मुलजि़म नम्बर 6
ओडिशा में बिरला समूह की कम्पनी हिंडालको को तालाबीरा 2 तथा 3 ब्लाक अलॉट करने के मामले में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को आरोपी बनाते हुए सीबीआई की अदालत ने उन्हें समन जारी किए हैं। इस मामले में वह मुलजि़म नम्बर 6 होंगे। भ्रष्टाचार निरोधक अदालत ने अपने 75 पृष्ठ के आदेश में लिखा है कि प्रथम दृष्टया यह प्रमाण हैं कि मनमोहन सिंह उस साजिश का हिस्सा थे जिसमें सरकारी कम्पनी नेवेली से छीन कर कोयला ब्लाक हिंडालको को सौंप दिया गया जिससे नेवेली ओडिशा में अपना पावर प्लांट कायम करने में असफल रही और हिंडालको को बहुत फायदा हुआ। उनके अलावा और भी लोग अपराधी बनाए गए हैं जिनमें कुमार मंगलम बिरला तथा पूर्व कोयला सचिव पीसी पारेख भी शामिल हैं। अगर इन्हें दोषी पाया जाता है तो उम्र कैद की सजा मिल सकती है। मामला अत्यंत गंभीर है। 2जी घपले के बारे उनका तर्क था कि प्रधानमंत्री रहते वह हर फाइल को नहीं देख सकते। अदालत ने यह बात स्वीकार की थी लेकिन इस मामले में तो कोयला मंत्री वह खुद थे।
देश के इतिहास में मनमोहन सिंह दूसरे प्रधानमंत्री हैं जो आरोपी बनाए गए हैं। इससे पहले उनके राजनीतिक गुरू पीवी नरसिम्हा राव को जेएमएस सांसदों की खरीद फरोख्त के मामले में आरोपी बनाया गया था। उन पर भी प्रधानमंत्री के पद से हटने के बाद आरोप पत्र दाखिल किया गया था लेकिन वह बेदाग बरी हो गए थे। अब मनमोहन सिंह भी फंस गए हैं। उनकी बेदाग छवि पर कोयले की कालिख लग गई है। कांग्रेस उनका बचाव कर रही है। सोनिया गांधी ने वीरवार को कांग्रेस के 100 नेताओं के साथ मनमोहन सिंह के निवास तक मार्च कर उनके साथ एकजुटता प्रकट की। जो समर्थन उन्हें प्रधानमंत्री रहते नहीं मिला वह अब दिया जा रहा है लेकिन आदेश अदालत का है। सोनिया गांधी का कहना है कि मनमोहन सिंह की लड़ाई केवल कानूनी ढंग से ही नहीं बल्कि हर प्रकार के साधन जो हमारे पास हैं, लड़ी जाएगी। इसका मतलब क्या है? क्या अदालत के समन का सामना न्यायिक प्रक्रिया के अलावा भी हो सकता है? या कांग्रेस मनमोहन सिंह की ईमानदार छवि के पीछे छिप कर खुद को यूपीए के समय के महाघोटालों से बचाना चाहती है? आखिर संजय बारू अपनी किताब में लिख चुके हैं कि मनमोहन सिंह ने माना था कि वास्तव में सत्ता का केन्द्र 10 जनपथ है। और यह तो सब स्वीकार करेंगे कि घोटाला तो हुआ है। कहा जा रहा है कि मनमोहन सिंह की ईमानदारी के बारे सब को पता है लेकिन ऐसी ईमानदारी का देश को क्या फायदा जिसके पीछे लाखों करोड़ों रुपए के महाघोटाले हुए? जैसे कहा गया,
तेरे रहते ही लुटा है चमन बागवां,
कैसे मान लूं कि तेरा इशारा नहीं था
अगर मनमोहन सिंह व्यक्तिगत तौर पर संलिप्त नहीं थे और उन्हें दूसरों के पापों की सजा मिल रही है तो यह तो पता चलना चाहिए कि उन्होंने नियमों को ताक पर रख पारदर्शिता का गला घोंटते हुए जो फैसले लिए जिनसे देश का इतना बड़ा नुकसान हुआ, वह क्यों लिए? क्या ऐसा किसी राजनीतिक मजबूरी में किया गया या और कारण थे? आखिर में तो वह ही जिम्मेवार है जिसने कलम चलाई थी।
मनमोहन सिंह यह भी नहीं कह सकते कि उन्हें मालूम नहीं था कि क्या हो रहा है। उनके बारे तो मशहूर है कि वह हर फाइल तथा हर नोटिंग पढ़ते हैं। जब आरोप लग रहे थे तो उन्होंने चुप्पी इख्तियार कर ली थी पर एक न एक दिन तो जवाब देना ही पड़ता है। मनमोहन सिंह वह शख्स हैं जिन्होंने हमारी अर्थव्यवस्था की दिशा बदल दी और हमें एक उभरती हुई आर्थिक महाशक्ति बनने की दिशा में चला दिया। अगर अब माना जा रहा है कि अमेरिका तथा चीन के बाद भारत तीसरी आर्थिक महाशक्ति बनने वाली है तो काफी श्रेय मनमोहन सिंह को भी जाता है लेकिन उन्होंने कई समझौते भी किए। किसी के कहने पर किए या खुद किए, यह कहा नहीं जा सकता पर उनकी ईमानदार छवि खंडित होती नज़र आ रही है। उस वक्त भी सीएजी ने कहा था कि जिस मनमाने ढंग से कोयला ब्लाक बांटे गए उससे खजाने को 1.86 लाख करोड़ रुपए का नुकसान हुआ था। एनडीए सरकार ने कोयला ब्लाक की नीलामी शुरू कर दी है जिससे अतिरिक्त 3 लाख करोड़ रुपए मिलेंगे। जिस तरह प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन यूपीए सरकार ने किया था और जिस तरह अब एनडीए सरकार कर रही है उसमें जमीन आसमान का फर्क है। अगर ऐसी पारदर्शिता पहले अपनाई जाती तो यह दिन न देखना पड़ता। यह केवल मनमोहन सिंह की ही त्रासदी नहीं बल्कि इस देश की भी त्रासदी है कि प्राकृतिक संसाधनों का किस तरह कुछ विशेष लोगों के हित में नाजायज़ दोहन होता रहा और जो चौकीदार था उसने ही माल लुटा दिया।