भारत का रत्न

भारत का रत्न

जो लोग अटलजी को नजदीक से जानते हैं वह उनकी विनम्रता, सरलता तथा सहजता से मुग्ध हुए बिना नहीं रहे। मैं बहुत नजदीकी से उन्हें जानने का दावा तो नहीं करता पर आधा दर्जन बार उन्हें निकटता से मिला हूं और हर बार मन में यह प्रभाव रहा कि ‘इतना बड़ा आदमी है पर कितना सरल है?’ यह प्रभाव देने का प्रयास नहीं कि वह हैं अटल बिहारी वाजपेयी। जब वह विपक्ष के नेता थे और उन्हें भावी प्रधानमंत्री देखा जाता था तो मेरे निमंत्रण पर एक बार जालन्धर आए थे। किसी को कोई कष्ट नहीं दिया। हरेक से घुलमिल कर बातें कीं। भाषण देने की उनकी क्षमता का कोई मुकाबला नहीं है। किसी को भी रक्षात्मक कर सकते हैं लेकिन भाषण में भी उनकी उदारता स्पष्ट नज़र आती थी। यही कारण है उन्हें भारत रत्न दिए जाने पर सभी विपक्षी नेताओं ने स्वागत किया है केवल कांग्रेस का गांधी परिवार चुप है लेकिन ऐसी संकीर्णता की तो इस परिवार से उम्मीद ही थी। कितनी अफसोस की बात है कि सचिन तेंदुलकर को अटल बिहारी वाजपेयी से पहले भारत रत्न दिया गया? उनका एक प्रसंग मुझे विशेष याद आता है। वह जालन्धर आए तो लंच एक होटल में रखा गया था। एक तरफ शांता कुमार बैठे थे तो दूसरी तरफ मैं बैठा था। भोजन के बाद जब गुलाब जामुन आए तो पहले इन्कार कर दिया। वेटर ने शांताजी और मेरे सामने रख दिए लेकिन फिर रहा नहीं गया और चुपके से मेरे सामने से गुलाब जामुन खिसका कर अपने सामने कर लिया और ऊंची आवाज में बोले, ‘अरे भाई आपने चन्द्रमोहनजी को नहीं दिया!’ ऐसी प्यारी शख्सियत है अटलजी की। जब घर आए तो पहले कहा कि कुछ लोगों को बुला लो, लेकिन क्योंकि सारा शहर उनसे मिलना चाहता था इसलिए लोग भी काफी इकट्ठे हो गए थे। जब देखा तो बोल पड़े, ‘अरे आपने तो मेला लगा लिया।’
उन्होंने लोगों के दिलों पर राज किया है। उनकी पहली गैर कांग्रेस सरकार थी जिसने अपनी अवधि पूरी की। सफलतापूर्वक गठबंधन चलाया। पोखरन में परमाणु परीक्षण करवा दुनिया में भारत का रुतबा बढ़ाया। लाहौर जाकर नवाज शरीफ के साथ समझौता किया। याद आता है फरवरी 1999 में लाहौर के गवर्नर हाउस में उनका भाषण जब दोस्ती का हाथ बढ़ाते हुए उन्होंने कहा था कि ‘आप इतिहास बदल सकते हैं, भूगौल नहीं। दोस्त बदल सकते हो, पड़ोसी नहीं।’ वहां तो ऐसा प्रभाव मिला कि जैसे सारा लाहौर ही पागल हो गया है। लोगों ने खड़े होकर मिनटों तालियां बजाई थीं। कारगिल से पाकिस्तान को खदेड़ा पर युद्ध सीमित रखा। 2001 में संसद पर हमले के बाद सीमा पर सेना के जमावड़े का हुकम दिया पर फिर अचानक पाकिस्तान से वार्ता कर नियंत्रण रेखा पर युद्धविराम करवाया जो दस वर्ष लागू रहा। अमेरिका के साथ रिश्तों में बदलाव की शुरुआत भी उनके समय हुई जब जसवंत सिंह तथा स्ट्रॉब टैलबॉट के बीच बार-बार मुलाकातें होती रहीं। अगर अगले महीने बराक ओबामा भारत आ रहे हैं तो यह उसी सिलसिले का शिखर है जो वाजपेयी के समय शुरू हुआ था। अर्थव्यवस्था को भी उनके समय भारी बढ़ावा मिला। कश्मीरी उनकी ‘इंसानियत के दायरे में’ काम करने के कथन को आज तक याद करते हैं। इसीलिए उमर अब्दुल्ला ने भी शिकायत की है कि यूपीए को राजनीति से ऊपर उठ कर उन्हें भारत रत्न देना चाहिए था लेकिन गांधी परिवार के अधीन कांग्रेस ऐसी पार्टी बन गई है कि गैर कांग्रेसी या वह नेता जो परिवार को पसंद नहीं, उन्हें सम्मानित नहीं किया गया। कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकारें केवल जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी तथा राजीव गांधी तक ही केन्द्रित रहीं जबकि एक लोकतंत्र में यह जरूरी है कि वैकल्पिक विचारधारा को बराबर सम्मान दिया जाए। आडवाणी जी ने बताया है कि उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को लिखा था कि अटलजी को भारत रत्न दिया जाए लेकिन कार्रवाई नहीं हुई। मनमोहन सिंह इसके लिए शायद आजाद नहीं थे। उनके मीडिया सलाहकार रहे अशोक टंडन ने बताया है कि कारगिल में विजय के बाद उनके साथी चाहते थे कि वाजपेयी को ‘भारत रत्न’ दिया जाए पर उन्होंने यह कहते हुए इन्कार कर दिया कि ‘क्या खुद को सम्मानित करूंगा?’ उल्लेखनीय है कि जवाहरलाल नेहरू तथा इंदिरा गांधी दोनों ने अपने-अपने प्रधानमंत्री काल में भारत रत्न लिए थे।
जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी और अटल बिहारी वाजपेयी यह तीन हैं जो इतिहास में अपनी छाप छोड़ कर गए हैं। जवाहरलाल नेहरू को हमारी पीढ़ी ने देखा नहीं लेकिन मैं खुद को बहुत सौभाग्यशाली समझता हूं कि अटलजी से कुछ बार मुलाकात का मौका मिला। क्या शख्सियत हैं! दशकों सार्वजनिक जीवन में रहे पर कोई दाग नहीं, कोई घमंड नहीं इंसानियत को कभी छोड़ा नहीं। सियासत से ऊपर हैं वह। उन्होंने बहुत सी कविताएं और लेख लिखें हैं मेरी पसंद यह पंक्तियां हैं :
मेरे प्रभु!
मुझे इतनी ऊंचाई कभी मत देना
गैरों को गले न लगा सकूं
इतनी रुखाई कभी मत देना।
ऐसे महान इंसान को सम्मानित कर देश खुद को सम्मानित कर रहा है। वह आधुनिक भारत के शिल्पकारों में हैं। उनका जीवन सदैव एक आदर्श रहेगा और दूसरों को प्रेरणा देता रहेगा कि किस ‘ऊंचाई’ तक पहुंचना है!

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About Chander Mohan 704 Articles
Chander Mohan is the grandson of the legendary editor of Pratap, Mahashya Krishan. He is the son of the famous freedom fighter and editor, Virendra. He is the Chief Editor of ‘Vir Pratap’ which is the oldest hindi newspaper of north west india. His editorial inputs on national, international, regional and local issues are widely read.