फिर दोराहे पर पंजाब
पंजाब में फिर अराजक हालात पैदा हो रहे हैं। 1 जून को चोरी की गई श्री गुरू ग्रंथ साहिब की पवित्र बीड़ के पन्ने साढ़े पांच महीने के बाद कोटकपूरा के बरगाड़ी गांव में बिखरे पाए गए। साफ है कि एक बार फिर पंजाब की फिजा खराब करने की साजिश हो रही है क्योंकि उसके बाद कई जगह से ऐसी ही बेअदबी के और समाचार मिले हैं। ऐसा प्रयास देश के अंदर से हो रहा है या कोई विदेशी एजेंसी पंजाब का 1980 के दशक का इतिहास दोहराने की कोशिश कर रही है, कहा नहीं जा सकता लेकिन यह तो साफ है कि इस गंभीर उत्तेजना से सरकार सही तरीके से नहीं निपटी। पुलिस पांच महीने में दोषी को नहीं पकड़ सकी। इस बीच ‘विनाश काले विपरीत बुद्धि’ के सिद्धांत को सिद्ध करते हुए पुलिस ने इस घटना के विरोध में शांतमय प्रदर्शन कर रहे सिखों पर गोली चला दी जिसमें 2 व्यक्ति मारे गए।
सरकार के पास इस बात का जवाब नहीं है कि जब डेरा सच्चा सौदा के प्रेमियों ने एक फिल्म को लेकर एक दिन के लिए रेल रोकी थी या जब किसानों ने अपनी मांगों को लेकर एक सप्ताह रेलें ठप्प रखी थीं तब उसने संयम क्यों रखा और अब शांतमय प्रदर्शन कर रहे सिखों पर गोली क्यों चलाई? डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख को पहले दी माफी, श्री गुरू ग्रंथ साहिब की बेअदबी और अब इस फायरिंग ने ऐसी हालत बना दी है जो कभी भी बेकाबू हो सकती है। पंजाब बंद के दौरान सिख युवकों ने नंगी तलवारों के साथ प्रदर्शन किया और दुकानें जबरन बंद करवाईं। जालंधर में पहला साम्प्रदायिक टकराव हो चुका है। अमृतसर तथा तरनतारन में नंगी तलवारों से लैस प्रदर्शनकारियों तथा दुकानदारों में भी टकराव हो चुका है। यह सब कुछ हम पहले भी देख चुके हैं इसलिए घबराहट होती है। फिर कई जगह खालिस्तान के नारे लगाए गए। धरने देकर सारा पंजाब ठप्प कर दिया गया है लेकिन यह धरने हैं किसके खिलाफ? त्यौहार के दिनों में बाजार क्यों बंद करवाए जा रहे हैं? शहरवासियों को नंगी तलवारों से क्यों धमकाया जा रहा है? सरकार गायब नजर आती है। भाग खड़ी हुई है। मुख्यमंत्री बादल केवल अपीलें कर खानापूर्ति कर रहे हैं। सड़कों पर सरकार नजर नहीं आती। जो पुलिस मौजूद है उसे आदेश है कि वह चुपचाप तमाशा देखती रहे। ऊपर से खेती का संकट ₹िवशाल है। सरकार इससे निपट नहीं सकी जिसके कारण देहात में असंतोष बढ़ रहा है और सरकार विरोधियों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है। जमीन पर जैसी सरकार दी जा रही है उसके खिलाफ भी नाराजगी है जिसका विस्फोट हो रहा है।
ऐसा आभास होता है कि मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के नियंत्रण से स्थिति बाहर हो रही है। उन्होंने सभी पंथक संस्थाओं जैसे अकाली दल, शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी तथा अकाल तख्त को हथिया लिया है जिसका परिणाम यह है कि वह इतनी कमजोर हो गई हैं कि संकट के समय काम नहीं आ रही हैं। पंजाब में वन मैन शो बन गया है या यूं कहिए कि टू मैंन शो बन गया है, बाकी सब अप्रासंगिक हो गए हैं। सारी सत्ता बादल परिवार ने अपने हाथों समेट ली है इसलिए जिम्मेवारी भी उनकी बनती है। इस बीच अकाल तख्त के यू-टर्न ने अजब स्थिति बना दी है। अगर डेरा सच्चा सौदा वाला निर्णय खुले में लिया जाता तो सौदेबाजी की शिकायत न होती। अब यह एहसास फैल गया है कि जो भी निर्णय लिए जाते हैं वह बादल परिवार के राजनीतिक हित के अनुसार लिए जाते हैं। लेकिन चिंता इसकी नहीं, चिंता अशांत पंजाब की है।
