काली हकीकत का चिट्टा सच (White Truth About Black Reality)

दर्पण झूठ नहीं बोलता। उड़ता पंजाब ने सच्चाई ही बयान की है। ड्रग्स पंजाब की हकीकत है। जो इसकी शिकायत करते हैं और हकीकत बयान करते हैं उन्हें पंजाब विरोधी कह कर चुप नहीं करवाया जा सकता। न ही हकीकत पर पर्दा डाल कर ही हकीकत बदलेगी। आज से नहीं बहुत पहले से यह समस्या है केवल अकाली शासन के दौरान यह विकराल रूप धारण कर गई है। चार साल पहले राहुल गांधी 70 प्रतिशत का आंकड़ा दे गए थे जिसे लेकर बहुत विवाद रहा था। राहुल का आंकड़ा अधिक लगता है। यह बात तो समझ आती है कि अगर वह कहें कि 70 प्रतिशत नशेड़ी युवा हैं, पर यह कहना कि पंजाब की जनसंख्या का 70 प्रतिशत ड्रग्स में है तो अतिशयोक्ति है। दिसम्बर, 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अपनी ‘मन की बात’ में पंजाब में ड्रग्स के इस्तेमाल की गंभीर समस्या का जिक्र किया था। बादल साहिब का कहना है कि राहुल गांधी मेहनती पंजाबियों को नशेड़ी प्रस्तुत कर बदनाम कर रहे हैं। यह बदनामी का मामला नहीं है। पंजाब में ड्रग्स की समस्या है। 2012 में पिछले विधानसभा चुनाव के बाद भी मुख्य चुनाव आयुक्त एस वाई कुरैशी ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को पत्र लिख कर बताया था कि चुनाव में ड्रग्स का व्यापक इस्तेमाल किया गया था।
निश्चित तौर पर हमारी संस्कृति में दीमक लग गई है, और यह घातक है। हर पंजाबी किसी न किसी परिवार को जानता है जिसने नशे की त्रासदी भुगती है। गांवों के शमशान घाट में युवाओं की लाशों का अन्त्येष्टि के लिए पहुंचना बताता है कि कितना अनर्थ हो रहा है। और तबाही इतनी है कि केवल युवक ही नहीं युवतियां भी इस लत में फंस रही हैं। अमृतसर में एक केन्द्र खुला है जो नशे में फंसी महिलाओं का ही उपचार करता है।
एक तरह से तो यह अच्छी बात है कि समाज में ड्रग्स को लेकर अब जागरूकता बहुत है। सब मानते हैं कि समस्या है चाहे इसके प्रतिशत पर मतभेद हैं। लेकिन जैसे एक युवक ने मुझ से कहा, जिस परिवार का बच्चा नशे का शिकार हो गया उसके लिए तो सारा पंजाब ही नशेड़ी है। हालत यह है कि जिसे ‘चिट्टा’ कहा जाता है उसकी होम डिलिवरी हो रही है। बहुत नशेड़ी दिवालिया हो चुके हैं घर बार की हर चीज बेच चुके हैं। अधिकतर से शादी करने को कोई तैयार नहीं। एक रिपोर्ट में मोगा के निहालसिंहवाला गांव की मनप्रीत कौर ने बताया कि उसके दोनों बेटों तथा पोते को नशा निगल गया। मेरे अपने एक रिश्तेदार ने जब वह 40 वर्ष का था अपने पिता को मारने के लिए कुर्सी उठा ली थी क्योंकि पिता, जो पूर्व वरिष्ठ आईएएस अधिकारी हैं, ने उसे ड्रग्स के लिए पैसे देने से इंकार कर दिया था। पत्नी पहले छोड़ गई थी और उसकी खुद 50 साल की आयु में ‘हार्ट अटैक’ से मौत हो गई।
ऐसे किस्से बहुत सुनाई देते हैं। सच्चाई है कि हमारी सारी युवा पीढ़ी खतरे में है। सेना में पंजाब की कम होती भर्ती तथा खेलों में पिछड़ता पंजाब यह सब संकेत हैं कि हमारी जवानी नशे में फंस रही है, आंकड़ा कुछ भी हो। नशे का गुणगान करते पंजाबी गानों ने भी बहुत नुकसान किया है। ऊपर से ड्रग्स के धंधे को मिले राजनीतिक संरक्षण ने पंजाब की हालत बहुत बिगाड़ दी है।
