
आर्थिक इतिहासकार एंगल मैडीसन के अनुसार सन् 1700 तक भारत विश्व के उत्पादन का 25 प्रतिशत पैदा करता था। 1870 तक यह गिर कर 12 प्रतिशत रह गया। अब हम 5-6 प्रतिशत तक ही हैं। कई इतिहासकार लेकिन कहते हैं कि भारत का सुनहरा युग मौर्य साम्राज्य (ईसा से 320 वर्ष पहले) तथा गुप्त साम्राज्य (ईसा के बाद 300-500 वर्ष) था। मौर्य साम्राज्य उस वक्त का सबसे बड़ा साम्राज्य था।
आज जबकि 10 आसियन देशों के राष्ट्राध्यक्ष नई दिल्ली में गणतंत्र दिवस के उपलक्ष्य में मौजूद हैं एक बार फिर भारत की समृद्ध संस्कृति और विरासत की चर्चा हो रही है। भारत से हिन्दू धर्म तथा बौद्ध धर्म पूर्व ऐशिया में फैल गए थे। कई शताब्दियां बीत जाने के बाद भी उस क्षेत्र पर हमारी संस्कृति, रीति-रिवाज तथा साहित्य की छाप स्पष्ट नज़र आती है। बैंकाक हवाई अड्डे का नाम ‘स्वर्णभूमि’ है। उसकी इमारत के ठीक बीच समुद्र मंथन की भव्य कलाकृति है। चाहे मलेशिया और इंडोनेशिया इस्लामिक देश हैं पर इंडोनेशिया के बाली द्वीप के लोगों का धर्म हिन्दू है। इंडोनेशिया की सरकारी हवाई कंपनी का नाम ‘गरुड़’ है। वहां उग्रवादी इस्लाम के बावजूद जकार्ता के सैंट्रल पार्क में रथ पर सवार कृष्ण-अर्जुन का स्मारक बना हुआ है। मलेशिया में विवाह के समय भारतीय पहरावे को अपनाया जाता है।
आजकल की भाषा में जिसे ‘सॉफ्ट पावर’ कहा जाता है, का हमारा प्रभाव कितना है यह इस बात से पता चलता है कि आसियान देशों के साथ शिखर सम्मेलन के दौरान रामायण उत्सव का आयोजन किया जा रहा है और यह सुझाव हमारा नहीं बल्कि कम्बोडिया के प्रधानमंत्री हुन सन का है। उनका कहना है कि रामायण का मंचन दक्षिण पूर्व ऐशिया के भारत के साथ जुड़ाव का प्रतीक होगा। थाईलैंड, लाऔस, म्यांमार तथा इंडोनेशिया की नृतक मंडलियां भी इसमें हिस्सा ले रही हैं।
हमारा भव्य अतीत था जब अपनी आर्थिक, नैतिक तथा सांस्कृतिक ताकत के बल पर दुनिया में हमारा दबदबा था। पर बीच क्या हो गया? यह ठीक है कि लगभग 1000 साल हम गुलाम रहे। मुगल तो यहां आकर बस गए पर सबसे अधिक नुकसान अंग्रेजों ने किया। 23 जून 1757 को पलासी की लड़ाई में ईस्ट इंडिया कंपनी ने बंगाल के नवाब को पराजित किया था। 30000 की फौज के साथ अंग्रेज 33 करोड़ भारतीयों पर हकूमत करने में कामयाब हो गए। उनका शासन 200 साल चला। पर हम इतिहास से कोई सबक सीखने के लिए तैयार ही नहीं।
कभी हम धर्म को लेकर झगड़ते हैं तो आजकल जाति को लेकर भिड़ रहे हैं। जिस तरह बच्चियों के साथ जगह-जगह बलात्कार हो रहा है वह बताता है कि हम कितने गिर गए हैं। हरियाणा में छ: दिन में आठ गैंग रेप हुए हैं। इस सरकार ने तत्काल पद्यमावत फिल्म पर बैन लगा दिया था पर अपनी महिलाओं और बच्चियों को सुरक्षा देने में यह बिलकुल असफल है।
‘पद्यमावत’ के प्रसारण पर विवाद फिर स्वामी विवेकानंद का कथन याद करवा देता हैं कि समाज को असली खतरा अच्छे लोगों की निष्क्रियता से है। भाजपा जो केन्द्र पर तथा अधिकतर देश में सत्तारुढ़ है की चार सरकारों ने फिल्म पर बिना देखे पाबंदी लगा दी थी। एक फिल्म निर्माता तथा एक अभिनेत्री का सर काटने के लिए सरेआम ईनाम की घोषणा की गई। घोषणा करने वाले कुछ वह लोग भी थे जो निर्वाचित हैं। इनकी धमकी अखबारों में प्रकाशित हुई, टीवी चैनलों द्वारा प्रसारित की गई लेकिन इनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई। करनी सेना ने तो एक केजी स्कूल पर हमला कर दिया जहां नन्हें बच्चे इस फिल्म के घूमर गाने पर नाच रहे थे। अब फिर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद संजय लीला भंसाली और दीपिका पादुकोण को दफनाने की खुली धमकी दी जा रही है। और हमारे नेता वोट बैंक राजनीति से इस तरह जकड़े हुए हैं कि प्रधानमंत्री से लेकर नीचे तक मुख्यमंत्री या मंत्री इनके खिलाफ कार्रवाई तो क्या करनी, निंदा करने तक की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे। वोट बैंक का आतंक हमारे नेताओं पर छाया हुआ है। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय की खुली उल्लंघना की जा रही है पर सब चुप हैं।
सरकार केवल चुनाव जीतने पर केन्द्रित है। और कुछ उनके लिए मायने नहीं रखता। वह नहीं देखते कि किस तरह समाज में दरारें बढ़ रही हैं। चुनाव जीतने को ही लोकतांत्रिक वैधता समझा जा रहा है लेकिन गुजरात चुनाव में 5 लाख नोटा बटन दबाना भी तो अपना अर्थपूर्ण संदेश दे गया हैं।
देश में चारों तरफ नकारात्मकता नज़र आती है। भाजपा शासन में यह बढ़ी है। जो हमारे साथ नहीं वह देश विरोधी हैं। एक बार पीवी नरसिम्हा राव ने कहा था कि यहां विवेक की नदी बह रही है लेकिन इसमें घडिय़ाल भी हैं। अफसोस है कि घडिय़ालों की संख्या बढ़ रही है। भीमा कारोगांव में आग बुझ गई पर शोले अभी भी भडक़ रहे हैं। यह कैसा समाज है जो 200 वर्ष पहले हुए टकराव को लेकर आपस में आज भिड़ रहा है? जिन्होंने दलितों पर हमला किया वह भगवा झंडा लिए हुए थे। दोनों तरफ हिन्दू हैं। और यहां भी एक और भाजपा मुख्यमंत्री असफल रहे हैं। हिम्मत नहीं कि गलत को गलत कह सकें। हमारी नैतिकता खोखली हो रही है। वोट के चक्कर में हमारा हाल उस देवदास की तरह है
जिसे न पारो मिली न चंद्रमुखी!
