पंजाब में उठता तूफां
अकाली दल के वरिष्ठ उपाध्यक्ष बलवंत सिंह रामूवालिया पार्टी छोड़ उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी के मंत्रिमंडल में शामिल हो गए हैं। एक जगह पहले मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल व्यंग्यात्मक टिप्पणी कर चुके हैं कि ‘रामूवालिया ने घाट-घाट का पानी पिया है।’ रामूवालिया भी शुक्रवार को कसमें खाने के बाद कि वह तथा उनका परिवार आजीवन अकाली दल का पानी पियेगा शनिवार को एक और घाट पर पानी पीने पहुंच गए हैं और अकाली दल तड़प रहा है। वह दुखी केवल रामूवालिया के विश्वासघात से ही नहीं, चिंता यह है कि कहीं और चूहे पानी पीने के लिए छलांग तो नहीं लगाने वाले हैं? आखिर रामूवालिया जैसा अवसरवादी व्यक्ति अकाली दल को कभी न छोड़ता अगर उसे इस पार्टी का भविष्य उज्जवल नजर आता। उधर अकाली दल तथा शिरोमणि कमेटी से इस्तीफा देने वालों का सिलसिला जारी है। 150 के करीब इस्तीफे हो चुके हैं। सरकार के डैमेज कंट्रोल के प्रयासों के बावजूद सिखों का गुस्सा कम नहीं हो रहा। डीजीपी को बदल दिया गया। पांच प्यारों का निलंबन रद्द कर दिया गया। जनता के अविश्वास को देखते हुए श्री गुरू ग्रंथ साहिब की बेअदबी की घटनाओं की जांच सीबीआई को सौंप दी गई है। अब इस घटना में गिरफ्तार दो भाइयों को रिहा कर दिया गया है जबकि पहले सुखबीर बादल इन्हें बेअदबी का दोषी ठहरा चुके हैं। बरगाड़ी गांव की घटना से लेकर अब तक बेअदबी के मामलों में प्रशासन तथा पुलिस ने जो कुछ कहा उसे लोग पचा नहीं पाए। एक मामले में तो यह भी अजब स्पष्टीकरण दिया गया कि एक महिला से लड़ कर ग्रंथी ने श्री गुरू ग्रंथ साहिब की बेअदबी कर दी। हालत यह बन रही है कि अकाली दल के चार बड़े जो एक ही परिवार से हैं, प्रकाश सिंह बादल, सुखबीर बादल, हरसिमरत कौर बादल तथा बिक्रमजीत सिंह मजीठिया खुलेआम जनता के बीच जाने की स्थिति में नहीं हैं। बादल साहिब संत फतह सिंह की पुण्यतिथि पर नहीं गए तो सुखबीर बादल पंजाब दिवस 1 नवम्बर को पंजाब में नहीं, दूर रोहतक में जाकर गर्जे हैं। जगह-जगह अकाली नेता अपमानित हो रहे हैं। कपूरथला में तो उन्हें नंगे पांव जान बचा कर भागना पड़ा क्योंकि किरपाणों के साथ सिख युवक उनके पीछे दौड़ रहे थे। रामपुरा फूल के एक गांव में अकाली मंत्रियों को लोगों के कोप से बचाने के लिए पुलिस को दखल देनी पड़ी।
अकाली नेतृत्व के खिलाफ जो दबी हुई आक्रोश की भावना है वह अब सतह पर फूट रही है। एक परिवार ने सारे पंजाब पर कब्जा कर रखा था लोग कितनी देर इसे बर्दाश्त करते? डेरा प्रमुख को माफी देना, किसान आंदोलन तथा श्री गुरू ग्रंथ साहिब की बेअदबी वह घटनाएं थीं जिन्होंने राख के नीचे दबी चिंगारी को आग लगा दी। भाजपा मंत्री अनिल जोशी ने स्वीकार किया है कि लोगों का सरकार के प्रति गुस्सा है और जब न्याय नहीं मिलता तो गुस्से का विस्फोट होता है। इसी की प्रतिक्रिया हो रही है और कहा जा सकता है कि
आता है रहनुमाओं की नीयत में फतूर
उठता है साहिलों में वह तूफां न पूछिए!
