जिन्हें नाज़ है हिन्द पर वह कहां है? (Jinhe Naaz He Hind Pur Woh Kahan Hein?)

32 वर्ष के रवीन्द्र कुमार का कसूर क्या था? केवल यह कि उसने उत्तर दिल्ली के एक मैट्रो स्टेशन के बाहर सड़क पर दो लड़कों को पेशाब करने से रोका था। प्रधानमंत्री के स्वच्छ भारत अभियान से प्रेरित होकर उसने उन लड़कों को सुलभ शौचालय के इस्तेमाल के लिए 2-2 रुपए देने की भी पेशकश की थी ताकि वह जगह साफ-सुथरी रहे। कुछ बहस के बाद वह लड़के वहां से चले गए और शाम को कुछ और गुंडे साथियों के साथ लौट आए और उसे रॉड तथा तौलिए में ईंटें लपेट कर इतना पीटा कि उस गरीब ई-रिक्शा चालक की वहां ही मौत हो गई।

पिछले साल मई में उसकी शादी हुई थी। पत्नी गर्भवती है। बताया जाता है कि रवीन्द्र उस क्षेत्र में किसी को पेशाब नहीं करने देता था। सार्वजनिक कल्याण के इस प्रयास के लिए उसे मौत की सज़ा मिल गई। ठीक है अब उसके परिवार की बहुत लोग मदद कर रहे हैं लेकिन उल्लेखनीय है कि उसे भीड़ भरी जगह मारा गया। कोई मदद के लिए नहीं आया। और पेशाब करने वाले लड़के कालेज छात्र हैं कोई अनपढ़ गंवार नहीं। यह भी उल्लेखनीय है कि गरीब रवीन्द्र कुमार के लिए किसी ने कैंडल मार्च नहीं निकाला। कोई अवार्ड वापिसी नहीं हुई। मीडिया भी थोड़ी-बहुत दिलचस्पी दिखा कर खबर को भूल गया ठीक उसी तरह जिस तरह कश्मीर में सेना की जीप के आगे बांधे फारुख अहमद दार को तो बार-बार याद किया जाता है पर वहां शादी में हिस्सा ले रहे निहत्थे मारे गए सेना के जवान लैफ्टिनैंट उमर फियाज़ को कोई याद नहीं करता।

लेकिन यह अलग बात है। असली समस्या हमारे समाज में बढ़ती क्रूरता, बर्बरता और असहिष्णुता है नहीं तो कोई कारण नहीं कि पेशाब करने से रोकने के मामले का अंत हत्या में हो। हमारी मर्यादाएं तमाम हो रही हैं। नफरत फैल रही है। असहिष्णुता सीमा पार कर रही है। छोटे-छोटे मामलों पर लोग आपा खो रहे हैं। अब तो भीड़ इकट्ठी होकर बदला लेने की भावना से मार-काट पर उतर आती है। जालंधर में जहर खाकर आत्महत्या करने वाले लड़के के परिवार ने आवेश में आकर राहगीरों को लाठियों से पीट डाला। क्या तुक है?

कहां गए हमारे संस्कार जिन पर हम इतना गर्व करते हैं? हम अपनी प्राचीन सभ्यता का ढिंढौरा पीटते हैं लेकिन हमारा वर्तमान क्या है वह रोज़ाना हो रहे बलात्कारों से पता चलता है। निर्भया कांड के बाद तथा कानून की सख्ती के बाद समझा गया था कि अब कमी आ जाएगी। समाज अधिक जागरूक हो गया है पर यहां तो रोहतक में एक सौतेले पिता, जो उसका चाचा भी है, ने 10 वर्षीय बच्ची को ही गर्भवती बना दिया। हालात यह है कि लड़की की मां ही इस बलात्कारी पिता को छोड़ने की अपील कर रही है क्योंकि ‘‘वह जिन्दगी में पुरुष के बिना नहीं रह सकती।’’ उसका कहना है कि जो एनजीओ तथा एकटिविस्ट आज उसके घर की तरफ भाग रहे हैं वह तो उसे और उसके बच्चों को नहीं संभालेंगे।

निर्भया के बराबर कू्रर बलात्कार तथा हत्या की घटना रोहतक से है। यहां बलात्कार के बाद 23 वर्षीय महिला के चेहरे पर ईंटों से वार किया गया ताकि वह पहचानी न जा सके। जब उसका शव मिला तो अतंडिय़ां बाहर थीं, कीड़े लगे हुए थे और आवारा कुत्ते नोच रहे थे। अब क्रंदन कर रही मां कह रही है कि अगर उसे गोली मार दी जाती तो मैं बर्दाश्त कर लेती पर यह…।

उसने अपने गांव के एक लड़के के प्रेम प्रस्ताव का अस्वीकार कर दिया था जिसकी उसे यह कीमत चुकानी पड़ी। ऐसे किस्से रोजाना मिल रहे हैं। कई लड़कियों पर तेज़ाब फैंकें जा चुके हैं लेकिन यहां भी उल्लेखनीय है कि जिस तरह का तूफान निर्भय कांड के बाद उठा था रोहतक की इस बराबर की घटना के बाद नहीं उठा। ऐसा आभास मिलता है कि यौन हिंसा के बारे अब समाज उस तरह संवेदनशील नहीं रहा। यह इतनी आम हो गई है कि यह अब उस तरह दहलाती नहीं।