जब राजनीति के लिए धर्म का दुरुपयोग किया जाता है तो वही होता है जो आज पंजाब में हो रहा है। अकाली दल और विशेष तौर पर बादल परिवार ने अपनी राजनीति के कारण पंथ और उसकी संस्थाओं का दुरुपयोग किया है। इस बार यह इतना उलटा पड़ा कि अकाली दल, अकाल तख्त, शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी तथा खुद बादल परिवार गंभीर संकट में फंस गए हैं। इनके साथ पंजाब भी संकट में फंस गया है। डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख गुरमीत राम रहीम को ‘माफीनामा’ का समर्थन अकाली दल तथा शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने भी खूब किया। अखबारों में विज्ञापन निकाल कर इसे जायज़ ठहराया गया पर जब देखा कि सिख संगत में इसे लेकर व्यापक रोष है तो यू-टर्न लेते हुए 23 दिन में अपना ही ‘माफीनामा’ वापिस ले लिया। हालत तो यह बन गई थी कि पांचों जत्थेदारों ने घर से बाहर निकलना बंद कर दिया था। डेरा सच्चा सौदा के साथ जो सौदा हुआ था वह शुद्ध राजनीतिक था। विधानसभा चुनाव से पहले प्रयास था कि डेरे के मत अकाली दल तथा भाजपा को पड़ जाएं। पंजाब के 117 विधानसभा क्षेत्रों में से 60 में डेरा के औसतन 10,000 वोट हैं। पर अब शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी में भी बगावत शुरू हो गई थी। सिखों का रोष देखते हुए सदस्यों ने इस्तीफे देना शुरू कर दिया था।
अब तो हालात यह बन रहे हैं कि लगता है कि नेतृत्व का प्रशासन तथा सिख संस्थाओं दोनों पर नियंत्रण कमजोर होता जा रहा है। शिकायतें तो पहले भी थीं। ड्रग्स तथा रेत तस्करी को लेकर अकाली नेतृत्व पर उंगली उठ रही थी लेकिन असली पतन मई 2015 से शुरू हुआ जब आर्बिट कम्पनी की चलती बस से एक मां तथा बेटी को धकेल दिया गया। लड़की की तत्काल मौत हो गई और उसके बाद आंदोलनों का सिलसिला शुरू हो गया। अकाली नेतृत्व को कभी भी इस तरह घबराए नहीं देखा जिस तरह आज नज़र आ रहा है। अधिकतर नेता घरों में दुबके बैठे हुए हैं। किसी के पास इस बात का जवाब नहीं कि गुरमीत राम रहीम को दोषी ठहराना सही था या माफी देना सही था या फिर माफी वापिस लेना सही था? और अब श्रीगुरू ग्रंथ साहिब की बेअदबी ने जलती आग में घी डाल दिया है। श्रीगुरू ग्रंथ साहिब की बेअदबी के दोष में दो ग्रंथी तथा एक अमृतधारी महिला गिरफ्तार किए गए हैं। यह सभी सेवादार हैं। इनकी हरकत के बारे क्या समझा जाए कि शरारत किसकी है? कौन साजिश करवा रहा है? ग्रंथी ने तो अपने ही गुरुद्वारे में श्रीगुरू ग्रंथ साहिब के पन्ने फाड़ दिए। यह अनहोनी कैसे हो गई?
पंजाब आज फिर दोराहे पर खड़ा नजर आ रहा है। अमन-चैन खतरे में हैं। लोग दहशत में हैं। चिंता इस बात की है कि पिछला इतिहास दोहाया न जाए। जज्बात फिर भड़के हुए हैं और संभालने वाला कोई नहीं। सरकार तो भाग खड़ी लगती है। धर्म तथा राजनीति के घालमेल ने बहुत नुकसान किया है। गंभीर स्थिति बन रही है क्योंकि सरकार तथा बादल परिवार लोगों का विश्वास खो बैठे हैं। सरकार के पांव उखड़ रहे नजर आते हैं। केन्द्र सरकार को विशेष ध्यान देना चाहिए क्योंकि (1) पंजाब सीमावर्ती प्रदेश है जहां दीनानगर पर आतंकी हमला हो कर हटा है (2) पंजाब में पहले भी गड़बड़ हो चुकी है इसलिए सावधान हो जाना चाहिए तथा (3) यहां अकाली दल तथा भाजपा का गठबंधन है जिस पर लोगों को विश्वास नहीं रहा।