यह लेख मैं गोवा में कुछ दिन व्यतीत करने के बाद लिख रहा हूं। गोवा पर किस तरह का दबाव है यह हवाई अड्डे पर ही समझ आ गई थी जब हमारे साथ छोटे बच्चों को देख कर टैक्सी वाले ने चेतावनी दी कि ‘‘बच्चों को संभाल कर रखो।’’ यह चेतावनी अंत तक कानों में गूंजती रही क्योंकि खूबसूरत गोवा के शांत वातावरण, चमकती रेत, उठती लहरों के बीच एक ऐसा भी गोवा खड़ा हो रहा है जो बदसूरत है, बदनाम है तथा जिसे माफिया समझा जाता है।
गोवा को 1970-80 के दशक में हिप्पयों ने खोजा था। यहां की हरयाली, ताड़ तथा नारियल के पेड़ तथा लोगों के सरल स्वभाव ने उन्हें वहां आकर्षित किया था। क्योंकि अधिक दखल नहीं थी इसलिए हिप्पी पहली बार यहां ड्रग्स लेकर आए थे। हिप्पियों को देखक कर वहां टूरिस्ट आना शुरू हो गए जो अपने साथ रूपया, डॉलर या रुबल ही नहीं कई बुरी लत भी लेकर आए जिनसे अब गोवा ग्रस्त नजर आता है।
गोवा टूरिज्म लाखों लोगों को रोजगार देता है लेकिन यह उनके समाज को बिगाड़ भी रहा है।
गोवा को पूर्व का रोम भी कहा जाता है। यह रोम की तरह भव्य नहीं है क्योंकि रोम तो एक बड़े साम्राज्य की राजधानी रह चुका है पर रोम की तरह ही ईसाइयत का यहां बहुत प्रभाव है क्योंकि 1510 से लेकर दिसम्बर 1961 तक यह पुर्तगाल की विदेशी राजधानी रही है। पुर्तगाल का प्रभाव अभी भी नजर आता है चाहे घरों के निर्माण में हो या जूलियों, कोईलो, डियास, रबैलो, लोबो जैसे नामों में। पुर्तगाल के साथ रिश्ता अभी भी है और कई प्रमुख गोवा वासी पुर्तगाली नागरिक बन चुके हैं। इनमें प्रमुख सिंगर रेमो फर्नांडीस भी हैं।
गोवा में हर जगह ईसाइयत का प्रभाव नज़र आता है। यह हैरान करने वाली बात है क्योंकि वहां की 65.7 प्रतिशत जनसंख्या हिन्दू है और केवल 26.6 प्रतिशत ही ईसाई है लेकिन बाहर से गए व्यक्ति को तो यह ही प्रभाव मिलता है कि जैसे यह एक ईसाई प्रदेश हो।
पुर्तगाल के कारण गोवा पर पश्चिमी प्रभाव बहुत है। कई लोग शिकायत करते हैं कि इस प्रभाव तथा चर्च के दखल के कारण स्थानीय संस्कृति खतरे में है। चर्च वहां के हर सामाजिक, राजनीतिक या धार्मिक मामले में देखल देता है। वरिष्ठ कोनकोनी लेखक नागेश करमाली ने शिकायत की है कि जो पुर्तगाली नहीं कर सके, वह चर्च गोवा में अब कर रहा है और वह भारतीय संस्कृतिक को खत्म करने का प्रयास कर रहा है। साहित्य अकादमी अवार्ड विजेता उदय भांभरे का भी कहना है कि गोवा की सरकार ईसाइयों के दबाव में है और 25 प्रतिशत लोग 75 प्रतिशत को दबा रहे हैं।
जो पश्चिमवादी बुद्धिजीवी हैं उनका चर्च को पूरा समर्थन है और वह खुलेपन के नाम पर किसी भी तरह की पाबंदी के खिलाफ हैं।
क्योंकि यह खुलापन इतना आम है इसलिए कोई इसे महत्व नहीं देता लेकिन इससे महिला और पुरुष वेश्याओं की वहां लम्बी कतार खड़ी हो गई है। मेरा मानना है कि वहां बहुत आजादी है और घबराहट है कि गोवा एक दिन थाईलैंड जैसा न बन जाए जहां वेश्यावृत्ति विदेशी मुद्रा अर्जित करने का बड़ा साधन बन चुकी है।
रक्षामंत्री मनोहर पार्रिकर के बारे दिलचस्प समाचार छपा है कि गर्मियों में दिल्ली के सत्ता के गलियारों में वह कई बार चप्पल डालते घूमते नज़र आते हैं। उनके स्वभाव में एक सरलता है। पर ऐसे गोवावासी हैं, अधिकतर चप्पल में ही नज़र आते हैं। लेकिन घबराहट है कि गोवा की यह निष्कपटा खतरे में है, पर्यटक के डालर/रूबल/पौंड आदि के लालच में गोवा अपनी निर्मल आत्मा न खो बैठे।
