अंग्रेजी मीडिया और मिस्टर मोदी (English Media and Mr. Modi)

‘…स्पष्ट है कि कन्हैया जन्मजात से ही ऐसी प्रतिभा का स्वामी है जिसकी एक-एक बात को लाखों लोग मंत्रमुग्ध हो मौन और ध्यान से सुनते हैं…बहुत कम लोग इस बात से इन्कार करेंगे कि यह सितारा अवश्य चमकेगा। कुछ लोग तो यहां तक मानने लगे हैं कि वह एक दिन प्रधानमंत्री बनेगा…।’
यह शब्द अंग्रेजी मीडिया के अपने ‘चमकते सितारे’ करण थापर के हैं जो उन्होंने हाल ही में एक लेख में लिखे हैं और वह उस कन्हैया के बारे लिख रहे हैं जो देशद्रोह के मामले में छ: महीने की जमानत पर है,
जिसने हाल ही में ‘डंके की चोट’ पर कहा था कि कश्मीर में सुरक्षा के नाम पर सेना महिलाओं से बलात्कार कर रही है,
और जिस पर जेएनयू की एक पूर्व छात्रा ने आरोप लगाया है कि एक बार खुलेआम विश्वविद्यालय की सड़क पर पेशाब करने से रोकने पर कन्हैया ने उसके साथ बदसलूकी की थी जिस पर उसे 3000 रुपए जुर्माना भी लगा था।
इसी व्यक्ति में करण थापर को ‘तेजोमय बुद्धिमता’ नज़र आ रही है। बार बार उसके ‘गुणों’ की बात कर रहे हैं। ‘बहुत आशाएं हैं।’ इतनी आशाएं हैं कि इस 28 वर्ष के लड़के को वह भावी प्रधानमंत्री भी देख रहे हैं!
क्या करण थापर जैसे पत्रकारों की अकल पर पर्दा पड़ गया है? बुद्धि भ्रष्ट हो गई है क्या? इस मामले में केवल वह ही नहीं हैं मीडिया के कई प्रतिष्ठित व्यक्तित्वों को कन्हैया में वह गुण नज़र आ रहे हैं जो वह बेचारा खुद भी होने का दावा नहीं करता।
करण थापर जैसे बहुत हैं जो उसके ‘चेहरे पर मासूमियत और सौहार्द्र की भावना की अठखेलियों’ से प्रभावित हैं। शोभा डे का कहना है कि भारत को कन्हैया कुमार की जरूरत है।
क्या यह लोग कन्हैया को सचमुच ‘चमकता सितारा’ देखते हैं या कुछ और बात भी है?
इसका जवाब खुद करण थापर देते हैं, ‘थैंक्यू मिस्टर मोदी! आपने हमें एक सितारा दिया जो क्षितिज पर तेज प्रकाश बिखेरेगा और इसकी रोशनी में करोड़ों लोग अब आपकी सरकार तथा खुद आपकी कारगुजारी का आंकलन करेंगे…!’
यह असली बात है। बिल्ली थैले से बाहर आ गई। मिस्टर मोदी! मिस्टर मोदी के विरोध में यह लोग इस तरह बह गए हैं कि उस कामरेड को उठा रहे हैं जो उस व्यवस्था से ‘आजादी’ चाहता है जिसके प्रौडक्ट बो-टाई डाले करण थापर और उसके जैसे मीडिया स्टार हैं। कन्हैया पूंजीवाद से आजादी चाहता है। अगर ऐसा हो गया तो सबसे पहले प्यारे, आप ही निशाना बनोगे। डियर शोभा डे, तेरा क्या होगा?
