने पति के भूमि घोटालों का बोझ भी उठाए हुए है। इसलिए खुद मामला सार्वजनिक कर दिया है ताकि बाद में कह सके कि राजनीतिक बदला लिया जा रहा है। वैसे  2012 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में प्रियंका के जबरदस्त प्रचार के बावजूद रायबरेली-अमेठी के 10 विधानसभा क्षेत्रों में से कांग्रेस 8 हार गई थी। कई जगह तो तीसरे नम्बर पर रहीं। रायबरेली की सभी 5 सीटों पर पराजय देखी। परिवार जानता है कि हालात सही नही हैं इसलिए इस वक्त अंतिम हथियार को पूरा इस्तेमाल नहीं करना चाहते।  प्रियंका को अभी के लिए अमेठी-राय बरेली में ही रखा जा रहा है। विपक्ष और पक्ष दोनों को ट्रेलर दिखाया जा रहा है।
दस साल के बाद सोनिया गांधी ने अपने पुत्र राहुल के लिए अमेठी में रैली की है। इसकी जरूरत समझी गई से पता चलता है कि गांधी परिवार कितनी बड़ी चुनौती का सामना कर रहा है कि खराब सेहत के बावजूद सोनिया को प्रचार करना पड़ रहा है। पर अमेठी में जो भाषण सोनिया ने दिया वह बताता है कि कांग्रेस के प्रथम परिवार की कितनी दयनीय हालत बन गई है। उनका वहां कहना था ‘इंदिराजी अपने बेटे को लेकर अमेठी आई थी। इंदिरा जी ने अमेठी के लोगों से कहा था कि वह अपना बेटा उन्हें सौंप रही हैं ठीक इसी तरह 2004 में मैंने भी अपने बेटे राहुल को अमेठी को सौंप दिया।’ यह तो मदर इंडिया का डॉयलाग लगता है! क्या कुछ और उपलब्धि बताने को नहीं कि ऐसी भावुक अपील करने की जरूरत है? यह तो वह पुरानी बात है जब कांग्रेस इस आधार पर वोट मांगती थी कि नेहरू जी घोड़े पर सवार हो कर इधर से गुज़रे थे!
कांग्रेस की समस्या यह भी है कि सोनिया-राहुल-प्रियंका के अतिरिक्त पार्टी में नेतृत्व देने वाला कोई नहीं।  प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को इस योग्य छोड़ा ही नहीं गया। राहुल गांधी ने बहुत समय यूथ कांग्रेस को खड़ा करने में लगाया था। दावा था कि सदस्य 1.3 करोड़ हैं। दो वर्ष के बाद जब कांग्रेस को चुनाव के महाभारत में यूथ कांग्रेस की जरूरत है तो यह सेना अधिकतर गायब है। भोले बादशाह राहुल गांधी की सारी मेहनत बेकार गई।  परिवार एक बार फिर एक दूसरे पर ही आश्रित है। पर देश के सामने दूसरे मुद्दे हैं। प्रियंका की बड़ी समस्या उनके पतिदेव राबर्ट वाड्रा हैं जो सरकारी लूट के पर्यायवाची बन गए हैं। राबर्ट वाड्रा ने महज पांच साल में 1 लाख रुपए से 375 करोड़ रुपए बना लिए उससे परिवार की, विशेष तौर पर प्रियंका की, चमक फीकी पड़ गई है। वाड्रा ने जो किया वह किसी चमत्कार से कम नहीं है। मामले की सही जांच ही नहीं की गई। अशोक खेमका ने घपले के बारे जानकारी दी तो उन्हें बदल दिया गया। प्रियंका को बात करने का सलीका जरूर आता है। मां और भाई दोनों से अव्वल है। ज़मीन पर बैठी आम जनता को वह कह रही थी कि ‘आप लोगों के सामने हमारी हैसीयत नहीं है।’ क्या बढिय़ा डॉयलाग है! लेकिन पति राबर्ट वाड्रा जितनी जल्दी उनका साम्राज्य खड़ा हो गया उसकी क्या कोई दूसरी मिसाल है? राबर्ट का साम्राज्य उन्हीं प्रांतों में क्यों फला-फूला जहां कांग्रेस के मुख्यमंत्री थे?  मामला केवल कानूनी ही नहीं। मामला नैतिक है कि क्या कोई और व्यक्ति इस तरह रातों-रात रईस हो सकता है जैसे गांधी परिवार का केवल मैट्रिक पास दामाद हो सका? मामला ‘बौखलाए चूहों’ का नहीं है। सवाल तो है कि कौन सी बिल्ली दूध पी गई?
साढ़े चार दशक पहले सोनिया राजीव गांधी की मंगेतर के तौर पर भारत आई थी। उन्होंने अपनी सास तथा पति की हत्याएं देखी। कांग्रेस का कायाकल्प किया और पिछले दस साल डट कर शासन किया। इतना किया कि प्रधानमंत्री के पद को खत्म कर दिया जैसा संजय बारू की किताब में भी बार-बार बताया गया। लेकिन अब वह अपनी जिंदगी की सबसे मुश्किल राजनीतिक चुनौती का सामना कर रही है। हवा का रुख विपरीत है। इसलिए बताया जा रहा है कि मेरे पास एक और हथियार, बेटी, भी है!

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Chander Mohan is the grandson of the legendary editor of Pratap, Mahashya Krishan. He is the son of the famous freedom fighter and editor, Virendra. He is the Chief Editor of ‘Vir Pratap’ which is the oldest hindi newspaper of north west india. His editorial inputs on national, international, regional and local issues are widely read.