उत्तर प्रदेश में एक दलित को लाठियों से पीट कर मज़े से उसका वीडियो लिया गया। आदेश था कि ‘जय माता की’ कहे। हिन्दुत्व के नाम पर दलितों पर अत्याचार बढ़ गए हैं जिसके दुष्परिणाम साफ नज़र आ रहे हैं। गुजरात में ऊना में जिन दलितों पर कोड़े बरसाए गए थे उन्होंने बौद्ध धर्म अपना लिया। उग्रवाद पर तत्काल लगाम लगाने की जरूरत है क्योंकि असंतोष बढ़ रहा है। नौकरियां बढ़ी नहीं इसलिए समाज के युवा वर्ग में गुस्सा है। वह अपना गुस्सा निकालने के लिए रास्ता ढूंढते रहते हैं। राजस्थान, हरियाणा, गुजरात, महाराष्ट्र में उच्च जातियों के आंदोलनों का यही कारण है। बेरोजगारी जगह-जगह विस्फोट कर रही है। इन्हें शांत करने की जगह केन्द्रीय मंत्री अनंत कुमार हेगड़े ने तो यहां तक कह दिया था कि हम तो संविधान बदलने के लिए ही आए हैं। यह सज्जन नहीं समझते कि अगर संविधान की मूल भावना से छेड़छाड़ की गई तो लोग आपको बदल देंगे।
सिंगापुर के प्रथम प्रधानमंत्री ली कवान यी ने एक बार कहा था कि च्च्भारत को उभरना है। अगर भारत नहीं उभरता तो एशिया डूब जाएगा।ज्ज् लेकिन क्या हम उभरने के लिए तैयार भी हैं या लव जेहाद जैसे बेकार मामलों में ही उलझे रहेंगे? विश्व बैंक का कहना है कि अगले दशक में भारत उभर रहे देशों में सबसे अधिक तेजी से तरक्की करेगा। चार अमेरिकी राष्ट्रपतियों के सलाहकार रहे बू्रस रीडल का भी कहना है कि “हाल की आर्थिक विकास दर में धीमेपन के बावजूद भारत निश्चित तौर पर दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण देशों में गिना जाएगा, जैसा वह अपने इतिहास में अधिकतर समय रहा है।“
अर्थात बाकी दुनिया को हम में बड़ी संभावना नज़र आती है पर हम छोटे-छोटे मामलों को लेकर सर फोडऩे को तैयार हैं। दुनिया आर्टीफीशयल इंटलैजंस में नई से नई खोज कर रही है पर हम बोल पर पाबंदी लगाने की कोशिश कर रहे है। क्या अभिव्यक्ति की आजादी पर पहरा लगा कर देश तरक्की कर सकेगा? अमेरिका में रह रहे भारतीयों की औसत आय 88,000 डॉलर है जबकि अमेरिकी की 50,000 डॉलर है। अर्थात अगर मौका मिले तो हम कुछ भी कर सकते हैं। अपने स्वर्णिम इतिहास को दोहरा सकते हैं। लेकिन क्या यह कमबख्त राजनीति इसकी इज़ाजत देगी या एक-दूसरे से च्मुक्तज् करवाने के लिए हमें लड़ाते-झगड़ाते ही रहेंगे? इसी सवाल के जवाब पर हमारा कल निर्भर करेगा।
अंत में: सोशल मीडिया कई बार परेशानी का सबब बन जाता है पर कई बार बहुत खूबसूरत संदेश भी मिलते हैं। ऐसा संदेश ही किसी ने भेजा है जिसे गणतंत्र दिवस की बधाई के साथ मैं पेश कर रहा हूं, “क्या बनाने आए थे क्या बना बैठे/ कहीं मंदिर बना बैठे कहीं मस्जिद बना बैठे/ हमसे तो जात अच्छी है परिंदों की/ कभी मंदिर पर जा बैठे तो कभी मस्जिद पर जा बैठे”
कल, आज और कल (Past, Present and Future of India),