जिस लेनिनवादी व्यवस्था को कन्हैया जैसे अपनी नादानी में कायम करना चाहते हैं उसमें आप किसी और के कंधे पर बंदूक रख मिस्टर मोदी पर वार नहीं कर सकोगे। आपको ही गोली से उड़ा दिया जाएगा। साम्यवाद के नीचे लोगों की आजादी खत्म हो गई थी। लेनिन से स्टालिन तक का सफर स्वभाविक था। हिंसा इस व्यवस्था की अभिन्न अंग है। अपने मोदी/भाजपा/संघ विरोध में यह लोग इतना आगे बढ़ गए हैं कि अकल पर पर्दा डाल लिया है।
कन्हैया कुमार का कहना है कि वह देश से नहीं बल्कि देश के अंदर आजादी चाहता है। अच्छी बात है। लेकिन कैसी आजादी चाहता है? अदालत ने भी कहा है कि अभिव्यक्ति की आजादी पर संविधान के तहत कुछ पाबंदियां भी हैं। किसी भी लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की आजादी सम्पूर्ण नहीं है लेकिन हमारे यह वामपंथी तथा यह तथाकथित बुद्धिजीवी चाहते हैं कि देश की राजधानी के ठीक बीच देश की बर्बादी के नारे लगाने की उन्हें आजादी होनी चाहिए और कई बेवकूफ नेता और पत्रकार इसे ‘डिसेंट’ अर्थात् असहमति कह कर न्यायोचित ठहरा रहे हैं। यह डिसेंट नहीं है, देश विरोध है जिसका बराबर विरोध होना चाहिए। यह देश किसी बाक्सर का ‘पंचिंग बैग’ नहीं जहां आप धड़ाधड़ मुक्के जड़ सकते हो।
अंग्रेजी मीडिया का एक वर्ग जो ‘अभिव्यक्ति की आजादी’ पर पाबंदी की ऊंची शिकायत कर रहा है वह साक्षी महाराज या साध्वी प्राची या रामशंकर कठेरिया या महेश शर्मा की अभिव्यक्ति पर हाय तौबा क्यों मचाता रहा है? फिर उन्हें भी अपनी बात कहने, गलत सही, की इजाजत क्यों न हो? पर नहीं अभिव्यक्ति की आजादी सम्पूर्ण नहीं है। प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू जिनके नाम पर इस विश्वविद्यालय का नाम रखा गया था, के 16 मई 1951 को संसद में दिए गए भाषण के यह शब्द याद करवाना चाहता हूं, ‘आजादी, बाकी की तरह, वास्तव में बाकियों से अधिक, अपने साथ विशेष जिम्मेवारी तथा दायित्व तथा विशेष अनुशासन लेकर आती है। अगर जिम्मेवारी, दायित्व और अनुशासन की भावना की कमी है तो यह आजादी नहीं, आजादी का अभाव है।’
मेरा मानना है कि कन्हैया से भी खतरनाक यह लोग हैं जो डिजाइनर कपड़ों में टीवी स्टूडियो में बैठ कर उसकी पैरवी करते हैं क्योंकि वह एक निर्वाचित सरकार के खिलाफ असंतोष फैलाने की कोशिश कर रहे हैं। इन्हें कन्हैया को यह सलाह देनी चाहिए कि इन्कलाब तो तू बाद में लाना, पहले तू सबसिडी लेना बंद कर और अपने बिल खुद अदा करना शुरू कर। कब तक मुफ्तखोरी की यह जिन्दगी चलेगी?
आशा है कि एक दिन राजदीप सरदेसाई, रवीश कुमार, बरखा दत्ता जैसे मीडिया के सुपर स्टार अपने कैमरों के साथ फिर कन्हैया का इंटरव्यू लेंगे कि जब उसने ‘डंके की चोट पर’ कहा था कि कश्मीर में सुरक्षा के नाम पर सेना महिलाओं से बलात्कार कर रही है तो उसका अभिप्राय क्या था?
यह मीडिया वाले इस घातक टिप्पणी को निगल नहीं सकते। अंधे मोदी विरोध में आपने ही इसे सुपर स्टार बनाया है इसलिए आप भी जवाबदेह हैं। लेकिन अब उनका काम और मुश्किल हो गया है क्योंकि जेएनयू की अपनी आंतरिक जांच कमेटी ने कन्हैया तथा चार और छात्रों को देश विरोधी नारे लगाने के मामले में विश्वविद्यालय से निकालने की सिफारिश की है।
इसलिए इन सज्जनों को एक और नाम का सुझाव देना चाहता हूं जिसमें वह भावी पीएम देख सकते हैं। कन्हैया की तरह वह भी अच्छे वक्ता हैं। तर्क जबरदस्त है। एक वर्ग में समर्थन भी है। ‘भारत माता की जय’ का नारा लगाने से इन्कार कर रहे हैं और उनके पक्ष में जो बात जबरदस्त जाती है वह यह है कि वह नरेन्द्र मोदी/भाजपा/संघ के तीखे विरोधी हैं। अर्थात् पीएम बनने की सारी योग्यताएं हैं। मेरा अभिप्राय असादुद्दीन ओवैसी से है। आशा है ओवैसी साहिब में भी उन्हें बराबर ‘तेजोमय बुद्धिमता’ नज़र आएगी।

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Chander Mohan is the grandson of the legendary editor of Pratap, Mahashya Krishan. He is the son of the famous freedom fighter and editor, Virendra. He is the Chief Editor of ‘Vir Pratap’ which is the oldest hindi newspaper of north west india. His editorial inputs on national, international, regional and local issues are widely read.