अखिलेश की सर्जिकल स्ट्राइक (Akhilesh’s Surgical Strike)

समाजवादी पार्टी में बाप और बेटे के दंगल में बेटे की निर्णायक विजय हुई है। अखिलेश अब बाप की जगह सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गए हैं। निश्चित तौर पर मुलायम सिंह ने अपने पुत्र की महत्वकांक्षा तथा क्षमता का सही आंकलन नहीं किया। अखिलेश ने बहुत पहले से अपनी रणनीति बनाई लगती थी और वह पार्टी के विभाजन के लिए पूरी तरह से तैयार थे जबकि मुलायम सिंह यादव अपने बदनाम सलाहकारों के बीच फंसे रहे। वह समझ बैठे थे कि ‘नेताजी’ के बिना समाजवादी पार्टी का कोई अस्तित्व नहीं। पर वह लाख समझें कि मैंने पार्टी बनाई और खड़ी की, जनता और पार्टी अब उनके साथ नहीं हैं।

मानना पड़ेगा कि अखिलेश बहुत चुस्त निकले हैं। उन्हें अपने खिलाफ शासन विरोधी भावना की चिंता थी इसलिए जहां विकास कार्यों को लेकर प्रचार किया वहां अपनी पार्टी के बदनाम अतीत से भी छुटकारा पा लिया। कहा जाता था कि उत्तर प्रदेश को साढ़े पांच मुख्यमंत्री चलाते हैं अब आधा सब पर हावी है। अतीत का जो बोझ सत्ता में रहने से चिपक जाता है जैसे भ्रष्टाचार, बिगड़ती कानून व्यवस्था की स्थिति, पिछड़ापन, जातिवाद, परिवारवाद आदि सब अब मुलायम और शिवपाल के सिर मढ़ कर अखिलेश आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे हैं।

लोकसभा के चुनाव में भाजपा को उत्तर प्रदेश में 80 में से 71 सीटें मिली थीं इसीलिए अखिलेश यादव समझ गए कि उन्हें अपनी स्थिति बचाने के लिए सर्जिकल स्ट्राइक करनी पड़ेगी नहीं तो भाजपा और नरेन्द्र मोदी उन्हें तमाम कर जाएंगे। अफसोस कि यह सर्जिकल स्ट्राइक उन्होंने अपने पिता के खिलाफ की। अब सपा ‘नेताजी’ की जगह ‘युवा नेता’ अखिलेश को जनता के सामने पेश करेगी।

भाजपा के लिए भी अखिलेश की यह नई ताकत तथा ब्रैंड न्यू छवि चिंता का विषय होगी क्योंकि भाजपा अभी तक अपना मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार पेश नहीं कर सकी। साक्षी महाराज ने एक बार फिर ‘चार बीवियां, चालीस बच्चे, तीन तलाक’ की बात कहकर ध्रुवीकरण करने की कोशिश की है पर इस बार भाजपा का अलग किस्म की सपा से मुकाबला हो रहा है। मुलायम के बोझ के बिना अखिलेश जबरदस्त विरोधी होंगे।

अखिलेश और कांग्रेस के बीच गठबंधन हो गया है। भाजपा का मुकाबला करने के लिए उन्हें हर तरफ से समर्थन चाहिए लेकिन क्या कांग्रेस का समर्थन पलड़ा उनकी तरफ झुका भी पाएगा यह देखते हुए कि 2012 में कांग्रेस ने 355 सीटें लड़ी थीं और केवल 28 ही जीत सकी? कांग्रेस के लिए तो यहां अस्तित्व का सवाल है क्योंकि वह रौंदे जा सकते थे लेकिन सपा को क्या मिलेगा? यह गठबंधन कांग्रेस को सहारा देगा पर उस नारे का क्या बनेगा ‘21 साल यूपी बेहाल?’ हमारी राजनीति सचमुच बिलकुल बेशर्म हो गई है। इसका और सबूत पंजाब से मिलता है।

कई सप्ताह इधर उधर टक्करें मारने और सौदेबाजी में विफल रहने के बाद नवजोत सिंह सिद्धू राहुल गांधी के आगे सिर झुका कर कांग्रेस में शामिल हो गए। पहले आप के साथ खूब सौदेबाजी की वह मुख्यमंत्री या उप मुख्यमंत्री का पद चाहते थे। वहां दाल नहीं गली और गल भी नहीं सकती थी क्योंकि आप में केवल अरविंद केजरीवाल के लिए जगह है। यह वही राहुल हैं जिन्हें उन्होंने ‘पप्पू’ कहा था और यह वही कांग्रेस है जिसे उन्होंने कभी ‘मुन्नी से भी अधिक बदनाम है’ कहा था। अब वह अमरेन्द्र सिंह के नेतृत्व में चुनाव लड़ेंगे उस भाजपा के खिलाफ जिसे उन्होंने कभी ‘मां’ भी कहा था। लेकिन अब कांग्रेस उनके लिए कौशल्या माता है और भाजपा कैकेयी। और अब उनकी घर वापिसी हो रही है।