पर्यटन किसी देश की संस्कृति को किस तरह तबाह कर सकता है यह थाईलैंड में हम देख रहे हैं। शायद कोई भी देश खूबसूरती में उनकी बराबरी नहीं कर सकता लेकिन उन्होंने अपनी आत्मा टूरिस्ट के पास गिरवी रख दी है। कई जगह जैसे पटाया, तो विशाल लाल बत्ती क्षेत्र में परिवर्तित हो चुके हैं। पुरुष, महिला या तीसरे हर प्रकार के वेश्या खुले उपलब्ध हैं।
गोवा को उधर जाने से बचाने की तत्काल जरूरत है क्योंकि जब टूरिस्ट आता है जो वह अपनी संस्कृति भी लाता है। उनके लिए कई चीज़े सामान्य है जबकि हमारी संस्कृति तथा तहज़ीब के विपरीत हैं। जो छुट्टी मनाने आता है वह खुद को आजाद भी अधिक समझता है। अफसोस की बात है कि गोवा में वह महसूस करता है कि उसे पूरी आजादी है क्योंकि प्रशासन उनसे निबटने में अधिक गंभीर नहीं है। प्रशासन टूरिस्ट को निरुत्साहित नहीं करना चाहता। गोवा में ड्रग ओवर डोज़ के बहुत मामले निकल रहे हैं। कई ऐसे मामले भी होंगे जो रिपोर्ट नहीं किए जाते। अधिक नशा करने से किसी विदेशी टूरिस्ट की मौत के बाद कुछ देर हलचल रहती है पर फिर सब कुछ सामान्य हो जाता है। उनके दूतावास भी शांत हो जाते हैं।
अखबारों में छपा था कि एक आरटीआई के जवाब में बताया गया कि केवल एक कालानगुटे थाने के नीचे 2014-15 में 560 वेश्या दलाल पकड़े गए। अधिकतर यह दलाल ऑनलाइन धंधा करते हैं जिस कारण इन्हें पकड़ना मुश्किल होता है। अब पुलिस ने कई मसाज पार्लर बंद कर दिए हैं जो कालानगुटे के विधायक माईकल लोबो के अनुसार, वेश्यावृत्ति की दुकानें थीं।
यह वही थाईलैंड वाली दिशा है। क्योंकि सबको पैसा मिलता है इसलिए कई टूरिस्ट गाईड, टैक्सी वाले, छोटे होटल वाले, गैस्ट हाऊस वाले इस धंधे में संलिप्त हैं। बहुत लोग सही तरीके से टूरिस्ट का फायदा उठा रहे हैं लेकिन बहुत है जो इस गंदे नाले में अपने हाथ गंदे कर रहे हैं।
गोवा की एक बड़ी समस्या यहां रूसियों का धड़ाधड़ आगमन है। डैबोलिम हवाई अड्डे पर उतरीं 2013-14 में 1128 में से 895 तथा 2014-15 में 895 में से 670 चार्टर्ड फ्लाइट्स रूस से थीं। अर्थात् रोजाना लगभग दो फ्लाइट रूस से आती हैं। और यह एक अलग घटिया कहानी है।
रूस में क्योंकि बहुत सर्दी पड़ती है इसलिए बहुत लोग वहां से भाग कर सर्दियों में गोवा आते हैं। इसमें कोई आपत्ति नहीं। समस्या है कि गोवा में एक रूसी माफिया खड़ा हो गया है जो रियल इस्टेट, वेश्यावृत्ति, ड्रग्स सब में संलिप्त हैं।
रूसी इस तरह गोवा की जिंदगी को प्रभावित कर रहे हैं कि कई गोवा वासी अब रूसी सीख रहे हैं। जगह-जगह अंग्रेजी के साथ रूसी में बोर्ड लगे हैं। रूसी भोजन का पूरा प्रबंध किया जाता है।
उत्तर गोवा की प्रसिद्ध मौर्जिम बीच तो रूसी कैंप में परिवर्तित हो चुकी है। यहां अधिकतर दुकानों पर रूसी बोर्ड लगे हैं और रैस्टोरैंट में मैन्यू भी रूसी में हैं। लोग इतने परेशान हैं कि मार्जिम की ग्राम पंचायत प्रस्ताव पारित कर चुकी है कि ‘हमारी एक आवाज है, रशियन गो बैक!’
गोवा के लोग बहुत सादे और सरल हैं। बड़े निर्माण के बावजूद यह जगह अभी भी एक बड़े गांव का भोलापन प्रदर्शित करती है। पर अब इनकी मासूमियत खतरे में है।