पहाड़ों की रानी की झुर्रियां (The Wrinkles of The Queen of Hills)

हिमाचल प्रदेश कई मामलों में देश का सर्वश्रेष्ठ प्रांत है। विकासशील है और बहुत मामलों में बाकियों के लिए मिसाल है। लोग शालीन और शांतिप्रिय हैं। यह शायद देश का एकमात्र प्रदेश है जिसने देश के लिए कभी कोई बड़ी समस्या खड़ी नहीं की। न कोई हिंसक आंदोलन चला न कभी कानून और व्यवस्था की स्थिति संभालने के लिए केन्द्रीय बलों की ही जरूरत पड़ी। लेकिन यह भी दुर्भाग्यपूर्ण तथ्य है कि किसी भी प्रदेश ने अपनी राजधानी को इस तरह बर्बाद नहीं किया जैसा हिमाचल प्रदेश ने किया। बाकी प्रदेश अपनी-अपनी राजधानी को चमकाते रहते हैं लेकिन हिमाचल की राजधानी शिमला के तो फटे हाल है, दम फूल चुका है और यह गंभीर रूप से बीमार है।

अंग्रेजों ने इस शहर को 16,000 लोगों के लिए बसाया था। आज शिमला की जनसंख्या 1.8 लाख है और अगर आसपास की आबादी भी शामिल कर ली जाए तो यह सवा दो लाख से अधिक बन जाती है। उपर से राजधानी होने के कारण तथा बड़े टूरिस्ट सैंटर होने के कारण रोजाना हजारों लोग यहां पहुंचते हैं। इससे कमाई जरूर होती है पर कड़वी सच्चाई है कि शिमला इस बोझ को उठा नहीं सकता। शिमला को कभी पहाड़ों की रानी कहा जाता था। आज इस रानी के चेहरे पर झुर्रियां आ चुकी है और इसके दांत टूट चुके हैं। शहरीकरण तथा सरकारी लापरवाही ने इसकी कमर तोड़ दी है। आकर्षण खत्म हो रहा है।

इस वक्त पानी की समस्या नियंत्रण में है लेकिन एक महीने पहले पानी की इतनी किल्लत थी कि कई क्षेत्रों में दस-दस दिन पानी नहीं मिल रहा था। टूरिस्ट ने आना बंद कर दिया था और होटल वाले खुद बुकिंग रद्द कर रहे थे। एक रात तो परेशान नागरिकों ने मुख्यमंत्री के आवास का घेराव कर लिया था। ऐसी घटना तो पहले हिमाचल में सुनी भी नहीं गई थी। यह भी समाचार है कि लोग शमशान के नल से पानी भरने को मजबूर थे। हालात इतने संगीन हो गए थे कि हाईकोर्ट को दखल देना पड़ा था। भीषण जल संकट के लिए जिम्मेवार अधिकारियों और कर्मचारियों के खिलाफ क्या कार्रवाई की गई, ऐसा सवाल हाईकोर्ट ने उठाया था। सरकारी एफिडेविट में बताया गया कि 5 मिलियन लीटर पानी रोजाना लीकेज या चोरी से बर्बाद हो रहा है। पर यह नहीं बताया गया कि इसे कैसे रोका जाएगा।

शिमला की त्रासदी का बड़ा कारण है कि वह प्रशासनिक तथा राजनीतिक उपेक्षा का शिकार है। किसी ने भी यह ध्यान नहीं दिया कि शिमला पर जो भारी दबाव पड़ रहा है उसका सामना कैसे करना है? अब मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने घोषणा की है कि अगले साल तक पानी की समस्या पर नियंत्रण पा लिया जाएगा। अश्विनी खड्ड से 10 मिलियन लीटर पानी रोजाना लाया जाएगा। लेकिन ऐसी ही घोषणाएं उनसे पहले मुख्यमंत्री भी कर चुके हैं पर परनाला वहीं का वहीं है, केवल जब जरूरत पड़े तो इसमें पानी नहीं आता! और यह वही अश्विनी खड्ड है जिसके पानी में सीवरेज का पानी मिलने से शहर में पीलिया फैल गया था। राजनीतिक लापरवाही का आलम यह है कि जब शिमला भीषण संकट से गुजर रहा था तो मेयर कुसम सदरेट चीन की यात्रा पर थीं। इस संकट के बावजूद वह यात्रा बीच में छोड़ कर नहीं लौटी। हैरानी है कि उन्हें अभी तक बर्दाश्त किया जा रहा है।

लेकिन पानी का संकट तो केवल लक्षण है। शिमला की समस्या गहरी है। आधुनिकता ने इसे तबाह कर दिया। यह तो वह शहर रहा ही नहीं जहां हम बचपन में भाग कर जाया करते थे। अब घरों में पंखे लग रहें है और कई दुकानों में एसी लग चुके हैं। भीड़ भरी प्रसिद्ध मालरोड पर चलना अब एक कसरत बन चुका है। इतना अवैध निर्माण हो चुका है कि विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि भूकंप की स्थिति में भागने के लिए खुली जगह नहीं रही। कई बाजार तथा आबादियां ऐसी हैं जहां भूकंप की स्थिति में न फायर ब्रिगेड ही पहुंच सकेगा, न एम्बुलैंस।  नैशनल ग्रीन ट्राईबयूनल (एनजीटी) की हाई पॉवर विशेषज्ञ कमेटी के अनुसार “शिमला ऐसी जगह पहुंच चुका है जब बड़े भूकंप से अभूतपूर्व प्राण हानि होगी, प्रशासन पंगू हो जाएगा और अर्थ व्यवस्था अस्त-व्यस्त हो जाएगी।“