पंजाब की भूगौलिक स्थिति उसका दुर्भाग्य बन गई है। हमारे पड़ोस में ईरान, पाकिस्तान और अफगानिस्तान का त्रिकोण है। पाकिस्तान से विशेष तौर पर ड्रग्स इधर भेजे जा रहे हैं। हमारे सारे पश्चिमी सीमा क्षेत्र को उन्होंने नरम कर दिया है। ड्रग्स के सेवन की शक्ल भी बदलती जा रही है। पहले भांग, चरस, अफीम, गांजा, ब्राउन शुगर का सेवन होता था पर अब यह कम्बख्त चिट्टा पाउडर आ गया है और नशे के इंजेक्शन लग रहे हैं। एक सर्वेक्षण के अनुसार देश में पकड़े गए ड्रग्स का 60 प्रतिशत पंजाब से बरामद किया गया। टाइम्स आफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार पंजाब में ड्रग्स के सेवन का अनुपात अखिल भारतीय से चार गुणा है।
और यह भी नहीं कि जो ड्रग्स का सेवन करते हैं वह सब बेरोजगार ही हैं। उलटा रईस परिवारों की बिगड़ी हुई औलाद बहुत शिकार हो रही है। दुर्भाग्य यह है कि पंजाब सरकार सच्चाई को नकारते जा रही है। दो साल पहले निबटने के लिए सक्रियता दिखाई गई थी पर अब वह समस्या का सामना करने की जगह इसे छिपाने में लगी है। विशेषतौर पर जब से कुछ अकाली नेताओं का नाम ड्रग्स किंगपिन के तौर पर लिया गया तब से पंजाब सरकार स्थिति से भागती नजर आ रही है। लेकिन लोग पंजाब की चिट्टी हकीकत जानते हैं। जिन्हें वह अपराधी समझते हैं उनका नाम बच्चे-बच्चे की ज़ुबान पर है। पंजाब में इनके खिलाफ गुस्सा बहुत है। भाजपा को भी सावधान हो जाना चाहिए। वह गलत सोहबत में है।
लेकिन मामला राजनीति से बहुत बड़ा है। पंजाब के भविष्य से जुड़ा है। एक प्रदेश जो कभी देश का पेट भरता था अब समस्याओं के बोझ तले दबा जा रहा है। पठानकोट और पहले दीनानगर पर हुए हमले बताते हैं कि पंजाब की सीमा किस तरह असुरक्षित है। बीएसएफ कमजोर रही है। एसपी सलविन्दर सिंह की भूमिका से नारको टैरेरिज़्म की शंका और प्रबल होती है। इस बारे अभी तक जो कुछ बताया गया उससे लोग संतुष्ट नहीं। वह जानते हैं कि नशे द्वारा पैदा किए गए कोहरे में जानें जा रही हैं। वह यह भी जानते हैं कि राजनीतिक संरक्षण के बिना यह संभव नहीं।
कौन पंजाब को इस संकट से निकालेगा? अकाली सरकार तो निकाल नहीं सकती क्योंकि वह लोगों का भरोसा खो बैठी है। कांग्रेस कह रही है कि चार सप्ताह में वह समस्या से छुटकारा दिलवाएगी। यह कैसे होगा कांग्रेस के पास कोई जादू की छड़ी नहीं है। ‘आप’ बहुत वायदे कर रही है। उन्हें फायदा है कि अतीत का कोई बोझ नहीं पर अनुभवहीन है और दमदार नेतृत्व नहीं है। इसलिए इस मामले में केन्द्र सरकार को हस्तक्षेप करना चाहिए वह पंजाब को अपने हाल पर छोड़ कर एक तरफ बैठ नहीं सकती। यहां बहुत बड़ी त्रासदी उभर रही है।
बढ़ता अपराध, टूटते घर, विलाप करते मां-बाप, उजड़ते परिवार बताते हैं कि समस्या कितनी विकराल है। जो लत से निकलना चाहते हैं उनके लिए भी रास्ता नहीं है। जेलों में अधिकतर वह बंद हैं जो नशा करते हैं, वह नहीं जो सप्लाई करते हैं। हिन्दोस्तान टाइम्स ने बटाला के जमींदार परिवार के बेटे आकाशदीप की कहानी बताई है जो आठवीं में ही स्कूल में इस लत में फंस गया था। वह लिखता है, ‘‘मैं चार बार क्लिनिक में दाखिल हुआ लेकिन लत छोड़ने में सफलता नहीं मिली…मैं धीरे-धीरे दलदल में फंस रहा हूं। मैं इस दुनिया से भी फिसल जाऊंगा। एक और हेरोइन का शिकार नशेड़ी।’’
यह पंजाब की काली हकीकत का चिट्टा सच है।

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Chander Mohan is the grandson of the legendary editor of Pratap, Mahashya Krishan. He is the son of the famous freedom fighter and editor, Virendra. He is the Chief Editor of ‘Vir Pratap’ which is the oldest hindi newspaper of north west india. His editorial inputs on national, international, regional and local issues are widely read.