आजाद भारत के इतिहास में ऐसा रोमांचक क्षण पहले 16 दिसम्बर, 1971 को आया था जब ढाका में पाकिस्तान की सेना ने समर्पण कर दिया और इसके साथ ही बांग्लादेश का युद्ध समाप्त हो गया था। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का रेडियो पर भाषण सुनने के लिए तब देश देर रात तक जागा था। अब यह दूसरा मौका था जब रोमांचित हुआ देश चंद्रयान-2 की पूर्ण सफलता की इंतजार में देर रात तक जागा हुआ था। 7 सितम्बर शनिवार की सुबह 1.50 मिनट पर चारों तरफ उत्साह था। विक्रम लैंडर ने चांद पर अपना उतार शुरू कर दिया था। बड़े स्क्रीन पर हरा बिन्दु निर्धारित लाल रेखा के साथ चल रहा था कि एक मिनट के बाद सब गड़बड़ हो गया। 3.84 लाख किलोमीटर सफर तय करने के बाद महज़ 2.1 किलोमीटर की दूरी पर सम्पर्क टूट गया। उस वक्त सारा देश मायूसी में डूब गया था। इतना नजदीक पर फिर भी इतना दूर। यह ‘हार्टब्रेक’ का समय था। दिल टूट गया पर उस वक्त मुझे फैज़ अहमद फैज़ का यह शेज्र याद आ गया,
दिल नाउम्मीद तो नहीं, नाकाम ही तो है!
ठीक है हमें 100 प्रतिशत सफलता नहीं मिली पर 98 प्रतिशत तो मिली है। इस मिशन के तीन हिस्से हैं। चंद्रयान-2, विक्रम तथा प्रज्ञान। इनमें से दो विक्रम तथा प्रज्ञान असफल हो गए लगते हैं चाहे इसरो का कहना है कि चांद की सतह पर लैंडर विक्रम को ढूंढ निकाला गया है वह टूटा नहीं पर तिरछा पड़ा है जिस कारण अभी तक उससे सम्पर्क नहीं हो रहा। इसका अर्थ है कि जो परीक्षण चांद की सतह पर विक्रम तथा प्रज्ञान ने करने थे वह नहीं हो सकेंगे पर खुद औरबिटर चंद्रयान-2 जीवित है और शीघ्र संदेश भेजना शुरू कर देगा और सात साल भेजता रहेगा। इस मिशन के जो 13 वैज्ञानिक उपकरण है इनमें से 8 औरबिटर में है। यह बहुत बड़ी उपलब्धि है कि हम वहां पहुंच सके जहां केवल अमेरिका, रुस और चीन ही पहुंच सके हैं। बहुत साहसी प्रयास है। ठीक कहा गया ‘स्पेस इज ए रिस्की बिसनेस’ अर्थात अंतरिक्ष जोखिम भरा मामला है। 1 फरवरी 2003 की वह भीषण दुर्घटना अभी भी याद है जब नासा के स्पेस शटल में कल्पना चावला समेत चालक दल के 7 सदस्य मारे गए थे। हर अभियान सफल नहीं होता पर हर असफलता से वैश्विक अंतरिक्ष समुदाय कुछ न कुछ सीखता है। चंद्रयान-1 ग्यारह वर्ष पहले भेजा गया था और वह यह ढूंढने में सफल रहा था कि चांद की सतह पर पानी है। उसी की सफलता पर चंद्रयान-2 भेजा गया और अब इसकी आंशिक सफलता पर चंद्रयान-3 भेजा जाएगा। हमारा मंगलयान पहले सफल रहा है। गगनयान समेत इसरो सभी मिशन तय समय पूरे होंगे, ऐसा विश्वास इसरो के चेयरमैन ने दिया है।
इसरो का सफर उत्कृष्ट तथा असाधारण रहा है। वह चित्र उपलब्ध हैं जब शुरू में इनका कुछ सामान साईकल के कैरियर पर ले जाया जा रहा था। अब हम प्रमुख अंतरिक्ष शक्ति है। आखिरी क्षणों में कुछ नाकामी के बावजूद यह हमारा एक बड़ा कदम था। संदेश है कि हम कर सकते हैं और हम यह कामयाबी बहुत कम खर्चे में हासिल कर सकें। यह खर्च अमेरिकी अंतरिक्ष अभियानों का बहुत छोटा हिस्सा है जिस बात का वर्णन वाशिंगटन पोस्ट ने भी किया है। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने बढ़िया तारीफ की है, “अंतरिक्ष आपकी मुट्ठी में है… आपने अपने सफर से हमें प्रेरित किया है।“ हां कुछ लोगों को जरूर मिर्ची लगी है जिन्हें मोदी काल की कोई भी उपलब्धि हज़म नहीं होती। पाकिस्तान के सूचना मंत्री फावद चौधरी का भी कहना है कि, “जो काम नहीं आता पंगा नहीं लेते।“ पाकिस्तान वह देश है जिसका अपना कोई अंतरिक्ष कार्यक्रम नहीं है। जो मिसाईलें इत्यादि हैं वह भी चीन की देन है अपना कुछ नहीं, भीख के कटोरे के सिवाय। लेकिन वहां फावद चौधरी की भी खूब आलोचना हुई है। उसकी बेतुकी प्रतिक्रिया पर उसे ट्रौल किया गया है। पाकिस्तान की त्रासदी है कि भारत के साथ स्पर्धा या भारत के साथ तुलना या भारत की आलोचना करने या अपमान करने के सिवाय उनके पास कोई राष्ट्रीय धंधा नहीं है।