लेकिन चिंता किसे है? नगर निगम तो स्वीकार कर ही चुका है कि उसके पास अवैध निर्माण को हटाने के लिए मैन पॉवर नहीं है। जहां तक प्रदेश सरकार का सवाल है वह वर्षों से ही नहीं दशकों से चुपचाप रानी के चीरहरण को देख रही है। बार-बार चेतावनियां दी जा चुकी हैं। शहर के अंदर पेड़ों को काटने पर पूर्ण पाबंदी है पर फिर भी कई ऐसी मिसालें हैं जहां शानदार देवदार पेड़ों को घर बनाने या व्यापारिक इमारत बनाने के लिए काट दिया गया है। पहाड़ पर इमारत के उपर इमारत बनाई जा रही है। अगर झटका लगा तो सब ताश के घर की तरह ढह जाएंगे। बड़ी बार शिमला की घनता को कम करने के लिए सुझाव दिया गया है कि कुछ सरकारी दफ्तरों को दूसरे शहरों में भेज दो लेकिन ऐसे कदम के लिए राजनीतिक और प्रशासनिक दम किसके पास है?

शिमला की जो दुर्दशा है वही कहानी हिमाचल प्रदेश में जगह-जगह दोहराई जा रही है। ब्यास नदी पर स्थित मनाली शहर में भी जून में तीन दिन पानी नहीं मिला। कश्मीर की स्थिति के कारण प्रदेश के लिए बढ़िया मौका है पर छोटे हिल स्टेशन इतना दबाव नहीं झेल सकते। नए टूरिस्ट केन्द्र खोलने की जरूरत है और हिमाचल में तो बेशूमार सुंदर जगह है। बचपन में हम बर्फीला पहाड़ चढ़ कर रोहतांग दर्रे तक पहुंचे थे आज वहां ट्रैफिक जाम लग रहा है। प्लासटिक के ढेर हैं। इनकी इज़ाजत क्यों दी गई? जो वाहन उपर जाते हैं उनकी संख्या निधारित क्यों नहीं की गई? रोहतांग तक जाने के लिए रोपवे पर विचार क्यों नहीं किया गया जैसे स्विटज़रलैंड, जर्मनी, आस्ट्रिया आदि में आम देखा गया है? इसका कारण भी बेपरवाही है। नई सोच ही नहीं। सब सीमेंट की बदसूरत इमारतें बनाने में लगे हैं।

हमारी समस्या है कि हमारे लोग भी नियम और अनुशासन में नहीं रहते। सख्ती के बिना नियंत्रण में नहीं रहते। हिमाचल में हम यह भी देख रहे हैं कि किस तरह हर बड़े-छोटे पर्यटन स्थलों में अवैध होटलों की भरमार हो गई है।  कसौली में अवैध निर्माण हटाते वक्त सहायक टाऊन पलैनर शैल बाला की हत्या के बाद से सरकार जरूर कुछ सक्रिय हुई है। हाईकोर्ट का भी डंडा है। अब कुल्लू-मनाली, कसौली, मक्लोडगंज, धर्मशाला आदि में अवैध निर्माण के खिलाफ कार्रवाई हो रही है। छोटे से कासौल में 40 होटल सील किए गए। मक्लोडगंज में दर्जनों अवैध होटलों की पॉवर स्पलाई काट दी गई लेकिन जैसे मनाली होटल एसोसिएशन के प्रधान गाजेन्द्र सिंह ठाकुर ने भी सवाल उठाया है, “होटलों ने गैर कानूनी काम किया हो सकता है पर अधिकारी क्यों खामोश रहे जब यह ढांचे खड़े हो रहे थे? “

क्या इसका कोई जवाब है? मिलीभगत है और लापरवाही है। सब चलता है कि संस्कृति है। कसौली की घटना के बाद इतना तूफान उठा है पर जिन्होंने अवैध निर्माण के बारे आंखें मूंद रखी थीं ऐसे किसी भी अधिकारी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई। पंजाब में तो मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू के आदेश पर ऐसे अधिकारी जिन्होंने अवैध निर्माण होने दिया निलंबित हो चुके हैं पर हिमाचल में ऐसी कोई हलचल नजर नहीं आती।

क्या शिमला को उभारने का कोई रास्ता है? क्या पहाड़ों की रानी का जलवा फिर लौट सकता है? यह बहुत मुश्किल काम नजर आता है क्योंकि स्थिति पौंयट ऑफ नो रिटनर्स से आगे निकल चुकी है। अब तो और बिगडऩे से बचाने की जिद्दोजहद करनी पड़ेगी। पानी के संकट ने बता दिया है कि पानी सर तक पहुंच चुका है इसीलिए जरूरी है कि जो आदेश हाईकोर्ट या एनजीटी का है और जो सरकार के अपने कानून और नियम है उनका ईमानदारी तथा सख्ती से पालन करवाया जाए। इसमें लोगों का सहयोग बहुत जरूरी है जो इस वक्त नहीं मिल रहा और न ही मांगा जा रहा है। प्रशासन को भी अपनी कायरता छोडऩी पड़ेगी और सबको समझना होगा कि हालत गंभीर है और अगर नहीं संभले तो बहुत जल्द नैनीताल की तरह प्रवेश द्वार पर यह बोर्ड लगाना पड़ेगा कि “शिमला हाऊसफुल है। कृप्या आने का कष्ट न करें।“

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Chander Mohan is the grandson of the legendary editor of Pratap, Mahashya Krishan. He is the son of the famous freedom fighter and editor, Virendra. He is the Chief Editor of ‘Vir Pratap’ which is the oldest hindi newspaper of north west india. His editorial inputs on national, international, regional and local issues are widely read.