क्या नवजोत सिंह सिद्धू ने सोचा नहीं कि वह किस मुंह से अब कांग्रेस के लिए वोट मांगेंगे? शर्म झेंप कुछ नहीं रही? अब अमरेन्द्र सिंह ‘डैडीजी’ हो गए! लेकिन जैसे कहा जाता है कि
एक कदम गलत पड़ा था राहे शौक में
मंजिल तमाम उम्र हमें देखती रही

यही हाल नवजोत सिंह सिद्धू का होगा। उन्होंने इतना नाटक किया कि खुद का कॉमेडी शो बना लिया। क्या जरूरत थी? किस चीज़ की कमी है? पैसे, शोहरत सब बहुत हैं।
लेकिन ऐसा दगा करने वाले मिस्टर एंड मिसेज सिद्धू एकमात्र नहीं हैं। जिसे टिकट नहीं मिलता वह अब बगावत कर रहा है। दलबदल सामान्य प्रक्रिया बन गई। सरदार बेअंत सिंह, जिन्होंने कांग्रेस के मुख्यमंत्री रहते हुए शहादत दी थी, की बेटी गुरकंवल कौर भाजपा में शामिल हो गईं पर फिर लौट भी आईं। आप की तरफ से अमृतसर से लोकसभा का चुनाव लड़ हार चुके प्रसिद्ध सर्जन डा. दलजीत सिंह जिन कैप्टन अमरेन्द्र सिंह से हारे थे उनकी मौजूदगी में कांग्रेस में शामिल हो गए।

अब उनका कहना है कि आप गलत पार्टी है और केजरीवाल की चलाई हर मूवमैंट देश के लिए बड़ा खतरा है। इतने बड़े डाक्टर को दल बदल करने की क्या जरूरत थी? खुद आप ने बिक्रमजीत सिंह मजीठिया के साथी उपकार सिंह संधू को अमृतसर लोकसभा उप चुनाव के लिए अपना उम्मीदवार बनाया है। याद रखना चाहिए कि यही मजीठिया हैं जिन पर ड्रग्स धंधे का खलनायक होने का आरोप आप लगातार लगा रही है पर उनके साथी को लोकसभा चुनाव के लिए उम्मीदवार बनाने में कोई हिचक नहीं।

बड़ा तमाशा तीन बार भाजपा के विधायक, मंत्री और डिप्टी स्पीकर रहे 80 वर्ष के सतपाल गोसाईं ने खड़ा किया। खुद को या अपने परिवार के किसी सदस्य को टिकट न मिलने के बाद गोसाईं अमरेन्द्र सिंह के घर पहुंच गए। उनका हाथ पकड़ कर फोटो भी खिंचवा ली। यह भी आरोप लगाया कि टिकट देने के लिए मुझ से 15 लाख रुपए मांगे गए लेकिन वहां से कुछ हासिल नहीं हुआ तो वापिस भाजपा में लौट आए और कहाकि ‘कैप्टन से मुलाकात कांग्रेस में शामिल होने के लिए नहीं थी।’ पर फिर गोसाईं वहां झक मारने गए थे?

लोहड़ी के दिन सतपाल गोसाईं कांग्रेस का पटका डाल तस्वीर खिंचवा रहे थे पर माघी के दिन वापिस भाजपा में थे। यही तो समस्या है। राजनीति का स्तर बहुत गिर गया है। आजकल के नेताओं की आत्मा बहुत लचीली हो चुकी है। उत्तर प्रदेश में रीटा बहुगुणा जोशी जो कांग्रेस अध्यक्ष रही हैं, वह ही भाजपा में शामिल हो गईं। कुछ शर्म नहीं? सब कुछ कुर्सी है, सत्ता की हवस है? और भाजपा ने भी उसे टिकट दे क्या संदेश दिया है?

अमरेन्द्र सिंह का 90 साल के प्रकाश सिंह बादल के बारे कहना है कि ‘ओहनू भुन दयांगा।’ क्या हमारी राजनीति में शालीनता की भी कोई जगह नहीं रही?

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Chander Mohan is the grandson of the legendary editor of Pratap, Mahashya Krishan. He is the son of the famous freedom fighter and editor, Virendra. He is the Chief Editor of ‘Vir Pratap’ which is the oldest hindi newspaper of north west india. His editorial inputs on national, international, regional and local issues are widely read.