यह एक अनूठा सफर रहा। हम 71 वर्ष के हो गए। राम प्रसाद बिसमिल जिन्हें 30 वर्ष की आयु में अंग्रेजों ने फांसी दे दी थी कवि भी थे। उन्होंने एक बार लिखा था : इलाही वह दिन भी होगा जब अपना राज देखेंगे, अब अपनी ही ज़मीं होगी, अपना आसमां होगा।
अब अपनी जमीन और आसमां को मिले 71 वर्ष से उपर हो गए। सवाल उठता है कि इसका हमने बनाया क्या है? यह वह देश ही नहीं रहा 1947 में जिसकी आधी जनसंख्या गरीब थी। अब हम सवा सौ करोड़ के हो गए पर कोई पेट भूखा नहीं सोता। हम विश्व की छठी सबसे बड़ी अर्थ व्यवस्था हैं और जल्द पांचवें पायदान पर होंगे। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने कहा है कि भारत दशकों तक विश्व विकास का इंजन रहेगा, जैसा चीन रहा है। अंग्रेजों से छुटकारा पाकर हमने तरक्की की राह पकड़ी। इसलिए आज इस मौके पर देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को याद करना चाहिए, चाहे इसका आजकल फैशन नहीं है। उन्होंने ही बंटवारे के बाद इस टूटे हुए निरुत्साहित देश को संभाला था। गांधी जी की हत्या आजादी के अगले वर्ष हो गई, सरदार पटेल का 1950 में स्वर्गवास हो गया। यहां करोड़ों बेघर थे और लाखों का कत्ल हो चुका था। उस अभिघात के बीच देश को संभालना, उसका विवेक कायम रखना और सही दिशा देनी कोई मामूली काम नहीं था। अगर हम दूसरा पाकिस्तान नहीं बने तो इसका बड़ा श्रेय नेहरू तथा उस वक्त के नेतृत्व को जाता है।
इसलिए अफसोस है कि नेहरू के नाम से वर्तमान नेतृत्व को चिढ़ है लेकिन उन्हें पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का संसद में दिया भाषण सुनना चाहिए जहां उन्होंने जिक्र किया है कि विदेशमंत्री बनने के बाद साऊथ ब्लॉक के गलियारे में पहले लगा नेहरू जी का चित्र जब उन्होंने गायब पाया तो उन्होंने सवाल किया और फिर वह चित्र लगा दिया गया। अटल जी बताते हैं कि वह नेहरू जी की आलोचना करते रहते थे लेकिन उन्होंने कभी बुरा नहीं माना। अटल जी सवाल करते हैं “क्या देश में ऐसी भावना बंद हो जाएगी? आजकल ऐसी आलोचना करना तो दुश्मनी को दावत देना है। लोग बोलना बंद कर देते हैं।“
अफसोस है कि पिछले कुछ वर्षों में यह कटुता बढ़ी है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी 2015 में राज्यसभा में दिए भाषण में कहा था, “बिखरने के बहाने इतने बड़े देश में बहुत मिल जाएंगे पर कुछ लोगों का दायित्व है कि जोडऩे का अवसर खोजे। “ लेकिन जोडऩे का यह दायित्व निभाएगा कौन? इस वक्त तो सब वोट के चक्कर में हैं सही नेतृत्व देने की फुर्सत किसके पास है? असम में सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियंत्रित एनआरसी पर भडक़ कर ममता बैनर्जी ने गृहयुद्ध तथा खून-खराबे की चेतावनी दी है। कौन किसका खून करेगा? किस की फौज किस से युद्ध करेगी? शायर ने इन्हीं के लिए कहा है,
उसे तो अपने गुलदस्ते की रौनक से ही मकसद है,
कहां गुलचीं को फुर्सत कि दर्द-ए-गुलिस्तान समझे
इमरान खान ने एक बार कहा था कि जब वह दुबई में क्रिकेट खेलते थे तो उस वक्त टॉप मैनेजमैंट भारतीय और पाकिस्तानियों की थी, लेकिन उनका कहना था, “अब टॉप मैनेजमैंट भारतीय है और लेबर पाकिस्तानी हैं।“ यह परिवर्तन क्यों आया? दुनिया भर में हमारे पढ़े-लिखे मेहनती लोगों की मांग है जबकि पाकिस्तानी पिछड़ते जा रहे हैं। उनकी जेहादी छवि के कारण मध्यपूर्व तथा खाड़ी के कई देश अब उनका अंदर आना बंद कर रहे हैं। संयुक्त अरब अमिरात में तो सरकारी तंत्र ही एक प्रकार से भारतीय चला रहें हैं।
हमारी छवि एक सहिष्णु, सभ्य तथा शांतमय देश की है जबकि पाकिस्तान अपने जेहादी कारखाने के कारण बदनाम है। जरूरी है कि हम अपनी इस छवि को बरकरार रखें। अफसोस है कि धर्म के नाम पर कुछ लोग कानून अपने हाथ में ले रहे हैं। प्रधानमंत्री से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक जिसे लिंचिंग कहा जाता है की निंदा कर चुके हैं लेकिन फिर भी यह बंद क्यों नहीं हो रही? इसलिए कि जो इसे प्रोत्साहित करते हैं उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं होती। अगर जयंत सिन्हा जैसों पर कार्रवाई की जाती तो देश-विदेश में सही संदेश जाता। मैं विदेश की बात इसलिए कर रहा हूं क्योंकि अब विदेश में हमारी छवि नकारात्मक जानी शुरू हो गई है। इसे रोकने के लिए स्वदेश को शांत रखना है। मीडिया का एक वर्ग भी स्थिति को भडक़ाने में लगा रहता है। लोगों को भी अपने अधिकारों की बहुत जानकारी है राष्ट्रीय कर्त्तव्य के बारे वह अंजान है।