समाज में ऐसी विकृति कैसे पैदा हो गई? बड़ा कारण है कि परिवार अब समाजिक नियंत्रण का साधन नहीं रहा। परिवार में ही गड़बड़ है। जालंधर में सीबीएसई के स्कूलों की बढ़ी फीस का विरोध कर रही पेरेंटस एसोसिएशन ने एक स्कूल के सामने अर्धनग्न प्रदर्शन किया। जो पिता थे उन्होंने कमीजें उतारी हुई थी। जहां मां-बाप ऐसी बदतमीज़ी पर उतर आएं वहां बच्चे क्या सीखेंगे? बच्चे आखिर पहले घर से सीखते हैं फिर स्कूल से, फिर आसपास से।

आजकल ‘आसपास’ से सीखा क्या जा रहा है? कि मनपसंद सीट न मिलने पर एक माननीय सांसद एयरलाईन के स्टाफ को चप्पल से पीट डालते हैं। टोल टक्स मांगे जाने पर नेताजी कर्मचारी को पीट-पीट कर लहूलूहान कर देते हैं। उत्तर प्रदेश में पुलिस थाने शिकायत लिखाने गई दो बच्चियों से ही पुलिस वाले ने छेड़छाड़ शुरू कर दी थी। उत्तर प्रदेश का एंटी रोमियो स्क्वायड ही एंटी सोशल बन गया है। उत्तर प्रदेश में रामपुर जिले में दर्जन भर गुंडों ने दो लड़कियों को घेर कर उनके साथ बदतमीज़ी की और उसका वीडियो भी बनाया, और मुलायम सिंह यादव जी कहते हैं ‘‘लड़के हैं गलती तो हो जाती है।’’

क्या कोई इलाज़ है? कानून तो बन चुके हैं पर अमल नहीं हो रहा। मां-बाप कमजोर पड़ गए। अच्छी मिसालें नहीं रहीं। शहर ही नहीं गांव भी बेचैन है। जरूरतें बढ़ रही हैं जिन्हें पाने के लिए कई समझौते किए जा रहे हैं। समाजिक मूल्य खत्म हो रहे हैं। जहां तक बलात्कार का सवाल है बहुत जरूरी है कि जल्द से जल्द सजा मिले अपराधी चाहे व्यस्क हो या अवयस्क। हाल में लंदन में आतंकवादी हमले की सूचना मिलने के आठ मिनट के अन्दर आतंकवादी मार डाले गए। केवल आठ मिनट! हमारे यहां तो ऐसी चुस्ती की कल्पना भी नहीं की जा सकती। साथ ही अनावश्यक सवाल उठाने बंद होने चाहिए जैसे बाटला हाऊस मुठभेड़ के समय हुए या अब मेजर गोगोई के मामले में उठाए जा रहे हैं।

जिस समाज में हर 15 मिनट में एक महिला से बलात्कार होता है वह अपनी संस्कृति पर गर्व नहीं कर सकता। पुरुष की ईगो तथा मर्दांनगी की भावना के कारण महिलाओं के खिलाफ अत्याचार बढ़ रहे हैं। नया पैसा मुसीबत खड़ी कर रहा है। ऐसी स्थिति में जहां पहले कई प्रकार की दरारें हैं वहां कोशिश होनी चाहिए कि नई दरारें पैदा न हों। जो सहारनपुर में हुआ वह शर्मनाक है। गौरक्षा के नाम पर बहुत लोग कानून अपने हाथ में ले रहे हैं। कितना अनर्थ है कि गाय को ही वोट बैंक बना दिया गया। राजनीति घिनौनी बन रही है। केरल में कन्नूर में कांग्रेसियों ने सड़क के बीच बछड़े का वध कर दिया। वह क्या संदेश दे रहे थे? मीडिया और सोशल मीडिया दोनों बड़ी आग उगल रहे हैं और देश को अशांत रख रहे हैं। नसीरुद्दीन शाह ने एक लेख लिख कर शिकायत की है कि ‘‘मैं अपनी जिन्दगी में ऐसे किसी समय को याद नहीं कर सकता जब मुसलमानों को समूह के तौर पर देश विरोधी समझा गया और उनका स्पष्टीकरण मांगा गया। कुछ लोगों की गलतियों को हम सब भुगत रहे हैं।’’

मुझे मालूम है कि बहुत लोग इस संवेदनशील आवाज को रद्द कर देंगे लेकिन जिनकी जिम्मेवारी इस देश को संभालने की है उनका तो फर्ज बनता है कि वह देश का तापमान कम करें।’ पर जिन्हें नाज़ हैं हिन्द पर वह है कहां, है कहां ?

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Chander Mohan is the grandson of the legendary editor of Pratap, Mahashya Krishan. He is the son of the famous freedom fighter and editor, Virendra. He is the Chief Editor of ‘Vir Pratap’ which is the oldest hindi newspaper of north west india. His editorial inputs on national, international, regional and local issues are widely read.