लेकिन उस दिन की कहानी दो व्यक्तियों का वर्णन किए बिना पूरी नहीं होती। एक चाय वाले का बेटा है तो दूसरा एक गरीब अनपढ़ किसान का।
इसरो के चेयरमैन ‘राकेट मैन’ के.सीवन एक साधारण किसान के बेटे हैं। इसरो के चेयरमैन बनने तक उनका सफर भी असाधारण रहा है ठीक जिस तरह ‘मिसाईल मैन’ एपीजे कलाम का सफर रहा था। दोनों का जन्म गरीब परिवारों में हुआ। बहुत मुश्किल से पढ़ाई पूरी की। एक समय पांव में जूते भी नहीं थे। सीवन अपने परिवार में पहले स्नातक है और वह उस शिखर तक पहुंच सके जहां बहुत कम जाने की सोचते हैं। कितना कठिन सफर रहा होगा? कैसी-कैसी बाधाओं को पार किया होगा? लेकिन पूरी तरह से नम्र और शालीन हैं यहां तक कि पूरी सफलता न मिलने पर आंसू भी बहा दिए जिस पर प्रधानमंत्री मोदी ने उन्हें गले लगा ढांढस दिया। कई लोगों ने एक वैज्ञानिक द्वारा भावनात्मक प्रदर्शन की आलोचना की है। उनका कहना है कि मर्द सार्वजनिक आंसू नहीं बहाते। कमजोरी नहीं दिखाते। कई परिवार जरूर हैं जहां ऐसा संयम रखा जाता है। इंग्लैंड की राजकुमारी डायना की दुर्घटना में मौत के बाद उनके दोनों पुत्र विलियम तथा हैरी पूरी तरह से टूट गए थे लेकिन सार्वजनिक उन्होंने कोई भावना व्यक्त नहीं की। नेहरू-गांधी परिवार में भी यह परम्परा है कि वह लोगों के सामने अपने भाव व्यक्त नहीं करते। संजय गांधी की दुर्घटना में मौत के समय इंदिरा गांधी ने काले चश्मे के पीछे अपने चेहरे को छिपा लिया था। ठीक इसी तरह राजीव गांधी की हत्या के बाद सोनिया गांधी ने भी किया था।
थोड़ा बहुत भावना व्यक्त करना कमजोरी व्यक्त नहीं करता। आखिर हम इंसान हैं। चंद्रयान-2 को लेकर इसरो के चेयरमैन तथा वैज्ञानिक कितने तनाव में रहे होंगे इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। महीनों की मेहनत पूरी तरह सफल नहीं हुई निराशा तो स्वाभाविक है। तनाव के क्षणों में इंसान खुद को संभाल कर रखता है लेकिन उसके खत्म होने के बाद कई बार जज्बात का बांध टूट जाता है। देश को के.सीवन तथा अपने वैज्ञानिकों पर गर्व है। वह वास्तव में ‘भारत रत्न’ उपाधि के हकदार हैं।
यह अच्छी बात है कि उस समय वैज्ञानिकों तथा देश को संभालने के लिए प्रधानमंत्री मोदी वहां मौजूद थे। वह पहले प्रधानमंत्री हैं जो देर रात तक वहां बने रहे और वैज्ञानिकों को आशा का संदेश दिया। उन्होंने मुरझाए चेहरों में फिर से जान डाल दी। और जिस प्रकार उन्होंने निराश सीवन को गले लगाया वह देश के लिए अद्भुत क्षण था। इस पर जो आपत्ति कर रहे हैं वह जहनुम में जाएं! उस वक्त तो सारा देश के. सीवन को गले लगाना चाहता था! जो राष्ट्रीय मायूसी का मौका हो सकता था उसे मोदी ने राष्ट्रीय उपलब्धि में बदल दिया। केवल आत्मविश्वास से भरपुर राष्ट्रीय नेता ही असफलता को सकारात्मक संदेश में बदल सकता है।
उस रात करोड़ों भारतीय आंखें अंतरिक्ष पर लगी हुई थी। के.सीवन तथा उनके वैज्ञानिकों के साथ हम भी दुखी थे क्योंकि सबने सोच लिया था कि हम सफल जरूर होंगे पर चांद ने हमें सबक सिखा दिया कि रास्ते में रुकावटें भी आ सकती हैं। लेकिन विश्वास है कि एक दिन शीघ्र हम सफल अवश्य होंगे। और हमें इससे भी आगे जाना है। इसलिए अपने वैज्ञानिकों को इकबाल के शब्दों में मेरा कहना है,
तू शाही है परवाज़ है काम तेरा,
तेरे सामने आसमान और भी है!
तेरे सामने आसमान और भी है (You Have More Skies To Conquer),