जब लोग कानून हाथ में लेने लग पड़ते हैं तो उसके बहुत दुष्परिणाम निकलते हैं। जिस तरह कांवड़ यात्रा के दौरान उत्पात मचाया गया और बुलंदशहर में तो पुलिस की जीप तक जला दी गई और पुलिस तमाशा देखती रह गई, बिल्कुल शर्मनाक है। पुलिस अफसर जिनका काम इन्हें संभालना था उपर से हैलिकाप्टर द्वारा फूल बरसा रहे थे। हालत तो यह बन गई कि देश के सबसे बड़े कानून अफसर अटार्नी जनरल के.के. वेणुगोपाल ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि पुलिस मशीनरी भीड़ की हिंसा को रोकने में नाकाम हो रही है। उन्होंने तो सुप्रीम कोर्ट से निवेदन किया कि प्रदर्शनकारियों या दूसरों के द्वारा लूटपाट या हिंसा की सूरत में अदालत पुलिस बलों की जिम्मेवारी तय करे।
यह अजब निवेदन है। सरकार के सबसे बड़े कानून अफसर ही स्वीकार कर रहे हैं कि सरकारी मशीनरी भीड़ के आगे बेबस है, लाचार है। इसका कारण क्या है? इसका कारण है कि जिनके हाथ में बागडोर है उन्हें देश की नहीं वोट की अधिक चिंता है। वह किसी भी वर्ग को नाराज नहीं करना चाहते इसलिए बार-बार हथियार फैंके जा रहे हैं।
जब व्यवस्था कमजोर हो जाती है और अपना धर्म निभाने से चुराती है तो उसके कैसे-कैसे दुष्परिणाम निकलते हैं वह बिहार और उत्तर प्रदेश के शैल्टर होम में नन्हीं बच्चियों के साथ जो रेप होते रहे उससे पता चलता है। बिहार के मुजफ्फरपुर के कथित बालिक गृह में दस-दस साल की बच्चियों को नशा करवा उनसे बलात्कार किया जाता रहा। जो ब्रजेश ठाकुर यह कथित शैल्टर चलाता था के बारे में बताया गया है कि गिरफ्तारी के पहले 70 दिनों में वह केवल 5-6 दिन ही अपने सैल में रहा बाकी समय मज़े से अस्पताल में था।
चार वर्ष से यह अत्याचार चल रहा था, किसी को पता नहीं चला? पता नहीं चला या संलिप्तता थी? उत्तर प्रदेश में देवरिया के एक शैल्टर होम में देह व्यापार का मामला बाहर आया है। 24 बच्चियां बचाई जा चुकी हैं पर 19 अभी भी गायब है। मामला वहां से भागी 10 वर्ष की लडक़ी द्वारा यह बताए जाने के बाद कि वहां ‘गंदा काम’ हो रहा है सामने आया। यह कैसी गली-सड़ी व्यवस्था है? यह कैसा राजनीतिक नेतृत्व है कि उसे खबर ही नहीं? ऐसी घटनाओं के बारे सुन कर साहिर लुधियानवी के साथ सवाल करने को मन करता है,
जिन्हें नाज़ है हिन्द पर वो कहां हैं!
इन 71 वर्षों में हमने बहुत तरक्की की है पर अहसास है कि एक समाज के तौर पर हमारा पतन हुआ है। हम अधिक असहिष्णु, अधिक असंवेदनशील, अधिक निष्ठुर बन गए हैं। भ्रष्टाचार बढ़ा है। भौतिकवाद की इस दौड़ में कहीं हम अपने मूल्यों से कटते जा रहे हैं। परिवार टूट रहे हैं। हम अंतरिक्ष में भी ताकत है। हमारी मिडल क्लास लगातार बढ़ती जा रही है। हर हाथ में मोबाईल है। बाईक और कार आम हो गई गए हैं। खाना-पीना सब बेहतर हो गया है लेकिन हमने अपने समाज को अधिक न्यायपूर्ण, सभ्य तथा बराबर बनाने में निवेश नहीं किया इसीलिए इतना तनाव नज़र आता है। इसे बदलना है।
भारत की आजादी के समय बुरी तरह से तड़प रहे चर्चिल ने कहा था, ”अंग्रेजों के जाने के कुछ समय बाद भारत अपनी सदियों पुरानी रुढ़ियों के कारण मध्यकालीन तथा प्राचीन व्यवस्था में पहुंच जाएगा। ऐसे में भारत अगर 50 वर्ष भी आजाद रह जाए तो गनीमत होगी।“ हमने चर्चिल को गलत साबित कर दिया अब हम बढ़ते ही जाएंगे। भारत एक महाशक्ति बनता जा रहा है लेकिन आतंरिक कमज़ोरियों से ग्रस्त है। इन्हें हम ढक रहे हैं जबकि जरूरी है कि इन्हें जड़ से उखाड़ा जाए।
जिन्हें नाज़ है हिन्द पर वो कहां हैं? (Where Are They Who Are Proud of India?),