पंजाब में भी तूफां उठ रहा है। आने वाले समय में भाजपा को भी तय करना होगा कि इस गठबंधन में रहना है या बाहर निकलना है? इस वक्त तो राजनीति और धर्म का जो घालमेल किया और जो पारिवारिक सत्ता थोपने का प्रयास किया गया वह बहुत उलटा पड़ गया है। पंजाब वह प्रांत है जो कभी देश का दूसरा सबसे समृद्ध प्रांत था लेकिन अब प्रति व्यक्ति आय में खिसक कर 11वें नम्बर पर पहुंच गया है। नौ वर्ष से शासन में बादल सरकार इसके बारे जवाबदेह है। उस प्रदेश में निवेश कहां से आएगा जहां माहौल इतना विषाक्त हो? प्रशासन से इतनी राजनीति की गई कि कोई सरकार पर विश्वास करने को तैयार नहीं। ऐसा एक दिन में नहीं हुआ, ऐसा पिछले 9 सालों से लगातार हो रहा है। लोग देख रहे हैं कि पंजाब के साधनों का एक परिवार की राजनीति तथा आर्थिकता के लिए इस्तेमाल किया गया। अब जनता पीछे पड़ गई है।
जिन सिख संस्थाओं, अकाल तख्त, शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी तथा अकाली दल का बादल परिवार इस्तेमाल करता रहा उन पर अब लोगों का विश्वास नहीं रहा। अकाल तख्त की विश्वसनीयता फिलहाल खत्म हो चुकी है। जत्थेदार तो खुद संगत के बीच नहीं जा सकते। शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी भी सिखों की सेवा करने की जगह एक परिवार के हित की सेवक बन गई थी परिणाम है कि पहले वह सिखों की बात नहीं सुन रहे थे, अब सिख उनकी बात नहीं सुन रहे। पंथक संस्थाओं की दुर्गति के लिए आम सिख इस एक परिवार को जिम्मेवार ठहरा रहा है। चिंता यह है कि यह सारा अभियान उग्रपंथियों के हाथ चले जाएगा और सरबत खालसा में देश विरोधी प्रस्ताव पारित किए जा सकते हैं। कई जगह खालिस्तान के नारे लगाए जा रहे हैं। इसलिए बिहार चुनाव से फारिग होकर केन्द्रीय नेतृत्व को तत्काल पंजाब की गंभीर स्थिति की तरफ ध्यान देना चाहिए। यहां एक शून्य सा पैदा हो गया है जिसे रैडिकल भरने की कोशिश कर रहे हैं। पंजाब ने ऐसा संताप पहले भी भुगता है इसीलिए बार-बार सावधान कर रहा हूं। केन्द्र सरकार तमाशबीन बन कर बैठ नहीं सकती इसकी बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है।
पूर्व पंजाब पुलिस प्रमुख केपीएस गिल का मानना है कि पंजाब के वर्तमान संकट के लिए बाहर बसे पंजाबियों का भारी योगदान है पर उनका कहना है कि इन प्रवासियों के प्रयास को सफलता नहीं मिलेगी। गिल की टिप्पणी तब आई जब लंदन के कुछ सौ सिख भारतीय दूतावास के बाहर प्रदर्शन कर चुके हैं। प्रधानमंत्री की ब्रिटेन यात्रा के दौरान ऐसे प्रदर्शन दोहराए जा सकते हैं। विदेशों में कई सिख बैठे हैं जिनके तार खालिस्तानी आंदोलन से जुड़े हुए हैं इन्होंने पंजाब नहीं आना लेकिन यहां के घटनाक्रम में इनकी जरूरत से अधिक दिलचस्पी रहती है। अगर यहां स्थिति नियंत्रण से बाहर निकल गई तो इनकी सेहत पर असर नहीं होगा क्योंकि वह तो बाहर हैं लेकिन पंजाब को अशांत करने की यह पूरी कोशिश करते रहते हैं।
पंजाब के वर्तमान संकट का सबसे बड़ा कारण भी यही है कि लोग कुशासन तथा परिवारवाद के खिलाफ उठ खड़े हुए हैं। अमृतसर में एक कार्यक्रम में प्रकाश सिंह बादल ने अपने समधी से अवश्य कहा था कि आप लोगों के कारण मुझे शिकायत सुननी पड़ रही है कि यहां एक परिवार का शासन है, लेकिन बादल साहिब ने भी इस शिकायत को खत्म करने के लिए कोई कदम नहीं उठाए। उलटा परिवार का नियंत्रण बढ़ा है। यहां तक कि अकाल तख्त, शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी जैसी धार्मिक संस्थाएं भी इस एक परिवार के हित बढ़ाने का साधन बन गई हैं। यह प्रमुख कारण है कि इस लगभग बगावत को संभालना इतना मुश्किल हो रहा है क्योंकि यह संस्थाएं अपना प्रभाव खो बैठी हैं। जो खुद को सर्वशक्तिमान समझते हैं वह जानते नहीं कि राजनीति में पांव रेत के बने हैं। शमीम जयपुरी ने सही लिखा है,
सबको बुलंदियों का सलीका नहीं शमीम
वह सर पर चढ़ रहे थे कि दिल से उतर गए!